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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in अध्यात्म, अप्रैल -२०१२
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भारतीय मनीषा में श्री हनुमान जी का चरित्र अपूर्व है और विशेष स्थान रखता है। श्री हनुमान जी एक ऐसा चरित्र है, जिसकी आराधना धन से व्यक्ति को पग-पग पर स्फूर्त्ति मिलती है और उसका आत्मविश्वास निरंतर बढ़ता है। हिन्दूधर्म में तैंतीस करोड़ देवताओं की मान्यता है। इन सभी देवताओं में श्री हनुमानजी का स्थान सर्वोच्च है। ये एक ऐसे देवता हैं, जो व्यक्ति के मन में आत्मविश्वास पैदा कर देते हैं, व्यक्ति निर्भय बन जाता है और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्वयं को समर्पित कर देता है। हनुमान शक्ति, बल, विश्वास, निर्भयता और निष्काम, समर्पण के प्रतीक देवता हैं। उनके स्वरूप चिंतन से ही मन का विश्वास दृढ होता है और उत्साह की धारा बहने लगती हैं। इसीलिए यह देखा जाता है कि परीक्षा के समय बड़ी संख्या में विद्यार्थी श्री हनुमान जी के मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। हनुमान मंदिर में विद्यार्थियों की लम्बी-लम्बी कतारें यह दर्शाती हैं कि हनुमत दर्शन से आत्मविश्वास बढ़ता है और उत्साह में वृद्धि होती है। इसी प्रकार से रोग शोक से मुक्त होने तथा शांति प्राप्त करने के लिए भी लोग श्री हनुमत उपासना करते हैं और अनुभव यह है कि लोगों को चमत्कारिक परिणाम मिले हैं। उन्हें सांसारिक पाप, ताप और शाप से मुक्ति मिलती है। जीवन की निराशा समाप्त होती है। इस कारण पुरातन काल से श्री हनुमान एक अलौकिक देवता के रूप में संपूर्ण हिन्दू समाज के वंदनीय एवं पूजनीय बने हुए हैं।

श्री हनुमान जी की इस मंगल मुर्त्ति और विघ्न विनाशक व्यक्तित्व का प्रभाव यह है कि विदेशों में विशेषरूप से भारतीय आप्रवास (डायसपोरा) अर्थात जहां जहां भारतीय जन विदेशो, जैसे- मारीशस, फिजी, ब्रिटिश गियाना, त्रिनिदाद, सुरीनाम आदि देशो में जाकर बसे, वहां हर हिन्दू के घर के सामने भगवान श्री हनुमान का छोटा सा मंदिर होता है, जिस पर दो पताकाएं लगी रहती हैं- एक सफेद जो सूर्य का प्रतीक होती है और दूसरा भगवा जो हिन्दुत्व और त्याग का प्रतीक होती हैं। प्रतिदिन व्यक्ति जब घर से बाहर जाता हैंं तो भगवान श्री हनुमान जी को प्रणाम करता है और जब अपने काम से घर वापस आता है तो श्री हनुमान जी को प्रणाम करके घर में प्रवेश करता हैं। लोगों का विश्वास है कि श्री हनुमान जी ऐसे देवता हैं, जिनकी कृपा से सभी प्रकार के संकट नष्ट होते हैं और घर में सुख, संपन्नता और समृद्धि रहती हैं। मारीशस आदि भारतीय आप्रवास देशों में बसे हिन्दुओं का यह अटल विश्वास है कि कठिन समय में उनके पूर्वजों को केवल श्री हनुमान जी ने संकट से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए यह परंपरा आज भी वहां बड़ी निष्ठा के साथ निभाई जा रही है।

हनुमान के इस अलौकिक आध्यात्मिक व्यक्तित्व और देवत्व को छोड़कर यदि हम लौकिक रूप से भी श्री हनुमान के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को देखे तो भी हनुमान जी के चरित्र में उन सभी गुणों के दर्शन होते हैं, जो कि एक श्रेष्ठ और कुशल व्यक्ति मे होने चाहिए। वे श्रेष्ठ प्रबंधन विशेषज्ञ के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनकी सफलता सदैव चरण पखारती है। श्री हनुमान के गुणों की चर्चा महर्षि वाल्मीकि ने भगवती सीता के मुख से कराई है। अशोक वाटिका में जब श्री हनुमान जी माँ सीता का पता लगाने पहुंचते हैं और उनका सीता से साक्षात्कार होता है, तो इस पहले मिलन में ही सीता श्री हनुमान के गुणों से प्रभावित हो जाती हैं और कहती हैं

