देर से ही सही पर मिल गया न्याय

यह जीत एक उम्मीद जगाती है कि एक मां की जिद, एक पिता का हौसला और सीमा कुशवाहा जैसे वकीलों का जूनून जब एक साथ मिलता है, तो निर्भया की तरह देश की हर बेटी को न्याय मिल सकता है।

करीब सात सालों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 20 मार्च की सुबह 5:30 बजे निर्भया गैंगरेप के चार दोषियों- मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गयी। यह खबर मिलते ही उत्तर प्रदेश के बलिया स्थित निर्भया का गांव जश्न में डूब गया। चारों दोषियों को फांसी पर निर्भया के गांव में मिठाई बांटकर खुशी जाहिर की गयी।

हालांकि इस मामले में छह लोग दोषी पाये गये थे, लेकिन उनमें से एक दोषी रामसिंह ने सजा काटने के दौरान जेल में आत्महत्या कर ली थी, जबकि एक नाबालिग था, तो उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया था। इन सभी पर साल 2012 में 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी छात्रा के साथ चलती बस में गैंगरेप करने का आरोप था। चारों पर छात्रा के पुरुष मित्र को बुरी तरह पीटने और फिर दोनों को सड़क किनारे फेंकने के भी आरोप हैं। इस घटना ने न सिर्फ दिल्ली, बल्कि पूरे विश्व को हिला कर रख दिया था। यह देश की पहली ऐसी घटना थी जिसने देश के हर वर्ग खासतौर से युवाओं में आक्रोश भर दिया था।

आखिर कहां है हमारे कानून में कमी

’अगर हमें फांसी देने से देश में रेप रुक जाएंगे तो बेशक हमें फांसी पर लटका दो, लेकिन यह बलात्कार रूकने वाले नहीं हैं।’ यह बात निर्भया गैंग रेप के चारों कातिलों में से एक विनय ने जेल के एक अधिकारी से कही। विनय की यह बात हमारी सरकार, प्रशासन और लचर कानून व्यवस्था की उस कमी को दर्शाती है, जो इस बात पर अपनी पीठ थपथपा रहा है कि उसने न्याय दे दिया। यह कथन सरकार और कानून को स्पष्ट रूप से दी गयी वह चुनौती है, जो यह दर्शाता है कि तुम डाल-डाल, तो मैं पात-पात।  यानी तुम चाहे जितने भी कानून बना लो, हम तो रेप करेंगे, हत्याएं करेंगे, लूट-पाट करेंगे, दंगे फैलायेंगे और ऐसा हर वो काम करेंगे, जिसे सरकार या कानून व्यवस्था अपराध के दायरे में रखती है।

अपराधियों के इस बढ़ते मनोबल को तोड़ने और अपराध पर लगाम लगाने के लिए  भारतीय संसदीय व्यवस्था के तीनों महत्वपूर्ण स्तंभों- कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका को अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करने तथा इसे और भी मजबूत बनाने की जरूरत है। साथ ही, चौथे स्तंभ यानी कि मीडिया को भी ऐसी खबरों की त्वरित एवं ईमानदार रिपोर्टिंग करने की जरूरत है।

निर्भया मामले से जुड़ी अहम तारीख़ें और ़फैसले

16 दिसंबर 2012 : 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी छात्रा के साथ चलती बस में छह लोगों ने गैंगरेप किया। छात्रा के पुरुष मित्र को बुरी तरह पीटा गया और दोनों को सड़क किनारे फेंक दिया गया।

17 दिसंबर 2012 : मुख्य अभियुक्त और बस ड्राइवर राम सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया। अगले कुछ दिनों में उनके भाई मुकेश सिंह, जिम इंस्ट्रक्टर विनय शर्मा, फल बेचने वाले पवन गुप्ता, बस के हेल्पर अक्षय कुमार सिंह और एक 17 वर्षीय नाबालिग को गिरफ्तार किया गया।

25-26 दिसंबर 2012 : पीड़िता की हालत गंभीर होने और उसे कार्डियक अरेस्ट के बाद सरकार द्वारा विमान से उसे सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती करवाया गया।

29 दिसंबर 2012 : सिंगापुर के एक अस्पताल में पीड़िता की मौत। शव को वापस दिल्ली लाया गया।

11 मार्च 2013 : अभियुक्त राम सिंह की तिहाड़ जेल में संदिग्ध हालत में मौत। पुलिस का कहना है कि उसने आत्महत्या की, लेकिन बचाव पक्ष के वकील और परिजनों ने हत्या के आरोप लगाये।

31 अगस्त 2013 : जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग अभियुक्त को दोषी माना और तीन साल के लिए बाल सुधार गृह भेजा।

13 सितंबर 2013 : ट्रायल कोर्ट ने चार बालिग अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनायी।

