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सड़कों पर उतरना होगा

सड़कों पर उतरना होगा

by रमेश पतंगे
in विशेष
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सीएए कानून पारित होने के बाद से ही एक गुट ने इसका विरोध करना शुरू किया है। सीएए और एनआरसी को लेकर मुसलमानों में भय का माहौल बनाया जा रहा है। इसमें कांग्रेस पार्टी, सभी वामपंथी पार्टियां, प्रकाश आम्बेडकर, मायावती, ममता बनर्जी, आदि सभी विरोधी पार्टियां गुमराह करने की कोशिश कर रहे है। सिनेमा और साहित्य क्षेत्र में जो वामपंथी गिरोह बैठे हुए है, वह सभी पत्र के माध्यम से अपना विरोध जता रहे है। इसके साथ ही वह सरकार का भी विरोध कर रहे है।
दिल्ली के जामिया मिलिया  इस्लामिया में पहला आंदोलन हुआ, जिसमें हिंसा भी हुई। इससे निपटने के लिए पुलिस ने यूनिवर्सिटी कैम्पस में घुस कर उग्र आंदोलनकारियों की पिटाई की। इसकी प्रतिक्रिया देश भर में हुई। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने सड़को पर उतरकर आंदोलन करने का निश्चय किया। उनके समर्थन में जिन यूनिवर्सिटियों में वामपंथी संगठन है, वहां के छात्रों ने आंदोलन करने की शुरुआत की। आंदोलन की आग जेएनयू में भी पहुंच गई। छात्रों का समर्थन करने दीपिका पादुकोण भी वहां पहुंच गई। पुरानी दिल्ली में महात्मा गांधी, डॉ. आम्बेडकर, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद आदि महापुरुषों के पोस्टर लेकर आंदोलन किया गया। मुम्बई, औरंगाबाद, बैंगलुरु, जयपुर, चेन्नई, आदि स्थानों पर भी आंदोलन हुए।
इस दौरान दिए गए नारों पर ध्यान देना चाहिए। ‘जब हिन्दू – मुस्लिम राजी, तो क्या करेगा नाजी’, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में है भाई – भाई’, फ़ासिज़्म से चाहिए आजादी, ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे, हम संविधान बचाएंगे’ एवं ‘हम यहां पर है, हम देखेंगे’ आदि नारे बैनर व  सड़को पर लिखे हुए दिखाई दे रहे है। दिल्ली के शाहीन बाग और पुणे में धरना प्रदर्शन आंदोलन जारी है। अधिकतर जगहों पर मुसलमानों को सड़कों पर उतारने का काम शुरू है।

      महाराष्ट्र का यदि हम विचार करे तो जगह – – जगह जो आंदोलन शुरू है, उसका राजनैतिक उत्तर किसी ने दिया है क्या ? राजनैतिक उत्तर नही दिया जाएगा तो जो लोग आंदोलन कर रहे है, उनका पक्ष सही समझा जाएगा। इस तरह का भ्रम लोगों में निर्माण होगा। ऐसे भ्रम का वातावरण बनाने के लिए अधिकतर मीडियावाले खाद पानी डालते रहते है। लोकतंत्र में धरना प्रदर्शन कर अपना विरोध प्रकट करना, शांति के मार्ग से आंदोलन करना, यह लोगों का बुनियादी अधिकार है। जिसे किसी भी सरकार द्वारा रोका नहीं जा सकता। शांतिपूर्वक आंदोलन करने वालों पर पुलिस द्वारा हस्तक्षेप करना लोकतंत्र में उचित नहीं है।

बावजूद इसके जिन कारणों को लेकर यह आंदोलन शुरू है, धरना प्रदर्शन शुरू है, क्या वह कारण सही है ? इसका विचार करना जरूरी है। विदेशों में धार्मिक भेदभाव, उत्पीड़न, अत्याचार से त्रस्त होकर जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन भारत आते है, उन्हें भारत नागरिकता नहीं देगा तो और कौन देगा ?  इन धार्मिक लोगों का भारत को छोड़कर विश्व में कोई दूसरा देश है क्या ? जो इन्हें शरण या आश्रय दें। 1947 में मुसलमानों ने आंदोलन कर देश का बंटवारा किया और अपने लिए पाकिस्तान बनाया। वहां पर उन्होंने अपने मजहब के अनुसार इस्लामिक राज्य चलाने की शुरुआत की।