यस्य त्वेतानि चत्वारि वानरेन्द्र यथा तव।
धृतिर्दृष्टिर्मतिदाश्यं स कर्मसु न सीदति॥

वानरेन्द्र! जिस पुरुष में तुम्हारे समान धैर्य, सुझबूझ, बुद्धि और कुशलता- ये चारों गुण विद्यामान हैं, वह अपने कर्म में कभी असफल नहीं होता।
धीरता, गम्भीरता, प्रत्युत्पन्नमतित्व, निरभिमानता, सुशीलता, श्रद्धा और समर्पण भाव का अदभुत समन्वय श्री हनुमान के व्यक्तित्व में देखने को मिलता है, वैसा और किसी व्यक्तित्व में नहीं मिलता है। श्री हनुमान जी के चरित्र का विशद वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है। वाल्मीकि रामायण मे मुख्य रूप से श्री हनुमानजी के चरित्र की चार विशेषताएं देखने को मिलती हैं। आज के आधुनिक युग में जीवन में सफलता के लिए ये इन चार विशेषताओं की बड़ी आवश्यकता है।

हनुमान अतुलित बल और शक्ति के महासागर हैं। उनके लिए कोई भी काम असंभव नही है अत: उनका यही रूप व्यक्ति के मन का आत्मविश्वास से भर देता है। वाल्मीकि रामायण में भी जाम्बवान के निम्न वचन श्री हनुमानजी के बुद्धि, बल, तेज और सत्व को दर्शाते हैं।

बलं बुद्धिश्च तेजश्च सत्वं च हरिपुंगव।
विशिष्टं सर्वभूतेषु किमात्मानं न बुध्यसे॥

हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हारा बल, बुद्धि, तेज तथा सत्व (उत्साह) समस्त प्राणियों से कहीं अधिक और विशिष्ट है। फिर तुम अपना स्वरूप क्यों नहीं पहचानते। श्री हनुमाहनजी ने उन्हीं गुणों का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने मानस के सुंदरकाण्ड के मंगलचरण के निम्न श्लोक में किया

अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहं
दनुजवन कृशानुं ज्ञानिनामाग्र गण्यं
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं
रघुपति प्रिय भक्त वातजातं नमामि

जिनका बल अतुल है, स्वर्ण पर्वत के समान देह है जो राक्षसों के वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, ज्ञानियो में अग्रगण्य, सभी मानवीय गुणों के निधान, ऐसे वानराधिपति रघुनाथजी के प्रिय भक्त, पवनपुत्र को हम प्रणाम करते हैं।

महर्षि वाल्मिकी ने कहा है श्री हनुमान बड़े बुद्धिमान ज्ञानियों में अग्रगण्य है। अपार बल के साथ साथ असीम बुद्धि के निघान हैं।
उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान से प्रभावित होकर श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं

नानृग्वेदविनीतस्य ना यजुर्वेद धारिण:
ना सामवेद विदुष: शक्यमेवं विभाषितुम्

श्री रामजी कहते हैं- हे लक्ष्मण यह केवल वेद पाठी ही नहीं हैं और इस ने केवल बेदाध्ययन ही नहीं किया है, अपितु व्याकरण आदि वेदाङ्गों का भी इन्हें भलिभांति ज्ञान है। इन्होंने व्याकरण के अंगो का स्वाध्याय भी किया और सबसे बड़ी बात उनके मुख से कोई अपशब्द, उनके अशुद्ध शब्द नहीं निकला। अर्थात हनुमान जी परम विद्वान थे औंर वह विद्वता उनके शरीर के हाव-भाव, तथा उनकी वाणी से उसी प्रकार अभिव्यक्त भी होती है। एक समय जब श्री राम ने उनसे पूछा कि तुम कौन हो? तो हनुमान जी का उतर उनकी विद्यता और उनकी प्रत्युत्पन्नमति का उदाहरण है- हनुमान जी कहते हैं-

