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जंग जिंदगी की

जंग जिंदगी की

by सुनीता माहेश्वरी
in जून- सप्ताह तिसरा, ट्रेंडींग, साहित्य
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“कुछ दिन बाद डॉ. अनूप स्वयं को थोड़ा स्वस्थ महसूस करने लगे। उन्हें अपने मरीज याद आने लगे थे। वे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव को खुद भुगतचुके थे। उन्होंने कोरोना के रोगियों को बचाने की मन में ठान ली और पुन… मरीजों की सेवा करने हेतु अपना रक्षा- कवच पहन कर, योद्धा बन हॉस्पीटल पहुंच गए। जिंदगी की जंग फिर शुरू हो गई थी!”

रात के ढाई बजे थे, पर उनसठ वर्षीय डॉ. अनूप माहेश्वरी की आँखों में नींद नहीं थी | उनके मन में उथल-पुथल सी मची हुई थी | वे दूसरे दिन कोरोना से संक्रमित पहला मरीज देखने वाले थे |  पूरी दुनिया जिस वाइरस से जंग लड़ रही है, आखिर उस पर विजय कैसे पाई जाए, कैसे अपने मरीज की
जान बचाई जाए? इसी उधेड़ बुन में लगे जाने माने क्रिटिकल केयर लंग्स स्पेशलिस्ट डॉ. अनूप को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला |

घर के सभी लोगों के मन में कोरोना का डर छिपा हुआ था | सबको एक ही चिंता थी कि कहीं डॉ अनूप को कोरोना संक्रमण न लग जाए | उनकी माँ सुबोध की आँखें भर आई थीं | वह कहने लगीं, “अनूप, तुम डॉक्टर हो, तुम्हें अपना काम तो करना ही होगा, पर बेटा बहुत सावधानी से रहना |” डॉ. अनूप ने मुस्कराते हुए कहा, “मम्मी, बिल्कुल चिंता मत करो | मैं पूरी सावधानी से रहूँगा | मुझे कुछ नहीं होगा |”

डॉ. अनूप की पत्नी मीनू गरमागरम अदरक वाली चाय सबके लिए बना लाई थी | वह कुछ नहीं बोली, पर उसकी बड़ी-बड़ी आँखें बिना कुछ कहे ही सब कुछ कह दे रही थीं | आँखों में एक डर था | अमेरिका में कई दशकों से रहते  हुए भी मूलतः भारतीय होने के कारण उनके घर में हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति का ही महत्व है | डॉ. अनूप ने हँसी मज़ाक से वातावरण कुछ हल्का बनाया और हॉस्पीटल चले गए |

हॉस्पीटल में उन्होंने पहला पेशेंट देखा और वह ठीक भी हो गया | वे बहुत खुश थे | पर यह कोरोना की लड़ाई का अंत नहीं था | यह तो शुरुआत थी | डॉ. अनूप कोरोना की इस महामारी को रोकने के लिए अपनी टीम के साथ बड़ी लगन से दिन  में बारह -चौदह घंटे काम करते | उनकी पत्नी और बच्चे उनके साथ के लिए तरस जाते |

एक दिन जिंदगी की नीरसता से दुखी होकर मीनू ने रोष प्रकट करते हुए कहा, “आपको तो बस अपने पेशेंट्स का ही खयाल है | घरवालों की तो कोई चिंता ही नहीं है |”  इस पर डॉ. अनूप हँस  दिए और बड़े प्यार से बोले, “जरा ये कोरोना का रोना खतम होने दो, फिर कोई अच्छी सी ट्रिप प्लान करते हैं |”

डॉ. अनूप संक्रमण से बचने के लिए  अपने घर के सभी सदस्यों से दूरी बनाए रखते | वे अलग कमरा, अलग बाथरूम आदि का प्रयोग करते |
सभी पेशेंट्स उनसे बहुत खुश थे | मरीज की  बिखरती हुई साँसों  की लड़ी को जब डॉक्टर जोड़ देते  हैं, तो उनका दर्जा भगवान से कम नहीं होता |

