जम्मू-कश्मीर की फिजां अब बदल रही है

कश्मीर घाटी में आतंवादियों की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए क्या भारतीय सेना ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव किया है?

केंद्र में मोदी सरकार आते ही आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई है और कश्मीर से आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा करने के लिए भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन ऑल आउट चलाया जा रहा है। राजनैतिक नेतृत्व का समर्थन मिलने के कारण सुरक्षा बल पूरी मुस्तैदी से आतंकवादियों का सफाया करने में जुटे हुए हैं। उसी का परिणाम है कि पहले की तुलना में कश्मीर घाटी में आतंकवाद में बेहद कमी आई है। आतंकवाद के सभी प्रमुख चेहरों की पहचान कर चुन – चुन कर मारा जा रहा है। आतंकवाद की जड़ों को काटने के लिए टॉप लीडरशिप को निशाना बनाया जा रहा
है। स्थिति यह है कि कोई भी हथियार उठाता है तो बेहद कम समय में ही उसे जहन्नुम पहुंचा दिया जाता है। ऊपर से लेकर नीचे तक आतंकवाद और उसके समर्थकों का नामोनिशान मिटाने का कार्य बड़ी तेज गति से हो रहा है।

आतंकवादियों ने पुलवामा जैसा हमला करने की कोशिश की थी जिसे सेना ने नाकाम कर दिया। इसे आप सेना की कितनी बड़ी कामयाबी मानते हैं?

मैं इसे सेना की बहुत बड़ी कामयाबी मानता हूं। हमला होने के पूर्व ही उसे नाकाम कर देना सुरक्षा बलों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। भारतीय सेना इसी तरह के अनेक हमलों को लगातार नाकाम करती आ रही है; लेकिन इस संदर्भ में सूचनाएं जनता तक नहीं पहुंच पातीं। केंद्रीय नेतृत्व और सेना की आक्रामक रणनीति से आतंकवादियों के आकाओं और उन्हें समर्थन देने वाले विपक्षी पार्टियों को भी भलीभांति यह बात समझ में आ गई है कि अब बहुत दिनों तक आतंकवाद का छद्म युद्ध नहीं चलाया जा सकता। ऐसा करना अब संभव नहीं है।

धारा 370 हटने के बाद जम्मू – कश्मीर और खासकर घाटी में क्या परिवर्तन हुआ है?

धारा 370 हटने के बाद से ही कश्मीर घाटी की फिजाओं में रौनक और खुशहाली आ गई है। जम्मू कश्मीर में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहे ह॥ धारा 370 से जनता को कोई लाभ नहीं हो रहा था बल्कि नुकसान ही अधिक हो रहा था। केवल मुट्ठीभर परिवारों और प्रशासन में कुंडली मारकर बैठे भ्रष्ट अधिकारियों को ही विभिन्न प्रकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा था। उन्होंने मिलकर खूब लूट मचाई। स्थानीय राजनैतिक पार्टियों ने मनोवैज्ञानिक रूप से धारा 370 को मजहब, इज्जत और जम्हूरियत के नाम पर जनता को भावनात्मक तौर पर जोड़ दिया था। लेकिन समय के साथ स्थानीय जनता इन राजनैतिक हथकंड़ों को जान चुकी थी। नेताओं ने जो बड़ी बड़ी डींगें हांकी थीं कि धारा 370 को हटाने के लिए हमारी लाशों से गुजरना होगा। जम्मू कश्मीर में भारत का कोई झंड़ा पकड़ने  वाला नहीं मिलेगा। ये सब बातें झूठी साबित हुइर। धारा 370 को लेकर जो डर का माहौल बनाया गया था, वह भी इसके हटते ही समाप्त हो गया। यहां की आम जनता सब समझती है।

यहां के लोगों के दो प्रमुख प्रश्न थे कि हमारे लोगों का और हमारी जमीन का क्या होगा? तो केंद्र सरकार ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि जैसे डोमेसाइल की प्रक्रिया पूरे देश भर में है उसी तरह वह यहां भी लागू होगी। जब कश्मीर का व्यिे पुणे, मुंबई, महाराष्ट्र और देश भर में कहीं भी जमीन खरीद सकता है, वहां पर रह सकता है, रोजी-रोजगार कर सकता है। ठीक उसी तरह जम्मू कश्मीर में भी कोई दि ̧त नहीं होनी चाहिए। खेती की जमीन और जंगल को किसी व्यापारी द्वारा नुकसान न पहुंचे, इसका भी ध्यान रखा गया है और उसे संरक्षण प्रदान किया गया है। केवल नाममात्र के मुट्ठीभर लोग घाटी में ऐसे हैं जो पाकिस्तान की कठपुतली बनकर जिहाद के नाम पर उन्माद फैलाने का काम करते हैं। पाकिस्तान के झांसे में आकर वे गुमराह हुए हैं। लेकिन अब यहां की जनता जागरूक हो गई है और वह सब कुछ समझने लगी है। वह किसी के झांसे में आने वाले नहीं है। पहले की
अपेक्षा जनता में अधिक जागरण हुआ है।

कश्मीरियत के नाम पर लोगों को भड़काया और गुमराह किया जाता रहा है। असल में कश्मीरियत क्या है?

