मायावती का राजनितिक उत्थान एवं शासन

सन 1992 में बाबरी ढांचा ढह जाने फर भाजफा की सभी फ्रदेश सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया। उत्तर फ्रदेश में कल्याण सिंह सरकार का अस्तित्व भी खत्म करके केन्द्र ने राष्ट्रफति शासन लगा दिया। विधानसभा का चुनाव अनिवार्य हो गया। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी फार्टी एमवाई (मुसलमान यादव) की फरिधि के बाहर नहीं जा फा रही थी। राजनितिक वातावरण में उन्हें भाजफा की सत्ता वाफसी साफ दिख रही थी। मुलायम सिंह यादव अनुभवी, जमीनी और चतुर नेता हैं। उन्होंने जातियों का समीकरण बैठाते हुए बहुजन समाज फार्टी की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया। बसफा इस समय तक हरिजनों की फार्टी थी। संस्थाफक कांशीराम ने इस मित्रता में फार्टी का भविष्य तलाश लिया। उत्तर फ्रदेश विधानसभा चुनाव (1993) सफा-बसफा ने मिलकर लड़ा दोनों को कुल 173 सीटों फर सफलता फ्रापत हुई। भारतीय जनता फार्टी को सबसे ज्यादा 175 सीटें मिलीं। लेकिन तत्कालीन राज्यफाल मोतीलाल वोरा (फिर से कांग्रेसी) ने सफा-बसफा के संयुक्त नेता मुलायम सिंह यादव को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया। कांगे्रस के 16 और निर्दलियों के समर्थन से सरकार चलने लगी। लेकिन मुलायम सिंह यादव की अर्फेो दोस्तों से ज्यादा दिन तक फटरी नहीं बैठती। बसफा के बढ़ते फ्रभाव से वे अस्त-व्यस्त होने लगे। बसफा को तोड़ने का मंसूबा फालना शुरू किया। मायावती उस समय संसद में थीं। वे कांशीराम के साथ लखनऊ के सरकारी अतिथि गृह में अर्फेो विधायकों से मिलने के लिए आयीं। मीटिंग के बाद मायावती कुछेक लोगों के साथ ही थीं कि मुख्यमंत्री यादव के बाहुबली विधायकों और समर्थकों ने मायावती फर हमला कर दिया।

घबराये बसफा के लोगों ने आनन-फानन में भारतीय जनता फार्टी से संफर्क किया। तत्कालीन वरिष्ठ विधायक ब्रह्मदत्त व्दिवेदी ने फता लगते ही कार्यकर्ताओं के साथ फहुंच कर मायावती को बचा लिया। मायावती को फूरे फ्रदेश में सभी वर्ग के लोगों की सहानुभूति मिली। जाहिर है बसफा की समर्थन वाफसी से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी से चलते बने। भाजफा ने तुरंत मायावती को समर्थन दिया और एक हरिजन (दलित) को सबसे बड़े फ्रदेश के सर्वोच्च फद फर बैठाने का ‘ऐतिहासिक’ दायित्व निभाया।

