हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
मोदी और शाह का मिशन कश्मीर

मोदी और शाह का मिशन कश्मीर

by प्रमोद भार्गव
in देश-विदेश, राजनीति
0

देश के बदले राजनीतिक माहौल और जम्मू-कश्मीर पर नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की सख्ती के चलते आतंकवाद, अलगाववाद व पत्थरबाजों पर शिकंजा कसा है। नतीजतन घाटी की आबोहवा बदली-बदली नजर आ रही है। गृह-मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2016 में सेना पर पत्थर बरसाने वाले किशोर व युवाओं की संख्या ढाई हजार से ज्यादा थी, वहीं अब 2019 में घटकर कुछ दर्जनों में ही सिमट गई है। इसे सरकार की कठोर रणनीति और सैन्यबलों की सख्त कार्यवाही ही वजह माना जा रहा है। घाटी में तुलसीदास की कहावत ‘भय बिन, होय न प्रीत‘ चरितार्थ होती दिख रही है। घाटी में शांति है। डल झील की नौकाओं में पर्यटक ठहरने लगे है। अलगाववादियों पर नकेल कसने का आलम यह है कि वे अब जमीन से जुड़े रहने के लिए दुकानों के उद्घाटन के फीते काट रहे है और ऑल इंडिया हुर्रियत क्रांफ्रेंस के नेता विस्थापित कश्मीरी पंडितों से मिलकर वापसी की गुहार लगा रहे हैं। हुर्रियत ने पहली बार सरकार के साथ बातचीत की खुद पहल की है। पिछले महीने जब अमित शाह कश्मीर गए थे, तब यह भी 1987 के बाद पहली बार देखने में आया था कि किसी गृहमंत्री के कश्मीर पहुंचने पर घाटी में बंद का ऐलान नहीं किया गया। यह बदलाव कश्मीर में कयामत बरपा रहे नेताओं पर एनआईए द्वारा कसे गए शिकंजे से आया है।

जम्मू-कश्मीर में सख्ती के चलते हालात तेजी से सुधर रहे हैं। आम जन-जीवन सामान्य हो रहा है और पत्थरबाजी की घटनाएं अप्रत्याशित ढंग से घट रही है, 2016 में जहां पत्थरबाजी की 2653 घटनाएं हुई, वहीं 2019 के बीते छह महीनों में दर्जनभर वरदातें ही सामने आई हैं। इन मामलों में शरारती तत्वों की गिरतारियां भी 10,571 से घटकर 100 के आंकड़े के इर्द-गिर्द सिमट गई है। 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में आतंक और पत्थरबाजी के साथ उथल-पुथल का लंबा दौर चला था। 2017 में पत्थरबाजी की 1412 घटनाएं घटीं, नतीजतन गड़बड़ी फैलाने वाले 2838 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 2018 में पत्थरबाजी की 1458 घटनाएं घटीं, जिनमें 3,797 असामाजिक तत्व हिरासत में लिए गए। 2019 के छह महीनों के भीतर पत्थरबाजी की मात्र 40 घटनाएं घटी, जिनमें करीब 100 लोग गिरफ्तार किए गए। दरअसल 19 जून 2018 को राज्यपाल शासन लागू होने के बाद घाटी में आतंक लगातार काबू में आ रहा है और सुरक्षा की स्थिति सुधर रही है। नतीजतन फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती  द्वारा भड़काऊ बयान देने के बावजूद घाटी में शांति कायम है। 1987 के बाद ऐसी शांति पहली बार हुई है। ये हालात इसलिए बने क्योंकि 2018 में पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित 240 से ज्यादा युवा आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। 2019 में भी अब तक 123 आतंकियों को मारा जा चुका है। इसका परिणाम है कि आतंकी संगठनों को अब आसानी से पाकिस्तान और घाटी में आतंक का पाठ पढ़ाने के लिए युवक नहीं मिल रहे है। सुरक्षाबलों को जानकारी तो यहां तक मिल रही है कि एक संगठन में आया युवक दूसरे संगठन में आतंक का प्रशिक्षण लेने को आतुर दिखाई देता है तो उसकी हत्या तक करने लगे हैं। आईएसजेके, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल के आतंकियों के बीच हाल ही में वर्चस्व को लेकर हुई मुठभेड़ में एक आतंकी ने दूसरे को गोली मार दी थी।