देहदृष्ट्या, तु दासोऽहं जीवदृष्ट्या त्वदंशक:।
वस्तुतस्तु त्वमेवाहमिति मे निश्चिता मति:॥

अर्थात – देह दृष्टि से मैं आपका दास हूं और जीव दृष्टि से मैं आपका ही अंश हूं तथा परमार्थ दृष्टि से जो आप हैं, वही मैं हूं ऐसी मेरी निश्चित धारणा है।
ऐसी मान्यता है कि श्री हनुमान जी ने साक्षात सूर्य नारायण से शिक्षा-ग्रहण की थी। तुलसी ने श्री हनुमान जी को ज्ञान का ही विग्रह माना है- वन्दे विशुद्ध विज्ञानो कवीश्वर कपीश्वरौ हनुमान का तीसरा गुण- उनका श्रेष्ठ वक्ता होना है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के ज्ञान और उसके व्यक्तित्व की पहचान उसके वक्तव्य या वाणी से होती हैं। श्री हनुमान जी अनुपम वक्ता थे। किस समय, क्या, कितना और कैसे बोलना चाहिए- यह गुण यदि सीखना हो तो श्री हनुमान जी से सीखना चाहिए। श्री राम लक्ष्मण से प्रथम मिलन के अवसर पर हनुमानजी ने श्रीराम को अपनी वाणी से प्रभावित कर लिया था। श्रीराम की सुग्रीव से मैत्री कराने में सबसे बड़ी भूमिका श्री हनुमान जी की ही थी। एक अच्छा राजनयिक किस प्रकार अपने तकों के माध्यम से दूसरे पक्ष को अपने पक्ष में कर सकता है- इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण श्री हनुमान का वह वक्तव्य है, जो श्री राम-लक्ष्मण को सुग्रीव का मित्र बना देता है।

लंका में प्रवेश करते समय लंकिनी को अपनी वाणी से प्रभावित करना और बाद सीता को श्रीरामदूत होने का विश्वास दिलाना, सरल नहीं था, किन्तु हनुमान ने अपनी वाक्पटुता से इस अति कठिन कार्य को सरल कर दिया था। रावण की सभा में नि:शंक श्री हनुमान जी केवल अपने वचनों से दशानन को निरुत्तर कर देते हैं। श्री हनुमान जी का चौथा तथा सबसे महत्वपूर्ण गुण है अपने कर्तव्य और सेवा के प्रति उनका सदैव तत्पर रहना। विदुर नीति में श्रेष्ठ सेवक गुणों का वर्णन इस प्रकार किया गया हैं।

अभिप्रायं यो विदित्वा तु भर्तु: सर्वाणि कार्याणि करोत्यतन्द्री:
वक्ता हितानुमरुक्त आर्य शत्तिज्ञ: आत्मेव हि सोऽनुकमय:

वह सेवक श्रेष्ठ होता है, जो स्वामी के अभिप्राय के समझुकर आलस्यरहित हो समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने वाला, स्वामी भक्त, सज्जन और अपने नियोजक या स्वामी की शक्ति को जाननेवाला है ऐसे व्यक्ति को अपने समान समझजा चाहिए और उसके साथ वैसा ही अपने समकक्ष व्यवहार भी करना चाहिए।

हनुमानजी के समग्र व्यक्तित्व में विनयशीलता, अनुशासन तथा कार्य के प्रति समर्पण की भावना दृष्टिगोचर होती है। सुंदरकांड के प्रारंभ में समुद्र पार करते समय मैनाक पर्वत हनुमान से तनिक विश्राम कर लेने का अनुरोध करता है तब हनुमान जी का उत्तर देखिए-

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कोन्ही प्रनाम।
राम काज कीन्हे बिना मोहि कहां विश्राम॥