इस्लामिक देशों में मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार  होता होगा तो वह उनका आंतरिक मामला है। उन्हें अपने यहां आश्रय देने का क्या कारण है ? उन्हें आश्रय दिया जाए इसलिए जो आंदोलन चालू है, वह धार्मिक आधार पर है। उन्हें किसी भी प्रकार का समर्थन देना, राष्ट्र के लिए घातक है। इसका समर्थन करना यानी खिलाफत गतिविधियों को समर्थन देने जैसा है। खलीफा यह हमारे देश का नहीं था। उसे वर्ष 1924 में कांग्रेस ने समर्थन देकर देश के विभाजन का बीज बोया। विदेशी मुसलमानों का समर्थन करने के लिए भारतीय मुसलमानों को बरगलाना बहुत ही खतरनाक है। इस तरह का समर्थन कर हम देश को फिर से 1946 – 47 के कालखंड में ले जा रहे है, इसका हमें भान रखना चाहिए।

 जिस तरह शांतिपूर्ण मार्ग से आंदोलन करने का अन्य लोगों को अधिकार है, उसी तरह जिसके हित में यह कानून बनाया गया है, उन्हें भी शांतिपूर्ण मार्ग से आंदोलन करने का अधिकार है। दुर्भाग्य की बात है कि जिनके हित के लिए यह कानून बनाया गया है, (जिनमें हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख) वह सोये हुए है। शिरोमणि अकाली दल ने सर्वदलीय बैठक में यह मांग की कि मुसलमानों को भी इस कानून में शामिल किया जाए। अपने ही हाथ से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसी यह मांग है। इसका जितना विरोध किया जाए उतना कम ही है।
केंद्र में भाजपा की सरकार है। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार चली गई और आज भाजपा के सभी नेता ‘सरकार जाने’ के गम में रोने में अपना समय गंवा रहे है। वह सभी आशावादी है कि आज नहीं तो कल शिवसेना हमारे साथ आएगी और हम सरकार बनाएंगे। रोज कोई न कोई नेता ऐसा बयान देता रहता है। जिसे देख कर विचारधारा के लिए मेरे जैसा समर्पित कार्यकर्ता व्यथित होता है। शिवसेना के समर्थन की ओर भाजपा के नेता जिस उम्मीद भरी नजरों से देख रहे है, उन्हें शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत इतने अभद्र और निचले स्तर के भाषा में दुत्कारते है, जिसे देखना और सुनना भी कठिन है। कोई भी स्वाभिमानी पुरूष इस अपमान को कभी बर्दास्त नहीं कर सकता। सत्त्ता के लिए आशा भरी लाचारी विचलित करने वाली है।
देश में क्या चल रहा है और महाराष्ट्र में क्या चल रहा है। जो आंदोलन हो रहे है उसका परिणाम क्या – क्या हो सकता है। केंद्र सरकार को घेरने के लिए राजनैतिक शह – मात का षड्यंत्रकारी खेल कांग्रेस और उनके वामपंथी सहयोगी मुस्लिम समाज को साथ लेकर कैसे खेल रहे है ? महाराष्ट्र के नेता इस ओर गम्भीरता से ध्यान देते है या नहीं ? वह अपना एक ही बीन बजाते दिखाई दे रहे है कि उद्धव ठाकरे की सरकार नहीं टिकेगी और हम फिर से सत्ता में आएंगे।

       देश के हालात को देखते हुए वर्तमान समय में सीएए के समर्थन में सड़कों पर उतरने की बहुत आवश्यकता है। सभी बड़े शहर – नगर, महानगर में लाख – – डेढ़ लाख की रैली निकाल कर पूरे महाराष्ट्र को जगाने की दरकार है। सभी राष्ट्रभक्त नागरिकों के  शौर्य, पराक्रम के शक्ति प्रदर्शन का समय आ गया है। कहावत है कि कांटे से ही कांटा निकाला जाता है। आंदोलनों का जवाब भी विराट आंदोलनों से दिया जाना चाहिए। शक्ति प्रदर्शन किए बिना इस समस्या का हल नही निकलेगा। वास्तविकता यह है कि केंद्र सरकार के सीएए के समर्थन में समाज के 80 फीसदी से अधिक लोग साथ है।

