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भारत -चीन मित्रता खटास ज़्यादा, चीनी कम

भारत -चीन मित्रता खटास ज़्यादा, चीनी कम

by कर्नल सारंग थत्ते
in मई - सप्ताह चार, विशेष
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भारत और चीन की उत्तरी और पूर्वी सीमा पर आपसी टकराव एवं नोकझोंक की स्थिति अब एक आम बात बन गई है, लेकिन भारत सरकार और सेना इसे किसी भी सूरत में हल्के में नहीं ले सकती है। यह परिस्थिति क्यों आती है इसका एक सीधा सच्चा उत्तर है- इस इला़के के नक्शे पर निशानदेही की समझ में फर्क है। मई महीने की 5 और 6 तारीख को शुरू हुई इस टकराहट का संपूर्ण हल अब तक नहीं आ पाया है, लेकिन इस बार जो हालात बन पड़े हैं वे अपने साथ दोनों सेनाओं का जमावड़ा भी साथ लाए हैं।

दरअसल चीन ने मई महीने में इसी इला़के में अपने सैन्य अभ्यास की कार्रवाई भी की थी, जिसकी बनिस्पत इस इला़के में ज़्यादा मात्रा में चीनी सैनिक मौजूद हैं। पैंगोंग त्सो (झील) के दोनों ओर चीन और भारतीय सैनिकों ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। इस झील में मोटर बोट से गश्त लगाई जाती है, लेकिन चीन ने अपनी मोटर बोट की संख्या बढ़ा दी है। इस झील के कुल आयतन का केवल एक तिहाई हिस्सा भारतीय क्षेत्र में है। पैंगोंग झील, जिसकी लंबाई तकरीबन 134 किलोमीटर है, का 70 प्रतिशत हिस्सा तिब्बत में आता है। यह झील 4350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके उत्तरी छोर पर जो पर्वत शृंखला बनी है उसकी शक्ल 8 उंगलियों की तरह है जो आपस में मध्य में ऊंचाई पर जुड़ी है।

गलवान घाटी में नदी किनारे चीन ने अपने टेंट गाड़ने शुरू किए थे, जिस पर भारतीय सेना ने अपनी ओर से आपत्ति जताई थी। पिछले कई वर्षों से टेंट लगाने के बाद चीनी सैनिक उस इलाके में पक्के मोर्चे या अन्य चौकी बनाते आए हैं, जिसके चलते इस किस्म के मोर्चों को वे अपने इला़के में शामिल करते हैं। भारतीय सैनिक मौके पर पहुंचकर चीनी सेना को ऐसा करने से रोकते हैं और तब आपस में गुत्थमगुत्थी की लड़ाई होती रही है। एक तरह से इसे मल्ल युद्ध कहा जा सकता है – अपनी ताक़त का परिचय देन का यह तरीका उस वीरान प्रदेश में!

गलवान घाटी में ही 1962 में भारत और चीन के बीच में संघर्ष हुआ था। 2020 में इस पूर्वी लद्दाख के इला़के में एक बार फिर अशांति बनी हुई है। ब्रिगेडियर रैंक के पदाधिकारी दोनों ओर से इस स्थिति को संभालने के लिए बातचीत में जुटे हुए हैं लेकिन आलेख लिखे जाने तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है। दोनों ओर की सैन्य टुकड़ियां अपने-अपने इलाक़ों में मजबूती से एक दूसरे की हरकतों पर कड़ी निगाह बनाए हुई है। चीन के अंग्रेज़ी भाषा का मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ के अनुसार चीन अपने इला़के में भारत के व्दारा किए जा रहे निर्माण कार्यों पर कड़ाई से जवाब दे रही है। चीनी समाचार पत्र के अनुसार चीन ने डोकलाम के बाद चीनी सेना की सबसे मजबूत कार्रवाई गलवान घाटी में अपनी हिफ़ाज़त के लिए की है। भारतीय सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने अपने बयान में कहा था कि चीन के साथ इस किस्म के गतिरोध इसलिए उठ खड़े होते हैं क्योंकि दोनों देशों की आपसी सीमा की सही जानकारी और समझ में फर्क है और यह ज़मीन पर हलचल पैदा करती है। भारतीय सेना अपनी ओर से स्थापित सैन्य तरीके से इस किस्म के गतिरोध को दूर करने की भरसक कोशिश करती रही है।

