अग्रवाल एक जाति नहीं, सांस्कृतिक आंदोलन है

कुछ लोग या समाज ऐसे होते हैं जो अपने अतीत के गौरव को गाकर अपना गुनआन करते रहते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो अपने वर्तमान पर जिंदा रहते हैं। किंतु अग्रवाल समुदाय देश का ऐसा समाज है जिसका अतीत भी गौरवशाली रहा है और वर्तमान भी देश में अपना एक विशेष स्थान बनाये हुए है। यह सब महाराजा अग्रसेन की शिक्षाओं व उनके आशीर्वाद का ही परिणाम है कि आज देश में अग्रवाल समाज का विशेष स्थान है।

इतिहास साक्षी है कि जब तक वैश्य अग्रवालों के हाथ में कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य का कार्य रहा, भारत सोने की चिड़िया कहलाया। यहां की समृद्धि और वैभव ने दुनियाभर के देशों को ललचाया। यहां सदैव अन्न के भंडार भरे रहते और दूध दही की नदियां बहतीं। घर पर आने वाले अतिथियों को यहां जल के स्थान पर दूध पीने को मिलता। वे अपने समय के सर्वाधिक दानी, सदाव्रती और धर्मनिष्ठ समझे जाते और उनके धन से न जाने समाज के कितने वर्गों का हित-संरक्षण होता। उनके द्वारा स्थापित विद्यालय, महाविद्यालय, ज्ञान और संस्कृति के केन्द्र थे और विश्व भर के लोग यहां, ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन करना गौरव का विषय समझते थे।

इस समाज के प्रवर्तक अग्रोहा राज्य से संस्थापक महाराजा अग्रसेन हुए, जिन्होंने एक मुद्रा-एक ईंट जैसी आदर्श पद्धति का प्रचलन कर समाजवाद का सही रूप और गरीबी हटाओं का नारा सार्थक कर दिखाया था। उनका राज्य सच्चे अर्थों में समाजवाद, (आधुनिक युग में सहकारिता, सर्वोदय, अर्थदान, भू-दान व सम्पत्ति दान आदि) लोकतंत्र, निर्धनता उन्मूलन जैसी प्रवृत्तियों का साकार प्रतीक था। उन्होंने 18 गणों की सम्पति से राज्य चला कर एकतंत्र में लोकतंत्र की नींव रखी। आज हम जिन स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे, परस्पर सहयोग, स्वावलम्बन, स्वदेशी की भावना, सर्वधर्म समभाव, परिश्रम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा आदि आदर्शों की बात करते हैं, वे सब महाराजा अग्रसेन के राज्य में 5100 वर्ष पूर्व विद्यमान थे।

अग्रवाल समाज के प्रवर्तक महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य में गणतंत्रीय प्रणाली की स्थापना की। एक मुद्रा एक ईंट की पद्धति द्वारा परस्पर सहयोग की भावना का विकास किया। उनका मूलमंत्र था परिश्रम और उद्योग से अर्थोपार्जन और उसका समान रूप से वितरण। वह कहते थे कि उत्पादन का कुछ भाग पूंजी के रूप में परिवर्तित करो। आज भी अग्रवाल जाति जनकल्याण के क्षेत्र में अग्रणी है। कठिन परिश्रम से अर्जित अपने धन को लोकहित के लिए अर्पित कर देते हैं। इस समाज द्वारा निर्मित धर्मशालाओं, विद्यालयों, मंदिरों, बावड़ियों आदि प्रत्येक स्थान पर देखे जा सकते है।

उस समय राजा अपना वर्चस्व स्थापित करने एवं अपना परलोक सुधारने के लिए बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन करते थे। महाराजा अग्रसेन ने भी मानव मात्र के कल्याण हेतु 18 यज्ञों का आयोजन किया।17 यज्ञ पूर्ण विधि-विधानपूर्वक निर्विघ्न समाप्त हुए। 18 वें और अंतिम यज्ञ में महाराजा अग्रसेन के मन में ज्ञान का प्रकाश फैल गया। उन्हें लगा कि यज्ञों में मूक एवं निर्दोष पशुओं की बलि का हमें कोई अधिकार नहीं। महाराजा अग्रसेन ने यज्ञ स्थल से घोषणा की उन्हें यज्ञ में पशु हिंसा से घृणा हो गई है। महाराजा अग्रसेन का हृदय परिवर्तन उनके अहिंसा प्रिय स्वाभाव के अनुकूल ही था। यह हिंसा पर अहिंसा, क्रूरता पर करुणा तथा पाशविकता पर मानवता की श्रेष्ठतम विजय थी।