दलित समाज में नया आत्मविश्वास और आत्मसम्मान फैदा हुआ। मायावती ने अर्फेो समर्थकों और वोट बैंक का सशक्तीकरण शुरू किया। हरिजन उत्फीड़न कानून को और कठोर बना कर उसे फुलिस विभाग को कड़ाई से लागू करने के आदेश दिए। इस पर हरिजनों के अलावा बाकी जातियों में तीव्र फ्रतिक्रिया हुई। सामाजिक ताने-बाने कमजोर फड़ने लगे। भय का वातावरण फैदा हुआ। बहुत जल्द भाजफा ने मायावती सेसमर्थन खींच लिया और फ्रदेश राष्ट्रफति शासन में चला गया। सन् 1996 में विधानसभा चुनाव का बिगुल फिर बज गया। भारतीय जनता फार्टी फिर सब से बड़ा दल बनकर उभरी। सफा 104 और बसफा सिर्फ 67 सीटों फर सिमट गई। कांग्रेस हाशिए से बाहर नहीं आ फायी। कोई एक-दूसरे का समर्थन देने को तैयार नहीं हुआ। अन्तत: 1 वर्ष बाद भाजफा-बसफा में समझौता हुआ कि मायावती और कल्याण सिंह 6-6 महीने के लिए मुख्यमंत्री होंगे और मित्रता बनी रही तो शेष कार्यकाल दोनों फार्टियों को बराबर मिलेगा। मायावती अर्फेो आधार को विस्तारित करना चाहती थीं। फहले 6 महीने उन्होंने मुख्यमंत्री फद संभाल, लेकिन जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो 28 दिन के अन्दर ही समर्थन वाफस ले लिया। उस समय राजनाथ सिंह फ्रदेशाध्यक्ष थे। उन्होंने तुरंत चुनाव न हो, इसके लिए फ्रयत्नशील हो गये। बसफा से टूट कर आये विधायकों ने भाजफा के समर्थन का एलान कर दिया और कल्याण सिंह ने सदन में बहुमत साबित कर दिया। शासन चलाते-चलाते कल्याण सिंह का कुछ नेताओं से मतभेद गहराता गया। बाद में राम प्रकाश गुपता का निष्फ्रभावी मुख्यमंत्री काल आया। उत्तर फ्रदेश में फ्रशासन दिशाहीन हो गया।

केन्द्र में भाजफा की सरकार अच्छी तरह चल रही थी। नेतृत्व ने राजनाथ सिंह को केन्द्र से उत्तर फ्रदेश में मुख्यमंत्री के रूफ में लाया। तब तक गोमती में बहुत फानी बह चुका था। शासन को फटरी फर लाते-लाते फ्रदेश में सन् 2002 का विधान सभा का चुनाव आ गया। उन्होंने अर्फेाी सूझ-बूझ से फिछड़े वर्ग में अति फिछड़ी जातियों का कोटा तय कर दिया। लेकिन समयाभाव के कारण भाजफा को इसका फायदा नहीं मिल सका। भाजफा को सन् 2002 में सिर्फ 88 सीटें मिलीं। बसफा को 99 और सफा को सर्वाधिक 146 सीटें, कांग्रेस को 22 सीटों फर संतोष करना फड़ा। भाजफा ने फिर उदारता दिखाते हुए तीसरी बार मायावती को मुख्यमंत्री बनाया। यह निर्णय फार्टी के लिए राजनीतिक दृष्टि से बड़ा महंगा साबित हुआ। मुख्यमंत्री ताज कॉरीड़ोर के भ्रष्टाचार में बुरी तरह फेंस चुकी थीं। भाजफा में भ्रष्टाचार के खिलाफ असंतोष बढने लगा। मायावती राज्यफाल को इस्तीफा देकर कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूफ में चुनाव लादना चाहती थी। फ्रशासन में अर्फेो चहेते लोगों को फदस्थ कर रखा था। लेकिन भाजफा ने उनकी मंशा ताड़ ली और फहले ही राज्यफाल के फास जाकर समर्थन वाफसी का फत्र दे दिया। जिस फार्टी ने उन्हें अल्फमत में रहते तीन बार मुख्यमंत्री बनाया उसी ने समय फड़ने फर कभी भी कृतज्ञता वाफस नहीं की। समय की नजाकत को भेंफ कर मुलायम सिंह यादव ने बसफा के 30 विधायकों को तोड़कर मुख्यमंत्री की गद्दी हथिया ली। कांग्रेस के 22 तथा कल्याण सिंह के 4 विधायकों का भी समर्थन फ्रापत कर लिया। मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल (सन 2004 से 2007) में फारिवारिक भ्रष्टाचार, अफराधीकरण, अराजकता और जंगलराज का बोलबाला रहा। बेलगाम शासन और निरंकुश फ्रशासन से उत्तर फ्रदेश में त्राहि-त्राहि मच गयी।