यह 80 फीसदी बहुसंख्यक समाज उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है कि हमारा नेतृत्व कौन करेगा ? हमारे आवाज को बुलंद कौन करेगा ? हमारे समर्थन के प्रकटीकरण का प्रदर्शन कौन करेगा ? सभी लोग इसका इंतजार कर रहे है। जिन्हें यह कार्य करना चाहिए और जिसका जन्म ही इस कार्य के लिए हुआ है, वह केवल ‘हमारी सरकार गई, हम फिर सत्त्ता में आएंगे, हम फिर सत्ता में आएंगे’ की बीन बजाते बैठे हुए है।
सर्वप्रथम यह विचार करना चाहिए कि सत्ता किस लिए चाहिए ? चार मंत्रियों को लाल बत्ती की गाड़ी मिले ? इसलिए या सरकारी बंगले में रहने मिले इसलिए, हमारे मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु या अपना राजनैतिक नेतृत्व प्रस्थापित करने के लिए। विचारधारा के प्रति समर्पित मुझ जैसा कार्यकर्ता इन सारे चीजों को दरकिनार करना ही पसंद करेगा। सत्ता इसलिए चाहिए कि जिससे हमारी अस्मिता – स्वाभिमान टिका रहे। हमारी संस्कृति – सभ्यता टिकी रहे। हमारे जीवन मूल्य टिके रहे और हमारी – विरासत टिकी रहे। सत्ता का सदुपयोग इसके लिए करना चाहिए। आज जो सीएए के नाम पर अराजकता  फैला रहे है। वह सभी लोग उक्त सभी विषयों को नष्ट करना चाहते है। उनमें से कोई भी हमारा शत्रु नहीं है लेकिन गलत मार्ग पर जाने वाले हमारे ही बंधु है।

उन्हें सामान्य भाषा इतने जल्दी समझ में नहीं आएगी, उन्हें शक्ति सामर्थ्य की भाषा समझ में आती है। लोकतंत्र में यह सामर्थ्य बन्दूक में नही होती, तलवार में नही होती बल्कि शांतिपूर्ण मार्ग से अपना आशय प्रकट करने में होती है। गांधीजी ने जिस सत्याग्रह का शस्त्र दिया वह अहिंसक है। इसी मार्ग से हमें चलना होगा और विराट शक्ति प्रदर्शन करना ही होगा।

राष्ट्रवादी जनता में अपार शक्ति है, जो शक्ति सभी प्रतिरोधों को ठोकर मारकर बाबरी ढांचा  (कलंक) को ध्वस्त कर सकती है, वह राष्ट्रवादी शक्ति कुछ भी कर सकती है। उसे सही राष्ट्रीय राजनैतिक नेतृत्व की आवश्यकता है। हमारे सभी नेताओं को इसका भान रखना चाहिए कि मौका और समय किसी के लिए रुकता नहीं है। यह नेतृत्व प्रदान करने में यदि हमारे नेता आज कम पड़े तो वह खालीपन उसी तरह नहीं रहेगा। हिन्दू समाज में नवनेतृत्व निर्माण करने का सामर्थ्य भी अपार है। यह बात नेताओं को सदैव ध्यान में रखनी चाहिए।
यदि समस्याओं को सुलझाने में हम कम पड़े तो इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे और इतिहास में यह अंकित होगा कि जिस समय जो कार्य करना चाहिए था, उस समय वह कार्य नहीं करने का यह परिणाम हुआ।

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Comments 1

  1. Rahul Lonkar says:
    5 years ago

    It is important to show full support to the decision taken by Hon. Modi Govt. It is sad that, appeasement policy of congress regime in last 70 years and still now tarnished India’s integrity and squize Indian economy like a dengorous insect. Every Indian must take pledge that, until CAA and NRC not applied we will struggle till end… Because it directly affects our generations to come and very future of Our Bharath!

    Rahul Lonkar

    Reply

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