भाजपा की व्यूह  रचना धरी की धरी रह गई

मेरठ कॉलेज से पढ़ाई पूरी कर 1970 में जीविकोपार्जन के लिए जब दिल्ली पहुंचा तब दिल्ली के राजनितिक क्षितिज पर महापौर लाला हंसराज गुप्त, चीफ मेट्रोपोलिटन काउंसिलर विजय कुमार मल्होत्रा, बलराज साहनी और मदनलाल खुराना जैसे भारतीय जनसंघ के नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सशक्त नेतृत्व को सफल चुनौती दे रहे थे। यमुना पार वजीराबाद पुल से लेकर निगमबोध घाट तक आज भी दृश्यमान हरित पट्टी दिल्ली के विकास के प्रति समर्पित भारतीय जनसंघ के दृष्टिकोण की साक्षी बन खड़ी है और दिल्ली के गहराते वायु प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रही है। लेकिन आज 50 वर्ष बाद जब  केंद्र में 2014 से भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की पूर्ण बहुमत वाली सरकार चल रही है तब दिल्ली के विधान सभा चुनाव में विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश करने की चुनौती देने की स्थिति में आ डटा। और भाजपा इस दौरान 2 बार 2015 और 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 70 सीटों में से बमुश्किल क्रमशः 3 व ८  सीट ही अपने खाते में जुटा पायी। ऐसा तब हुआ जब 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की इसी जनता ने सातों सीट 50 % से ज्यादा वोट देकर भाजपा की झोली में डाली हैं।

गत 7 जनवरी को जिस दिन चुनाव आयोग ने प्रेस वार्ता कर दिल्ली में 8 फरवरी 2020 को विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा की संयोग से उस दिन मैं दिल्ली में ही था। तो इस बाबत मित्रों से चर्चा होना स्वाभाविक ही था। सभी मित्र मध्यम वर्गीय समाज से आते हैं। कुछ व्यापारी, एडवोकेट, डॉक्टर्स एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट्स। अधिकतर भाजपा को ही वोट करने वाले। लेकिन उस दिन सभी ने एकमत से बताया कि इस बार फिर केजरीवाल की पार्टी विधान सभा चुनाव में स्वीप करने वाली है। कारण ? फ्री बिजली, पानी और महिलाओं के लिए बस की फ्री यात्रा के आलावा स्कूल तथा स्कूली शिक्षा में किया गया व्यापक सुधार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन एवं जन सरोकारों के प्रति आम आदमी पार्टी की संवेदनशीलता दिल्ली की जनता की नजर में परवान चढ़ चुकी थी। और अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से परहेज करने की केजरीवाल की सोची-समझी समझ ने आम आदमी पार्टी के प्रति जनता के रुझान को बल प्रदान कर दिया था।

विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी चुनाव मैदान में पूरी तरह कमर कस कर उत्तरी उससे स्पष्ट हो गया कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के पास भी पक्की खबर थी कि दिल्ली में हवा का रुख क्या चल रहा है ? लेकिन हवा का रुख बदलने के दृढ संकल्प के साथ प्रतिद्व्न्दी से दो-दो हाथ करने के लिए चुनावी समर में कूदने में भाजपा ने क्षण भर की देरी नहीं लगाई। भाजपा के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में भारत सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने खुद आगे आकर आदर्श सेनापति की तरह चुनावी समर की कमान सम्भाल कर भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं में आवश्यक जोश और उत्साह भर दिया। हर चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता प्रदर्शित कर चुके अमित शाह बाजी पलटने की मंशा के साथ भारत सरकार के गृहमंत्री के उच्च पद पर रहते हुए भी जिस प्रकार एक आम कार्यकर्ता की भांति घर-घर पार्टी के पर्चे बाँटते दिखे उसकी जितनी प्रसंशा की जाये उतनी कम है। इसका असर भी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान देखा गया। भाजपा हवा का रुख बदलने में कामयाब होते दिखाई देने लगी।

भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा जो कि ओजस्वी वक्ता तथा मिलनसार स्वभाव के धनी हैं, चुनाव अभियान को लगातार धार देते रहे। उनके साथ-साथ तकरीबन 200 सांसद, दिल्ली के 7 सांसद, भाजपा के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों की विशाल टीम ने मात्र 15 दिनों में लगभग 3570 नुक्क्ड़ या छोटी-बड़ी सभाएँ, रोड शो तथा प्रधानमंत्री की 2 बड़ी रैलियां आयोजित कर मानों समूची दिल्ली को रौंद डाला। आम आदमी पार्टी  के हर पैंतरे का माकूल जवाब दिया। केजरीवाल को विलेन साबित करने में, उसकी पोल-पट्टी खोलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं, दिल्ली प्रदेश भाजपा के वार्ड से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं, कार्यकर्ताओं तथा पार्षदों ने घर-घर सम्पर्क कर लोगों को पार्टी की नीतियों, कार्यक्रमों से अवगत कराया, केंद्र सरकार के गरीबों के हित में उठाये गए कदमों का स्मरण कराया, नागरिकता संशोधन कानून के बेजा विरोध में चल रहे शाहीन बाग़ प्रकरण के पीछे छिपी देश विरोधी ताकतों के मंसूबे उजागर कर राष्ट्रवाद का छोंक भी लगाया। यहाँ तक कि करीब 1700 झुग्गी-झोंपड़ी कालोनी वालों को भाजपा की केंद्र सरकार ने मालिकाना हक भी दिया। दिल्ली के सभी सांसद  तक झुग्गी-झोंपड़ी के लोगों के बीच रहे, रात्रि निवास भी झुग्गी-झोंपड़ी में किया। इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। चूक कहाँ हुई ? इसकी समीक्षा तो पार्टी को ही करनी है।

लेकिन पिछले लगभग 2 साल से चुनावी मोड में काम कर लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब केजरीवाल के नैरेटिव के सामने भाजपा का महल ताश के पत्तों के समान ढह गया। केजरीवाल ने भाजपा द्वारा ईजाद शस्त्रों का भाजपा के ही खिलाफ बखूबी इस्तेमाल कर भाजपा को करारी शिकस्त देकर आम आदमी पार्टी का परचम फैहरा दिया। इस चुनावी समर की भाजपा और आम आदमी पार्टी की समूची रणनीति पर नजर डाली जाये तो संक्षेप में कहा जा सकता है कि जब भाजपा ने केजरीवाल के खिलाफ चुनावी रण में अपनी व्यूह रचना खड़ी करना शुरू की तब तक केजरीवाल की चुनावी फसल पक कर खेत में तैयार खड़ी थी। बस, उसे काट कर घर ले जाना भर शेष था। इस तरह भारतीय जनता पार्टी की सारी चुनावी मशक्क्त और व्यूह रचना ‘का वर्षा जब कृषि सुखाने‘ के समान धरी की धरी रह गयी। और पार्टी दहाई अंक भी न छू सकी। केंद्रीय सरकार में रहते दिल्ली की केजरीवाल सरकार के काम और जनता पर उसके प्रभाव की जानकारी क्या समय रहते भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को नहीं मिल पायी थी ? या फिर भाजपा केजरीवाल को हल्के में ले रही थी ? कुछ भी हो। इस चुनावी परिणाम की ढाँप की आवाज दूर तक जायेगी और देर तक गूँजती रहेगी। देखना होगा भाजपा नेतृत्व भविष्य में समाज में अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए कौन-सा मार्ग चुनता है? क्योंकि जनता के मन में सेट नैरेटिव चुनावी खेल में प्रमुखता से अपना रंग घोलता नजर आ रहा है।

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