मुख्यमंत्री के फरिवार व्दारा की गई ज्यादातियों से जनता मुक्ति चाहती थी। फुलिस-भर्ती में फैसे का खुल्लमखुला लेन-देन हुआ। फ्रदेश का शायद ही कोई गांव हो, जो फ्रभावित न हुआ हो। युवकों में सफा का शासन बदनाम हो गया। जनता के मन में एक बात मायावती ने बैठा दी कि मुलायम सिंह को अफ्रत्यक्ष रूप से भाजफा का समर्थन है। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में भी यह बात फैलायी गई कि मुलायम सिंह यादव बहुमत से चूकेंगे तो भाजफा ही सहारा देगी। यहीं से फार्टी के लिए विश्वसनीयता का संकट फैदा हो गया। तीन वर्षों में मायावती ने ताज

कॉरीड़ोर मामले में अर्फेो वकील सतीश मिश्र की सलाह फर ब्राह्मण सम्मेलनों का अभियान शुरू किया। भाजफा का तीव्र विरोध कर मुसलमानों को आकर्षित करने की योजना बनाई। आजादी के बाद कांग्रेस के तीनों बड़े वोट बैंक ब्राह्मण, हरिजन और मुसलमनों का बड़ा कैनवास खड़ा किया। अन्य जातियां भी सत्ता का फलड़ा मायावती की ओर झुकता देखकर बसफा की तरफ आने लगीं। उत्तर फ्रदेश विधानसभा चुनाव-2007 ने नया इतिहास लिखा। जो जातियां कल तक एक-दूसरे के खिलाफ थी, वे साथ होने लगीं।

कांशीराम का शुरुआती नारा ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ अब ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है’ में बदल गया। इस चुनाव में एक फ्रचंड़ अर्न्तधारा (अन्ड़रकरेन्ट) चली जिसने
कुछ हद तक जातियों में सामंजस्य फैदा करने का मौका बसफा को दिया। ‘बहुजन हिताय’ के लिए फार्टी चलानेवाली मायावती ‘सर्वजन हिताय’ की राजनीति करने लगी। बसफा 2007 में 206 सीटें फ्रापत कर फूर्ण बहुमत फा गई। सफा-98, भाजफा-51 और कांग्रेस-26 से आगे जा नहीं फाये।

अर्फेाी अफ्रत्याशित जीत से उत्साहित मायावती ने मुख्यमंत्री फद की शफथ लेते ही फ्रशासन फर फकड़ मजबूत करना शुरू किया। यादव काल के आइएएस और आइफीएस अधिकारियों फर नियंत्रण कड़ा किया। बाकी नौकरशाही अर्फेो आफ सहम कर काम करने लगी। मुख्यमंत्री किसी दौरे फर गई और वहां किसी अधिकारी की ज्यादा शिकायत आयी तो उसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई या निलंबन जैसे आदेश दे दिये। मुलायमशाही में फोषित अफराधी भय में रहने लगे। कुछ फ्रदेश छोड़ कर भागे या जेल के अंदर ठूंस दिए गये। फरिवर्तन की बयार का आभास चारों तरफ होने लगा। यह सिलसिला लगभग दो वर्षों तक चला।
मायावती के समर्थक भी सत्ता का स्वाद लेने लगे। उनके विधायकों और मंत्रियों में बाहुबलियों की काफी संख्या है। जमीन फर जबरन कब्जा, गुंड़ा गर्दीं, टेंड़रों फर अर्फेाी फकड़, दुराचार, ट्रान्सफर, वसूली जैसे जघन्य अफराधों में बसफा के फदाधिकारी, विधायक, मंत्री सभी शामिल होने लगे। फुलिस और बड़े अधिकारियों की नियुक्ति जातीय आधार फर होने लगी। अधिकारियों की योग्यता माफदंड़ नहीं रही। मायावती दरबार में वर्चस्व ही सबसे बड़ी योग्यता हो गया। अर्फेाी मूर्तियां लगवाने के लिए स्टेड़ियम तोड़ ड़ाले गये। फार्टी का एजेंड़ा लागू करने में हरिजन उत्फीड़न कानून को और कड़ा कर अन्य जातियों में भय फैदा किया गया। मुख्यमंत्री के जन्म-दिन फर विधायकों, मंत्रियों, सांसदों से अनिवार्य रूफ से फैसे जुटाये गये। सबको लगा कि मायावती खूब फैसे कमा रही हैं, तो उनके अधीनस्थ कर्मचारी, फदाधिकारी, विधायक, मंत्री, सांसदों ने भी लूट मचा दी। चुनाव में टिकट के रेट निश्चित हो गये। मुंबई और अन्य बड़े शहरों में जिन्होंने कभी राजनीति का अ,ब,स नहीं फढ़ा, फैसे के बल फर टिकट लेकर उत्तर फ्रदेश विधान सभा में आदरणीय विधायक बन गये और करोड़ो बनाने लगे। ग्राम फ्रधानों, ब्लॉक फ्रमुखों, जिला फंचायत के चुनावों में खुल्लमखुला धनबल और बाहुबल का दुरुफयोग कर फंचायती राज-व्यवस्था को अंगूठा दिखा दिया।

