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सरकार कारोबारी चक्र को फिर से गति प्रदान करे

सरकार कारोबारी चक्र को फिर से गति प्रदान करे

by अमोल पेडणेकर
in अवांतर, विशेष
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कोरोना संक्रमण के इन अंधियारे दिनों में महाराष्ट्र के औरंगाबाद और जालना के बीच 16 मजदूर एक मालगाड़ी से कटकर मरे थे। ये मजदूर पैदल अपने गांव लौट रहे थे। खून से सनी रोटियां गवाह थीं कि इन्हीं रोटियों की आस में वे मारे गए। मुंबई के सायन अस्पताल के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हुए थे। इनमें प्लास्टिक बैग में सील किए गए शवों के समीप कोरोना के मरीज लेटे नजर आ रहे थे। एक मजदूर महिला यात्री ने रास्ते में ही नवजात शिशु को जन्म दिया और ऐसी ही स्थिति में वह महिला अपने नवजात शिशु को हाथ में लेकर 128 किलोमीटर तक चलती रही। कोरोना संक्रमण से जुड़े ये सारे चित्र ऐसे हैं, जिसे भुलाना नामुमकिन होगा। केंद्र और राज्य सरकारें कितनी भी कोशिश कर लें, इस विशाल और विकराल महामारी से जूझने के ज्यादातर प्रबंध त्वरित कारागर साबित नहीं हो रहे हैं?

कोरोना वायरस के संक्रमण की रफ्तार बहुत तेजी से बढ़ रही है। आलेख लिखने तक करीब 160000 मामले भारत भर में सामने आ चुके हैं। महाराष्ट्र में  कोरोना संक्रमण मरीजों की संख्या 50000 के पार हो गई है। तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में भी आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। एक तरफ सोशल डिस्टेंसिंग का नारा है तो दूसरी तरफ नियमों की धज्जियां उड़ाते लोग हैं। वही लोग भारत में परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं। देशभर में मरने वालों की संख्या चार हजार को पार कर गई है। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना का कहर जून और जुलाई में तेजी बढ़ने की संभावना है। ऐसे समय मे हम सबको कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी।

कोरोना हमारी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनते जा रहा है। आने वाला समय बेहद चुनौतीपूर्ण है। हम पूर्ण संक्रमित टॉप 10 देशों में आ चुके हैं। इस महीने के अंत तक यह यात्रा भीषण संकट के आसपास तक जाती दिख रही है। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए उपाय योजनाओं का पांचवां चरण चल रहा है। जिनके चलते कोरोना संक्रमण पर लगाम नहीं लग पा रही है। केवल दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात के हालात पर ही विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तमिलनाडु और हरियाणा में भी कोरोना संक्रमण के यकायक बढ़े मामले चिंता पैदा कर रहे हैैं। इसके अलावा चिंता का एक अन्य विषय यह भी है कि पश्चिम बंगाल की वास्तविक स्थिति पता नहीं चल पा रही है। यह आवश्यक है कि कोरोना के कहर का सामना करने के मामले में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें, बल्कि आपसी तालमेल और बढ़ाए। कोरोना का कहर एक राष्ट्रीय आपदा है और उससे हमें मिलकर ही लड़ना चाहिए। कोरोना संक्रमण पर लगाम लगाने की रणनीति पर नए सिरे से विचार किया जा रहा है, लेकिन बात तो तब बनेगी जब बदली हुई रणनीति कारगर भी साबित होगी।

विमान सेवा में छूट दी गई है। जान के साथ जहान भी का मंत्र सफल बनाने के लिए कारोबारी गतिविधियां जितनी जल्दी रफ्तार पकड़ें, उतना ही बेहतर है। अब केंद्र सरकर, राज्य सरकारों और उद्योग जगत के समक्ष परीक्षा की घड़ी है। कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को भी बचाने के कठिनतम प्रयास हमें करने ही होंगे। सरकार की बदलती रणनीति में उन कारणों का निवारण करते समय प्राथमिकता के आधार पर अर्थ और उद्योग जगत का विचार किया जाना चाहिए।

