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गादमुक्त बांध, गादयुक्त कृषि भूमि

गादमुक्त बांध, गादयुक्त कृषि भूमि

by देवेन्द्र फडणवीस
in जुलाई २०१९, विशेष, सामाजिक
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जलयुक्त कृषि भूमि अभियान और बांधों व जलाशयों से गाद निकालकर उसे खेतों में फैलाने की योजना के कारण महाराष्ट्र अकालमुक्ति के स्वप्न की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। जनसहयोग के कारण ये दोनों योजनाएं अत्यंत सफल रहीं और गांवों में खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हुआ।

बड़े बांधों को बनाने की कल्पना छोड़कर ’जलयुक्त कृषि भूमि अभियान’ के माध्यम से सिंचाई के कार्य में जनसहयोग का प्रारंभ हुआ। इसके बाद का पड़ाव याने जलाशयों से गाद को निकालकर उसे कृषिभूमि पर फैलाने की मुहिम-वह भी सफल हो रही है यह खुशखबर ’अकालमुक्ति’ का स्वप्न पूर्ण होने का संकेत है।”

महाराष्ट्र में सन् 2012 में 90.3% वर्षा हुई थी फिर भी वह वर्ष हमारे इतिहास के विकराल अकाल वर्ष के रूप में जाना जाएगा। राज्य में 85 हजार जलाशय होने एवं बांधों के निर्माण में भारी पैसा खर्च करने के बावजूद नौबत यह थी कि हमें सिंचाई हेतु वर्षा पर निर्भर रहना पड़ा। केवल दस प्रतिशत भूमि सिंचाई के अंतर्गत थी। पानी की इस कमी के कारण देश का पेट भरने वाले किसान को अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा एवं वह विदारक स्थिति में पहुंच गया। पानी की कमी का प्रभाव स्वास्थ, पोषण, स्वच्छता के साथ जीवन के हर क्षेत्र में महसूस किया जा रहा था।

परियोजनाएं पूरी करने का लक्ष्य सन 2014 में सत्ता संभालने के बाद इस आपत्ति की ओर तत्काल ध्यान देने और उसे हमेशा के लिए समाप्त करने की ओर अग्रसर होना मेरी सरकार का पहला लक्ष्य था। भूतकाल की ओर देखने पर यह ध्यान में आया कि बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की ओर ध्यान देने का पारंपरिक प्रयास सफल नहीं  रहा है और इसलिए हमने नए मार्ग को स्वीकर किया। बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं पर किए जाने वाले खर्च के मुकाबले हमने सभी के सहयोग से चलने वाली, जल्दी पूरी होने वाली तथा कम खर्च की परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया।

जलयुक्त शिवार अभियान

महाराष्ट्र के 25 हजार गांवों को 2019 तक अकाल मुक्त करने की महत्वाकांक्षा को लेकर शुरू किया गया जलयुक्त शिवार (कृषि भूमि) अभियान जनसहयोग के माध्यम से हो रहा, एक तरह का जनआंदोलन ही है।

महाराष्ट्र की भौगोलिक रचना ऐसी है कि पूरे वर्ष की बरसात का लगभग 80% पानी एवं उसके नीचे की मिट्टी बह जाती है। जलयुक्त शिवार अभियान के तहत इस समस्या का हल निकला गया है। जलप्रवाह के मार्ग का शहरीकरण एवं चौड़ीकरण करना, सीमेंट एवं मिट्टी के बांध बनाना, बरसात का पानी जो वह जाता है उसे रोककर जमीन में समाना, भूजल का स्तर बढ़ाने हेतु नालियों की मरम्मत, खेतों में छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण इन कामों को जलयुक्त शिवार योजना में प्राथमिकता दी गई। इस योजना का महत्व एवं सफलता देखकर यह सही अर्थों में जनआंदोलन बन गया। इस अभियान से पिछले तीन वर्षों मे 24 लाख टीसीएम पानी की भंडारण क्षमता निर्माण हुई। लगभग 21 लाख 11 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचाई क्षेत्र में शामिल हुई है। इसके लिए जन सहयोग से एकत्रित 638 करोड़ रुपयों सहित कुल 7 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। सबसे महत्वपूर्ण याने आज तक प्रदेश के 16 हजार गांव अकालमुक्त हो गए हैं। किसी भी बड़ी परियोजना पर बहुत पैसा खर्च करने पर भी इतना फायदा नहीं होता।