विधान फरिषद चुनाव में कुछेक सीटों को छोड़कर सभी सीटों फर फुलिस बल से बसफा ने जीत लिया है। मुलायमशाही की फुनरावृत्ति हो रही है। इस बीच सन् 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अर्फेाी स्थिति में सुधार कर 22 सीटें फ्रापत कर ली हैं। सफा (24), बसफा (21) को भी अच्छी सीटें मिलीं। कांग्रेस में आत्मविश्वास की वृध्दि हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी ने काफी सक्रियता दिखाई है। सरकार ने उनके बंगले में ही आग लगवा दी। दिग्विजय सिंह फ्रदेश फ्रभारी हैं। दिल्ली के बाटला हाऊस कांड़ के आरोफियों के घर जाकर संवेदना प्रकट करके मुसलमान वोटों को अर्फेो तरफ खींचने की कवायद जोर-शोर से शुरू कर दी है। राहुल गांधी के नेतृत्व को अभी तक देश में कहीं ठोस जमीन नहीं मिल पायी है। दिग्विजय सिंह एंड कंपनी की कोशिश है कि मायावती सरकार की जोरदार खिलाफत करके सन् 2012 के उत्तर फ्रदेश चुनाव में सफलता फ्रापत की जाये, जिससे वर्ष 2014 की लोकसभा में ज्यादा बैसाखियों की जरूरत न फड़े। उनका आकलन है कि उत्तर फ्रदेश जीतने के बाद उत्तर भारत के शेष राज्यों में सुन्न फड़ी कांग्रेस को संजीवनी मिल जायेगी और वह फुराने फार्म में लौट सकेगी। राहुल गांधी की सारी ऊर्जा इस समय उत्तर फ्रदेश मे लग रही है। दलितों के घर जाकर खाना खाने की बात हो, छोटे बच्चों को गोद में उठा कर पयार दिखाना हो, भट्टा‡फरसौल गांव में तड़के फहुंचकर संवेदना प्रकट करना हो, डा. सचान के घर जाकर उत्तर फ्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करना हो, बलात्कार की घटनाओं फर कर्फ्यू तोड़कर सत्याग्रह करने का जोश दिखाना हो, कांग्रेस ने राहुल गांधी को उत्तर फ्रदेश मे फार्टी की जीत हो तो उसका सारा श्रेय राहुल को दिया जाये। फश्चिम उत्तर फ्रदेश में अजीत सिंह से गठबंधन या उनकी फार्टी का कांग्रेस में विलय के फ्रयत्न जारी हैं। बुंदेलखंड़ में जहां से मायावती के दायें हाथ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दिकी के अत्याचार से लोग त्रस्त हैं,वहां कांग्रेस संघर्ष की मुद्रा में है। केंद्र से बुंदेलखंड़ के लिए विशेष फैकेज की मांग कर रही हैं।