जबकि पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन 2019 से पहले तक जम्मू-कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों पर आत्मघाती हमले करने के लिए बड़ी संख्या में मासूम बच्चे और किशोरों की भर्तियां कर रहे थे। इन्हें सेना और आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ों के दौरान इस्तेमाल भी किया गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की एक रिपार्ट में इन तथ्यों का खुलासा भी किया गया है। यह रिपोर्ट ‘बच्चे एवं सशस्त्र संघर्ष‘ के नाम से जारी हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे आतंकी संगठनों में शामिल किए जाने वाले बच्चे और किशोरों को आतंक का पाठ मदरसों में पढ़ाया गया है। पिछले साल कश्मीर में हुए तीन आतंकी हमलों में बच्चों के शामिल होने के तथ्यों की पुष्टि हुई थी। जम्मू-कश्मीर में युवाओं को आतंकवादी बनाने की मुहिम कश्मीर के अलगाववादी भी चला रहे थे। इस तथ्य की पुष्टि 20 वर्षीय गुमराह आतंकवादी अरशिद माजिद खान के आत्म-समर्पण से हुई थी। अरशिद कॉलेज में फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था। किंतु कश्मीर के बिगड़े माहौल में धर्म की अफीम चटा देने के कारण वह बहक गया और लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हो गया। उसके आतंकवादी बनने की खबर मिलते ही मां-बाप जिस बेहाल स्थिति को प्राप्त हुए, उससे अरशिद का ह्रदय पिघल गया और वह घर लौट आया।

दरअसल कश्मीरी युवक जिस तरह से आतंकी बनाए जा रहे थे, यह पाकिस्तानी सेना और वहां पनाह लिए आतंकी संगठनों का नापाक मंसूबा है। पाक की अवाम में यह मंसूबा पल रहा है कि ‘हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान।‘ इस मकसदपूर्ती के लिए मुस्लिम कौम के उन गरीब और लाचार बच्चे, किशोर और युवाओं को इस्लाम के बहाने आतंकवादी बनाने का काम मदरसों में किया जा रहा है, जो अपने परिवार की आर्थिक बदहाली दूर करने के लिए आर्थिक सुरक्षा चाहते है। पाक सेना के भेष में यही आतंकी अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण रेखा को पार कर भारत-पाक सीमा पर छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध में भी इन छद्म बहरुपियों की मुख्य भूमिका थी। इस सच्चाई से पर्दा संयुक्त राष्ट्र ने तो बहुत बाद में उठाया, किंतु खुद पाक के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के सेवानिवृत्त अधिकारी रहे, शाहिद अजीज ने ‘द नेशनल डेली अखबार‘ में पहले ही उठा दिया था। अजीज ने कहा था कि ‘कारगिल की तरह हमने कोई सबक नहीं लिया है। हकीकत यह है कि हमारे गलत और जिद्दी कामों की कीमत हमारे बच्चे अपने खून से चुका रहे हैं।‘

किंतु शाहिद अजीज के कहे से कोई सबक न तो पाकिस्तानी आतंकियों ने लिया और न ही कश्मीर के अलगाववादियों ने ?  घाटी में जो भी बदलाव आया है, वह अलगाववादियों का हुक्का-पानी बंद करने और पाक से भेजे गए आतंकियों को मौत के घाट उतार देने से आया है। दरअसल पाक से मिल रही आर्थिक मदद कश्मीर में अलगाव की आग सुलगाए रखने का बहाना बनी हुई थी। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद एनआईए ने जब घाटी के अलगाववादी नेता यासीन मलिक, नईम खान, अल्ताफ शाह, शब्बीर शाह, मसरत आलम और आसिया अंद्राबी को जेल भेज दिया और हुर्रियत के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी को घर में ही नजरबंद कर दिया तो घाटी में शांति की शुरूआत हो गई। लेकिन इस शांति की स्थाई रूप से बहाली तभी होगी, जब संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए के प्रावधान खत्म होंगे। हालांकि मोदी और शाह की जोड़ी ने मिशन कश्मीर पूरा करने की द़ृष्टि से विधानसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन शुरू कराने की पहल कर दी है। परिसीमन पूरा होने के बाद विधानसभा सीटों के मतदाताओं के जनसंख्यामक घनत्व में परिर्वतन आएगा, जो घाटी में धार्मिक व जातीय बहुलतावाद का आधार बनेगा। इस बहुलतावादी वातावरण के निर्माण होने के बाद जो चुनाव होंगे, उससे निकले जनादेश से यह उम्मीद बंध जाएगी कि वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रस्ताव लाकर धारा-370 और 35-ए जैसे अलगाववाद को उकसाने वाले अस्थाई प्रावधानों को खत्म करने की सिफारिश केंद्र सरकार से करे ? ऐसा संभव हो जाता है तो कश्मीर में स्थाई शांति हमेशा के लिए कायम हो जाएगी।

     लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार है

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: abroadeducationabroadlifeaustraliaeuropehindi vivekhindi vivek magazineindiainternationalmbbsmiddle eaststudyabroadusa

प्रमोद भार्गव

Next Post
बंदर और भालू 

बंदर और भालू 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0