नए उत्साह से आगे बढ़ने का समय

आज पूरा देश एक बिकट परिस्थिति से गुजर रहा है। एक ओर चीन से युद्ध की स्थिति बन रही है तो दूसरी ओर कोरोना का भविष्य क्या है, इस बात को लेकर सभी के मन में दुविधा है, अनिश्चितता की स्थिति है। लॉकडाउन ने उद्योगों और अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। तीन-चार महीनों तक सारा कारोबार लगभग ठप रहा। अब धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आ तो रही है, अलग-अलग राज्यों में जोन के अनुसार जनजीवन शुरू भी हो गया है परंतु यह जनजीवन सामान्य रूप से शुरू हुआ है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि लोगों ने कोरोना के साथ जीना सीख लिया है। अपने उद्योग-धंधों को फिर से शुरू करने के लिए लोग तैयार दिखाई दे रहे हैं। भारत में अब अगर कोरोना के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो मृत्यु के आंकडे कम तथा संक्रमित और ठीक होने वालों के आंकड़े लगभग बराबर हैं। इसका भी सकारात्मक प्रभाव लोगों के मनों पर हो रहा है। अब लोग यह समझ गए हैं कि कोरोना होने पर भी मृत्यु की आशंका न्यूनतम है।

भारत में कोरोना के आने और लॉकडाउन की प्रक्रिया शुरु होने के दौरान ही इटली की एक लेखिका फ्रांसिस्का मेलेन्ड्री ने यूरोप के अन्य देशों के नागरिकों के नाम एक पत्र लिखा था, जिसका शीर्षक था ‘फ्रॉम योर फ्यूचर’ अर्थात ‘भविष्य में आप’। इटली, जहां कोरोना ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, वहां की लेखिका के द्वारा इतना संवेदनशील पत्र लिखा जाना स्वाभाविक ही था क्योंकि यही वहां की वास्तविकता थी। एक तरह से वह इस पत्र में बाकी के देशों को आगाह कर रही थीं कि जैसी परिस्थिति इटली की है वैसे अन्य देशों की न हो अत: कोई भी कोरोना को सामान्य बीमारी न समझे। उसके लिए आवश्यक सभी सावधानियां बरती जाएं। लेखिका का तत्कालीन परिस्थिति का विचार करके अपनी भावनाओं और डर को कागज पर उतारने तक तो ठीक है, परंतु इस पत्र का दूसरा पहलू यह भी है कि पत्र पूरी तरह से नकारात्मक है। परिस्थितियों को वास्तविक रूप में प्रकट करने की कोशिश में लेखिका ने पढ़ने वालों को और अधिक नकारात्मकता की ओर झुका दिया था। उस पत्र को पढ़ने या सुनने वाले अपने भविष्य से और घबराने लगे थे।

भारत में भी इस पत्र का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ था, परंतु भारत की परिस्थिति और पत्र में उल्लेखित परिस्थिति में बहुत अंतर है। आज कोरोना के साथ चार महीने गुजारने के बाद भी भारत में न तो आत्महत्या का आंकडा बढ़ा और न ही तलाक का। इसका कारण यह कहा जा सकता है कि भारत में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की ताकत अत्यधिक है। हम हमेशा से ही केवल बाहरी आक्रांताओं से ही नहीं हर साल प्राकृतिक आपदाओं से भी निरंतर लड़ते रहे हैं। भूकंप, बाढ़, अकाल, सूखा, ओले ये सब हर साल देश के किसी न किसी भाग पर अपना असर डालते ही हैं। परंतु जीने की जीजीविषा ने भारतीयों को हर बार दुगुने उत्साह से खड़ा किया है। हाल ही में आए ‘निसर्ग’ तूफान ने कोंकण और समुद्री तटवर्ती इलाकों के कई गावों को नुकसान पहुंचाया है। परंतु क्या उन गावों में से किसी की आत्महत्या की खबर आई? नहीं। क्योंकि वे पहले से ही सतर्क थे, होने वाले नुकसान के लिए तैयार थे और उस नुकसान की भरपाई के लिए कटिबद्ध भी थे। यह जज्बा ही भारतीयों को हमेशा बल देता रहा है। युद्ध की परिस्थिति हो, प्राकृतिक आपदाएं हों या महामारी का संकट भारत ने अपने सकारात्मक स्वभाव को नहीं छोड़ा है। यहां ‘भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं’ केवल मुहावरा नहीं अपितु जीवन की ओर सदैव आशा, विश्वास तथा सकारात्मकता से देखने का संकेत है। इसी सकारात्मकता के कारण भारत आज तक न केवल जीवित है बल्कि अब तो कई क्षेत्रों में दुनिया का मार्गदर्शन भी कर रहा है।

