तीन तलाक के मुक्तिदाता मोदी

मोदी सरकार के अथक प्रयास से सदियों पुरानी कुप्रथा तीन तलाक को ख़त्म कर इतिहास रच दिया गया है. लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पास हो गया. बिल के समर्थन में ९९ और विरोध में ८४ वोट पड़े. अब तीन बार तलाक कह कर पत्नी से तलाक लेना संज्ञेय अपराध होगा. पीड़ित या परिवार के सदस्य एफआईआर दर्ज करा सकते हैं. एफआईआर दर्ज होने के बाद बिना वारंट के गिरफ्तारी हो सकेगी. मजिस्ट्रेट पत्नी का पक्ष जानने के बाद ही जमानत दे सकते है. मजिस्ट्रेट को पति और पत्नी के बिच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार दिया गया है. अदालत का फैसला आने तक बच्चा मां के संरक्षण में रहेगा. इस दौरान पत्नी को गुजारा भत्ता पति को देना होगा. तीन तलाक देने वाले पति को ३ वर्ष की जेल और जुर्माना दोनों ही सजा दी जा सकती है.

      नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय मुस्लिम महिला समाज के लिए जो किया उस कार्य की आज तक किसी मुस्लिम पुरुष या महिला नेता ने कल्पना भी न की थी. मोदी सरकार ने सत्तर वर्षों से विभिन्न सरकारों द्वारा अनदेखी किये जा रहे इस मुद्दे पर अपनी दो टूक राय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखी और देश की लगभग 10 करोड़ मुस्लिम महिलाओं को इस तीन तलाक के दोजखी (नारकीय) क़ानून से मुक्ति दिलाने का संकल्प व्यक्त किया था. इसके बाद समूचा मुस्लिम पुरुष वर्ग व आल इंडिया मुस्लिम ला बोर्ड नरेंद्र मोदी सरकार का दुश्मन बन गया !

मुस्लिम पुरुषों की तानाशाही से शासित मुस्लिम ला बोर्ड ने तीन तलाक से मुक्ति दिलाने का प्रयास कर रहे विधि आयोग का बहिष्कार कर दिया और उसे विधिवत लिखित चुनौती प्रस्तुत कर देश में तीन तलाक को समाप्त नहीं होने देनें की अपनी जिद भी व्यक्त की. मोदी सरकार के नेतृत्व में विधि आयोग ने पूर्णतः पारदर्शी व लोकतांत्रिक रहते हए तीन तलाक पर कुछ प्रश्न अपनी अधिकृत वेबसाईट पर जारी किये थे. होना यह चाहिए था कि इन प्रश्नों पर भारतीय मुस्लिम जगत की महिलायें व पुरुष संयुक्त विचार विमर्श करते किंतु इस पर मुस्लिम पुरुष जगत ने वाक युद्ध छेड़ दिया था. जबकि सम्पूर्ण प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही थी.उल्लेखनीय है कि मुसलमान महिला को तलाक देने का अधिकार नहीं है, जबकि मुसलमान पुरुष न सिर्फ तीन बार तलाक कह कर तलाक ले सकता है बल्कि एक साथ एक से अधिक पत्नियां भी रख सकता है. भारत में इस तीन तलाक के अधिकार का ऐसा दुरुपयोग देखने में आने लगा था कि मुस्लिम पुरुष बात बेबात अपनी बीबियों को वाट्सएप्प, एसएमएस व पोस्टकार्ड आदि माध्यमों से तलाक देनें लगे थे. मुस्लिम वैवाहिक जीवन अराजकता, तानाशाही व कट्टरपंथ के खिलवाड़ का अड्डा बन गया था. मुस्लिम महिलाएं इस क़ानून के कारण नारकीय यातनाएं व अत्याचार सहने को मजबूर हो रही थी. इस बीच यह तीन तलाक से मुक्ति दिलानें वाला राहतकारी क़ानून मोदी सरकार ने बड़े  राजनैतिक संकल्प किंतु जोखिम के साथ लाया था. मोदी व उनकी भाजपा को यह पता था कि उनके इस कदम से जो थोड़े बहुत मुस्लिम भाजपा को वोट करते हैं वे भी इस कदम से नाराज हो जायेंगे किंतु उन्होंने  चिंता नहीं की व मुस्लिम बहनों के भविष्य को सुधारने हेतु यह कड़ा क्रांतिकारी कदम उठाकर  मुस्लिम बहनों को सन्देश दिया.