23 सितंबर 2013 : दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट के निर्णय पर सुनवायी हुई।

13 मार्च 2014 : दिल्ली हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा।

मार्च-जून 2014 : अभियुक्तों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला आने तक फांसी पर रोक लगा दी।

मई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट की फांसी की सजा को बरकरार रखा।

जुलाई 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका को खरिज किया।

06 दिसंबर 2019 : केंद्र सरकार ने एक दोषी की दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजी और नामंज़ूर करने की सिफारिश की।

12 दिसंबर 2019 : तिहाड़ जेल प्रशासन ने उत्तर प्रदेश जेल प्रशासन को जल्लाद मुहैया कराने के लिए अनुरोध किया।

13 दिसंबर 2019 : निर्भया की मां की ओर से पटियाला हाउस कोर्ट में फांसी की तारीख़ तय करने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें चारों दोषी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा पटियाला हाउस कोर्ट में पेश हुए।

07 जनवरी 2020 : चारों दोषियों का डेथ वॉरंट जारी। पटियाला हाउस कोर्ट ने फांसी के लिए 22 जनवरी, 2020 की तारीख सुबह सात बजे का समय तय किया।

08 जनवरी 2020 : दोषी विनय कुमार ने सबसे पहले क्यूरेटिव पिटिशन दायर की। इसके बाद मुकेश सिंह ने भी क्यूरेटिव पिटिशन दायर की।

14 जनवरी 2020 : सुप्रीम कोर्ट ने विनय कुमार शर्मा और मुकेश सिंह की क्यूरेटिव पिटिशन को खारिज कर दिया।

15 जनवरी 2020 : दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती क्योंकि एक दोषी की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज होने के बाद भी अभियुक्तों को कम से कम 14 दिनों की मोहलत मिलना जरूरी है।

17 जनवरी 2020 : मुकेश सिंह की दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज किया। नया डेथ वॉरंट जारी। फांसी देने के लिए 1 फरवरी को सुबह 6 बजे का वक्त तय किया गया।

28 जनवरी 2020 : मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

31 जनवरी 2020 : दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता की फांसी अगले आदेश तक टाली। जज ने कहा, कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी शिकायत का समाधान मांगना किसी भी सभ्य समाज की विशेषता है।

01 फरवरीः पटियाला हाउस कोर्ट ने दिया फांसी को अगले आदेश तक टालने का निर्णय।

02 फरवरी 2020 : केंद्र सरकार ने फांसी टालने के पटियाला हाउस कोर्ट के ़फैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दाख़िल की।

03 फरवरी 2020 : निर्भया गैंगरेप के दोषियों को अलग-अलग फ़ांसी दी जा सकती है या नहीं इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। रविवार को कोर्ट की छुट्टी होती है, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए छुट्टी के दिन भी मामले की सुनवाई हुई जिसके बाद अदालत ने अपना ़फैसला सुरक्षित रख लिया।

17 फरवरी 2020 : चारों की फांसी के लिए कोर्ट ने 3 मार्च की सुबह 6 बजे का वक्त फांसी के लिए तय किया।

20 फरवरी 2020 : विनय शर्मा के वकील ने भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को चिट्ठी लिखकर नीतिगत न्याय की मांग की है।

02 मार्च 2020 : पवन गुप्ता की दया याचिका राष्ट्रपति के पास होने के कारण फांसी की तारिख टाल दी गई। दिल्ली में उस वक्त विधानसभा चुनाव होने थे और निर्भया मामला बड़ा मुद्दा बन गया था।

5 मार्च 2020 : दिल्ली की एक अदालत ने फांसी के लिए 20 मार्च की तारीख मुकर्रर की। इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पवन गुप्ता की दया याचिका खारिज कर दी थी।

20 मार्च 2020 : दिल्ली के तिहाड़ जेल में सवेरे 5.30 को चारों को एक साथ दी गई फांसी।

अपराध हत्यारों वाले, सजा बच्चों वाली

इस कानून का एक लचर पक्ष तब भी उजागर होता है, जब इस मामले में दोषी पाये जानेवाले नाबालिग लड़के को इस आधार पर सजा नहीं दी जाती कि वारदात के वक्त उसकी उम्र 17 साल 6 महीने थी। यानी वयस्कता के लिए निर्धारित उम्र से सिर्फ 6 महीने कम, जबकि सबसे रेप के दौरान  पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता बरतने का आरोप उस पर ही था। बावजूद इसके यही एक अकेला दोषी है, जिसका चेहरा और यहां तक कि नाम भी दुनिया नहीं जानती है। इसी नाबालिग ने निर्भया और उसके दोस्त को आवाज देकर अपनी बस में बुलाया था, जबकि वो एक स्कूल बस थी, न कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट। निर्भया के बैठने के बाद उसी ने छेड़छाड़ शुरू की और अपने साथियों को रेप के लिए उकसाया। यही वो दोषी था, जिसने निर्भया के शरीर में लोहे की रॉड घुसाई, जिससे फैला इंफेक्शन अंतत: 26 वर्षीया पीड़िता की मौत की वजह बना।

