सत्य क्या है?

गलवान में निश्चित रूप से क्या हुआ, यह कितने लोगों को पता है? वास्तव में चीन और भारत के संबंधों में सत्य क्या है यह चीन और भारत के राज्यकर्ता ही जानते हैं और वे दोनों ही बौद्ध भिक्षु के समान शांत हैं। इसलिए फिजूल की तर्कबाजी निरर्थक है।

गलवान घाटी में मुठभेड़ को अब 3 हफ्ते से अधिक का समय गुजर गया है। इन तीन हफ्तों में इस घटना पर चर्चा करने वाले लेखों की बरसात हुई है। राहुल गांधी एंड कंपनी घटना का राजनीतिकरण करने में मगन है। उनके प्रश्नों एवं वक्तव्यों को गंभीरता से लेने का कोई कारण नहीं है। देश की सुरक्षा की अपेक्षा स्वार्थ की रोटी किस प्रकार सेंकीं जाए, यह दिखाने वाला यह वक्तव्य है। जिस घराने ने भारत की सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन दे दी, उनके वक्तव्य को कोई अर्थ नहीं रह जाता। किए गए पापों का पहले उत्तर दें, बाद में बोले, यही उनको जवाब है।

चीन के साथ का सीमा विवाद यह राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है। इसके कारण वह गंभीर है। भारत और चीन के संबंध दो – ढाई हजार साल पुराने हैं। 1962 का अपवाद यदि छोड़ दें तो दोनों देशों ने एक दूसरे पर कभी आक्रमण नहीं किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। भारत की जमीन पर कब्जा किया। उसके बाद चीन के प्रति अविश्वास का वातावरण निर्माण हुआ। करीब-करीब गत 60 वर्षों से सीमा पर छोटी बड़ी मुठभेड़ होती रहती हैं। गलवान सरीखी मुठभेड़ इसके पहले हुई थी और उसमें दोनों और के जवान मारे गए थे। भारत के परंपरागत शत्रु पाकिस्तान से चीन के मित्रता के संबंध हैं। काराकोरम पर्वत और पाक अधिकृत कश्मीर में चीन हाईवे बनाने का काम कर रहा है। साउथ चाइना सी, हिंद महासागर में चीन अपनी दादागिरी चलाता ही रहता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रश्नों पर चीन की भूमिका भारत विरोधी रहती है। इसके कारण भी चीन के विषय में अविश्वास का वातावरण तैयार होता है।

ऐसे वातावरण में चीन के विषय में हमारी भूमिका क्या हो? इस पर सलाह पर सलाह दी जाती है। कुछ लोग चीन की सैनिक ताकत एवं हमारी सैनिक ताकत की तुलना करते हैं। चीन के पास कितनी लाख पैदल सेना है, कितने हजार विमान हैं, नौसेना कितनी सशक्त है, कितने अणुबम एवं हाइड्रोजन बम हैं और इन सबके सामने भारत का संख्या बल कितना कम है, यह बताया जाता है। कोई भी युद्ध संख्या बल के आधार पर नहीं जीता जाता यह इन (एक्सपर्ट) लोगों के ध्यान में नहीं आता। प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला के पास 50000 की सेना थी जबकि अंग्रेजों के पास केवल 5000! फिर भी सिराजुद्दौला लड़ाई हार गया। विश्व की ऐसी अनेक लड़ाइयां हैं, जो कम संख्या बल वाली सेनाओं ने जीती हैं। इसलिए इस आंकड़ेबाजी का कोई अर्थ नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं कि चीन से शत्रुता नहीं करनी चाहिए। चीन की आर्थिक शक्ति हमसे बहुत अधिक है। उसकी विकास दर 10% है। चीन विश्व को निर्यात करने वाला बाजार बन गया है। केवल भारत में ही नहीं तो विश्व के अनेक देशों में चीनी वस्तुओं की भरमार है। यहां भी भारत की चीन से तुलना की जाती है। भारत चीन से कितना पीछे हैं इसके आंकड़े दिए जाते हैं। नकारात्मक चित्र प्रस्तुत करने में अनेक बुद्धिवादी अपने को धन्य मानते हैं। भारत की आर्थिक शक्ति केवल उसकी उत्पादन क्षमता में नहीं, वह उसके मितव्ययिता से जीवन जीने में है, उसकी बचत में है, आवश्यकताओं पर नियंत्रण रखने में है। यह भारत की जीवन शैली है। उससे मुकाबला केवल आर्थिक आंकड़ेबाजी से नहीं हो सकता।

