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चिंता की सुबह 

चिंता की सुबह 

by हिंदी विवेक
in कहानी
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एक राज्य में एक साधू रहता था जो शहर-शहर जाकर भिक्षाव्रती करता और अपना पेट पालता था| साधू उतना ही मांगता जितने की उसको आवश्यकता होती| वह न तो कल के लिए कुछ सोचता और न ही कल के लिए कुछ बचाता| बस यही उसकी दिनचर्या थी|

एक बार वह भिक्षाव्रती करते-करते राज्य की राजधानी पहुंचा| लेकिन जब तक वह राजधानी के अन्दर पहुँच पाता तब तक अँधेरा हो चूका था| शहर के दरवाज़े भी तब तक बंद हो चुके थे| साधू ने वहीँ विश्राम कर सुबह शहर में जाने की योजना बनाई और दरवाजे के समीप ही सोने के लिए स्थान ढूंढने लगा|

सर्दी के दिन थे और रात थोड़ी ठंडी ही थी| साधू ने देखा पास ही एक भट्टी थी| भट्टी में अभी भी गर्माहट थी| साधू ने भट्टी के समीप ही सोने का विचार किया| साधू ने अपना बिछोना बिछाया और भट्टी के समीप ही सो गया|

महल के दरवाजे के समीप ही राजा का महल था| सुबह सूरज की पहली किरण के साथ राजा की नींद खुली और उन्होंने अपनि रानी से पुछा – “कहो रात केसी रही”| उधर भट्टी में सोए साधू की नींद राजा की आवाज़ से खुल गई| राजा का प्रश्न सुन साधू ने जवाब दिया, – “कुछ आप जैसी और कुछ आप से अच्छी”

राजा के कानो में जैसे ही साधू की आवाज पड़ी वे बड़े ही आश्चर्यचकित हुए, उन्होंने महल की बालकनी से बहार देखा लेकिन उन्हें कोई नज़र न आया| उन्होंने वही सवाल फिर दोहराया, “कहो रात कैसी बीती”!

साधू के कानों में जैसे ही राजा के शब्द पड़े वह फिर बोला. “कुछ आप जैसी और कुछ आप से अच्छी”! अब राजा की उत्सुकता की सीमा न थी| उन्होंने अपने सैनिकों को इस आवाज़ के बारे में पता लगाने को कहा|

राजा के सैनिक जैसे ही महल के बाहर इस आवाज़ का पता लगाने आए उन्हें भट्टी के समीप एक साधू लेटा हुआ दिखाई दिया| राजा के सैनिकों ने सोचा हो न हों राजा की बातों का जवाब यही साधू दे रहा था|

उन्होंने साधू को जगाया और साथ महल चलने को कहा| साधू ने सोचा जरुर उसने राज्य का कोई नियम तोड़ा है इसलिए राजा ने उसे दंड देने के लिए महल में बुलाया है|

साधू डरते-डरते महल पहुंचा| राजा उत्सुकतावश उस व्यक्ति से मिलने के लिए आतुर था जो उसके सवाल का जवाब दे रहा था| सिपाही साधू को लेकर जैसे ही महल में पहुंचे राजा ने उत्सुकतावश साधू से पुछा की जब मैं सुबह उठकर अपनी रानी से पुछ रहा था की “रात कैसी बीती” तो आपने जवाब दिया “कुछ आपके जैसी और कुछ आपसे अच्छी”!आप कृपा कर मुझे यह बताएं की आप तो इस ठण्ड में भी खुले आसमान के निचे सो रहे थे तो फिर आपकी रात मुझसे अच्छी कैसे बीती|

साधू ने जब राजा की बात सुनी तो मुस्कुराते हुए बोला, महाराज! क्षमा करें लेकिन मैंने जो भी कहा बिलकुल सत्य कहा है| क्यों की, जब आपको महल में नींद लगी तो आपको भी नहीं ज्ञात था की आप महल में सो रहे हैं| ठीक वैसे ही मुझे भी नींद लगने के बाद यह ज्ञात नहीं रहा की में खुले आसमान के बाहर सो रहा हूँ| और रही आपसे अच्छी रात बीतने का सवाल तो महाराज आपको सुबह उठने के बाद अपने राज्य और परिजनों की चिंता सताने लगी लेकिन में तो फ़क़ीर हूँ मुझे तो कोई चिंता ही नहीं| इसलिए मेरी रात आपसे अच्छी बीती|

इसीलिए कहा गया है…

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह!
जिनको कछु न चाहिए, सो साहन के साह!!

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