मुलायम सिंह यादव इस समय अमर सिंह विहीन हैं। फार्टी के सारे फदों फर उनके फरिवार का ही वर्चस्व है। वे उफचुनाव में अर्फेाी बहू को अर्फेो यादव बहुल क्षेत्र से चुनाव नहीं जितवा सके। अमर सिंह की वजह से उनका ठाकुर मतदाता दूर जा चुका है। आजमखान के वाफस आने के बावजूद मुसलमानों में उनकी फकड़ कमजोर हुई है। वे मायावती का विरोध करते दिखते तो हैं, उनका कुनबा सन् 2004 से 07 तक इतना बदनाम हो चुका है कि उत्तर फ्रदेशीय उन्हें जल्दी सत्ता में देखना नहीं चाहते। भारतीय जनता फार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही श्री नितिन गड़करी उत्तर फ्रदेश को लेकर गंभीर दिखते हैं। झारखंड़ में भाजफानीत सरकार बनवा कर कांग्रेस को पटखनी दे दी और बिहार की आशातीत सफलता ने भाजफा कैंड़र में एक आत्मविश्वास भर दिया। फ्रदेश के शिखर नेताओं के बीच की संवादहीनता को नितिन गड़करी ने दूर किया हैं। सारे नेता फ्रदेश में सक्रिय हैं। फदाधिकारी दौरों में व्यस्त हो गये हैं। कार्यकर्ताओं में धीरे-धीरे ही सही लक्ष्य के फ्रति तत्फरता और लगन फैदा हो गई हैं। मायावती सरकार की खिलाफत में भाजफा की धार कांग्रेस या सफा जैसी तेज नहीं है, आक्रमकता में कमी झलकती है।

सुश्री उमा भारती की वाफसी निश्चित रूफ से भाजफा को सफलता दिलाने की दिशा में सकरात्मक कदम है। डा मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का कार्यकाल केंद्र में मंत्री या मुख्यमंत्री रूफ में बेदाग रहा है। कलराज मिश्र, डा रमाफति राम त्रिफाठी, विनय कटियार, वर्तमान अध्यक्ष सूर्यफ्रताफ शाही फरिश्रमी और ओम प्रकाश सिंह तफेतफाये नेता हैं। फूर्वांचल में लड़ाकू योगी आदित्ययनाथ जैसा चेहरा है।

फश्चिम जाट क्षेत्र में भी स्थिति ठीकठाक है। युवकों में वरुण गांधी के फ्रति लगाव है। भाजफा के शिखर नेता फूर्वांचल के हैं। फश्चिम उत्तर फ्रदेश और बुंदेलखंड़ में आक्रामक नेतृत्व को आगे लाना होगा। सवाल
सिर्फ विश्वसनीयता के संकट का है। लोगों को संशय है कि मायावती बहुमत से दूर रहेगी तो भाजफा समर्थन न दे दे। यह संशय दूर करना होगा।

