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हिंदी विवेक
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दयालु राजा

दयालु राजा

by हिंदी विवेक
in कहानी
1

केशवपुर के राजा कृष्ण देव बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। राजा अपने राज्य से गुजरने वाली हर साधु मण्डली की खूब आवभगत किया करते थे। उन्होंने राज्य में यह ऐलान करा रखा था कि हमारी सीमा में किसी भी ओर से कोई भी साधु मण्डली या कोई साधु प्रवेश करे, इस की सूचना हमें तुरन्त दी जाये। साधुओं की सेवा के कारण केशवपुर में खूब खुशहाली थी। केशवपुर के लोग भी साधुओं की खूब सेवा करते थे। राज्य में चारों ओर रामराज जैसा वातावरण था। लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। हर कोई एक दूसरे के सुख दुख में शामिल रहता था। खेतों में सारे लोग मिलजुल कर हल चलाते थे और कटाई के वक्त भी मिलजुल कर सब एक दूसरे की मदद करते थे।

केशवपुर दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की करने लगा। केशवपुर के पड़ोसी राज्य सूरजपुर का राजा कंस देव बड़ा ही धूर्त और मक्कार था। प्रजा पर रोज नये नये कर लगा कर तंग करता था। उस के दरबार में नर्तकियों का जमावड़ा रहता था। राजा कंस देव शराब में डूबा रहता था और राज्य के सिपाही जनता पर जुल्म करते रहते थे। राज्य में खेती बाड़ी की दशा अच्छी न होने से जानवरों के चारे और भुखमरी से जनता बेहद परेशान थी, ऊपर से राजा द्वारा कर की वसूली। लोगों ने परेशान होकर पड़ोसी राज्य केशवपुर में पनाह लेने की सोची। अचानक पड़ोसी राज्य के हजारों लोग केशवपुर की सीमा में प्रवेश को खड़े थे। राजा कृष्ण देव को सिपाहियों ने सूचना दी। राजा तुरंत सीमा पर पहुंचे। उन्होंने सूरजपुर के राजा के राजा कंस देव के राज्य के लोगों की दशा देखी तो राजा को बहुत दुख हुआ।

पड़ोसी राज्य की जनता को राजा कृष्ण देव ने ससम्मान अपने राज्य में प्रवेश कराकर, राज्य के अधिकारियों को आदेश दिया कि इन लोगों को समय पर खाना, जानवरों को चारा और इन के छोटे-छोटे बच्चों को राज्य की गौशाला से गाय का दूध उपलब्ध कराया जाये। इन सब लोगों की देखभाल हमारे अतिथियों की तरह की जाये। तुरन्त इन लोगों के खाने का प्रबन्ध किया जाये। भूख से बेहाल लोगों को राजा ने अपने हाथों से खाना परोसा। खाना खाकर पड़ोसी राज्य की जनता ने राजा की जय जयकार के नारे लगाये तो राजा कृष्ण देव ने हाथ जोड़कर कहा, ‘नहीं नहीं मैं किसी भी तरह से इस जय जयकार का हकदार नहीं हूं। भगवान ने मुझे दिया, मैंने आप को दे दिया, अत: आप सब लोगों को भगवान का ही गुणगान करना चाहिये। वो ही सब का पालनहार है। धीरे-धीरे कर सूरजपुर के लोग केशवपुर में आकर बसने लगे।

राजा कंस देव अकेला पड़ गया। भुखमरी फैलने के कारण जानवरों की लाशें सडऩे लगी और राज्य में बीमारी फैल गई। लोग भूख और बीमारी से मरने लगे, एक दिन अचानक कंस देव की छोटी बेटी हैजे से मर गई। कंस देव लाचार सब कुछ चुपचाप देख रहा था। वो बार-बार यह सोच रहा था कि उसने प्रजा पर बहुत जुल्म किये। भगवान ने उसे संसार में राजा बना कर भेजा था मगर उसने अपना सारा जीवन लोगों को सताने और ऐशपरस्ती में गुजार दिया। उसने भगवान से गिड़गिड़ा कर क्षमा मांगी। कुछ दिनों बाद एक दिन राजा कृष्ण देव को सिपाहियों ने खबर दी कि राज्य की सीमा में साधुओं की एक अनोखी टोली ने प्रवेश किया है। इस टोली में दो महिला साधु और एक राजकुमार के समान सुंदर युवक है, दो महिलाओं में एक युवती बिलकुल राजकुमारी के समान सुंदर है जो वैरागीय वस्त्र पहने है। राजा तुरन्त सारे कार्य छोड़ सीमा पर पहुंच उन सभी लोगों का स्वागत कर आदरपूर्वक उन्हें राजमहल में ले आये। राजा ने अपने स्वभाव के अनुसार उन सब लोगों की खूब सेवा की। एक दिन उस साधुओं की टोली ने राजा से शहर में घूमकर प्रजा से मिलने की इच्छा जाहिर की। राजा खुद साधुओं के संग नंगे पांव शहर में निकल पड़े। साधुओं की टोली शहर में भ्रमण कर रही थी और जनता को यूं खुशहाल देख मन ही मन प्रसन्न हो रही थे।