कुछ लोगों का कहना है कि नेहरू जी की गलतियां मोदी जी ना करें। चीन ने अक्साई चीन पर दावा किया था। तब चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने नेहरू जी से बात की थी। नेहरू ने उसे नहीं माना एवं 62 में चीन ने आक्रमण किया। चीन के कुछ दावे हमें स्वीकार करना चाहिए ऐसी सलाह भी कुछ लोग देते हैं। चीन और भारत की वर्तमान स्थिति इस प्रकार की है। राजनीतिक लोगों से एक्सपर्ट लोगों तक सब अपने अपने चश्मे से देखते हैं। चीन भारत के संबंधों की ओर देखने का एक और दृष्टिकोण है जिसकी अनदेखी नहीं होना चाहिए।

अमेरिका में पदस्थ एक चीनी राजदूत ने कुछ वर्ष पूर्व कहा था कि, रक्त की एक बूंद गिराए बिना भी भारत ने चीन को जीता है। उसे यह कहना है कि, ईसवी सन के पहले शतक में रेशम मार्ग से अनेक बौद्ध भिक्षु चीन में गए। चीन के राजा ने उनका स्वागत किया और भगवान बुद्ध का मैत्री एवं करुणा का धर्म स्वीकार किया। भारतीय बौद्ध धर्म को चीनी मुलम्मा चढ़ाया। चीन का परंपरागत विचार ताओइज्म का है। उसका और बौद्ध विचारों का संघर्ष नहीं हुआ। उनमें समन्वय किया गया। भगवान गौतम बुद्ध ने जीवित रहते समय कैसा व्यवहार होना चाहिए, इसका पाठ पढ़ाया है। विश्व निरंतर परिवर्तनशील है। कोई भी बात जिस स्थिति में है उस स्थिति में कायम नहीं रहती। इसलिए ऐसी बातों के मोह में नहीं पड़ना चाहिए।

इस विषय में एक चीनी बौद्ध गुरु की कथा है। उनके पास एक पिता अपने पुत्र की शिकायत लेकर आता है। पुत्र वेश्यागामी हो गया है एवं उस पर सारी संपत्ति लुटा रहा है। उसको इससे परावृत्त करने की विनती गुरु से करता है। बौद्ध गुरु पुत्र के घर जाते हैं। पुत्र उनका स्वागत करता है। उन्हें भोजन कराता है। विश्राम के बाद वे वापस जाने को तैयार होते हैं। पुत्र को कोई उपदेश नहीं करते। अपनी घास की चप्पल के फीतें बांधने में वे असमर्थ होते हैं। वे पुत्र से कहते हैं, ‘मैं अब बूढ़ा हो गया हूं। मेरे शरीर में शक्ति नहीं है। क्या चप्पल के फीतें बांध देंगे?’ पुत्र वह करता है। वह सोचता है, दिन भर में गुरुजी इतना ही बोले! मेरी जवानी भी समाप्त होगी। मेरी उम्र भी हो जाएगी। मेरी शक्ति भी कम होती जाएगी। ऐसा विचार कर वह वेश्यागमन छोड़ देता है। घटना चीन में घटित हुई इसलिए इसे चीनी घटना कहते हैं परंतु यह है भारतीय जीवन मूल्यों की कहानी।