        मोदी सरकार से मुस्लिम महिलाओं ने लाखों की संख्या  में हस्ताक्षर करवा कर तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने की मांग की थी. भारत में तीन तलाक के विरुद्ध मुस्लिम बहनें वर्ष 1840 से अपना संघर्ष जारी रखे हुए थी. 145 वर्षों के संघर्ष के बाद 1985 में शाहबानो प्रकरण से मुस्लिम महिलाओं को अमानवीय शरिया निकाह कानूनों से तनिक निजात इस देश की क़ानून व्यवस्था से मिली थी, किंतु कांग्रेस की राजीव सरकार ने  थोकबंद मुस्लिम वोट प्राप्त करने हेतु मुस्लिम बहनों की इस सफलता की कुर्बानी दे दी और एक बार फिर मुस्लिम बहनों का लंबा संघर्ष राजनैतिक हितों की बलि चढ़ गया. 

शरिया क़ानून से अपनी महिलाओं को नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर रहे पुरुष मुस्लिम समाज के सामने मोदी सरकार ने विचारणीय प्रश्न रख दिया है. मोदीजी  मुस्लिम समाज को यह संदेश देनें में कामयाब हो चले हैं कि “एक समृद्ध, विकसित व सभ्य मुस्लिम समाज का निर्माण एक स्वतंत्र, शिक्षित व सर्व दृष्टि से सुरक्षित महिला ही कर सकती है; और यह स्थिति तीन तलाक व बहुविवाह के रहते नहीं आ सकती है.”

यह बड़ा ही शर्मनाक तथ्य है कि जो तीन तलाक पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी इस्लामिक देश में 1961 में प्रतिबंधित हो गया  और पच्चीसों अन्य अरब-इस्लामिक देशों में प्रतिबंधित है वह तीन तलाक भारत में आज भी चल रहा है. मुस्लिम बहनों के लिए ये प्रसन्नता का विषय है कि इस दोजख के क़ानून के विरुद्ध  मोदी सरकार के  हलफनामें व संकल्प के कारण सुप्रीम कोर्ट ने अपने टिप्पणी में कहा कि शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब, बुरी व गैरजरूरी तरीका है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि “और जो मुस्लिम धर्म के अनुसार ही घिनौना है वह क़ानून के अनुसार सही कैसे हो सकता है ?, और कोई “पापी प्रथा” आस्था का विषय हो, यह कैसे संभव है ?! इस प्रकार तीन तलाक को न्यायालय ने वॉइड (शून्य), अनकॉन्स्टिट्यूशन (असंवैधानिक) और इलीगल (गैरकानूनी) जैसे शब्दों के साथ गलत ठहराते हुए अपना निर्णय दे दिया.

