ग्रामीण और शहरी भारत की असमानता दूर होगी

इसमें कोई दो राय नही कि नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बही-खाता ग्रामीण भारत के चौतरफा विकास का स्पष्ट संकेत दे रहा है। इसमें सबसे अधिक घोषणाएं ग्राम, कृषि और किसान पर केंद्रित हैं। साफ है, देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में प्रस्तुत किया गया यह वार्षिक लेखा-जोखा देश के धरातल को मजबूत करेगा। इसलिए यह बजट आशाओं से भरा होने के साथ उम्मीद जगाने वाला भी है।

वित्त मंत्री ने महात्मा गांधी द्वारा कहे शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, इसलिए हमारा लक्ष्य अंत्योदय का उत्थान है। गोया, गांव, ग्रामीण और किसान हमारी हरेक योजना के केंद्र बिंदु में रहेगा। इसी तरह देश की नारी को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बुनियादी आधार बताते हुए उनकी भागीदारी के सुनहरे योगदान की प्रशंसा की। इस संदर्भ में स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे कथन का उल्लेख करते हुए निर्मला ने कहा कि नारी की स्थिति को सुधारे बिना संसार को सुधारा जाना संभव नहीं है।

गांधी और विवेकानंद का बजट भाषण में उल्लेख ही इस बात का पर्याय है कि देश की अर्थव्यवस्था में अब गांधी और विवेकानंद के मूल्यों का योगदान बढ़ेगा। अंत्योदय शब्द तो भाजपा के प्रेरणा पुरुष दीनदयाल उपाध्याय ने ही दिया है। इस शब्द का अर्थ है, जो जातियां हाशिए पर पड़ी गरीबी का दंश झेल रही हैं, उनके उत्थान के उपाय सरकार की प्राथमिकता में हों। मध्यम वर्ग को नजरअंदाज कर और अमीरों की तिजोरी से अतिरिक्त धन निकालकर ग्रामीण भारत के विकास में लगाना, इस बात को दर्शाता है कि सरकार ग्रामीण और शहरी भारत के बीच असमानता की जो खाई बढ़ती जा रही है, अगले पांच सालों में उसे पाटने के ठोस उपायों में लग गई है।

उच्च या मध्य वर्ग को दरकिनार कर निचले तबके की आमदनी बढ़ाने और बुनियादी संसाधन उपलब्ध कराना ही ऐसे उपाय हैं, जो समावेशी विकास के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक हो सकते हैं। इस नजरिए से किसान की आय दोगुनी करना गरीबों को स्वास्थ्य बीमा, महिलाओं को उज्ज्वला गैस चूल्हा उपलब्ध कराना, गांव के हर घर को बिजली और पाईप लाइन के जरिए नल देना, ग्रामीणों को 1 करोड़ 95 लाख आवास और 9.6 करोड़़ से ज्यादा शौचालय बनाना निसंदेह ऐसे उपाय हैं, जो लाचार को सशक्त बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। ग्राम आधारित इस बजट से उद्योग जगत को प्रसन्न होना चाहिए, क्योंकि अंतत: इन सभी योजनाओं की आपूर्ति उन्हीं के द्वारा संभव होगी। इस बजट में एक नया उपाय मछुआरों को किसान का दर्जा देकर किया गया है। साफ है, कृषि क्षेत्र को मिलने वाले सरकारी लाभ से ये मछुआरे भी जुड़ जाएंगे। मध्य-प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में करीब 3 करोड़ मछुआरों को इसका लाभ मिलेगा।

इस बजट में नवाचारी प्रयोग करते हुए अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने का लक्ष्य भी रखा गया है। हमारे अनेक किसान अपने स्तर पर ऊर्जा का निर्माण करते हैं, किंतु उन्हें महत्व नहीं दिया जाता। मालूम हो, बुंदेलखंड के मंगल सिंह नाम का एक ऐसा ग्रामीण अन्वेषक है, जिसने मंगल टर्ंबान नाम से एक ऐसा आविष्कार किया है, जो सिंचाई में डीजल व बिजली की कम खपत का बड़ा व देशज उपाय है। यह चक्र उपकरण जल-धारा के प्रवाह से गतिशील होता है और फिर इससे आटा चक्की, गन्ना पिराई व चारा कटाई मशीन आसानी से चला सकते हैं। साफ है, मंगल सिंह द्वारा निर्मित यह उपकरण उसे अन्नदाता के साथ-साथ ऊर्जादाता का भी दर्जा देता है। इस टर्ंबान का व्यावसयिक प्रयोग शुरू हो जाए तो यह मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का काम करेगा। लेकिन ऐसे ग्रामीण आविष्कारकों के साथ अकादमिक डिग्री नहीं होने के कारण इन्हें मान्यता नहीं मिलती है। हाल ही में कर्नाटक के एक अशिक्षित किसान गणपति भट्ट ने पेड़ पर चढ़ जाने वाली बाइक का आविष्कार करके देश के उच्च शिक्षित वैज्ञानिकों व विज्ञान संस्थाओं को हैरानी में डालने का काम कर दिया है। गणपति ने एक ऐसी अनूठी मोटरसाइकल का निर्माण किया है, जो चंद पलों और कम खर्च में नारियल एवं सुपारी के पेड़ों पर आठ मिनट में चढ़ जाती है। इस बाइक से एक लीटर पेट्रोल में 80 पेड़ों पर आसानी से चढ़ा जा सकता है। अब ऐसे पारंपरिक लोगों द्वारा निर्मित रचनात्मक उत्पादों को भारत सरकार बौद्धिक संपदा कानून के तहत पेटेंट कराएगी और इन्हें औद्योगिक उत्पादों के रूप में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराएगी। यदि ऐसा होता है तो धान के खेतों में उपजने वाली पराली का बड़ी मात्रा में ऊर्जा के लिए उपयोग होने लग जाएगा।

इस समय देश में कृषि उत्पादन चरम पर है। वर्ष 2017-18 में करीब 290 मिलियन टन खाद्यान्न और करीब 325 मिलियन टन फलों व सब्जियों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। बावजूद किसान सड़कों पर उपज फेंकने को मजबूर होते हैं। मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़ में टमाटर और प्याज की पैदाबार बहुत है, ऐसे में इनके मुनासिब दाम नहीं मिलते हैं। इस लिहाज से बजट यदि कृषि, किसान और गरीब को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है, तो यह सरकार की कृपा नहीं बल्कि दायित्व है, क्योंकि देश की आबादी की आजीविका और कृषि आधारित उद्योग अंतत: किसान द्वारा खून-पसीने से उगाई फसल से ही गतिमान रहते हैं। यदि ग्रामीण भारत पर फोकस नहीं किया गया होता तो जिस आर्थिक विकास दर को 7 से 9 प्रतिशत तक ले जाने की उम्मीद जताई जा रही है, वह संभव ही नहीं थी। इस समय पूरे देश में ग्रामों से मांग की कमी दर्ज की गई है। निसंदेह गांव और कृषि क्षेत्र से जुड़ी जिन योजनाओं की श्रृंखला को जमीन पर उतारने के लिए जो बजट प्रावधान किए गए हैं, वह वाकई ईमानदारी से खर्च होता है तो गांव से शहर तक खुशहाली आना तय है। ऐसे ही उपायों से शहरी और ग्रामीण भारत के बीच जो खाई चौड़ी होती जा रही है, वह सकरी होगी और देश समानता की ओर बढ़ेगा।

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