कोरोना की इस महामारी में जीवन और मौत की इस जंग  में डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ कोरोना योद्धा बने हुए थे | डॉ. अनूप भी अपनी जान को दाँव  पर लगा कर पेशेंटस की जान बचा रहे थे | उन्हें न खुद के खाने -पीने की चिंता थी , न ही आराम की |  एक दिन डॉ. अनूप को रिवर साइड में पार्कव्यू कम्युनिटी हॉस्पीटल (केलिफॉर्निया) में काम करते बहुत थकान लग रही थी | उन्होंने अपने साथी डॉक्टर को कहा, “मैं आज बहुत थका हुआ महसूस कर रहा हूँ | एक घंटा रेस्ट करना चाहता हूँ |” यह बात उनके लिए बड़ी अस्वाभाविक सी थी | उनके साथी डॉ. ने कहा, “ओह यस डॉ.अनूप, यू शुड टेक रेस्ट | वर्क लोड भी बहुत हो गया है |”

डॉ अनूप ने कुछ देर हॉस्पीटल में ही आराम किया | दूसरे दिन थकावट के कारण वे हॉस्पीटल नहीं जा सके | उन्हें न भूख लग रही थी, न प्यास | उनकी पत्नी मीनू ने कहा, “आज मैंने आपके पसंद का नाश्ता बनाया है |” मीनू के कहने पर वे डाइनिंग टेबल तक तो आ गए, पर अपनी पसंद का नाश्ता भी उन्हें बेस्वाद लग रहा था | वे बोले, “सॉरी मीनू, मैं अभी बिल्कुल नहीं खा पाऊँगा | मैं बहुत थक गया हूँ, सोना चाहता हूँ |”

डॉ. अनूप सोने चले गए और लगभग सोलह घंटे तक सोते रहे | उनके लक्षण देखकर घर के  सभी सदस्यों को चिंता होने लगी थी | उनकी माँ सुबोध को डॉ. अनूप में कोरोना संक्रमण का पूर्वाभास सा हो रहा था | वह बार बार डॉ. अनूप से कह रही थीं, “अनूप, मुझे बहुत डर लग रहा है | जाओ, कोरोना का टैस्ट कराओ |”

अगले दिन डॉ. अनूप को उनकी बेटी सोम्या हॉस्पीटल ले गई | उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी | ऑक्सीजन लेबल काफी कम हो गया था | ब्लड प्रेशर भी काफी कम था और फिर वही हुआ, जिसकी परिवार को चिंता थी | उनका टैस्ट कोरोना पॉजिटिव निकला | अब तलवार डॉ. अनूप के ऊपर तो लटक ही रही थी, परिवार के अन्य सदस्य भी चिंता के घेरे में आ गए थे | दूसरे दिन मीनू, दीपक, सोम्या और डॉ. अनूप की बहन सीमा का भी कोरोना टैस्ट किया गया | ईश्वर की असीम कृपा से सब के टैस्ट निगेटिव आये  |

डॉ. अनूप के साथी डॉक्टर डॉ. नायक, डॉ. खान एवं डॉ. पेंगसन ने सलाह की और उनके लिए गीलीऐड कंपनी की रेमडिसिविर दवाई का पता किया | जो केवल ट्राइल के लिए दी जा सकती थी | वह दवाई केवल हॉग हॉस्पीटल में ही उपलब्ध थी | कोरोना की तो कोई दवा निकली ही नहीं थी | डॉक्टर अनूप को दूसरे दिन हॉग हॉस्पीटल में शिफ्ट किया गया  | उन्हें आई.सी.यू . में रखा गया | उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी | उनके साथी डॉक्टर्स की टीम उनके इलाज में पूरी तरह जुट गई थी | उनके साथी डॉक्टर ने कहा, “डॉ. अनूप यू आर ब्रेव | शयोरली यू विल विन |”

डॉ. अनूप अपने को असहाय सा महसूस कर रहे थे | उन्हें हाई फ़्लो ऑक्सीजन दी जा रही थी | दवा के असर को देखते हुए डॉक्टर्स का कहना था, यदि तीन दिन निकल जाएं, तो खतरा टल जाएगा | कोरोना वाइरस के संक्रमण के कारण घर से कोई भी उनके पास नहीं जा सकता था | सभी
लोग बेबस से थे |

कोरोना की इस लड़ाई में कई डॉक्टर्स अपनी जान गवां चुके थे | डॉ. अनूप का दिल घबरा रहा था  | वे ऊपर से मुस्कराने की कोशिश कर रहे थे | पर अंदर ही अंदर परेशान थे |