चीन सैनिक शक्ति है, नाविक शक्ति है, आर्थिक शक्ति है, वैसी आध्यात्मिक शक्ति भी है। कम्युनिज्म के कारण वह शक्ति थोड़ी मलीन हो गई होगी। परंतु गौतम बुद्ध के सिद्धांत के अनुसार कुछ भी शाश्वत नहीं है। चीन यह भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक परंपरा का देश है, यह भी ध्यान में रखना चाहिए। चीन याने ईरान, इराक या तुर्की नहीं है। गत 15- 20 वर्षों के सांस्कृतिक संबंध और समझौते देखें तो इस दिशा में दोनों देशों ने सकारात्मक कदम उठाए हैं, ऐसा ध्यान में आता है। नरेंद्र मोदी जब चीन गए तब बौद्ध मंदिर देखने गए थे। मंदिर के प्रमुख बौद्ध भिक्षु ने उन्हें गौतम बुद्ध की सोने की मूर्ति भेंट की।
‘चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग, बौद्ध भिक्षु, एवं सोने की मूर्ति सहित नरेंद्र मोदी’ का फोटो उस समय वायरल हुआ था। युद्ध की तैयारी हमेशा रखनी चाहिए, उसमें ढिलाई नहीं होनी चाहिए। वहां नेहरू नीति काम की नहीं। परंतु चीन हमारी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक परंपरा का देश है, यह भी नहीं भूलना चाहिए। शत्रुता करोगे तो हमारी गदा है एवं अपनत्व प्रकट करोगे तो हमारा सहयोग करने वाला हाथ है। मुझे लगता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी नीति का पालन कर रहे हैं।

इसका सुखद दर्शन चीन के भारत स्थित राजदूत सुनवेईडॉग के एक वीडियो संदेश में देखने को मिलता है। उसमें राजदूत कह रहे हैं, उस रात गलवान घाटी में जो कुछ हुआ वह भारतीय जवानों के साथ विश्वासघात ही था। चीन के सैनिकों को ऐसा छुपकर हमला नहीं करना चाहिए था। इसके कारण भारत के मन में चीन के प्रति अविश्वास की भावना निर्माण हो गई है। यह वक्तव्य और बड़ा है। अब उसकी विवेचना होगी, उस पर वक्तव्यों की भरमार होगी। चीन हमें भुलावे मे रखना चाहता है, चीन के मन में ऐसा नहीं है, वक्तव्य से खुश होने का कोई कारण नहीं है, आदि-आदि। ऐसे उल्टे सीधे विचार आने पर सत्य क्या है यह समझने के लिए पुनः एक बार चीनी कथा का आधार लेना होगा।

चीनी बौद्ध भिक्षु का प्रवचन हुआ। इसके बाद दो शिष्यों में विवाद प्रारंभ हो गया। एक ने कहा, गुरुजी ने इस प्रकार बताया है। दूसरा बोला, नहीं तुम गलती कर रहे हो, उनका कहना ऐसा नहीं था। दोनों गुरुजी के पास जाते हैं। पहला कहता है, गुरुजी, आपका कहना यही था ना? गुरुजी ने कहा, एकदम ठीक। वह खुश हो गया। दूसरा बोला, इसका कहना बिल्कुल गलत है, आपका कहना यह था ना? गुरुजी ने कहा, एकदम ठीक। वह भी खुश हो गया। गुरुजी के पास जो तीसरा शिष्य बैठा था वह गुरुजी से बोला, ‘इन दोनों का कहना एक दूसरे के विरुद्ध था, फिर भी वे दोनों ठीक कैसे?’ गुरुजी ने हंसकर उससे कहा, ‘तुम भी ठीक हो।’ वास्तव में सत्य क्या है, यह गुरुजी को ही पता था। चीन और भारत के संबंधों में सत्य क्या है यह चीन और भारत के राज्यकर्ता ही जानते हैं और वे दोनों ही बौद्ध भिक्षु के समान शांत हैं।
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