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सावन में कृष्ण तीर्थो कि यात्रा

सावन में कृष्ण तीर्थो कि यात्रा

by विजय वर्मा
in अगस्त -२०११, संस्कृति
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सावन का महीना धार्मिक मेलों और त्यौहारों, मंदिरों के दर्शन और पूजा स्थलों की यात्रा की दृष्टि से खास महत्व रखता है। पर्यटन-प्रिय लोगों में इन धार्मिक स्थलों की यात्रा के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। इस माह कृष्ण जन्माष्टमी है।आइए हम आपको इस देश के कुछ महत्वपूर्ण कृष्ण मंदिरों की यात्रा पर ले चलते हैं :-

देश भर में भगवान श्री कृष्ण से संबंधित वैसे तो सैकड़ों मंदिर व धार्मिक-स्थल हैं, मगर इनमें से कुछ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो तीर्थ यात्रा यानी धार्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में विश्व पर्यटन के नक्शे में तेजी से उभर रहे हैं। यहां पर भारतीयों के साथ-साथ बड़ी संख्या में विदेशी भी अपनी आस्था जताने और मानसिक शांति प्राप्त करने आ रहे हैं: इस्कान मंदिर, गुरुवायूर मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा स्थित मंदिर और वृंदावन ।

द्वारका

गुजरात के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित द्वारका हिंदुओं के चार सबसे पवित्रतम तीर्थस्थलों (चार धाम) में से एक है और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई अधिकतर किंवदंतियों में इसका जिक्र होता है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण कंस का वध करने के बाद मथुरा सावन में कृष्ण तीर्थों की यात्रा छोड़कर पूरे यादव वंश के साथ सौराष्ट्र समुद्र तट पर पहुंचे और स्वर्णद्वारका नामक नगर का निर्माण किया, फिर यहीं से उन्होंने अपने साम्राज्य पर शासन किया। ऐसी कथा है कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्गारोहण के समय अपने परिजनों और भक्तों से स्वर्णद्वारका छोड़ने और उसके एक दिन डूबने की बात कही थी । आज तक यह समुद्र में डूबी हुई है। खुदाई से इसकी पुष्टि हुई है।

द्वारकाधीश मंदिर

मान्यता है कि मूल द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पौत्र वठानाभ ने उनके (हरि-गृह) आवास के ऊपर करवाया था। इसे जगत मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर 2500 साल पुराना है। यह ऊंची मीनार और हाल से युक्त है। यहां का 72 स्तंभों पर निर्मित 78.3 मीटर ऊंचा द्वारकाधीश मंदिर (जगत मंदिर) पांच मंजिलों वाला भव्य मंदिर, गोमती और अरब सागर के संगम पर स्थित है। मंदिर के गुंबद से सूर्य और चंद्रमा से सुसज्जित 84 मीटर लंबा बहुरंगी ध्वज लहराता रहता है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं, उत्तर में स्थित मुख्य द्वार ’मोक्ष द्वार’ कहलाता है। दक्षिण का प्रवेश द्वारा ’स्वर्ग द्वार’ कहलाता है। इसके बाहर 56 डग भर कर गोमती नदी तक पहुंचते हैं।

रुक्मिणी देवी मंदिर :

द्वारका के इतिहास में विभिन्न अवधियों का प्रतिनिधित्व करते अनेकानेक मंदिर हैं, लेकिन तीर्थयात्रियों के बीच आकर्षण का एक और मुख्य केंद्र भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का मंदिर है। रुक्मिणी को धन और सौंदर्य की देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह छोटा-सा मंदिर नगर से 1.5 किमी उत्तर में स्थित है। मंदिर की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग्स से सजी हुई हैं। इनमें रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ दिखाया गया है।

गोमती घाट मंदिर :