दुगना फायदा

बहते हुए पानी को रोककर भूजल स्तर बढ़ाने के प्रयत्न के साथ दूसरा पड़ाव था जलाशयों में जमी गाद को निकालकर जलाशयों की क्षमता बढ़ाने का। बरसात के पानी के साथ बहकर आने वाली मिट्टी जलाशयों में जमा होकर गाद में रूपांतरित हो जाती है। इसके कारण जलाशयों की जल भंडारण क्षमता तो कम होती ही है साथ ही साथ पानी जमीन के अंदर रिसने की प्रकिया भी बाधित होती है। इस पर अतिशय सरल उपाय उपलब्ध है। वह है जलाशयों की गाद निकालकर उन्हें गादमुक्त करना एवं वह गाद खेतों में डालकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाना। जलाशयों से निकली गाद खेती के लिए अत्यंत उपजाऊ एवं जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। इसके कारण फसलों की पैदावार अच्छी होती है एवं उर्वरकों पर खर्च भी कम होता है। जलयुक्त शिवार योजना से इस काम का मेल बिठाने से पानी की भंडारण क्षमता बढ़ गई है एवं कुछ गांव हमेशा के लिए अकालमुक्त हो गए हैं।

यह उद्देश्य सामने रखकर, हमने मई 2017 में “गादमुक्त धरण-गादमुक्त शिवार” (गादमुक्त बांध- गादयुक्त कृषि परिसर) योजना का श्रीगणेश किया। यहां मुझे यह लिखते हुए अत्यंत आनंद होता है कि योजना का प्रारंभ होने के बाद से ही प्रशासन, गैरसरकारी संस्थाओं, संबधित जानकार लोग, एवं गांव के लोगों को एकसाथ लाने की कोशिश सहज साध्य हुई। गत दो वर्षों में राज्य में 5270 बांधों एवं तालाबों से कुल 3 करोड़ 23 लाख घनमीटर गाद, इस योजना के माध्यम से निकाली गई। इसका तुरंत परिणाम याने 32 लाख टैंकरों में जितना पानी समाता है उतनी भंडारण क्षमता निर्माण हुई एवं 480 करोड़ रूपयों की बचत हुई है। साथ ही साथ 31150 किसानों को इसका फायदा भी हुआ है। जिनके खेतों में गाद फैलाई गई उनकी फसल दो से चार गुना तक बढ़ी है। (यह निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्था ‘इक्रिसेट’ द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है।

ये सब आंकड़ें चकित करनेवाले हैं। योजना को बेहतरीन ढंग से अमल में लाने और नागरिकों की उस्फूर्त प्रेरक वृत्ति के कारण यह संभव हुआ है। महाराष्ट्र को हमेशा के लिए अकाल से मुक्ति दिलाने के लक्ष्य का पीछा करते समय, सार्वजनिक, निजी एवं जन सहभागिता के सूत्रों के आधार पर ही सबका सहभाग निश्चित हो सकता है, यह दोनों अभियानों का निष्कर्ष है। जब कोई यह काम मेरा है इस भावना से करता है तब चमत्कार निश्चित है। इस आंदोलन के घटक के रूप में मैं इसमें शामिल हुआ इसके लिए मैं स्वयं को भाग्यशाली समझता हूं। महाराष्ट्र की सभी जलसंवर्धन योजनाओं के एकत्रित परिणाम से सभी गाव जलसमृद्ध होंगे एवं आगे से ये गांव वर्षा पर निर्भर नहीं रहेंगे।

आसमान की ओर बरसात की राह देखने वाली किसान की हृदय विदारक प्रतिमा, जमीन पर निर्मित ये विपुल जल भंडार देख कर हंसते हुए और जनसमुदाय के प्रयत्नों को धन्यवाद देने वाली प्रतिमा में रूपांतरित होगी, यह निश्चित है।

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