लद्दाख में तनावइस

साल चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ विभिन्न स्थानों पर भारतीय सेना को कई बार चुनौती दी है। यह आकलन किया गया है कि भारत को इस साल मई और अक्टूबर के बीच चीनी सेना की टुकड़ियों को सीमा का उल्लंघन ना करने के लिए विशेष कदम उठाने पड़ेंगे। दोनों प्रतिद्वंद्वी सेनाएं एलएसी – पश्चिम (लद्दाख), मध्य (उत्तराखंड, हिमाचल) और पूर्व (सिक्किम, अरुणाचल) – के तीनों क्षेत्रों में आक्रामक रूप से गश्त लगाने में लगी हुई हैं। हर साल गर्मियों के महीनों के दौरान, पीएलए द्वारा 300 से अधिक सीमा उल्लंघन किए जाते रहें हैं। हर बार उल्लंघन के बाद चीनी सेना के कमांडर एलएसी पर अपनी समझ और नक्शे पर वस्तुस्थिति की व्याख्या देना जारी रखते हैं और कुछ समय बाद अपने सैनिक वापस पीछे ले लेते हैं। यह सब चीन जानबूझकर हर साल करता आ रहा है। 5-6 मई को आपसी टकराव, पथराव और मारपीट के झगड़े में परिवर्तित हुआ था। इस मल्ल युद्ध के बाद, दोनों पक्षों ने क्षेत्र में अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। दोनों देशों के बीच विवाद को उच्च स्तर पर बातचीत के जरिए हल करने की कोशिशें जारी हैं। हालांकि, पिछले दिनों चीनी मीडिया की टिप्पणियां बताती हैं कि चीन आक्रामक रुख अपना रहा हैं। चीनी मीडिया के मुताबिक चीन इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।

भारत चीन सीमा पर 23 विवादास्पद और संवेदनशील क्षेत्रों की सूची है। पी एल ए की हर संभव कोशिश है कि वह भारतीय सैनिकों की तैयारियों को टटोल रहा है और यह कोशिश करता है कि हमारी रक्षात्मक तैयारी में कहां पर कमज़ोरी है। लद्दाख में कई ऐसे स्थान हैं जैसे पैंगोंग त्सो, ट्रिग हाइट्स, डेमचोक, डमशेल, चुमार और स्पैंगुर गैप जहां चीनी सैनिक लगातार भारतीय सीमा पार करने की कोशिश करते रहे हैं। अरुणाचल में भी तथाकथित फिश टेल 1 और 2, नमखा चू, समदोरोंग चू, अप्सफिला, डिचू, यांग्त्से और दिबांग वैली हॉट स्पॉट हैं। चीन दौलत बेग ओल्डी में भारत के सड़क, पुल बनाने से चिढ़ा है। चीनी सैनिकों का संभावित निशाना दरबुकशियोक – दौलत बेग ओल्डी रोड हो सकता है, जिसे भारत ने पिछले साल बनाया है। यह रोड सब सेक्टर नॉर्थ के लिए जीवन रेखा की तरह है। हालांकि, चीन को किसी भी तरह की हिमाकत से रोकने के लिए भारत ने भी पर्याप्त संख्या में सैनिकों की तैनाती की है।

डोकलाम विवाद

2017 में हुए डोकलाम इलाके में भारत, चीन और भूटान की सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिक आपस में भिड़ गए थे। दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव कुल 73 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। चीन 1988 से भूटान के कुछ हिस्सों में अतिक्रमण कर रहा है। यह भी स्पष्ट है कि राजनीतिक चैनलों के माध्यम से भूटान के बार-बार विरोध के बावजूद पीएलए सैनिकों द्वारा किए जा रहे निर्माण को रोकने की स्थिति में भूटान नहीं है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। इस क्षेत्र में भारत के प्रमुख मुद्दे हैं – चीन एकतरफा त्रिकोणीय बिंदु बदल रहा है। भारतीय दलों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि 2012 में भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ था जिसके अंतर्गत त्रिकोणीय सीमा बिंदु का स्थान भूटान से परामर्श के बाद निर्धारित किया जाएगा। इसीलिए चीन का एकतरफा त्रिकोणीय बिंदु निर्धारण करने का कोई भी प्रयास संधि का उल्लंघन है। भारत ने इसका जमकर विरोध किया और डोकलाम विवाद पर एक तरह से रोक लगाई थी।

