हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
 उप राज्यपाल पद और ओछी राजनीति

 उप राज्यपाल पद और ओछी राजनीति

by अविनाश कोल्हे
in जुलाई -२०१५, राजनीति
0

राजनीति जैसे क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को बहुत परिपक्व होना चाहिए। परन्तु इन क्षेत्रों में ही ऐसे व्यक्तियों की कमी महसूस होती है। पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एवं दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच चल रहे विवाद में कोई परिपक्वता नहीं दिखाई दे रही है। संसदीय प्रजातंत्र में किस प्रकार कार्य किया जाता है, इसकी सजगता अरविंद केजरीवाल ने दिखाई होती तो आज ये हालात पैदा नहीं होते। संसदीय शासन प्रणाली में एक ओर सत्ता जनप्रतिनिधियों के हाथों में होती है, दूसरी ओर संचालन एवं क्रियान्वयन नौकरशाहों के हाथों में होता है। इसका मतलब है कि शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक ओर जनप्रतिनिधि/मंत्री तो दूसरी ओर उच्चशिक्षित, प्रशिक्षित नौकरशाहों की भी जरूरत होती है। यह बात पाश्चात्य प्रजातंत्र में भी थोड़े बहुत अंतर के साथ दिखाई देती है। हमारे देश का प्रजातंत्र अभी भी उतना परिपक्व नहीं हुआ है, इसीलिए नौकरशाहों के साथ साथ पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त प्रांतों में राज्यपाल व दिल्ली, पांडिचेरी जैसे राज्यों में उप राज्यपाल भी शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। इस प्रकार इन स्थानों में राज्य चलाने का अर्थ तीन पैर पर कसरत करना है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा।

जिस प्रकार दिल्ली के राज्यपाल नजीब जंग व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपने अधिकारों के लिए न्यायालय के दरवाजों तक जाना पड़ा है, उससे तो यही दिखाई देता है कि अभी भी मुख्यमंत्री व राज्यपाल के बीच सम्बंधों में कई शंकाएं बाकी हैं। अतएव इन पदों के अधिकारों पर वस्तुनिष्ठ चर्चा होना आवश्यक है।

ऐसा माना जाता है कि अपने देश में आधुनिक शासन पद्धति का प्रादुर्भाव ईस्ट इंडिया कम्पनी के कार्यकाल से हुआ। यद्यपि स्वतंत्रता के पूर्व भी इस पद्धति में समय समय पर कई परिवर्तन हुए। इसमें महत्वपूर्ण बदलाव तब आया जब लार्ड मैकाले समिति की सिफारिश से सन १८५३ में इंडियन सिविल सर्विसेस का गठन हुआ। इस प्रकार प्रशिक्षित अधिकारियों के माध्यम से कम्पनी सरकार इस विविधतापूर्ण देश पर प्रशासन करती रही।

बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में इसमें पुन: एक परिवर्तन हुआ। सन १९१९ में बने भारत सरकार के अधिनियम के द्वारा कुछ विभागों की जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियों के हाथों हस्तांतरित कर दी गई, परन्तु महत्त्वपूर्ण शासकीय विभाग अंग्रेजों के ही नियंत्रण में थे। यह ‘द्विदल पद्धति’ कहलाती थी। इस अधिनियम के द्वारा भारतीयों को मंत्री बनने का अवसर मिला।
१९३५ में बने अधिनियम के कारण दूसरा बड़ा परिवर्तन आया। इस कानून के द्वारा ही आज दिखाई दे रहे प्रशासनिक तंत्र की नींव पड़ी। इस कानून की महत्त्वपूर्ण विशेषता थी कि अंग्रेजों की सीधी सत्ता के अंतर्गत आने वाले ग्यारह राज्यों को स्वायत्तता प्रदान की गई। आरक्षण, विदेश, रेल्वे, करेंसी जैसे तीन चार विभागों को छोड़ कर प्रांतों को सारे अधिकार दे दिए गए। १९३७ में इसी कानून के अंतर्गत ग्यारह राज्यों में चुनाव भी हुए। जिसमें से आठ राज्यों में कांग्रेस को सत्ता प्राप्त हुई तथा तीन राज्यों में गैर कांग्रेसी गैर मुस्लिम लीगी सत्ता बनी। ये राज्य बंगाल, पंजाब, सिंध थे।

ये चुनाव जुलाई १९३७ में सम्पन्न हुए। आठ राज्यों में सत्ता में आने के बावजूद कांग्रेस ने सत्ता ग्रहण नहीं की। सत्ता नहीं लेने का कारण राज्यपालों के अधिकारों की स्पष्टता नहीं होना था। आज जैसा हमारे संविधान में कहा गया है कि राज्यपाल मंत्रिमण्डल ही सलाह के अनुसार कार्य करेगा। वैसा ही उस समय भी था। केवल प्रश्न यह था कि यदि राज्यपाल ने मंत्रिमण्डल की सलाह नहीं मानी तो क्या होगा? यह मुद्दा इतना संवेदनशील बन गया कि कांग्रेस में इसको लेकर भारी विवाद चला। कांग्रेस में सुभाषचंद्र बोस व पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे युवा नेता सत्ता स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थे। दूसरी ओर सरदार पटेल व सी. राजगोपालाचारी जैसे पुराने नेता जैसे भी हो सत्ता लेने के पक्ष में थे। यह विवाद लगभग छह महीने चला। अंतत: अंग्रेज सरकार को यह आश्वासन देना पड़ा कि राज्यपाल मंत्रिमण्डल की सलाह नकारेगा नहीं। उसके बाद ही कांग्रेस ने सत्ता में आना स्वीकार किया। कुल मिलाकर जनप्रतिनिधियों की सरकार व केन्द्र द्वारा नामित राज्यपाल के बीच अधिकारों का मामला तब से ही विवाद ग्रस्त है।

