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जैविक विश्व युद्ध और भारत

जैविक विश्व युद्ध और भारत

by गंगाधर ढोबले
in मई - सप्ताह दूसरा, विशेष
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सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन राष्ट्र की यह दिशा नहीं बदलनी चाहिए। वैभवशाली भारत का यही मूलमंत्र है। इसलिए कि जो शक्तिशाली होगा वही वजूद पाएगा जैसे कि डार्विन का सिद्धांत है-

कोरोना महामारी देरसबेर जानी ही है। कोई चीज शाश्वत नहीं होती। इसके पहले भी ब्लैकडेथ, प्लेग, स्पैनिश फ्लू, हैजा, चेचक, कालाज्वर, ई-बोला जैसी महामारियां आईं और चलती बनीं। आज की तरह ही उस समय भी हाहाकार मचा था। उस समय भी शारीरिक दूरी, हाथ-मुंह धोना, अपनी स्वच्छता रखना, भीड़ से दूर रहना, मास्क लगाना ही एकमात्र रास्ता था, क्योंकि इन महामारियों की कोई दवा ही नहीं थी। यहां तक कि 1930 तक लोगों को पता ही नहीं था कि कोई सूक्ष्म परजीवी विषाणु ऐसी महामारी का कारण होता है। लेकिन विषाणु की खोज ने चिकित्सा विज्ञान को पूरी तरह बदल डाला। जीवाणु और विषाणु को अंग्रेजी में बैक्टीरिया और वायरस कहते हैं। विषय-विस्तार के भय से इसे यहीं विराम देता हूं।

कोरोना के साथ भी ऐसा ही है। जब इसकी दवा आ जाएगी तब लोगों में फिर सामाजिक प्राणी पेंगे भरेगा। दूरी, हाथ धोना, मास्क लगाना, भीड़ से बचना ये सारी बातें भूल जाएंगे। यह स्वाभाविक भी है, लेकिन संकट जो अवसर भी लाता है, वह सारी दुनिया का व्यवस्था-तंत्र बदल देगा। हमारे जीवन के तौर- तरीके बदल जाएंगे। शिक्षा से लेकर मनोरंजन और उद्योगव् यापार से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं। क्रांतिकारी का मतलब स्तंभित करने वाले बदलाव, जिसे किसी ने आज सोचा भी नहीं है। कारोबार के नए-नए मॉडल प्रस्तुत होंगे, तो सामाजिक सरोकार भी बदल जाएंगे। अर्थ-तंत्र केंद्र में होगा। महाशक्तियां इस पर कब्जा करने की कोशिश करेंगी। जिसके हाथ में बाजार होगा वही दुनिया का दरोगा बनेगा। इसलिए बाजार को झपटने की गलाकाट होड़ शुरू हो जाएगी। पारंपारिक हथियार काम नहीं आएंगे, जैविक हथियार याने कोरोना जैसे विषाणु मारक सेना बन जाएंगे। कहते हैं, रूस ने भी एंथ्रेस जैसे बेहद खतरनाक विषाणु को बड़ी-बड़ी फ्रीजों में डालकर सायबेरिया के बर्फ में किसी गुप्त स्थान पर गहराई में गाड़कर रखा है। ऐसे विषाणुओं के नए-नए अवतार प्रयोगशालाओं में जन्म लेंगे। इसकी कल्पना तक आज असंभव है। यहां तक कि इंटरनेट के जरिए जिस तरह आपके कंप्यूटर में डिजिटल वायरस भेजा जाता है, या एमी जैसे सॉफ्टवेयर के जरिए दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर आपका कंप्यूटर ठीक किया जा सकता है या बिगाड़ा जा सकता है, वैसे ही ऐसा कोई शीघ्रगामी छद्मी वाहन अवतीर्ण होगा, जो यकायक खुली आंखों को नहीं दिख पाएगा और आपके किसी यंत्र ने पकड़ भी लिया तो उसे डी-कोड करने में मुश्किल आएगी। वह क्षण में आपको बर्बाद कर देगा। इसका सुरक्षा कवच जिसके पास होगा उसकी पौबाराह! इस तरह विषाणु और उसका कवच जिसके हाथ लगेगा वह राज करेगा। दोनों को ध्वस्त कर पाने की क्षमता रखने वाला सिरमौर होगा।