जिस तरह महाराष्ट्र में रहने वालों को महाराष्ट्रियन कहते हैं, गुजरात में रहने वालों को गुजराती कहते हैं; उसी तरह कश्मीर में कश्मीरियत शब्द प्रचलन में है। ये सारे शब्द भारतीयता के ही स्थानीय नाम हैं। राष्ट्र हमारा एक है और हजारों साल पुरानी हमारी संस्कृति-सभ्यता है। समय के साथ नए आयाम और नाम इसके साथ जुड़ते गए। कश्मीर में भी वैसा ही हुआ। जम्मू कश्मीर का हजारों वर्ष पुराना वैभवपूर्ण और गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। जिहादियों और वामपंथियों ने मिलकर यह कोशिश की कि पुराने वैभवशाली कश्मीर के इतिहास को लोग भूल जाए। इसके लिए इतिहास को भ्रष्ट किया गया। वामपंथियों ने इतिहास के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया और उसे पथभ्रष्ट कर दिया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्रख्यात कवि एवं प्रोफेसर रहमान भाई ने कश्मीर यूनिवर्सिटी का एंथम (विश्वविद्यालय का गान) लिखा, उसमें कश्मीर की ज्ञान संपदा की बात कही है। उन्होंने कश्मीर का वर्णन ज्ञान की देवी के रूप में किया है। एक समय कश्मीर पूरे विश्व में अपने ज्ञान विज्ञान के सुविख्यात था। आज आचार्य अन्गोगुप्त के बारे में कश्मीर में किसी को कुछ मालूम नहीं है। महान साम्राज्य के अधिपति सम्राट ललितादित्य के बारे में किसी को कुछ जानकारी ही नहीं है। लेकिन अब लोग अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं। अपना अतीत और सच्चा इतिहास जानना चाहते हैं। कश्मीर का सही इतिहास उनको बताया जाना चाहिए।

कश्मीरी पंडितों की पुनर्वापसी की दिशा में जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम बढ़ाए जा रहे हैं?

इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं, कोशिश लगातार जारी है; लेकिन इसमें कुछ समय लग सकता है। कश्मीर प्रशासन में एक तबका ऐसा है जो काम को आगे बढ़ने नहीं देता। भ्रष्ट सिस्टम का यह उदाहरण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विस्थापितों की बस्तियां बसाने के लिए एक प्रकल्प का उद्घाटन किया था, लेकिन प्रशासन में बैठे लोगों ने उसमें रोड़े अटका दिए। वे किसी भी प्रोजेक्ट को जल्दी अमल में आने ही नहीं देते और कुछ न कुछ नियम कानून की आड़ लेकर लेटलतीफी करते हैं। बावजूद इसके कश्मीरी पंडितों को फिर से घाटी में बसाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उचित कदम उठाए जा रहे हैं। इसमें कुछ देरी हो सकती है लेकिन पंडितों की घाटी में पुनर्वापसी होकर रहेगी।

कहा जाता है कि शिक्षा और रोजगार के अभाव में लोग आतंकवादी बनते हैं, इसकी क्या सच्चाई है?

ऐसा कहना प्रोपगेंडा का एक हिस्सा है, ऐसी कोई बात नहीं है। धारा 370 और 35(ए) के कारण ही जम्मू कश्मीर में इंडस्ट ́ीज नहीं लग पाई। इसलिए यहां पर रोजगार के अधिक अवसर नहीं उपलब्ध हो पाए। सरकारी नौकरी की अपनी एक मर्यादा है। प्राइवेट सेक्टर और उद्योग जगत को इंडस्ट ́ीज लगाने का मौका नहीं देंगे तो रोजगार कहां से मिलेगा। अब सरकार की यह कोशिश है कि जम्मू कश्मीर को फिर से शिक्षा का हब बनाया जाए। सरकार छात्रों को स्कॉलरशिप देकर शिक्षा के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके साथ ही कौशल विकास के लिए भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मेडिकल, इंजीनियरि ̈ग आदि सभी प्रकार की बेहतरीन शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास सरकार कर रही है। रोजगार के दृष्टि से भी सरकार पर्यटन, उद्योग, व्यवसाय, स्वरोजगार, लघु उद्योग, एमएसएमई स्थापित करने और उसे मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत है। इन सारी योजनाओं को सफल बनाने के लिए सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जा रही है।

सरकार द्वारा उठाए जा रहे सकारात्मक कदमों से क्या आतंकवादियों का लोकल सपोर्ट खत्म होता जा रहा है?