डॉ. अनूप ने अपने परिवार के लोगों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की | बेटे दीपक, ने अपने आंसुओं को छिपाते हुए कहा, “पापा, यू हेव टू फाइट” | मैं जानता हूँ, आप जल्दी ठीक हो जाओगे | हम सब जल्दी ही मिलेंगे |”

उनकी बेटी सोम्या ने पापा  को देखा, उसकी आँखें भी छलक पड़ीं | परिवार के लोग अपना दिल कड़ा करके मुस्कराते  हुए डॉ. अनूप की हिम्मत बढ़ाने का प्रयास करते रहे | डॉ. अनूप का केस सभी डॉक्टर्स के लिए एक चुनौती बन गया था | उन्हें साँस लेने में बहुत अधिक दिक्कत हो रही थी | खाना भी बेस्वाद लगता | इसलिए उनकी साथी डॉ. ललिता पंडित तो उनके लिए अपने घर से भारतीय खाना भी लेकर आतीं | डॉ. अनूप के घर से तो वहाँ कोई आ  नहीं सकता था |

मीनू घर से ही अनूप के स्वास्थ्य के विषय में अपडेट लेती रहती | वह हॉस्पीटल जाना चाहती थी, पर उसे उसकी इजाज़त नहीं थी | जब रिश्तेदार मीनू से अनूप के बारे में पूछते तो बेबस सी मीनू यही कहती, “बस, आप सभी लोग अनूप के लिए भगवान से प्रार्थना कीजिए |”

सभी परिवारजन  और मित्र डॉ. अनूप के स्वास्थ्य-लाभ के लिए प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे | सभी के लिए एक-एक पल भारी था  | मेडिकल की छात्रा सोम्या सभी परिवार जनों को अपने पापा का हेल्थ बुलेटिन व्हाट्सएप कर देती | सब उसके मेसेज की  प्रतीक्षा करते | पूरे परिवार को चिंता ने घेर रखा
था  | सबका चैन छिन गया था |  दुख का पहाड़ सब के ऊपर टूट पड़ा था |  जिंदगी और मौत के बीच चल रही जंग ने सबको हिला कर रख दिया था |

एक रात कोरोना की इस जंग में डॉ. अनूप अपने आपको हारता हुआ सा महसूस कर रहे थे | वह अपनी पूरी हिम्मत से एक-एक साँस के लिए लड़ रहे थे | उनकी आँखों से आँसू लुढ़क कर तकिये को भिगोते जा रहे थे | उन्हें अपने सामने मीनू, दीपक, सोम्या की छवि दिखाई दे  रही थी | वे सोच रहे थे, “अभी तो मेरी  जिम्मेदारियाँ भी पूरी नहीं हुईं | सोम्या  की मेडिकल की पढ़ाई और दीपक का बिजनेस  भी अभी सैट  नहीं हुआ | मीनू कैसे अकेली सब मेनेज करेगी ?”

मम्मी, पापा, सीमा और अपने सभी रिश्तेदारों के चेहरे उन्हें याद आ रहे थे | मौत उन्हें अपने सम्मुख खड़ी दिखाई दे रही थी | वे सबसे मिलना चाहते थे | उन्होंने अपने परिवार से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की | वे अधिक नहीं बोल पा रहे थे, अतः कुछ बोलकर और कुछ इशारों से उन्होंने सबसे अलविदा कहा, “ मुझे अच्छा नहीं लग रहा | शायद मैं अब आप से फिर न मिल सकूँ | मीनू, तुम्हें मेरे अधूरे काम पूरे करने हैं | सोम्या की पढ़ाई और दीपक के बिजनेस में कोई रुकावट न आए |”

उनकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई थी | मीनू ने बड़ी समझदारी से अपने को मजबूत करते हुए कहा, “अनूप, तुम्हें मुझसे कोई नहीं छीन  सकता | यह कोरोना भी नहीं | तुम मुझे इस तरह छोड़कर नहीं जा सकते |”

बड़े भावुक क्षण थे | डॉ. अनूप को हिम्मत देने के लिए सबकी पलकें आँसुओं  को बरबस रोकने का प्रयास कर रही थीं, पर आँखें तो छलक जाना चाहती थीं | घोर दुख की रात थी | डॉ. अनूप यही सोच रहे थे, मैं कल सुबह का सूरज देख पाऊँगा या नहीं ?”