कोरोना संक्रमण रोकने के उपाय और लॉकडाउन जारी रहने की स्थिति में भी कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा, तब फिर ऐसी कोई रूप-रेखा बननी चाहिए जिससे न तो देश में कोई भ्रम फैले और न ही कारोबारियों के सामने किसी तरह की अड़चनें आए। नि:संदेह देश की अर्थव्यवस्था और कारोबारी गतिविधियों के थमे हुए चक्के को फिर से चलाने में समय लगेगा, लेकिन अगर तैयारी सही हो तो उसे कम वक्त में गतिशील किया जा सकता है। फिलहाल इसकी ही जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ कारोबार जगत को भी अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी। कारोबारी गतिविधियां जितनी जल्दी रफ्तार पकड़ें, उतना ही बेहतर है। साथ ही इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। अब परीक्षा की वह घड़ी है, जब कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने के भी प्रयास करने ही होंगे।

कोरोना वायरस ने भारत के सभी प्रांतों को खासा प्रभावित किया है। बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है, उनके रोजगार खत्म हो रहे हैं, और रोजमर्रा के जीवन में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद, कोरोना वायरस के घने अंधियारे में उम्मीद की किरण मौजूद है।  यह संकट दरअसल विभिन्न क्षेत्रों में इनोवेशन यानी नवनिर्माण को बढ़ावा दे सकता है। नए तरीके से सोचने वाला समाज गढ़ सकता है। अतीत में भी महामारी ने नवनिर्माण को गति देने का काम किया है और नए विचारों के साथ बदलाव को मुमकिन बनाया है।

भारत में पिछले एक दशक में स्मार्टफोन ने बहुत बड़ा विस्तार बढ़ाया है। इससे डिजिटल समाधान और नवनिर्माण बढ़ाए जा सकते हैं। ‘कम से कम- स्पर्श’ या ‘संपर्क-विहीन’ सेवा पहुंचाना अब अर्थव्यवस्था का नया मानक बनता जा रहा है। इसका मतलब है कि अब हर लेन-देन में उन स्थितियों से बचा जाएगा, जहां स्पर्श की गुंजाइश होती है। अब लोग किसी किराना स्टोर में जाने की बजाय ऑनलाइन खरीदारी करना पसंद करेंगे। डॉक्टर भी मरीजों को क्लिनिक में बुलाने से बेहतर ऑनलाइन देखना चाहेंगे। लंबे सफर को टालकर लोग ऑनलाइन ही एक दूसरे से भेंट-मुलाकात करेंगे। भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को केंद्र में रखकर कई तरह के नए इनोवेशन हो सकते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली में भी प्रौद्योगिकी-आधारित नवनिर्माण की काफी संभावनाएं हैं।

विेशविद्यालयों और शिक्षा संस्थाओं ने कई तरह के कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने भी देश में ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘ई-विद्या’ कार्यक्रम की घोषणा की है। कोरोना-काल के बाद भी यह प्रयास उपयोगी साबित हो सकता है।

कोरोना महामारी ने सामाजिक और व्यावसायिक नियम बदल दिए हैं। ‘वर्क फ्रॉम होम’ अब सामान्य बात हो गई है, क्योंकि यह व्यवस्था आर्थिक रूप से किफायती है व कामकाज के लिहाज से लचीली भी। कार्यालयों की साज-सज्जा, परिवहन आदि पर हो रहा खर्चा अपने कर्मियों को घर से काम करने की अनुमति देकर कंपनियां कम कर सकती हैं। इस व्यवस्था में कम संख्या में लोग आना-जाना करेंगे। मौजूदा उथल-पुथल में उद्योग जगत चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे। इससे कारोबारी दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे। फैक्टरियां ऑटोमेशन अपनाएंगी और रोबोटिक्स का इस्तेमाल ज्यादा होगा। यह परिवर्तन बहुत सारे लोगों के रहन-सहन और कामकाज को बदल देगा, क्योंकि घरों और ऑफिस में बौद्धिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी।