यही पृष्ठभूमि है अगले विश्व और अंतरिक्ष युद्धों की। इस पर गहराई से गौर करें तो क्या आपको नहीं लगता कि तीसरे विश्व युद्ध की चीन ने शुरुआत कर दी है? अमेरिका जैसी पहले नम्बर की महाशक्ति को किस तरह उसने धूल चटा दी- एक पिद्दी से विषाणु के संक्रमण से। पारंपरिक अस्त्र सब नाकाफी हो गए। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है इस दुनिया में। दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका शामिल नहीं था। वह तो मित्र देशों को हथियार बेचकर धन बटोर रहा था। इस कड़ी को तोड़ने के लिए जापान ने अमेरिका का पर्ल हार्बर ध्वस्त कर दिया, और फिर अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम बरसाकर उसे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, यह कहानी हम सब जानते हैं; लेकिन इस कहानी में एक और मोड़ यह भी है कि

जापान ने खतरनाक ब्लैकडेथ जीवाणु कैलिफोर्निया में फैलाने की योजना बनाई थी, जो अमेरिकी गुप्तचरों को पता चल गई और फिर अमेरिका ने आव देखा न ताव और जापान पर परमाणु बम बरसा दिए। यह सच्चाई है या धुप्पल इसे पता करने का कोई जरिया नहीं है। मुद्दा केवल इतना ही है कि जैविक हथियारों का इस्तेमाल बहुत पहले से सोचा जा रहा है। जैविक हथियार बनाने के आरोप में ही अमेरिका ने इराक को रौंद डाला और सद्दाम हुसैन का खात्मा कर दिया। भारत में तो विषकन्याओं की बात हम जानते ही हैं। वे भी जैविक हथियार ही थीं।

समय सब को बदल देता है। विश्व का भूगोल हमेशा बदलता रहा है। समय उसे मिटा देता है, नई रेखा खींच देता है। वैसे ही विश्व में कोई सदा सुपर पावर बना नहीं रह सकता। कभी भारत सोने की चिड़िया था। बाद में ग्रीक, स्पैनिश, पुर्तुगाली, अंग्रेज आए। जर्मन, इतालवी, जापानी भी ताकतवर बने। रूस, अमेरिका में बराबर की कुश्ती थी। चीन तब दुबका हुआ था। वर्तमान में रूस होड़ से बाहर हो गया है। अमेरिका व चीन आमने-सामने हैं। कोरोना ने चीन के लिए धंधा पैदा किया, अमेरिका लुट गया। अमेरिका के इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैण्ड जैसे दोस्त भी कहीं के नहीं रहे। यही युद्ध की पहली चिंगारी है, जो महामारी के जाते ही भभक उठेगी। वैसे पश्चिमी देशों ने चीन से माल मंगाने पर हाथ खींच लिया है, यह कोई महज व्यापारिक घटना नहीं है। चीन ने भी कह दिया है कि हम अब डॉलर में सौदा नहीं करेंगे, चीनी मुद्रा युआन में ही करेंगे। इससे अमेरिकी डॉलर अब विश्व व्यापार की इकलौती मुद्रा नहीं रही है, उसका मूल्य टूटता जाएगा। यह दूसरी चिंगारी है युद्ध की, जो राख में दबी हुई है। तीसरी चिंगारी है, कोरोना के कारण चीन से पलायन करती पश्चिमी देशों की कोई एक हजार से ज्यादा विशाल बहुराष्ट्रीय कम्पनियां। चीन भी फिर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका से अपनी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हटा देगा। इन्हें यदि हम भारत ला सके तो हमारे कारोबार में नई जान आ जाएगी। बड़े पैमाने पर भारत में पूंजी आई तो रोजगार और आमदनी दोनों के अनगिनत अवसर पैदा होंगे। चीन इससे नाराज हो सकता है, लेकिन आज भी वह कौन हमारा साथी है? कूटनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। भूगोल की तरह दोस्त-दुश्मन भी हमेशा बदलते रहते हैं।