जी, निश्चित रूप से सपोर्ट कम भी हो रहा है और खत्म भी हो रहा है। लोग देख रहे हैं कि आतंकवाद का नेतृत्व करने वाले जो लोग हैं उनके बच्चे तो देश-विदेश के बड़े शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे हैं। यदि आतंकवाद का रास्ता अच्छा होता तो इसका समर्थन करने वाले नेता और अन्य प्रमुख लोग अपने बच्चों को भी इसी रास्ते पर आगे बढ़ाते लेकिन ऐसा नहीं है। वे अपने बच्चो को आतंकवाद से दूर रखते हैं। यह बात आम जनता को समझ में आ चुकी है। दूसरी बड़ी बात यह है कि शासन – प्रशासन में ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला था। आम लोग इससे बहुत परेशान थे। भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को हटाने और उन्हें जेल में भेजकर सिस्टम को क्लीन करने का काम किया जा रहा है। इससे लोगों का भरोसा वर्तमान
सरकार पर बढ़ा है। जम्मू कश्मीर में मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास के साथ ही सबका विश्वास भी जीत रही है। अभी हाल ही में कश्मीर के एकमात्र बचे हिन्दू सरपंच की हत्या हुई। जिहादी संगठन और इन्हें सपोर्ट करने वाली राजनैतिक पार्टियों के डर से आम लोग खुलकर सरकार का समर्थन नहीं कर पाते, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि धीरे – धीरे जनता का एक बड़ा वर्ग मोदी के नेतृत्व को सहर्ष स्वीकार करता हुआ नजर आ रहा है।

मृतक हिन्दू सरपंच की बेटी ने जितनी आक्रामकता से आतंकवादियों को ललकारा है, क्या यह कश्मीर के युवाओं में बदलते हुए दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है?

नि…संदेह, आतंकवादियों के खिलाफ जिस साहस का परिचय बेटी ने दिया है वह काबिलेतारीफ है। इससे यह जाहिर होता है कि अब कश्मीरी युवा अन्याय सहन करने को तैयार नहीं है। न्याय के लिए वह अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं और यहां तक कि वे अपने इंसाफ के लिए आतंकवादियों से भी लड़ सकते हैं। इसके अलावा जब सेना और पुलिस में भर्ती होती है या खेलों में युवा आगे आते हैं तब उनके चेहरों पर आये उनके भावों को देखकर उनके बदले हुए दृष्टिकोण को समझ सकते हैं।

भारत के अन्य समृद्ध राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर को विकसित करने के लिए क्या योजनाएं हैं?

पहली बात तो यह है कि यहां विधान सभा और लोकसभा का परिसीमन होना है। जब तक परिसीमन नहीं होगा तब तक चुनाव नहीं हो सकते। परिसीमन समिति का गठन हो गया है लेकिन इस कार्य को पूर्ण होने में साल, डेढ़ साल का समय लगेगा। ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। हमारे यहां ऐसा होता है कि सरकारी कामों में रोड़ा अटकाने के लिए लोग कोर्ट में चले जाते है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो 2021 या 2022 की शुरुआत में यहां पर चुनाव होंगे। तब तक केंद्र और वर्तमान सरकार मिलकर नागरिकों की सुविधाओं से संबंधित सारे जरूरी काम करने का प्रयास करेगी। शासन प्रशासन स्तर पर कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन किया जा रहा है। पारदर्शी व्यवस्था बनाई जा रही है। व्यापक सुधार प्रक्रिया जारी है। इन सारे बदलावों को लोग देख रहे हैं और समझ रहे हैं कि इन बदलावों का हिस्सा हमें भी बनना पड़ेगा। कोरोना महामारी के संकट काल में भी आप देख रहे हैं कि नागरिकों ने कैसे सहयोग किया है। लॉकडाउन खुलने के बाद इसमें और तेजी के साथ सुधार होने की उम्मीद है।

जम्मू कश्मीर के हिंदुओं में अब क्या परिवर्तन दिखाई दे रहा है?

सिर्फ जम्मू कश्मीर में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में यह परिवर्तन दिखाई दे रहा है। बहुत समय तक हम अध्यात्म को ही ज्यादा तरजीह देते रहे और सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़कर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। जो भी करेगा ईश्वर करेगा, ऐसा हम मान बैठे थे। लेकिन अब जो दुष्ट शिेयां हैं उन्हें नष्ट करना पड़ेगा, यह मानसिकता और जागरण हिन्दू समाज में दिखाई दे रहा है। मुझे ऐसा लगता है कि महाभारत के महासंहार और महाविनाश के बाद हमने युद्ध से बचने की हर संभव कोशिश की लेकिन जब युद्ध ही अंतिम मार्ग बचता है तो हम युद्ध इस प्रकार से करेंगे कि राक्षसी शिेयां पूरी तरह से समाप्त हो जाए। जम्मू कश्मीर भी इसमें अपवाद नहीं रहेगा। सारे देश व समाज के साथ वह भी हमारे साथ खड़ा रहेगा।

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