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न्याय की जीत्त

न्याय की जीत्त

by एड. राजीव के पाण्डेय
in अक्टूबर २०११, राजनीति
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सर्वोच्च न्यायालय ने 12 सितम्बर, सन् 2011 ई. के अपने फैसले के द्वारा उस मामले को बंद कर दिया, जिसे पूर्व कांठोसी सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने दाखिल किया था। यह निर्णय देश की न्याय व्यवस्था में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा। इस निर्णय से लोगों में न्यायप्रणाली पर विश्वास गहरा हुआ है। यह पूरा प्रकरण उस समय से शुरू हुआ है, जब 27 फरवरी, सन् 2002 ई. को अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस द्वारा वापस आ रहे कार सेवकों पर गुजरात के गोधरा शहर में मुसलमानों की भीड़ द्वारा गाड़ी में आग लगा देने से 58 कार सेवक जलकर भस्म हो गये थे।  उनमें अधिकांश महिलाएं एवं बच्चे थे। यह घटना भारत के इतिहास के एक दर्दनाक और क्रूरतम् घटनी थी। जर्मनी के नाजियों द्वारा यहूदियों को गैस के चेम्बर में बंद करके मार देने से भी वीभत्स वह घटना थी। इस आतंकी दुष्कृत्य के पश्चात बदले की कार्रंवाई के रूप में भड़के दंगों में गुजरात के कुछ भागों में मुस्लिम भी मारे गये। उस दंगे में 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गये थे। 223 लापता हो गये थे। 523 पूजा स्थल नष्ट कर दिये गये थे। दंगाइयों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने 1000 राउण्ड गोलियां चलाईं। इससे भी बहुत सारे दंगाई मारे गये थे। उस घटना के उपरान्त स्वयंभू अभिभावक की भूमिका में मानवाधिकार संगठनों ने पूरे गुजरात राज्य और विशेषकर मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक सुनियोजित अभियान छेड़ दिया। शुरू के वर्षों में यह अभियान राज्य विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा को पराजित करने और भाजपा की सरकार को अस्थिर करने के लिए था। भाजपा विरोधी अभियान के बावजूद श्री नरेन्द्र मोदी भारी बहुमत से विजयी होकर अधिक मजबूत हुए। इसके बाद उन तथाकथित मानवाधिकारवादियों ने श्री नरेन्द्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से बदनाम करना और उन्हें हतोत्साहित करना शुरू कर दिया। बेस्ट बेकरी मामले को गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित किये जाने से उत्साहित समूह ने श्री नरेन्द्र मोदी सहित 63 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए जाकिया जाफरी को तैयार कर लिया। उन्होंने दिनांक 8 जून, 2006 ई. को मजिस्ट्रेट के सम्मुख अपनी शिकायत दर्ज करवा दी। यहां उल्लेखनीय है कि दंगे से सम्बन्धित अहमदाबाद के मेघानी नगर पुलिस स्टेशन में बहुत पहले ही एफ.आई.आर. दर्ज की जा चुकी थी और मामला अहमदाबाद के सेशन कोर्ट में लम्बित था। श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सक्रिय संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाकिया जाफरी की याचिका स्वीकार कर लेना उनकी भारी जीत है। यही बात सही है कि गुलबर्गा हाउसिंग सोसायटी में दगांइयों द्वारा पूर्व सांसद एहसान जाफरी का मारा जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। यह घटना गोधरा कांड के बाद क्षोभ के प्रकटीकरण के रूप में हुई थी, जिसमें जाकिया जाफरी द्वारा आरोप लगाया गया कि दिवंगत एहसान जाफरी ने मुख्यमंत्री और गुजरात के अन्य मंत्रियों से टेलिफोन पर सहायता मांगी थी। घटना के चार साल बाद इस तरह की कहानी गढ़ना कि उनकी हत्या में गुजरात सरकार का हाथ था, विश्वास के योग्य नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एस.आई.