सवाल उठता है कि यह परिवर्तन या नवनिर्माण कुछ समय के बाद आ जाएगा, लेकिन आज वर्तमान में जो आर्थिक संकट सिर पर प्रहार कर रहा है, उसे कैसे रोका जाए? कोरोना के भीषण आर्थिक संकट काल में इतने सारे इंसानों की आवाजाही को कब तक रोका जा सकता है? तमाम प्रदेश सरकारों ने फैक्टरी मालिकों और व्यवसायियों से अपील की है कि वे गरीब कामगारों के वेतन न काटें और उन्हें नौकरी से भी न निकालें। फरवरी- मार्च का वेतन तो दे दिया, पर अप्रैल का वेतन देना असंभव है। काम बंद पड़ा है। ऐसे में, इतने लोगों को घर बैठाकर वेतन देना संभव नहीं।

अगर लॉकडाउन इससे लंबा खिंचा, तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। कुछ दिनों पहले तक भारत में बेरोजगारी दर सात फीसदी थी, कोरोना के दिनों में बढ़कर वह 27 फीसदी से पार जा पहुंची। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, महाराष्ट्र में लगभग एक करोड़, उत्तर प्रदेश में 75 लाख, तमिलनाडु में 68 लाख, गुजरात में 52 लाख, पश्चिम बंगाल में 47 लाख और दिल्ली में 42 लाख कामगार खाली हाथ बैठे हैं। लाखों व्यवसायी नासमझी की स्थिति में सरकार की ओर आस लगाए बैठे हैं। इस विकट स्थिति में अर्थव्यवस्था का चक्का घुमाएं या फिर लॉकडाउन बढ़ाएं? लॉकडाउन से लोगों के प्राणों की रक्षा भले ही हो रही हो, पर अर्थव्यवस्था की रक्षा कैसे हो सकती है? अमेरिका ने इसका जवाब दिया है। लॉकडाउन हटाने से मौत के आंकड़ों में बढ़ोतरी हो सकती है, पर अमेरिका ने लंबे समय तक आजीविका के संसाधनों को बंद नहीं रखा। यूरोप के अन्य देशों ने इसका अनुसरण किया है। स्वीडन में तो अब तक तीन हजार से अधिक लोग मारे गए हैं, लेकिन उन्होंने पहले से ही लॉकडाउन लागू नहीं किया है। अब समय आ गया है कि भारत में भी कारोबारी चक्र को फिर से गति प्रदान करने के प्रयास किए जाए।

केंद्र सरकार ने भारत की उद्योग जगत के लिए 20 लाख करोड़ की राहत योजना मंजूर की है। लेकिन इस राहत योजना ने अब तक सभी क्षेत्र के उद्योगों के मन में विेशास का भाव निर्माण नहीं किया है। 20 लाख करोड़ की राहत योजना में 3 लाख करोड़ लघु- मध्यम उद्योगों की राहत के लिए है। यह योजना उद्योजकों तक किस प्रकार पहुंच सकती है, इस विषय में उद्योजकों के मन में स्पष्टता नहीं है। उद्योजकों में बड़ी भ्रम की स्थिति है। हमारा आकलन है कि इससे सरकार और उद्योजकों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। भारत में पुनः कारोबारी चक्र को गति प्रदान करनी है तो केन्द्र एवं राज्य सरकारों को इस विषय पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। उद्यमी और सरकार के बीच की दूरी समाप्त करने की कोशिश होना अत्यंत आवश्यक है, जिससे उद्योग जगत में निर्माण हुई भीषण आर्थिक और औद्योगिक समस्या से भारत देश संवर सके।

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