राजा जिधर से निकलते, प्रजा राजा की जय जयकार कर फूल मालाओं से राजा और साधुओं का स्वागत करती। राजा का प्रजा द्वारा आदर सत्कार देख एक साधु राजा कृष्ण देव से बोला राजन, आप धन्य हैं। जैसा सुना था आप को उस से बढ़कर पाया। मैं आप के पड़ोसी राज्य का राजा कंस देव हूं। मेरे राज्य में मेरे अत्याचार से सताये दुखी लोगों ने आप के राज्य में प्रवेश किया। भुखमरी और बीमारी फैलने के कारण बाकी बची प्रजा भी मर गई। मेरी बेटी भी मेरे पापों का शिकार हो कर मौत के काल में समा गई। मैंने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिये भगवान की भक्ति का रास्ता चुन लिया। मैंने अपनी पत्नी बेटे और बेटी से मना किया मगर ये बोले, नहीं आप के हर पाप में हम भी बराबर के शरीक हैं। आप ने जो कुछ किया, हमारे लिये किया, अत: हम भी आप के संग ही चलेंगे किन्तु तीर्थ यात्र पर निकलने से पहले मैं और मेरा परिवार अपनी प्रजा को देखने के लिये उत्सुक था कि वे किस हाल में हैं। आज मुझे खुशी है कि मेरी प्रजा सुख से है। आप ने मेरे राज्य की प्रजा में और अपने राज्य की प्रजा में कोई भेदभाव नहीं रखा। अब हम आराम से तीर्थ यात्र पर भगवान के दर्शन कर अपना बचा पूरा जीवन भगवान की सेवा में लगा देंगे। राजा कृष्ण देव ने फौरन आगे बढ़कर कंस देव को सीने से लगाकर कहा, ‘राजन आप धन्य हैं कि आप को भगवान ने इतना अच्छा परिवार दिया जो दुख में आप के साथ है किन्तु अफसोस है कि बुरे वक्त में आप की प्रजा ने आप का साथ छोड़ दिया। ऐसी प्रजा को सोचना चाहिये। नहीं मुझे अपनी प्रजा से कोई शिकायत नहीं – कंस देव ने कृष्ण देव से कहा। राजा कृष्ण देव ने कंस देव से हाथ जोड़कर कहा राजन एक निवेदन और है, आप से अगर आप का आज्ञाकारी पुत्र मेरा दामाद और आप की सुन्दर सुशील बेटी मेरी बहू बन जाये तो मुझे खुशी होगी। राजा कंस देव की आंखों में आंसू भर आये। सिर अकीदत से झुक गया। शब्द मुंह से निकल नहीं पा रहे थे। कांपते होंठों से कंस देव बोला – महाराज आप धन्य हैं। आपने मेरी आंधी चिंता दूर कर दी। ये भोले भाले राजकुमार और राजकुमारी मेरे पापों की सजा पाते हुए जंगलों जंगलों में भटकते। दोनों राजकुमार, राजकुमारी की शादी राजा कृष्ण देव ने बड़े धूम धाम से की। कंस देव और उनकी पत्नी तीर्थ यात्र पर निकल गये। कुछ दिनों बाद सूरजपुर के राजकुमार को कृष्ण देव ने वहां का राजा घोषित कर दिया सूरजपुर की प्रजा भी वापस अपने राज्य में लौट गई। दोनों पड़ोसी राज्यों के लोग अमन चैन से रहने लगे। –

शादाब जफर शादाब

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Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

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राजा के सौ चेहरे

राजा के सौ चेहरे

Comments 1

  1. Sandeep mane says:
    5 years ago

    Kahani bahut he sunder aur preranadayi hai

    Reply

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