महाराजा अग्रसेन की इस विचारधारा का अग्रवाल एवं वैश्य जाति पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। यह उनकी विचारधारा का ही प्रभाव था कि अग्रवाल जाति शाकाहारी, अहिंसक एवं धर्मपरायण जाति के रूप में प्रतिष्ठित है। अग्रोहा पर बार-बार विदेशी आक्रमण होने तथा बारहवीं शताब्दी में मोहम्मद गौरी के आक्रमण से एक लाख की आबादी वाला नगर ध्वस्त हो गया। अग्रोहा से निष्क्रमण करने वाले बहुसंख्य अग्रवाल देश के विभिन्न स्थानों पर बस गए तथा वाणिज्य-व्यापार से अपनी जीविका चलाने लगे। महाराजा अग्रसेन से प्रेरणा प्राप्त कर अग्रवाल से ने केवल व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्र में प्रगति की बल्कि वे प्रशासन, न्याय, राजनीति, साहित्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के शिखर पर पहुंचे। आज कर्तव्यनिष्ठ, व्यापार कौशल की अपनी ही विशिष्टता है।

महाराजा अग्रसेन के चार गुण सत्य, अहिंसा, समानता एवं अपनत्व तथा चार सिद्धांत-दुष्टों का दमन, साधुओं का संरक्षण, गरीबी का तर्पण व शोषकों का क्षरण को अग्रवाल समाज ने आज भी अपना रखा है और इसी कारण यह समाज देश में अग्रणी बना हुआ है।

अग्रगीत
हम अग्रसेन के वंशज, है लक्ष्मी जी के प्यारे।
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥
सीधा सादा जीवन अपना अहंकार न हमको भाता।
भामाशाही दान धर्म से अपना है गहरा नाता॥
सिद्धान्तों के मौनव्रती हम अपना यह इतिहास बताता।
परोपकार बहुजन हिताय का मूलमंत्र है हमको आता॥
हैं अगणित दृष्टांत हमारे, जैसे चांद सितारे।

धन आय व्यय का हमसे ही, गुर दुनिया ने जाना है।
मंदिर अस्पताल विद्यालय सेवा धर्म पुराना है॥
गौ पूजा यज्ञ अहिंसा का हर पल ध्येय निभाना है।
उन्नति का वट निज कर्मों से धरती पर हमें लगाना है॥
मन में दृढ़ संकल्प हमारे, सुंदर लक्ष्य हमारे।
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥

माना हममें है दोष बहुत पर गुण भी अपरम्पार लिए।
जीते परम्पराओं आदर्शों के हम पावन त्यौहर लिए॥
माना हम है शांति पुजारी पर वीरोचित हथियार लिए।
यश वैभव अंबार न्यारें खुशियां आनंद द्वारे॥
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥

हम समर्थ हैं बुद्धिमान फिर भी सबको शीश झुकाते।
जब भी आये देश पर संकट हम मिलजुलकर आगे आते॥
मानव मानव एक बराबर सबको हम हैं गले लगाते।
कभी न अत्याचारी के संग हम अपना हाथ मिलाते॥
गांधी की आंधी के आगे दुनिया वाले हारे।
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥

कह दो सारे जग से वैश्य वर्ण अब जाग रहा है।
ज्ञान विज्ञान व्यापार क्षितिज पर वह अपना ध्वज गाड़ रहा है॥
राजनीति के सिंहासन पर अपना फिर पग नाप रहा है।
युग बदला और करवट ली वक्त मांग बदलाव रहा है॥
छोड़ के दकियानूसी बातें हम लिखते गीत न्यारे।
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥

हम प्रेम भक्त अराध्य हमारे ब्रह्मा, विष्णु शंकर है।
तीनों सृष्टि के संचालक हैं, तीनों ही अभ्यंकर है॥
अग्रसेन महाराज हमारे युग सृष्टा श्रीधर हैं।
बादशाह या शाह सदा ही कहलाते दीपंकर है।
जय अग्रसेन जय अग्रसेन अनगिन कंठ पुकारे।
हम अग्रवाल भी कहलाते, वैश्य बन्धु हम सारे॥

– डॉ. दीपंकर गुप्त (कवि एवं पत्रकार)
प्रबन्धक : आशी पब्लिक स्कूल, एम-1, शकूरपुर, दिल्ली।

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