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आत्मनिर्भर भारत: घोषणा नहीं कृति आवश्यक

आत्मनिर्भर भारत: घोषणा नहीं कृति आवश्यक

by pallavi anwekar
in आत्मनिर्भर भारत विशेषांक २०२०, विशेष, संपादकीय
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आत्मनिर्भर शब्द सुनकर ही मन में क्या विचार आता है? व्याकरण की गहराइयों में जाकर आत्म और निर्भर आदि सोचने की आवश्यकता नहीं है। आत्मनिर्भर सुनकर या सोचकर जो पहला विचार मन में आता है या आना चाहिए वह है अपने कर्तव्य के प्रति संज्ञान। भारतीय जीवन पद्धति में माता-पिता अपने बच्चों को लगभग बाईस-तेईस वर्ष की आयु के बाद अपने पैरों पर खड़े होने की नसीहत देने लगते हैं। कई बार आर्थिक परिस्थितियां इस उम्र को और कम भी कर देती हैं। अपने पैरों पर खड़ेे होने की नसीहत का सीधा अर्थ यही होता है कि अब आत्मनिर्भर बनो। अर्थात स्वयं, घर और समाज के प्रति जो भी तुम्हारे उत्तरदायित्व हैं उन्हें पूरा करने की कोशिश करना शुरू कर दो। जिस दिन नसीहत दी उसके दूसरे दिन से ही कोई बच्चा आत्मनिर्भर नहीं हो जाता। यह एक पूरी प्रक्रिया होती है। जैसे-जैसे वह अपने निर्णय स्वयं लेता है, सही निर्णयों से आनंदित होता है और गलत निर्णयों से सीख लेता है वैसे-वैसे उसका आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। इसी आत्मविश्वास के आधार पर वह आत्मनिर्भर बनता जाता है। आत्मनिर्भर होने का अर्थ यह नहीं कि वह सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के सभी काम स्वयं कर लेना है बल्कि आत्मनिर्भर होने का अर्थ यह है कि वह जितना समाज से लेता है उससे कुछ गुना अधिक समाज को लौटाता है।

किसी देश को आत्मनिर्भर बनने के लिए पचास-साठ साल की अवधि बहुत होती है। इतिहासकाल के वर्ष छोड़ भी दिए जाएं तो भी अब भारत को स्वतंत्र हुए ही पचहत्तर वर्ष होने जा रहे हैं। अब भारत को आत्मनिर्भर बनने की दिशा की ओर बढ़ना ही होगा। देश का आत्मनिर्भर होना भी एक प्रक्रिया ही है। इस प्रक्रिया को शुरू होने में इतना समय क्यों लगा? यह पहले क्यों नहीं शुरू हुई? हमारे साथ स्वतंत्र हुए देश आत्मनिर्भर कैसे बन गए? आदि जैसे प्रश्नों के उत्तर ढ़ूंढ़ना अब व्यर्थ होगा। अब सीधे भारत को आत्मनिर्भर बनाने का निश्चय करके उस दिशा में ही कदम बढ़ाने होंगे।