अंग्रेज सरकार के आश्वासन के बावजूद अनेक प्रांतों के राज्यपाल अपनी मनमर्जी से काम कर रहे थे। सिंध प्रांत के प्रधानमंत्री अल्लाबख्श की सरकार को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया, तो बंगाल के मुख्यमंत्री फजल उल हक को राज्यपाल ने इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। उस काल में भी राज्यपाल का पद विवाद के घेरे में दिखाई देता है।

संविधान निर्मात्री समिति में भी राज्यपाल के पद को लेकर कटु चर्चाएं होती रहीं। कुछ सदस्यों के अनुसार प्रजातांत्रिक देश में केन्द्र सरकार द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति उचित नहीं थी। परन्तु अपने देश की अनेक प्रकार की विविधताओं को ध्यान में रखकर राज्य सरकार पर केन्द्र सरकार का कुछ सीमा तक नियंत्रण होना आवश्यक था, यह मान लिया गया। तदनुसार केन्द्र सरकार के द्वारा नामांकित राज्यपाल के पद को स्वीकृती प्राप्त हुई। तब से यह परम्परा चल रही है।

केन्द्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों के विषय में जो भय सदस्यों ने व्यक्त किया था वह कुछ समय में ही सत्य सिद्ध होने लगा। १९५२ में सम्पन्न आम चुनावों में मद्रास (वर्तमान मे तमिलनाडु) प्रांत में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार सत्ता में आई। पर उस समय के राज्यपाल वी. प्रकाश ने पद का दुरुपयोग करते हुए यह होने नहीं दिया। उसके बाद १९५७ के आम चुनावों में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी, पर राज्यपाल की कारगुजारियों के चलते नम्बुद्रीपाद की यह सरकार दो साल में बर्खास्त कर दी गई। उस समय भी राजपाल का दलीय हित में उपयोग किए जाने के आरोप लगे, जबकि उस समय देश के प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू थे।

राज्यपाल पद के दुरुपयोग के संदर्भ में १९६७ के चुनावों के बाद की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। इन चुनावों में पूरे उत्तर भारत के राज्यों मे कांग्रेस की करारी हार हुई और गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं। परन्तु केन्द्र में बैठी कांग्रेस सरकार ने, विशेष रूप से तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राज्यपालों के साथ मिलकर उत्तर की एक एक गैर कांग्रेसी सरकारों को अस्थिर बनाया व शीघ्र ही अपनी पार्टी को सत्ता तक ले आईं। तब से ही अपने देश के राजनैतिक क्षेत्रों में राज्यपाल पद विवादग्रस्त हो गया।

खास बात यह है कि सब को यह ज्ञात होता है कि राज्यपाल पद की नियुक्ति राजनीतिक होती है। इसी लिए जब केन्द्र में सत्तांतरण होता है तब पूर्व सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल त्यागपत्र दे देते हैं। यद्यपि ऐसा कोई नियम नहीं है, पर यह एक सांकेतिक परम्परा है। मई २०१४ में आम चुनावों के बाद जब मोदी सरकार सत्तासीन हुई, तब पूर्व सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपालों ने त्यागपत्र प्रस्तुत कर दिया। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी त्यागपत्र दिया था, पर केन्द्र सरकार ने उसे स्वीकार नहीं किया।

आज वही नजीब जंग केजरीवाल के एकतरफा कार्य पद्धति से परेशान हैं। केजरीवाल जैसे एक पूर्व आय. आर. एस. अधिकारी को संविधान द्वारा उपराज्यपाल को प्रदत्त अधिकारों की जानकारी नहीं होगी यह मानना अजीब होगा। इसके बावजूद केजरीवाल ने इस मामले में आवांछित बखेड़ा खड़ा कर दिया है। इस मामले को तूल देकर दिल्ली को पूर्ण जाने की मांग को वे घसीटते रहना चाहते हैं। वास्तव में दुनिया भर के प्रजांतांत्रिक देशों का अध्ययन करें तो देश की राजधानी का प्रशासन केन्द्र सरकार के हाथों में ही दिखाईं देता है। भारत ही इस मामले में अपवाद कैसे हो सकता है? परन्तु ओछी राजनीति में संलग्न केजरीवाल को इस नजर से देखने की फुरसत नहीं है। इसके कारण उपराजपाल पद की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है इसकी भी उन्हें चिंता नहीं है। इसे हम अपना दुर्भाग्य ही कह सकते हैं, और क्या?

Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

अविनाश कोल्हे

Next Post
नए कदमों में तेजी लाने की चुनौती

नए कदमों में तेजी लाने की चुनौती

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0