अब प्रश्न यह है कि इस परिदृश्य में भारत कहां होगा? भारत की भविष्य की अर्थव्यवस्था किस तरह काम करेगी? किस तरह के नए मॉडल अपनाने होंगे? यह बदलाव किन-किन क्षेत्रों में होगा? कितने दिन चलेगा और कब फल देगा? ऐसे कई प्रश्न हैं। आज जिनकी कल्पना तक नहीं है, ऐसे नए प्रश्न भी निर्माण होंगे। इसके लिए पहले अर्थव्यवस्था के मूल पहियों को समझना होगा। यह भी जान लेना होगा कि किसी के भी पास जादुई छड़ी नहीं है, जो दाएं घुमाए तो देश सोने से लहलहा उठेगा और बाए घुमाए तो देश के दुश्मनों या समस्याओं का एक झटके में अंत हो जाएगा। अर्थव्यवस्था का विकास एक निरंतर चलने वाली प्रदीर्घ और लचीली प्रक्रिया है। इसकी मजबूत नींव बनाना वर्तमान के हाथ में है। जैसी नींव होगी, वैसे ही भविष्य फल देगा।

यह पृष्ठभूमि समझ लें तो बहुत सारे भ्रम दूर हो जाएंगे। अर्थव्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण चक्र हैं- कृषि, उद्योग और सेवा। इन क्षेत्रों को असंख्य छोटे-छोटे शीर्षों में बांटा जा सकता है। जैसे कृषि को पारंपारिक खेती, व्यावसायिक खेती और वैज्ञानिक खेती में बांटा जा सकता है। उद्योग पहले से मूलभूत उद्योग और विनिर्माण उद्योग में विभाजित हैं। मूलभूत उद्योग उन्हें कहते हैं जो पूरी तरह सरकार के अधीन हैं जैसे कि भारी उद्योग, खनिज और कोयला उत्पादन, परमाणु ऊर्जा आदि। विनिर्माण में शेष सभी उद्योग जैसे कि जीवनावश्यक वस्तु विनिर्माण, वाहन, चिकित्सा उपकरण निर्माण, निजी व औद्योगिक आईटी उत्पादन आदि उद्योग आते हैं, जो निजी उद्यमियों के हाथों में होते हैं। अब इनका मुंह पारंपारिक उत्पादन की बजाए भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादन करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान की गति तीव्र करने की ओर मोड़ना होगा। जो इसमें चूक जाएंगे, उन्हें समय दफन कर देगा। अर्थव्यवस्था का तीसरा क्षेत्र है सेवा। यहां सेवा का मतलब धर्मादा या चैरिटी नहीं है। श्रम के बदले पारिश्रमिक लेना है। यहां प्रत्यक्ष किसी वस्तु का उत्पादन नहीं होता। वस्तु इधर से उधर पहुंचाई जाती है या उसकी मरम्मत की जाती है। होटल, पर्यटन इसीमें आते हैं। इसे आतिथ्य उद्योग भी कहते हैं। अस्पताल भी सेवा उद्योग के अंग हैं। आपके घर आकर बिजली ठीक करने वाला या नल ठीक करने वाला या शिक्षा संस्थान, अथवा मैं यहां तक कहूं कि घर में पूजा-पाठ के लिए आने वाला पंडित भी सेवा उद्योग का ही हिस्सा है, केवल अपने पारिश्रमिक को वह दक्षिणा कहता है। ये सारे लोग आजकल आधुनिक औजारों का इस्तेमाल करते हैं, यहां तक कि पंडितजी भी ऑनलाइन पूजापाठ करवाते हैं।