कोरोना कालखंड पूरी दुनिया को तीन सौ साठ अंश घुमाने वाला रहा है। इस कालखंड के बाद अब हम ऐसी मोड़ पर खड़े हैं, जहां से हमें फिर से सब नया शुरू करना है। दुनिया में और साथ-साथ देश में तेज गति से कई परिवर्तन होंगे। दैनिक व्यवहार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यवहारों में भी परिवर्तन होगा। अब यह समय की मांग है कि भारत का हर व्यक्ति अपनी ऊर्जा को पहचानें तथा स्वयं के साथ राष्ट्रहित के बारे में भी सोचें।

जैसे-जैसे जनजीवन शुरू हो रहा है, कई सकारात्मक बातें सामने आ रही हैं। जीएसटी के आंकड़े बताते हैं कि व्यवसाय फिर से गति पकड़ रहे हैं। हो सकता है यह गति शुरू में कुछ कम हो परंतु धीरे-धीरे यह निश्चित ही बढ़ेगी। कोरोना के वैक्सीन तथा दवाइयों के संदर्भ भी शोधकर्ताओं को सफलता मिल रही है। भारत में भी आयुर्वेद और अन्य चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से कोरोना का इलाज ढ़ूंढ़ा जा रहा है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करके कैसे इस रोग को दूर रखा जा सकता है, इस पर भी अध्ययन किया जा रहा है। सरकार के द्वारा एमएसएमई सेक्टर के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए अपनी नीतियों तथा बजट में कई आवश्यक परिवर्तन किए गए हैं। इन परिवर्तनों का अध्ययन करके अपने उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार सरकार से सहायता ली जा सकती है। इन सभी के परिणाम भी सकारात्मक आएंगे ही।

दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान दोनों को ही उनकी भाषा में जवाब देने के लिए हमारी सेना भी तैयार है। पिछले तीन महीनों में सीमा से लगे इलाकों में पाकिस्तान के द्वारा गुप्त तरीके से की जाने वाली आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सेना को बड़ी सफलता मिली है। चीन की सेना को तो हमने इतना नुकसान पहुंचाया है कि वह घायल और मृत सैनिकों के आंकड़े भी नहीं जाहिर कर रहा है।

इन सभी सकारात्मक घटनाओं पर चिंतन करना आवश्यक है। साथ ही स्वयं से भी यह प्रश्न पूछना आवश्यक है कि हमें विगत तीन महीनों में जो नहीं हुआ उसे ही लिए बैठे रहना है या आने वाले समय में जो आशा की किरण दिखाई दे रही है, जो अवसर दिखाई दे रहे हैं, उनकी ओर नए उत्साह से मार्गक्रमण करना है।
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This Post Has 2 Comments

  1. Dr. D. P.Mishra

    सुन्दर विवेचनात्मक लेख,🌹 हर आपदा से जू झना व जीतना यह भारत की सांस्कृतिक विरासत…. नकारात्मक विचार वालो हेतु नव मार्गदर्शन… .

  2. अविनाश फाटक, बीकानेर. (राजस्थान)

    प्रासंगिक एवं सकारात्मक सोच के साथ लिखा गया प्रेरक आलेख !
    बस,अब आवश्यकता मात्र इतनी ही है कि – “सज्जन समर्थ हों, और समर्थ,सज्जन बनें.”

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