श्री हनुमान जी अहंकार से नहीं, बल्कि बड़ी विनम्रता से मैनाक का स्पर्श करते हैं और हाथ जोड़ कर कहते हैं कि श्री राम के काम को पूरा किए बिना मुझे कहां विश्राम है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो निष्ठा, तत्परता श्री हनुमान के चरित्र की विशेषता है। आज के परिप्रेक्ष्य में जो सफलता की गारंटी मानी जा सकती है।

वर्तमान अर्थयुग में, जब संपूर्ण व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा और गलाकाट प्रतियोगिता चल रही हैं, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के वे सभी गुण आवश्यक हैं, जो श्री हनुमान जी के चरित्र और व्यक्तित्व में देखने को मिलते हैं। इन सभी गुणों का अनुकरण और अनुसरण सफलता की गारंटी है। श्री हनुमान का तत्व चिन्तन आज के युग की आवश्यकता है। यदि व्यक्ति श्री हनुमानजी के चरित्र से सेवा और समर्पण के दो तत्वों को स्वीकार कर लें तो उस व्यक्ति की सफलता में कोई संदेह नहीं होता है। हिन्दू मनीषा में श्री हनुमान बुद्धि और बल के समुच्चय हैं। उनमें बाह्य और आंतरिक शक्ति के समन्वय और तदनुसार उसको समर्पण भाव से उपयोग में लाने की अपूर्व विशेषता है। यही विशेषता श्री हनुमान जी को अन्य देवों से अधिक लोकप्रिय और प्रतिष्ठा प्रदान करती है। यही कारण है कि आज भारत क्या संपूर्ण विश्व में जितने मंदिर श्री हनुमान जी के हैं, उतने अन्य किसी देवता के नहीं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मंदिर किसी भी देवता का हों श्री रामजी का हो या राधा कृष्ण का हो या फिर भगवान शंकर का हो श्री हनुमान जी का विग्रह होना, मंदिर की पूर्णता के लिए आवश्यक है। किन्तु यदि केवल श्री हनुमान जी का मंदिर हो तो फिर किसी अन्य देवता के विग्रह की आवश्यकता नहीं होती है।

साधना और सेवा के क्षेत्र में श्री हनुमान जी आदर्श के सुमेरु हैं मारीशस के मानस मर्मज्ञ श्री राजेन्द्र अरुण ने अपनी पुस्तक ‘रोम रोम में राम’ में श्री हनुमान जी के चरित्र का बड़ा ही विशद और मार्मिक वर्णन किया है। मारीशस में सभी हिन्दू हनुमान भक्त हैं। उनका मानना है कि ब्रिटेन की गुलामी के समय वहां के भारतीय गिरमिटिया मजदूरों ने केवल राम और हनुमान के सहारे सभी बाधाओं और आपदाओं का डट कर मुकाबला किया। श्री अरुण कहते हैं जो हनुमान को मानते हैं वे संसार से डरते नहीं, वे किसी आपत्ति-विपत्ति को प्रभू का प्रसाद समझकर सदैव अपने कर्तव्य को पूरा करने में लगे रहते हैं। हनुमान आज हमारे सबके लिए प्रेरणा के पुंज हैं। ‘‘हनुमान आज हमारे लिए बहुत प्रेरक हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि आदमी को अपने गुणों का विकास करते हुए केवल अच्छे कामों में लगाना चाहिए। आज का संसार भौतिक तथा आर्थिक विकास के राजमार्ग पर है। प्रकृति के रहस्य को वह अपने बल-बुद्धि से भेदता जा रहा है। ऐसे समय में यदि सेवा और समर्पण की भावना और संसार के विनाश की नहीं, संरक्षण की कामना उसके भीतर न रही तो सभी वैज्ञानिक अनुसंधान रावण बन जाएंगे। विनाश की ज्वाला धधक उठेगी। इस सृष्टि को के हनुमान की बुद्धि से ही बचाया जा सकता है।’’ आइए हनुमान जयंती के पावन अवसर पर प्रार्थना करें कि हम सब में हनुमत् दृष्टि पैदा हो और हम सेवा और भक्ति की भावना से मानवता का कल्याण करने के लिए तत्पर हों।

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