तात्पर्य यह कि भविष्य के भारत की अर्थव्यवस्था अधिक वैज्ञानिक होगी, उसमें तीव्र गति से निरंतर बदलाव करने पड़ेंगे, दूसरों से एक कदम आगे रहने की कोशिश करनी होगी। हर उद्योग की आवश्यकताएं अलग होंगी, कोई समान मॉडल बनाना संभव नहीं है। उदाहरण के लिए वाहन उद्योग में असेम्ब्ली लाइन होती है। पतरों को आकार देकर उनमें पुर्जें जोड़ने और अंत में पेंटिंग कर वाहन बाहर आता है। वैसे भी इस उद्योग में बेहद तीव्र गति से बदलाव हो रहे हैं। आज का कार मॉडल कल बासी हो जाता है। इसलिए लागत घटाने और गुणवत्ता बढ़ाने वाले नए-नए अनुसंधानों पर बल देना होगा।

वाहन और अंतरिक्ष सबसे बड़े उद्योग बन जाएंगे। खनिजों के नए-नए परिष्कृत स्वरूप सामने आएंगे। अब हमारी वसुंधरा से कम ही खनिज लिया जाएगा, सौर-मंडल के अन्य ग्रहों से खनिज लाए जाएंगे। कार्य-संस्कृति पूरी तरह बदल जाएगी। आज घर से काम करने को सुविधा माना जा रहा है। यह कल सुविधा नहीं रहेगी। आपको ऐसे घर में रहना होगा, जहां अतिरिक्त कमरा हो जिसका दफ्तर की तरह उपयोग किया जा सके; ताकि परिवार और काम को पृथक रखा जा सके। ऐसे श्रम कानून बन सकते हैं, जिसमें कर्मचारी को मानसिक दबाव से बचाने के लिए कंप्यूटर की लॉकिंग सिस्टम लगानी होगी। दफ्तर का समय होते ही कर्मचारी का कंप्यूटर स्वयं लॉक हो जाएगा, जो दूसरे दिन नियत समय पर ही खुलेगा। वाहनों ने तो आज ही बदलना शुरू किया है। ड्राइवरविहीन कार आरंभिक चरण में है। उसके कंप्यूटर में स्थान आदि डाल दें तो जीपीएस के सहारे वह आपको गंतव्य पर पहुंचा देगी और वह भी बिना किसी दुर्घटना के। सड़क, पानी और हवा तीनों में चलने वाली कारों के प्रयोग आज ही हो रहे हैं। यह क्षेत्र और तेजी से विकसित होगा। सबसे बड़ा बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में होगा। आज की अध्ययन और अध्यापन प्रणाली पूरी तरह बदल जाएगी, विषय भी गहन होते जाएंगे और उनमें नित्य संशोधन करना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उसका माध्यम होगा। इसका मतलब है ऐसा रोबोट जो आपको पहचान लें और जिन्न की तरह आपके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो और आपसे कहे- क्या हुक्म है आका? अर्थव्यवस्था के हर छोटे-बड़े क्षेत्र में आमूल बदलाव आएंगे। यह विषय इतना दीर्घ है कि इस पर हजारों किताबें लिखी जा सकेंगी।

भारत को इस भविष्य को समझना होगा और उसकी नींव डालनी होगी। वर्तमान मोदी सरकार के जिम्में यही राष्ट्रीय काम है। नई व्यवस्था में वैज्ञानिक अनुसंधान ही मूलाधार होंगे। यह बदलाव एक दिन में नहीं होंगे, लेकिन शुरुआत अवश्य करनी होगी। इसकी मजबूत नींव बनानी होगी। सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन राष्ट्र की यह दिशा नहीं बदलनी चाहिए। वैभवशाली भारत का यही मूलमंत्र है। इसलिए कि जो शक्तिशाली होगा वही वजूद पाएगा जैसे कि डार्विन का सिद्धांत है- Survival of the FITTEST.

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