टी) का गठन कर दिया तथा पूरी जांच की निगरानी भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी। जांच के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी से जुड़े तथ्य विशेष जांच दल द्वारा सुनियोजित और गुप्त तरीके से संचार माध्यमों को दिए गये। विशेष जांच दल का यह दुष्कृत्य सर्वोच्च न्यायालय की भी अवमानना थी। विशेष जांच दल द्वारा अंतिम रपट उच्चतम न्यायालय को सौंपे जाने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक विषयों में न्यायालय की सहायता करने के लिए ’एमीकस क्यूरी’ की नियुक्ति की। सभी साक्ष्यों और उपलब्ध तथ्यों का मूल्याकंन करने और एमीकस क्यूरी की सिफारिश के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने अन्ततोगत्वा निर्णय दिया कि मामले की सुनवाई के लिए विशेष जांच दल की रपट गुजरात में मजिस्ट्रेट के सामने नियमानुसार दाखिल करें। यह पूरा प्रकरण गुजरात की राजनीति की अपेक्षा गुजरात की न्याय व्यवस्था के लिए राहत की बात है। मामले का कानूनी निहितार्थ देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशेष जांच दल के जांच-कार्य की निगरानी करने और जाकिया रफीक द्वारा घटना के चार वर्ष बाद दर्ज की गयी शिकायत पर गौर करने तथा ’एमीकस क्यूरी’ की रपट देखने के पश्चात मामले को गुजरात की निचली अदालत में भेज दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा करके कानून की मर्यादा का पालन किया है। क्योंकि किसी भी जांच में श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है। विशेष जांच दल ने नरेन्द्र मोदी से कई घण्टे पूछताछ करके अंतिम रिपोर्ट तैयार की थी। इसलिए इस जांच रिपोर्ट के प्रकाश में ही मजिस्ट्रेट पूरे मामले पर कोई निष्कर्ष निकालेंगे। मेरी राय में जब सर्वोच्च न्यायालय को विशेष जांच दल की रिपोर्ट में नरेन्द्र भाई मोदी के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला है तो, इसकी बहुत क्षीण संभावना है कि उसी रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत कोई कार्रवाई करे। मामले का राजनीतिक निहितार्थ पिछले नौ वर्षों से नरेन्द्र भाई मोदी के साथ राजनीतिक अस्पृश्य जैसा व्यवहार किया गया। अमेरिका के द्वारा श्री नरेन्द्र भाई मोदी को वीजा न देना विकास के पथ पर अठासर गुजरात और गुजरातियों का अपमान था। गुजरात को बदनाम करने वालों ने इस पर खुशी व्यक्त की थी, जबकि गुजरात की जनता ने चुनाव में ही बता दिया था। ’जनता की अदालत’ में नरेन्द्र भाई मोदी ससम्मान निर्दोष सिद्ध हुए हैं। गुजरात की जनता ने राज्य का गौरव बढ़ाते हुए नरेन्द्र मोदी को दूसरी बार भारी बहुमत से जिताया। यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा था, जो उम्मीद किये बैठे थे कि चुनाव में मोदी जी का किला ढह जाएगा। उनके घावों पर नमक छिड़कते हुए मोदी जी पूरे देश की राजनीति में सक्षम, दूरदर्शी, ईमानदार राजनेता के रूप में छा गये। नरेन्द्र भाई मोदी की छवि उस समय राष्ट्रीय राजनीति में चमक उठी जब देशभर के उद्योगपतियों ने गुजरात की ओर रुख किया और रतन टाटा ने अपनी कंपनी शुरू की। मोदी जी के नेतृत्व में राज्य की देशभक्त जनता ने शांतिपूर्वक कानून का सम्मान करते हुए अपने स्वाभिमान और गौरव को बढ़ाने हेतु विगत नौ वर्षों में राज्य को एक ’माडल स्टेट’ बना दिया है। भारत की सर्वोच्च अदालत द्वारा जांच करने के आदेश के साथ जब नरेन्द्र मोदी के चतुर्दिक संदेह का बादल निर्मित किया गया था, तब उनके खिलाफ राग अलापने वाले कांठोसी और वाामपंथी नेताओं सहित उनकी पार्टी के भी कुछ लोग दुष्प्रचार में जुट गये थे। इस पूरे प्रकरण में किसी को भी इस स्वतंत्र भारत की निष्पक्ष न्यायप्रणाली की छवि को तार-तार होने की चिंता नहीं थी। मुट्ठीभर लोगों ने सुनियोजित तरीके से गुजरात की पूरी न्याय व्यवस्था को बदनाम कर रखा था। कहावत है, ’’सभी व्यक्तियों को कुछ समय तक मूर्ख बनाया जा सकता है, कुछ लोगों को हमेशा मूर्ख बनाया जाता है, किंतु सबको हमेशा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से झूठे प्रचार का बुलबुला फूट गया। राष्ट्र को समर्पित उपवास