चक्रघाट पर गोमती नदी अरब सागर में मिलती है। यहीं पर गोमती घाट मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है। द्वारकाधीश मंदिर के पिछले प्रवेश द्वार से गोमती नदी दिखायी देती है। गोमती और समुद्र के संगम पर ही भव्य समुद्र नारायण मंदिर (संगम नारायण मंदिर) भी है। इन मंदिरों के अलावा नागेश्वर महादेव मंदिर, गोपी तालाब भी तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह द्वारका से 20 किमी उत्तर में स्थित है। नागेश्वर महादेव मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

भाल्का तीर्थ :

कहा जाता है कि इसी स्थान पर हिरण चर्म को धारण कर सो रहे कृष्ण को हिरण समझकर मारा गया तीर जाकर लगा और इस तरह उनकी इहलीला समाप्त हुई थी। कृष्ण का त्रिवेणी घाट पर दाह-संस्कार किया गया था। इसी के पास सोम (चंद्र) द्वारा स्थापित सोमनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि मूल मंदिर सोने का था। इसके गिरने के बाद रावण ने चांदी के मंदिर का निर्माण किया। इसके ढहने के बाद श्रीकृष्ण ने लकड़ी के मंदिर का निर्माण किया। बाद में भीमदेव ने पाषाण मंदिर का निर्माण किया। सोमनाथ में एक सूर्य मंदिर भी है।

मेला और त्यौहार

अगस्त और सितंबर के महीने में द्वारका में जन्माष्टमी धूमधाम से मनायी जाती है।

कैसे पहुंचें : हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गों से द्वारका पहुंचा जा सकता है। द्वारका से सबसे करीब का एअरपोर्ट है, 135 किमी दूर स्थित जामनगर एअरपोर्ट। द्वारका में रेलवे स्टेशन है। सरकारी और निजी बस सेवाओं के अलावा टैक्सी से भी द्वारका पहुंचा जा सकता है।

मथुरा

मथुरा यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है। भागवत पुराण में मथुरा में श्री कृष्ण और गोपियों की रासलीलाओं का जिक्र है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित है। मथुरा आज आध्यात्मिक और धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं।

राधारमण मंदिर

राधारमण का मतलब राधा को आनंदित करनेवाला यानी भगवान श्रीकृष्ण। इस मंदिर की स्थापना 1542 ई. में हुई थी।

जुगल किशोर मंदिर

यह सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसकी स्थापना 1627 ई. में हुई थी। मुगल बादशाह अकबर ने 1570 में वृंदावन की यात्रा की थी, तब चार मंदिरों की स्थापना की अनुमति दी थी।

केसी घाट मंदिर

भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर महाकाय घोड़े के रूप में प्रगट हुए दानव को मारा था। इसके बाद केसी घाट पर स्नान किया था। इस घाट पर लोग बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। हर शाम को यहां आरती उतारी जाती है।

रंगजी मंदिर

इस मंदिर का निर्माण एक धनी सेठ परिवार ने 1851ई. में करवाया था। यह भगवान श्री रंगनाथ को समर्पित है। इसमें भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे हुए हैं। पारंपरिक दक्षिण भारतीय गोपुरम शैली में है और चारों तरफ दीवारों से घिरा हुआ है।

द्वारकाधीश मंदिर

इस मंदिर का निर्माण 1814 ई. में किया गया था। नगर के बीचोंबीच स्थित यह काफी लोकप्रिय मंदिर है। मथुरा में सबसे ज्यादा दर्शनीय मंदिर हैं जो यमुना नदी के पास स्थित हैं। मंदिरों के अलावा फाल्गुन (फरवरी-मार्च) महीने में मनायी जानेवाली ब्रज (बरसाना, नंदठााम. दौजी) की होली काफी प्रसिद्ध हैा कैसे पहुंचे: मथुरा दिल्ली से 141 किमी दक्षिण-पूर्व में और आगरा से 47 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। मथुरा से दिल्ली और आगरा के लिए बस सेवा उपलब्ध है। मथुरा रेलवे स्टेशन भी है। आगरा, भरतपुर, सवाई माधोपुर और कोटा से मथुरा ट्रेन से भलीभांति जुड़ा हुआ है।