बावजूद इसके दोष सिद्ध होने के बाद जुवेनाइल कोर्ट में उसका ट्रायल हुआ और बाल सुधार गृह में मात्र तीन साल गुजारने के बाद एक एनजीओ की मदद से नाबालिग दोषी दक्षिण भारत में नये नाम के साथ कुक का काम कर रहा है। फिलहाल वह कहां है, किसी को नहीं पता।

निर्भया मामले के बाद कानून में हुए बदलाव

निर्भया मामले के बाद देश में बलात्कार की परिभाषा में काफी बदलाव हुए। इससे पहले सेक्सुएल पेनिट्रेशन को ही रेप माना जाता था, लेकिन इस घटना के बाद छेड़छाड़ और दूसरे तरीकों से यौन शोषण को भी ’बलात्कार’ की श्रेणी में शामिल किया गया।

पार्लियामेंट में नया जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ, जिसमें बलात्कार, हत्या और एसिड अटैक जैसे क्रूरतम अपराधों में 16 से 18 साल के नाबालिग आरोपियों पर भी वयस्क कानून के तहत आम अदालतों में केस चलने का प्रावधान तय किया गया। नये कानून के तहत 16 से 18 साल के नाबालिग को इन अपराधों के लिए बाल संरक्षण गृह में रखा जाने की बजाय सजा हो सकती है, हालांकि ये सजा अधिकतम 10 साल की ही हो सकती है और फांसी या उम्रकैद नहीं दिया जा सकेगा।

“दोषियों को फांसी होने के बाद मैंने अपनी बेटी की तस्वीर देखी और उससे कहा कि आखिर तुम्हें इंसाफ मिल गया। मैं उसे बचा नहीं पायी, इसका दुख रहेगा लेकिन मुझे उस पर गर्व है। आज मां का मेरा धर्म पूरा हुआ।”
                                                                                                                        – आशा देवी, निर्भया की मां
“देश में महिलाओं के लिए ऐसा कानून बने, जिससे लोगों को लंबा इंतज़ार न करना पड़े।”
                                                                                                                 – बद्रीनाथ, निर्भया के पिता
“मैं निर्भया गैंगरेप मामले के बाद से ही विरोध प्रदर्शनों में शामिल थी। आज मैं ख़ुश हूं कि मैं उन्हें इंसाफ दिला सकी।”
                                                                                                                          -सीमा कुशवाहा, निर्भया की वकील

औरत के लिए, औरत द्वारा और औरत के जरिये पायी गयी जीत

भले ही निर्भया को न्याय मिलने में देरी हुई और केस के दौरान बचाव पक्ष द्वारा तरह-तरह के हथकंडे अपनाये गये, जिसने न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था की कमियों को उजागर  किया। बावजूद इसके निर्भया के दोषियों अपने अंजाम तक पहुंचे, यह खुशी की बात है। दरअसल यह जीत एक औरत के लिए, एक औरत द्वारा और एक औरत के जरिये पायी गयी जीत है। यह जीत एक उम्मीद जगाती है कि एक जब एक मां की जिद, एक पिता का हौसला और सीमा कुशवाहा जैसे वकीलों का जूनून जब एक साथ मिलता है, तो निर्भया की तरह देश की हर बेटी को न्याय मिल सकता है। यह जीत एक बार फिर से हमें इंसानियत पर भरोसा करना सिखाती है और इस भरोसे का दूसरा नाम बन कर सामने आयी हैं- वकील सीमा कुशवाहा।

जी हां, वहीं सीमा कुशवाहा, जो कभी निर्भया मामले के बाद राष्ट्रपति भवन के सामने प्रदर्शन किये जानेवाली भीड़ का हिस्सा थीं। प्रदर्शन के दौरान ही उन्होंने ठान लिया था कि निर्भया के दोषियों को फांसी दिलवा कर रहेगी। वर्ष 2014 में इस केस से जुड़ीं। सीमा कुशवाहा का यह पहला केस था और यह पूरा केस सीमा ने मुफ्त में लड़ा। सात सालों तक इंसाफ की इस लड़ाई को लड़ने के लिए सीमा ने एक रुपया भी नहीं लिया।  निश्चित ऐसे लोगों की वजह से ही आम लोगों का न्यायपालिका में विश्वास और न्याय मिलने की उम्मीद बनी हुई है।

 

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