गुरु बिन भ्रम न जासी-जुलाई २०२०-सप्ताह दूसरा

गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में गुरु के चरणों में हिंदी विवेक का यह अंक समर्पित है. हमारे जीवन के उत्कर्ष में गुरु का सर्वाधिक महत्व होता है. गुरु की महिमा पर प्रकाश डालती आवरण कथा पाठकों को रोमांचित कर देगी. बंदउ गुरु पद कंज, गुरु बिन भ्रम न जासी और ‘गुरूजी न होते तो मेरा जीवन अधुरा रह जाता’ शीर्षक से प्रकाशित आलेख वन्दनीय व अभिनंदनीय है. संघ के सह कार्यवाह भैय्या जी जोशी का आलेख ‘राजनीतिक परिपक्वता समय की जरुरत’ वर्तमान समय में राजनीति में सुधार की मांग करता है. डॉ. प्रकाश आमटे और प्रशांत कारुलकर जी का साक्षात्कार प्रेरक व प्रासंगिक है. सम्पादकीय ‘नए उत्साह से आगे बढ़ने का समय’ पाठकों को नव चैतन्य प्रदान करती है.

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