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में शांति, एकता, मेलजोल और सद्भावना के लिए तीन दिन तक उपवास और प्रार्थना की। उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय सेंटर व प्रदर्शनी हॉल में 17 सितम्बर को प्रात: 10 बजे उपवास की शुरुआत की और सोमवार 19 सितम्बर को शाम 5 बजे अपना उपवास पूरा किया। श्री मोदी के सद्भावना उपवास व प्रार्थना को देशभर से समर्थन मिला। भारतीय जनता पार्टी तो उनके साथ पूरी तरह थी ही, शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना, अन्ना द्रमुक इत्यादि दलों का भी समर्थन था। श्री मोदी के साथ पहले दिन भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालाकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज हुसैन, विजय गोयल, शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, अन्ना द्रमुक के एम थम्मीदुरई और वी मैत्रेयन आदि भी उपवास पर बैठे थे। उनके समर्थन में मुस्लिम समुदाय के सभी पंथों के लोग भी शामिल थे। राजधर्म का निर्वाह करते हुए श्री मोदी ने पूरे राज्य में सद्भावना कायम करने हेतु यह उपवास किया। उन्होंंने विगत नौ वर्षों में राज्य में फैलाई जा रही दुर्भावना को समाप्त करने के लिए उपवास करते समय कहा कि वे चाहते हैं कि इस उपवास से उनका मन इतना इतना पवित्र हो जाए कि उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे लोगों के प्रति भी किसी तरह का द्वेष न रह जाए। वस्तुत: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के साथ ही श्री मोदी के खिलाफ सुनियोजित तरीके से किए जा रही कानूनी कार्रवाई का पटाक्षेप हो गया। गोधरा दंगों में उनकी भूमिका को लेकर लगाए जा रहे आरोप निराधार सिध्द हुए। इसलिए उन्होंने पूरे राज्य की जनता में सद्भावना जगाने और भाईचारा सुदृढ़ करने के लिए यह उपवास किया। उन्होंने महात्मा गांधी के उन्हीं पदचिह्नों का अनुसरण किया जो देश में होने वाले दंगों के समय गांधीजी किया करते थे। श्री मोदी का यह कदम उनकी सद्भावना और स्वच्छ प्रवृत्ति को और अधिक स्पष्ट करता है।

राष्ट्रीय स्तर पर, विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो निर्णय दिया गया, वह देश के न्यायिक इतिहास में मील का पत्थर होगा। यहां अब यह बड़ा सवाल है कि क्या देश के राजनेता अब नरेन्द्र भाई मोदी के प्रति सभी दुर्भावना को त्याग कर समानता के आधार पर उनके साथ व्यवहार करेंगे और राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें उचित स्थान देंगे, जिसके कि वे हकदार हैं? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाये गये कदम से एक लंबे और भद्दे अध्याय का सुखद अंत हुआ। एक घिसे-पिटे प्रकरण के ज्यादा दिन तक नहीं खींचा जा सकता। अब अन्ततोगत्वा देश की जनता, संचार माध्यमों, बुद्धिजीवियों को उन तथ्यों पर गौर करना चाहिए जिसे नरेन्द्र भाई मोदी विगत् नौ वर्षों से चुपचाप धैर्यपूर्वक निबाहते आ रहे थे। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने मोदी जी के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व करने का मार्ग खोल दिया है। अब देश की जनता उनकी राष्ट्रीय छवि का लाभ उठा सकेगी और देश के विकास हेतु उनका मार्गदर्शन और सहयोग प्राप्त कर सकेगी। यह न्याय व्यवस्था की विजय है, राजनीति की विजय है।

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