दुष्ट काज़ी

एक दिन बादशाह अकबर के दरबार मे एक किसान आया, उसका नाम सैफ अली था। अकबर उससे कहतें हैं:

अकबर – बोलो कैसे आना हुआ?

सैफ अली – जहाँ पनाह छह महीने पहले मेरी बीबी गुज़र गई, जिसके चलते मैं अपनी ज़िंदगी मे बिल्कुल अकेला हो गया हूँ। अभी छह महीने पहले बहुत खुशी से ज़िन्दगी काट रहा था, फिर अचानक मेरी बीबी गुज़र गई। मेरी कोई औलाद भी नही है जिसके सहारे मैं अपनी ज़िंदगी काट लूँ।

अकबर – हमें बहुत दुख हुआ ये सब सुनके!

सैफ अली – जहाँ पनाह मैं खेती करके थोड़े बहुत पैसे कमा लेता हूँ, पर मेरा अब किसी काम मे मन ही नही लग रहा है। फिर एक दिन मुझे काज़ी अब्दुल्ला मिले और उन्होंने मेरे हाल चाल पूछे। मैने उन्हें अपनी पूरी कहानी बताई, “मैंने कहा मेरी बीबी गुज़र गई जिस की वजह से मैं बहुत अकेला हो गया हूँ।”

तो उन्होंने मुझसे कहा तुम एक काम करो अजमेर चले जाओ, ख्वाजा के दरबार मे, वहाँ तुम्हे काफी सुकून मिलेगा। मैं उनकी इस बात से सहमत हो गया फिर उस रात मैं यही सोचता रहा कि मैं अपनी ज़िन्दगी भर की जमा पूंजी कहाँ छोड़ कर जाऊंगा।

फिर मैंने सोचा इस काम के लिए काज़ी अब्दुल्ला से बेहतर कौन हो सकता है। फिर मैं अगले दिन काज़ी अब्दुल्ला के घर अपनी जमा पूंजी लेकर पहुँचा, वह रखने के लिए राजी हो गए। उन्होंने मुझ से कहा तुम इत्मीनान से जाओ मैं इसकी हिफाज़त करूँगा और उन्होंने उस थैले पर मुझसे मोहर लगाने को कहा।

मैंने उस पर मोहर लगाई और थैला दे दिया। फिर मैं इत्मिनान से अजमेर को चला गया। जब मैं वहां से बापस लौटा तो मैंने सोचा मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी बच्चो को इल्मी तालीम देने में निकाल दूंगा और जो मेरी जमा पूंजी है मैं उससे गुजारा कर लिया करूँगा।

फिर जब मैं काज़ी अब्दुल्ला के नगर पहुंचा, जब मैं उनके घर पहुंचा तो उन्होने मुझे मोहर देखने को कहा, मोहर ठीक लगी है? मैंने कहा मोहर तो ठीक है और मैं थैला घर लाया।

जब मैंने घर आकर थैला देखा तो उसमे सोने की अशर्फियों की जगह पत्थर भरे हुए थे। फिर मैं काज़ी अब्दुल्ला के पास गया और कहा मैंने तो आपको सोने की अशर्फियाँ दी थीं, फिर इसमें पत्थर कैसे बन गए? काज़ी ने कहा जिस तरह तुमने मुझे थैला दिया बैसे ही मैंने तुम्हे दे दिया था। तुम मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हो।

हम दोनों में काफी देर बहस हुई और काज़ी अब्दुल्ला ने मुझे अपने घर से जाने को कह दिया जहाँ पनाह अब मैं क्या करूँ? मुझे इंसाफ चाहिये।

अकबर – हूँ ! तुम क्या कहते हो बीरबल तुम्हारा क्या कहना है?

बीरबल – जहाँ पनाह मैं कुछ जानना चाहता हूँ, बीरबल सैफ अली से थैला लेते हैं और उसे जांचते हैं। बीरबल सैफ अली को थैला बापस लौटा देते है और कहतें है जहाँ पनाह मुझे कुछ वक्त चाहिये मुझे आप दो दिन का वक्त दें।

अकबर – हाँ-हाँ बीरबल क्यों नही हम तुम्हें वक्त देते है और सैफ अली अगर तुम्हारी बात झूठी निकली तो तुम्हे एक साल के लिए करबास में डाल दिया जाएगा और जब तक ये फैसला नही हो रहा जब तक तुम हमारे महमान हो।

फिर क्या था बीरबल सच्चाई की खोज करने लगे और अपनी एक पोशाक को जान बूझ कर फाड़ कर अपने सेवक को बुलाया और उससे कहा जो शहर का सबसे अच्छा दर्जी हो उससे रफू करबा कर लाओ।

सेवक – मैं अभी जाता हूँ और अच्छे से दर्जी का पता लगाता हूँ।

सेवक सबसे अच्छे दर्जी की तलाश में निकल जाता है। थोड़ी देर में वो सेवक पोशाक सिलवा कर लाता है।

बीरबल – वाह क्या रफू किया है पोशाक भी सिल गयी और रफू का पता भी नही चल रहा है। वाह क्या कारीगरी है। जरा उस कारी गर का नाम तो बताओ?