हम 1962 की जंग को नहीं भूले थे और भारतीय सेना ने क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बहुत बढ़ा दी थी। चीन ने भूटान के उत्तरी डोकलाम क्षेत्र में मजबूत बंकर, सड़क और हेलीपैड बनाए हैं। आज हमारी नजर चीनी सेना की चाल पर है, सीमा पर गश्त में वृद्धि हुई है। हमने चीनी सैनिकों की घुसपैठ को देखते हुए आक्रामक कदम उठाए हैं। भारतीय सैन्य विशेषज्ञ निश्चित रूप से सोच रहे हैं कि क्या चीन हम पर युद्ध थोपेगा? इस सोच के कई पहलू हैं – मुख्यतः सैन्य और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन जानता है कि भारत की सेना 1962 की तुलना में कहीं अधिक उन्नत है, विशेष रूप से, भारतीय वायु सेना को किसी भी हमले में चीन की तुलना में कम समय में अग्रिम पंक्ति पर मिसाइल और बमबारी में कोइ समस्या नहीं होगी।

इस किस्म की सीमा पर हो रही कार्यवाही से चीन अतिक्रमण करने के संकेत तो नहीं दे रहा है? क्या अतिक्रमण की नीति के तहत चीन कुछ अलग तो नहीं सोच रहा है? भारतीय सेना ने अपनी सुरक्षा पंक्ति और आक्रामक रूप में बदलाव किया है। भारतीय सेना ने पूर्वी हिस्से में अपने दस डिविजन को तैनात किया है। हमने डोकलाम सीमा पर ही नहीं बल्कि अरुणाचल में भी एक बेहतर रक्षा प्रणाली बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 1962 की कहानी में, हम बहुत कमजोर साबित हुए थे। लेकिन भारत ने दर्दनाक संघर्ष का पाठ पढ़ा है, जिसे अभी तक भुलाया नहीं जा सका है। इस बार हम बहुत तेजी से सुरक्षित कदम उठा रहे हैं। चीन का यह प्रयास उस वक्त चल रहा है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इससे निपटने में लगी है। कोरोना वायरस चीन से पूरी दुनिया में फैला और अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि वायरस के फैलने की अंतरराष्ट्रीय जांच हो और लाखों मौतों की जिम्मेदारी तय हो। ऐसे वक्त में चीन न सिर्फ जगह-जगह टकराव के जरिए इस मुद्दे से ध्यान भटका रहा है, बल्कि नेपाल को भी भारत के खिलाफ भड़का रहा है। माना जा रहा है कि लिपुलेख मामले (लिपुलेख मानसरोवर लिंक रोड) में नेपाल को उकसाने में चीन का ही हाथ है।

दूसरी तरफ कोरोना वाइरस की वजह से कई नामी गिरामी कंपनियां चीन से बाहर जाने की राह तलाश रही हैं। भारत सरकार ने चीन में स्थित कंपनियों को भारत में आमंत्रित किया है। भारत में निर्माण के लिए बिजली, पानी और सड़क प्रदान करने से अर्थव्यवस्था को नए निवेश आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए, केंद्र सरकार ने विद्युत,
फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, भारी इंजीनियरिंग, सौर उपकरण, खाद्य प्रसंस्करण, रसायन और वस्त्र जैसे 10 क्षेत्रों का चयन किया है। विदेशों में दूतावासों को विकल्पों की तलाश के लिए कंपनियों की पहचान करने के लिए कहा गया है। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर पलायन में दिलचस्पी दिखाने वाले निवेश की जांच सरकार की निवेश एजेंसी, मुख्य रूप से जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया और चीन द्वारा की गई है। कोविड-19 संकट के बढ़ने के साथ, चीन में विनिर्माण परियोजनाओं के साथ कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां परिचालन को स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं। देखना होगा कि इस संबंध में भारत सरकार और राज्य सरकारों की क्या नीति है! यह हमारे लिए एक बड़ा अवसर है, जिस पर राज्य और केंद्र सरकारों को एकजुट होकर इसे सफल बनाना होगा।

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