इस प्रक्रिया का पहला कदम भी आत्मविश्वास ही होगा। सबसे पहले देश के प्रत्येक नागरिक के मन में यह विश्वास होना आवश्यक है कि भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। देश के आत्मनिर्भर होने का अर्थ है जितना हम आयात करते है उससे कुछ गुना अधिक निर्यात अवश्य हो। जितना हम विदेशों से लें उससे अधिक उन्हें देने की क्षमता विकसित करें। आत्मनिर्भर बनने की दिशा की ओर बढ़ते समय यह अतिविश्वास भी न रखें कि हम सब कुछ कर सकते हैं और यह न्यूनगंड भी न पालें कि भारत में कुछ हो ही नहीं सकता। ये दोनों ही विचार हमारी राह का रोड़ा बन सकते हैं। हमें हमारे बलस्थान और कमजोर पक्ष दोनों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। भारत की युवा शक्ति भारतीय जीवन मूल्य, अध्यात्म, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, आयुर्वेद, योग इत्यादि भारत के बल स्थान हैं। भारत में बुद्धिमत्ता की कोई कमी नहीं है। आज विदेशों में उच्च पदस्थ लोगों की संख्या निकाली जाए तो लगभग हर देश में भारतीय मूल के लोग मिलेंगे। इन भारतीयों ने उन देशों को आर्थिक, तकनीकी, स्वास्थ्य, अनुसंधान सभी क्षेत्रों में समृद्ध किया है। अब प्रश्न यह उठता है कि विदेशों को समृद्ध करने वाले भारतीय हैं तो भारत समृद्ध क्यों नहीं हुआ? इसका कारण है बहुसंख्य लोगों में विश्वास की कमी और भ्रष्टाचार। घर की मुर्गी दाल बराबर को चरितार्थ करने वाली हमारी मानसिकता अनुसंधानों को बाजार ही उपलब्ध नहीं होने देती। मानसिक गुलामी ने हमें इस कदर घेर रखा है कि अपने देश में बना हुआ कपड़े धोने का साबुन भी लेने से हम कतराते हैं। जब तक किसी विदेशी ब्रांड का ठप्पा किसी वस्तु पर नहीं लगता हमें विश्वास ही नहीं होता कि वह अच्छी होगी, भले ही उसके कच्चे माल से लेकर लेबलिंग तक की सारी प्रक्रिया भारत में ही हुई हो। भारतीय खेतों से आई सब्जियों को ठेलों से खरीदने की जगह विदेशी मॉल से खरीदना हमें ज्यादा सुहाता है। ये छोटी-छोटी बातें जब तक हम नहीं बदलेंगे तब तक आत्मनिर्भर भारत जुमला ही लगेगा।

भ्रष्टाचार ने हमारी प्रशासनिक व्यवस्था को कमजोर कर रखा है। पढ़े-लिखे, दूरदर्शी, अनुभवी लोगों को नजरअंदाज कर अपने नाते-रिश्तेदारों को उच्च पदों पर बिठाने के रवैये के कारण प्रशासनिक व्यवस्था ऐसे लोगों के हाथों में चली गई है जिन्हें अपनी जेबें भरने से ही फुर्सत नहीं मिलती तो वे देश के बारे में क्या सोचेंगे? आज प्रशासनिक व्यवस्था में ऐसे लोगों की आवश्यकता है जिनकी सोच केवल देश की उन्नति ही हो, तभी देश आत्मनिर्भर हो सकेगा।

नई शिक्षा नीति को अपनाकर हमने आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाया है। यह हमारी आने वाली पीढ़ी की मानसिकता को बदलने में कारगर सिद्ध हो सकती है, परंतु अभी जिन लोगों के हाथों में देश का भविष्य है उन्हें अपनी मानसिकता और दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। अपनी दिनचर्या के हर लेन-देन के समय हम यह सोचें कि कौन सी वस्तु खरीदने से भारत का पैसा भारत में ही रहेगा तो भी हम बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।

यह तो निश्चित है कि लाल किले से प्रधानमंत्री के घोषणा कर देने मात्र से भारत आत्मनिर्भर नहीं हो जाएगा। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनुसंधानकर्ताओं को कालानुरूप बदलती आवश्यकताओं के अनुसार अनुसंधान करने होंगे, उन अनुसंधानों से निर्मित वस्तुओं को व्यापारियों द्वारा बाजार में उतारना होगा, भारतीय समाज को ग्राहक के रूप में उसे खरीदना होगा और अंतत: विदेशी बाजार में भी इसका विक्रय हो ऐसी व्यवस्था करनी होगी। जब यह पूरी प्रक्रिया भारत से शुरू होकर विदेशी बाजारों तक पहुंचेगी तभी भारतीय लोगों की आवश्यकता पूर्ण होगी, विदेशी धन भारत में आएगा और भारत सही मायनों में आत्मनिर्भर हो सकेगा।
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