हिंदू घटेगा देश बंटेगा

पूरे देश पर कोरोना का संकट मंडरा रहा है। महाराष्ट्र में इसकी भयावहता अधिक है। ऐसी कठिन परिस्थिति में सम्पूर्ण समाज को एक होकर इससे निपटने की आवश्यकता है। परंतु अभी भी भारतीय समाज के एकरूप होने के कारण कई राष्ट्र विघातक शक्तियों के पेट में मरोड उठने लगती है और वे कोई न कोई ऐसा कदम उठाते हैं जिसके कारण भारतीय मानस को आघात पहुंचे।

पालघर में दो साधुओं की हत्या के पीछे भी ऐसी ही राष्ट्रविघातक शक्तियों का हाथ है यह धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। यह सर्वविदित है कि भारतीय हिंदू समाज, विशेषत: आदिवासी समाज मूलत: हिंसक नहीं है, उनकी आस्थाएं पारंपरिक रूप से हिंदू आस्थाओं से सम्बद्ध हैं, यह घटना जिस स्थान पर घटित हुई वहां की आबादी भी अधिक सघन नहीं है। अत: प्रश्न यह उठता है कि जब उन भगवावेशधारी साधुओं की हत्या की गई तो इतनी भीड़ अचानक कैसे आ गई और कैसे अचानक उनमें इतना उन्माद और इतनी नृशंसता आ गई कि उन्होंने भगवावेशधारी साधुओं को पीट-पीटकर मार डाला।

यह पारंपरिक भारतीय हिंदू वनवासियों की मानसिकता नहीं है। वे तो मात्र कठपुतलियां हैं जिनकी डोर मिशनरियों और कम्युनिस्टों जैसी राष्ट्र विरोधी ताकतों ने पकड़ रखी है। उनका रंगमंच आज पालघर है, पहले पूर्वोत्तर व केरल भी रह चुका है और आगे कुछ और स्थान भी होंगे। रंगमंच और कठपुतलियां बदलेंगी परंतु खेल वही रहेगा। वे लोग तो पिछले कई सालों से यह खेल खेलते आ रहे हैं। सेवा की आड़ में धर्मांतरण करना ही उनका मुख्य उद्देश्य रहा है।

जिस तरह कोई बीमारी शरीर के उस हिस्से पर सबसे पहले आघात करती है जो सबसे ज्यादा कमजोर हो, उसी तरह राष्ट्रविरोधी शक्तियां अपने पांव पसारने के लिए उस क्षेत्र या उन लोगों पर आघात करती हैं जो किसी भी तरह से कमजोर हों। भारत के वनवासी गरीब हैं। वहां शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होता है। अत: ये राष्ट्रविरोधी ताकतें उनको अपना लक्ष्य बनाती हैं और इन सुविधाओं को देने के एवज में उन्हें हिंदू संस्कृति और भारत से दूर करती जाती है। उनके मन में भारत के प्रति इतना जहर घोला जाता है कि वे अपने ही अन्य भारतीय बंधुओं से, भारतीय संस्कृति से, उसके आस्था-केंद्रों से घृणा करने लगते हैं और उन्हें ही अपना शत्रु मानने लगते हैं। कालांतर में इसका भयानक परिणाम पालघर जैसी घटनाओं के रूप में हमारे सामने आता है।

राष्ट्रविरोधी ताकतें यह सब करने में इसलिए सफल हो जाती हैं क्योंकि आम भारतीय नागरिक को इन सारी बातों से कोई लेना-देना नहीं है। वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोग हमारे ही बंधु हैं, उनकी असुविधाओं, आवश्यकताओं का ध्यान रखना हमारा कर्तव्य है, यह भाव प्रत्येक भारतवासी के मन में केवल निर्माण नहीं होना चाहिए, प्रत्यक्ष रूप से उस भाव का क्रियान्वयन भी होना चाहिए। वनवासी क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार तथा स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं हैं। उन तक ये सुविधाएं अगर भारतीयों के माध्यम से पहुंचने लगेंगी तो राष्ट्र विरोधी शक्तियों का वहां पैर पसारना आसान नहीं होगा। वनवासियों के लिए जितना काम करना आवश्यक है उतना करना कुछ लोगों के बस की बात नहीं है और न ही सरकारें इसमें कुछ मदद कर सकेंगी। यह विशुद्ध सामाजिक समरसता के अंतर्गत किया जाने वाला निरंतर कार्य है जिसका परिणाम पीढ़ियों बाद मिलता है। यह प्रक्रिया धीमी परंतु गहरा असर करने वाली होगी। उनका मन:परिवर्तन करना अत्यंत आवश्यक है।

भारतीय वनवासियों की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है। वे आदि काल से प्रकृति पूजक रहे हैं, परंतु इन राष्ट्रविरोधी ताकतों ने उन्हें धीरे-धीरे भ्रमित कर दिया है कि यीशू ही एकमात्र भगवान हैं जो सबका कल्याण करते हैं। उनके झूठ में फंसकर वे अपनी समृद्ध परंपरा से दूर हो गाए हैं। अत: अब हमारा यह कर्तव्य है कि उन वनवासियों से निरंतर सम्पर्क बढ़ाया जाए। उनसे मैत्री का रिश्ता स्थापित किया जाए। धीरे-धीरे उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उनके मनों में स्थान बनाया जाए और फिर उन्हें पुन: अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ा जाए।

अगर अब भी समाज के इस हिस्से के लिए हमारे मन में कर्तव्य की भावना नहीं जागी तो भविष्य में हमें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। भारत हमेशा से ही वह राष्ट्र रहा है जिस पर बाहरी ताकतों ने निरंतर आक्रमण किया और अपने पैर जमाने में वहीं सफल रहे जहां से उन्होंने हमारी सांस्कृतिक जड़ों से हमें काट दिया। अभी भी राष्ट्रविरोधी ताकतों का वह खेल समाप्त नहीं हुआ है। वे हममें से ही कुछ लोगों को हमारी सांस्कृतिक धरोहरों से दूर करके हमारे ही विरुद्ध खडा कर रहे हैं और गृहयुद्ध
की स्थितियां उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।

इन राष्ट्रविरोधी ताकतों का कार्य और उनके षड्यंत्रों को सारे समाज के सामने लाना आवश्यक है। उनके चेहरों पर सेवा का जो मुखौटा लगा हुआ है उसे उतारना होगा। वरना वे धीरे-धीरे हिंदुओं को ही हिंदुओं के विरुद्ध खड़ा करने में सफल हो जाएंगे।

हमने पहले ही धर्म के आधार पर दो बार देश का विभाजन होते हुए देखा है। भारत के जिन दो भागों को काटकर अलग देश बनाया गया वहां भी हिंदू बहुत कम थे। अब अगर अन्य स्थानों पर भी यही दोहराया गया तो कहीं हम पर फिर से विभाजन का दिन देखने की नौबत न आ जाए, क्योंकि राष्ट्र विरोधी ताकतें तो इसी ताक में बैंठीं हैं कि कब हिंदू घटेगा और कब देश बंटेगा।

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  1. Anonymous

    👌👌👌👍

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