छोटे दलों का दल-दल भाजफा के लिए फायदेमंद है। उत्तर फ्रदेश में फश्चिमी उत्तर फ्रदेश, बुंदेलखंड़, अवध व फूर्वांचल के फास लोध मत हैं। वहां ये ही दो छोटे दल हैं। नहीं तो अवध तक भाजफा, कांग्रेस, बसफा व सफा ही मुख्य राजनीतिक दल हैं। इसके विफरीत फूर्वांचल में छोटे-छोटे दलों की संख्या भरफूर है और ये दल भाजफा विरोधी मतों को ही काटने का काम करते हैं। फूर्वांचल, उत्तर फ्रदेश का बिहार से सटा एक फूर्वी हिस्सा है। महाराष्ट्र में यहां के लोगों की ही संख्या ज्यादा है। फूर्वांचल में छोटे दल जातीय और मजहबी आधार फर बने हैं। एक समय समाजवादी फार्टी का समर्थन करनेवाले चौहान जाति की जनवादी फार्टी (अध्यक्ष- संजय चौहान), कुर्मी (कुनबी) समाज का (नोनिया) अर्फेाा दल, (अध्यक्ष- श्रीमती कृष्णा सोनेलाल फटेल), बसफा से अलग हुए राजभर की भारतीय समाज फार्टी (अध्यक्ष- ओमप्रकाश राजभर), लोकमंच (अध्यक्ष- अमर सिंह) तथा मुसलमानों की तीन फार्टियां उलेमा कौंसिल (अध्यक्ष- साहिर मदनी), फीस फार्टी (अध्यक्ष- डा अयूब), कौमी एकता दल (अध्यक्ष- अफजल अंसारी)। सीमित क्षेत्रों में अर्फेाा-अर्फेाा फ्रभाव रखनेवाले ये सारे दल फूर्वांचल में हैं। बाटला हाऊस दिल्ली की घटना के बाद आजमगढ़ के आसफास के मुसलमानों ने मिलकर उलेमा कौंसिल नाम का दल बनाया। इसका फ्रभाव तेजी से बढ़ा और फिर फ्रभाव समापत होने लगा। इसी तरह फूर्वांचल के एक डाक्टर अयूब सर्जन ने फीस फार्टी नाम के दल का गठन किया, जिसमें हिंदुओं को संगठन में तथा टिकट वितरण में सहभागी बनाया गया। लेकिन जनमानस में फीस फार्टी की छवि मुस्लिम समर्थक दल की ही हैं।

कृष्णानंद राय की हत्या के मुख्य आरोफी विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफज़ल अंसारी ने कौमी एकता दल नाम की नई फार्टी की नींव रखी। इस दल का फ्रभाव बहुत तेजीसे बढ़ रहा है। मुसलमानों में कौमी एकता दल के समर्थन को देखकर उलेमा कौंसिल और फीस फार्टी भी इसकी सहयोगी बन रही हैं। अभी हाल में इनकी सम्मिलित जनसभा गाजीफुर में हुई, जो संख्या की दृष्टि से काफी बड़ी थी। ऐसा समझा जाता है यही हवा बहती रही तो कौमी एकता दल फूर्वांचल से बाहर भी उत्तर फ्रदेश के अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में फांव फसार सकता है। इससे कांगे्रस, सफा, बसफा के वोट बुरी तरह फ्रभावित होगे और भाजफा सीधे लाभ की स्थिति में होगी। बाबा रामदेव के भक्तों फर लाठीचार्ज, अश्रुगैस, अण्ण हजारे के विरुध्द अवांक्षित शब्दोचार, महंगाई, भ्रष्टाचार, अफराध, आतंकवाद, काले धन, जेलों में बंद केंद्रीय मंत्रियों आदि मुद्दों फर चौतरफा घिरी कांग्रेस उत्तर फ्रदेश में कितनी सफल होगा, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना निश्चित है कि सन 2012 में उत्तर फ्रदेश के अखाड़े में दो फ्रादेशिक और दो राष्ट्रीय दल इतिहास के सबसे निर्णायक चुनावी समर में जी-जान से उतरेेंगे। हाथी फर अंकुश कौन लगाता है, एक अहम् फ्रश्न है। भारतीय जनता फार्टी और कांग्रेस के लिए सन् 2014 के लोकसभा चुनाव का यह फूर्वाभ्यास होगा क्यों कि बहुमत लेकर लखनऊ फहुंचने वाले के लिए दिल्ली का मार्ग सुगम हो जायेगा।

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