सेवक – जनाब बहुत से लोग उसके बारे में जानते थे और उसे ढूंढना ज्यादा मुश्किल भी नही हुआ जनाब उसका नाम गोपाल है।

बीरबल – सेवक तुम उस दर्जी को बुला कर लाओ मुझे और भी फ़टी हुई पोशाकें सिलबानी हैं।

फिर अगले दिन अकबर के दरबार मे फैसला होता है।

अकबर – क्या दोषी का पता चल गया बीरबल?

बीरबल – हाँ जहाँ पनाह मैंने दोषी का पता लगा लिया। सैफ अली और काज़ी अब्दुल्ला को दरबार मे बुलाया जाए, दोनों को दरबार मे बुलाया जाता है।

बीरबल – सैफ अली ये क्या तुम्हारा ही थैला है?

सैफ अली – जी हुजूर ये मेरा ही थैला है।

बीरबल – काज़ी अब्दुल्ला इस थैले को पहचानते हो?

काज़ी अब्दुल्ला – जी ये थैला देखा तो है, ये थैला सैफ अली का है ये जो मेरे पास रखने आया था। ये मोहर भी इसी ने अपने हाथों से लगाई थी जो अभी खुली है। ये थैला सैफ अली जब मेरे पास रखने आया था तो मुझे क्या पता इसमे सोने की अशर्फियाँ है या पत्थर हैं। ये मुझे कैसे पता होगा इसने तो खुद इस पर मोहर लगाई थी। सैफ अली झूठ बोल रहा है।

बीरबल काज़ी अब्दुल्ला की ये बात सुनकर चौंकता है।

बीरबल – हूँ! दर्जी गोपाल को दरबार मे पेश किया जाए

दर्जी गोपाल का नाम सुनकर काज़ी अब्दुल्ला के चेहरे की हबाइयाँ उड़ जातीं हैं।

बीरबल – गोपाल तुम ये बताओ कि तुमने हाल ही में काज़ी अब्दुल्ला की किसी चीज पर रफू किया है?

दर्जी गोपाल– जी हुजूर मैने अभी हाल ही में काज़ी अब्दुल्ला का एक पैसों का थैला सिला था जो फट गया था।

बीरबल – जहाँ पनाह आप इसे क्या सज़ा देंगे इसने इतना बड़ा धोखा किया।

काज़ी अब्दुल्ला – काज़ी अब्दुल्ला गिड़गिड़ाने लगा, रहम की भीख मांगने लगा। जहाँ पनाह मैं बहुत लालची हो गया था मुझे माफ़ कर दीजिय। बस एक बार माफ कर दीजिये अब मैं कभी ऐसा नही करूंगा।

अकबर – नही तुम्हारी गलती माफ करने लायक नही है, इतने बड़े औधे पर होकर इतनी घटिया हरकत करते हुए तुम्हे शर्म नही आई। तुम्हे एक साल के लिए कारावास में डाल दिया जाए, सिपाहियों इसे ले जाओ।

सैफ अली तुम फिक्र मत करो तुम्हे तुम्हारा पैसा मिल जाएगा और साथ ही हम तुम्हारे इस नेक काम मे मदद करेंगे। हम तुम्हारे लिए एक मदरसा बनबा देंगे जिसमे तुम बच्चों को इल्मी तालीम देना।

सैफ अली – शुक्रिया जहाँ पनाह, शुक्रिया बीरबल मेरा साथ देने के लिए।

अकबर – शाबास बीरबल! अच्छा ये बताओ कि तुम्हे कैसे पता चला काज़ी अब्दुल्ला ही दोषी है?

बीरबल – जब मैंने सैफ अली के मुँह ये सुना मुझसे थैले पर मोहर लगाने को काज़ी अब्दुल्ला ने कहा तभी मैने सैफ अली से जांच करने के लिए थैला मांगा। मैं समझ गया पैसा मोहर तोड़ कर नही किसी और तरीके से निकाला गया है। फिर क्या था तलाश थी एक दर्जी की जिसे अच्छे से रफू करना आता हो।

अकबर – वाह! बीरबल वाह! तुमने एक बार फिर मिसाल कायम कर दी।

 

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