वृंदावन

वृंदावन मथुरा से 15 किमी दूर है। यमुना के किनारे स्थित यह तीर्थस्थल आध्यात्मिक पर्यटकों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा से इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर हर साल 5 लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। नये और प्राचीन अनगिनत मंदिरों के लिए जाना जाता हैं। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के दिन यहीं पर बिताये। कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर ने वृंदावन के आध्यात्मिक महत्व को स्वीकार किया था। यहां पर उसने पांच मंदिरों – गोविंद देव, मदन मोहन, गोपीनाथ और जुगल किशोर नामक मंदिरों के निर्माण की अनुमति दी थी। भारतीय जनमानस में वृंदावन के छाये होने की सबसे बड़ी वजह भगवान श्रीकृष्ण के बारें में यहां से जुड़ी किंवदंतियां और पौराणिक कथायें हैं।

वृंदावन के गोविंदजी मंदिर का निर्माण 1590 ई. में किया गया। कई हजार लोगों ने मिलकर पूरे पांच साल में इस मंदिर का निर्माण किया था। जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कोशिश की, तो उसे हटा दिया गया। जयपुर के राजा मानसिंह ने एक सात मंजिले भव्य मंदिर को बनवाया। औरंगजेब के सैनिकों ने इसे तोड़ना शुरू कर दिया था। अचानक धरती में कंपन पैदा होने से भयभीत सैनिक ऐसे भागे कि फिर वापस नहीं लौटे।

 

बांके बिहारी मंदिर:

बांके बिहारी की मूल रूप से निधिवन में पूजा होती थी। सन् 1864 में मंदिर के निर्माण के बाद यहां प्रतिष्ठित कर दिया गया। खासकर सावन में झूला यात्रा के समय वृंदावन में यह सबसे लोकप्रिय मंदिर बन जाता है। साल में एक बार मंगल आरती होती है।

इस्कान मंदिर:

देश भर में ’हरे राम हरे कृष्ण’ के अनुयायियों द्वारा निर्मित अनेक मंदिरों में से एक मंदिर यहां पर है। इसका मकसद भागवत गीता और भारत के अन्य वैदिक ठांथों के संदेशों के माध्यम से जनकल्याण करना है। हर साल अक्टूबर-नवंबर में इस्कॉन ब्रज मंडल परिक्रमा का आयोजन करता है। इसके अंतर्गत एक माह तक वृंदावन के 12 जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है ।

कृष्ण बलराम मंदिर :

यह एक खूबसूरत मंदिर है। इसमें गौरा निताई, कृष्ण बलराम और राधा श्याम सुंदर की मूर्तियां हैं ।

नाथद्वारा मंदिर :

नाथद्वारा राजस्थान में उदयपुर से 48 किमी दूर है। भगवान श्रीनाथजी ( भगवान कृष्ण) को समर्पित यह एक महान वैष्णव मंदिर है, जिसका निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। दंतकथा है कि वृंदावन स्थित श्रीनाथजी के मंदिर को मुगल बादशाह के सैनिक तोड़ना चाहते थे। उनसे बचाने के लिए उनकी मूर्ति को बैलगाड़ी से सुरक्षित जगह ले जाया जा रहा था। आज नाथद्वारा में जहां उनका मंदिर है, वहां पहुंचने पर बैलगाड़ी का पहिया कीचड़ में धंस गया और बहुत कोशिशों को बावजूद निकाला नहीं जा सका, तो पुजारियों ने समझा कि भगवान श्रीकृष्ण इससे आगे नहीं जाना चाहते, इसलिए उन्होंने इसी स्थल पर उनकी मूर्ति स्थापित कर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यह आज एक लोकप्रिय तीर्थस्थल का रूप धारण कर चुका है।

कैसे पहुंचें:

नाथद्वारा उदयपुर से बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। यहां का हवाई अड्डा उदयपुर शहर से 24 किमी दूर है।

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