अपने प्रिय दोस्त डॉ. आदर्श शर्मा जो क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट थे, उनसे डॉ. अनूप ने कहा, “आई एम नोट गोइंग टू  मेक इट |”  उन्होंने डॉ. अनूप की आँखों में आँख डालकर  हिम्मत बँधाते हुए कहा, “अनूप, तुम्हें मेरे लिए ठीक होना होगा | तुम ऐसे गिव अप नहीं कर सकते |” कहते कहते उनकी आँखें नम हो गई थीं |

डॉ. अनूप को हाई फ़्लो ऑक्सीजन दी जा रही थी | यह काली रात डॉक्टर्स की परेशानी की सबब बन गई थी | उस समय मृत्यु और जीवन के बीच एक बहुत ही पतली रेखा बची थी | डॉक्टर्स की टीम भगवान को याद करते हुए उनके उपचार में लगी हुई थी | उन्हें ट्राईल दवा रेमडिसिविर भी दी जा रही थी | पूरी रात बहुत तकलीफ में बीती | परंतु दूसरे दिन आशा की किरण ने सबके मन में दस्तक दी थी क्योंकि उस दिन सुबह हालत और बिगड़ी नहीं थी | स्थिति वैसी ही बनी हुई थी |

डॉ. अनूप भी सोच रहे थे, “शायद अब मैं बच जाऊँ |” उन्होंने अपने अंदर की ऊर्जा, आशा और विश्वास को जीतने का प्रयास किया | कुछ दिन बाद उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा था | उनको पहले की अपेक्षा कम ऑक्सीजन देने की आवश्यकता हो रही थी | दवा और दुआओं ने अपना असर
दिखा दिया था |

कोरोना अपनी जंग में हार चुका था और इस जीत से सभी के हृदय में अपार हर्ष और संतोष था | जो आँखें रोते- रोते लाल हो गईं थीं, उनमें खुशियाँ  चमकने लगी थीं | दीपक ने बड़े उल्लास से कहा, “मम्मी, मैं अपनी कार से पापा को हॉस्पीटल से घर लाऊँगा |” उसने गेरेज से कार निकली और चला गया |

घर में एक उत्सव का वातावरण सा  बन गया था | घर के बाहर परिवार जन स्वागत में मास्क पहने, सोशल डिस्टेनसिंग का ध्यान रखते हुए खड़े थे | डॉ. अनूप के घर पहुँचते ही सब एक साथ बोले, “वेलकम होम|” सभी ने बुके आदि देकर डॉ. अनूप का स्वागत किया | खुशी के आँसुओं से सभी की आँखें नम हो गई थीं | डॉ. अनूप भी अपने घर में कदम रखते हुए जो सुख-शांति और खुशी अनुभव कर रहे थे, उसे शब्दों में पिरोना मुश्किल है | अपनों का सानिध्य होता ही ऐसा है |  फिर वे तो  साक्षात मृत्यु से लड़  कर विजयी होकर घर लौटे थे |

कुछ पल डॉ. अनूप सबके साथ सोफ़े पर बैठे और फिर अपने कमरे में चले गए | कुछ दिन तक वे घर पर आराम करते रहे | कमजोरी के कारण न तो वे अधिक बोल पाते थे, न चल पाते थे | उनकी साँस फूलने लगती थी | वे अपने बगीचे के पेड़–पौधों का आनंद लेते | अमेरिका में रहते हुए भी मीनू उन्हें हल्दी, अदरक आदि से बनी देसी दवाई खिलाती | वे उसे खाकर हँसते हुए कहते, “यह इतनी कड़वी है, कि इसे खाने से खाँसी भी डर जाती है |”

कुछ दिन बाद डॉ. अनूप स्वयं को थोड़ा स्वस्थ महसूस करने लगे | उन्हें अपने मरीज याद आने लगे थे | वे कोरोना वाइरस के दुष्प्रभाव को खुद भुगत चुके थे | उन्होंने कोरोना के रोगियों को बचाने की मन में ठान ली और पुनः मरीजों  की सेवा करने हेतु अपना रक्षा-कवच पहन कर, योद्धा बन हॉस्पीटल पहुँच गए और मरीजों की सेवा में पुनः लग गए | कोरोना से जिंदगी की जंग फिर से जारी हो गई थी| अमेरिका में रहते हुए वह रोगियों की सेवा कर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं|

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