बुद्धिमान मंत्री

बहुत समय पहले की बात है, किसी घने जंगल में एक राक्षस रहता था। एक बार दो आदमी जंगल में रास्ता भटक गए। वे उस क्षेत्र में चले गए, जहां राक्षस का निवास था। राक्षस ने आदमियों को पहली बार देखा, अभी तक उसने चार टांगों वाले जानवर ही देखे थे। राक्षस ने उनमें से एक आदमी को पकड़कर हवा में उछाला, तो वह आदमी दर्द से चीख उठा, एक अजीब सी आवाज सुनकर राक्षस बहुत खुश हुआ तथा उस आदमी को मारकर खा गया।

अगले दिन दूसरी आदमी को भी उसी प्रकार मारकर खा गया। जैसे उसने पहले वाले आदमी को खाया था। आदमी के मांस और खून में उसे अजीब सा स्वाद महसूस हुआ।

वैसे भी वह जानवरों का खून पी पीकर ऊब गया, सो आदमी के खून का स्वाद उसे जानवरों के खून से अच्छा लगा। तब उसने सोचा कि आदमी का ही शिकार किया जाए। अब वह आदमी की तलाश में निकल पड़ा। तीन दिन तक जंगल में भटकते रहने के बाद राक्षस को एक बस्ती दिखाई दी। ऊंचे ऊंचे मकान राक्षस ने पहली बार देखे, किंतु मकानों के दरवाजे देखकर राक्षस असमंजस में पड़ गया। उसमें घुसने की कोशिश करता, किंतु घुस नही पाता। क्योंकि दरवाजों की ऊंचाई कम थी तथा राक्षस को दरवाजों से घरों में आदमी दिखाई भी दे रहे थे, किंतु वह उन्हें पकड़ नहीं पा रहा था।

अंत में उसे बस्ती में एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। राक्षस को भूख बड़ी जोर की लगी थी, सो उसने आदमी को पकड़ा, हवा में उछाला और देखते ही देखते उसे चबा गया। बस्ती के कुछ लोग यह दृष्य देख रहे थे, वे घबरा गए। बस्ती में राक्षस के रूप में उन्हें अपनी आंखों के सामने मौत तैरती नजर आ रही थी।

बस्ती के लोग मौका पाकर राक्षस की शिकायत राजा से करने पहुंचे, तो राजा ने अपनी सेना के द्वारा राक्षस को उस समय बंदी बनवा लिया, जब वह सो रहा था। लोहे की मजबूत बेड़ियों में जकड़कर उसे कई दिनों तक भूखा रखा गया। थक हारकर राक्षस ने राजा की अधीनता स्वीकार कर ली तथा राजा के सामने यह शर्त रखी, कि जब तक राजा उसे काम बताता रहेगा, तब तक वह किसी को नहीं मारेगा और जब राजा उसे कोई कार्य नहीं बताएगा तो वह राजा को ही मारकर खा जाएगा।

राजा खुश था। जो काम कई मजदूर मिलकर भी कई दिनों में निपटा पाते थे, वह कार्य राक्षस एक ही दिन में कर देता था। काम पूरा करते ही वह दूसरा काम पूछता। शुरू में राजा राक्षस को काम बताकर खुश होता, लेकिन जैसे जैसे राजा के सारे काम निपटते चले गए, राजा के चेहरे पर भय और चिंता की लकीरें उभरने लगीं। वह विचारने लगा कि जिस दिन भी राक्षस को कार्य नहीं बताया, उसी दिन जिंदगी का आखिरी समय आ जाएगा।

राजा को परेशान देखकर मंत्री ने राजा की परेशानी जानने का प्रयास किया। राजा ने मंत्री को अपनी समस्या बता दी कि अब उसके काम पूरे होते जा रहे हैं, शीघ्र ही राक्षस उसे खा जाएगा। मंत्री बहुत चतुर और बुद्धिमान था। काफी सोच विचार के बाद मंत्री को एक युक्ति सूझी, उसने राजा से कहा, ”अब जब भी राक्षस कोई काम पूछे, तो उससे कहना कि इस कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधा कर दे।“

राक्षस के काम पूछने पर राजा ने वैसा ही किया, जी मंत्री ने सुझाया था। राजा ने कहा, ”मेरे पालतू कुत्ते की पूंछ को सीधा कर दो।“

राक्षस राजा की आज्ञा के अनुसार कुत्ते की पूंछ को सीधा करने की कोशिश करता रहा, किंतु जितनी बार भी वह पूंछ सीधी करता, थोड़ी देर में पूंछ फिर से टेढ़ी हो जाती। अंततः राक्षस ने हार मान ली और जंगल में लौट गया।

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