मुस्लिम समाज में तीन तलाक के डरावने परिणामों को इससे समझा जा सकता है कि भारत में अगर एक मुस्लिम तलाकशुदा पुरुष है तो तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या चार है. तलाकशुदा हिंदू बहनों से तलाकशुदा मुस्लिम बहनों की संख्या कई गुना अधिक है. हलाला व बहुविवाह जैसे घृणित व पुराने रिवाजों को बढ़ावा देनें वाले मुस्लिम कट्टरपंथी पुरुषों को अब दोहरी चिंता सता रही है एक यह कि उनके द्वारा तमाम नकली हस्ताक्षर अभियान चलाने व अन्य बाधाएं उत्पन्न करने के बाद भी एक ओर जहां तीन तलाक की कुप्रथा का मोदी सरकार ने जनाजा निकाल दिया है वहीं दूसरी ओर सबसे बड़ा ख़तरा यह उत्पन्न हो गया है कि बड़ी संख्या में मुस्लिम बहनें इस दोजख के क़ानून से निजात दिलाने की प्रसन्नता में भाजपा के पक्ष में वोटिंग कर सकती हैं. मुस्लिम महिलाओं के मोदी के पक्ष में खड़े होने का एक कारण यह भी है कि मोदी केवल तीन तलाक पर नहीं रूकने वाले है. उनके एजेंडे में अभी मुस्लिम बहुविवाह, हलाला, स्त्री खतना  जैसी कुप्रथा समाप्त करने के अभियान लाना बाकी है. मुस्लिम समाज की महिलाएं स्त्री-खतना Female Genital Mutilation (FGM) को लेकर भी आवाज उठा रही हैं. बोहरा मुस्लिम महिला मासूमा रानाल्वी ने मोदी के नाम एक खुले खत में लिखा है कि –बोहरा समुदाय में सालों से ‘स्त्री-ख़तना’ या ‘ख़फ्ज़’ प्रथा का पालन किया जा रहा है, जो कि एक भीषण यातना है. इस समुदाय में आज भी छोटी बच्चियां जब 7 साल की हो जाती है, तब उसकी मां या दादी मां उसे बिना बताये एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं, और वहां उसकी योनि का अग्र-भाग भगांकुर एक लोकल अप्रिशिक्षित व्यक्ति द्वारा गन्दी सी ब्लेड से काट दिया जाता है. इस कुप्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, महिलाओं की यौन इच्छाओं को दबाना. उल्लेखनीय है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ इस विषय में संयुक्त राष्ट्र संघ भी खड़ा है. UN ने 6 फरवरी को महिलाओं की खतना के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है.

 

आज करोड़ों मुस्लिम माताओं-बहनों की जीत हुई है और उन्हें सम्मान से जीने का हक़ मिला है. सदियों से तीन तलाक के कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिला है. तत्काल तीन तलाक बिल पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है. मुझे गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक़ देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है. पूर्व में तुष्टिकरण के नाम पर करोड़ों महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया.

                                             -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 

 

मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना वादा निभाने के लिए बधाई देता हूं. इससे मुस्लिम महिलाओं को इस अभिशाप से मुक्ति मिल जाएगी. मैं इस ऐतिहासिक विधेयक का समर्थन करने वाली सभी पार्टियों को धन्यवाद देता हूं. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महान दिन है.

                                                                       – अमित शाह, गृह मंत्री

 

 

 

सुप्रीम कोर्ट में इसकी लड़ाई लड़ने वाली अधिवक्ता ने कहा है कि अभी यह पहली लड़ाई जीती है, हलाला और बहुविवाह के खिलाफ अभी हमारी लड़ाई जारी रहेगी.

                                            – अधिवक्ता फरहा फैज, सुप्रीम कोर्ट

 

 

 

दोनों सदनों ने मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिया है. यह बदलते हुए भारत की शुरुआत है.मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के इस विधेयक पर कांग्रेस का रवैया पीड़ादायक है. मुझे ख़ुशी है कि मैं नरेंद्र मोदी सरकार का मंत्री हूं, राजीव गाँधी सरकार का कानून मंत्री नहीं ( शाहबानों मामले के सन्दर्भ में ).      

रविशंकर प्रसाद, कानून मंत्री

 

 

 

यह देश के लाखों मुस्लिम महिलाओं की जीत है. इस सामाजिक क्रांति का नेतृत्व करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का हार्दिक आभार. यह सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का सच्चा प्रमाण है.

                                 -स्मृति ईरानी, केन्द्रीय मंत्री

 

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