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वास्तुशास्त्र वाकई क्या है?

वास्तुशास्त्र वाकई क्या है?

by डॉ. रविराज अहिरराव
in अप्रैल -२०१२, वास्तुशास्त्र
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वास्तुशास्त्र वाकई क्या हैं? उससे वास्तव मेंं क्या होता हैं? यह विज्ञान है कि अंधश्रद्धा? ऐसे के कई सवाल आम आदमी के मन में उभरते हैं। यह स्वाभाविक है कि किसी भी विषय की पूरी जानकारी होते तक उस संबंध में आशंकाएं होती ही है। आपकी आशंकाओं को दूर करने का यहां प्रयत्न किया गया हैं।

वास्तुशास्त्र नामक प्राचीन वैदिक विद्याशास्त्र का हम पहले उचित अर्थ एवं व्याख्या जान लें। वास्तु मूल संस्कृत शब्द है, जो वस् इस धातु से बना है। वस् याने रहना, बस्ती करना, वास्तु यानि घर बनाने के लिए उचित जगह। अमरकोश में इसे निवास की जगह अथवा निवास स्थान के लिए के लिए प्रयोग में लाई गई जगह के रूप में परिभाषित किया गया है। वास्तु + शास्त्र। ‘शास्त्र’ याने ‘विज्ञान’, विशिष्ट विषय का ज्ञान। दूसरे शब्दों में वास्तुशास्त्र का माने है घर या इमारत बनाने का शास्त्र।
महाभारत काल में मयसभा निर्माण करने वाले मय वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन निर्माण और मानवनिर्मित वास्तुओं का आरेखन व निर्माणकार्य का परम्परागत भारतीय संस्कृति से प्राप्त ज्ञान अर्थात वास्तुशास्त्र। यह प्राचीन शास्त्र केवल भवन की रचना अथवा निर्माणकार्य तक सीमित न होकर इसमें जगह का चयन, दिशा निर्णय, निर्माणकार्य का आरेखन, भूमि परीक्षण भी शामिल है। मत्स्य पुराण में भृगु, अत्रि, वशिष्ठ विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नाजित, विशालाक्ष:, पुरंदर, ब्रह्मा, कुमारस्वामी, नंदिसा, शौनक, भार्गव, वसुदेव, अनिरुध्द, शुक्र और बृहस्पति इस तरह कुल 18 वास्तु विशारदों का उल्लेख मिलता है। इस पुराण के जरिए उनका सामर्थ्य, उनके विचारों व बुध्दि का विशुध्द स्वरूप, उनकी दूरदर्शिता और उनके योगदान की हम कल्पना कर सकते हैं।

भारतीय ऋषि‡मुनियों ने अपने सामर्थ्य से अनेक शास्त्रों का निर्माण किया है। इनमें आयुर्वेद, ज्योतिष, योग, संगीत, वास्तुशास्त्र का मुख्य रूप से समावेश होता है। इन शास्त्रों में एक समान सूत्र है। वह यह मूल भारतीय चिंतन है कि सृष्टि की निर्मिति अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश इन पंचमहाभूतों से हुई है। वास्तुशास्त्र में पांचों तत्वों का उपयोग किया जाता है। अन्य शास्त्रों की तरह वास्तुशास्त्र भी मानव के कल्याण के लिए बना है।

वास्तुशास्त्र के संदर्भ में ‘पंचमहाभूत’ की संकल्पना के तात्विक सिध्दांतों को पहले समझ लें। ब्रह्मांड से वैश्विक ऊर्जा का निर्माण होकर वह सब ओर फैलती है। यह ऊर्जा पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश इन पंचमहाभूतों के रूप में प्रकट होती है। हमारी सृष्टि की निर्मिति इन पांच महाभूतों के तत्वों से हुई है। हर बात का अस्तित्व इन पांच महाभूतों से नियंत्रित होता है। वास्तुशास्त्र की दृष्टि से इन पंचमहाभूतों का क्या महत्व है इसे अब जान लें।

आकाश: पंचमहाभूतों में से प्रथम प्रकट होने वाला तत्व आकाश है। आकाश नामक तत्व का विस्तार अनंत है। उसका कोई अंत नहीं है। आकाश यानि अवकाश पर ही शेष चार पंचमहाभूत निर्भर होते हैं। वास्तुशास्त्र में वास्तु के केंद्रस्थान में, ब्रह्मस्थान में आकाश तत्व का प्रभाव होता है।

वायु: पंचमहाभूतों में से दूसरा तत्व है वायु। वायु का माने है वैश्विक श्वास। धरती के सभी सजीवों को जीवंतता और चैतन्य देने वाली शक्ति। वास्तुशास्त्र में वायु वायव्य दिशा पर नियंत्रण रखता है। मानवी शरीर में श्वसन संस्था की सहायता से श्वासोच्छवास के जरिए प्राण मौजूद रहता है वह वायु तत्व के कारण।

अग्नि: अग्नि तीसरा महाभूत है। वायु का सहयोगी यानि अग्नि। अग्नि को वायु ही क्रियाशील बनाता है और अग्नि में प्राण फूंकता है। अग्नि सभी पदार्थों को ग्रहण कर भस्मीभूत करता है। अग्नि में पदार्थ का स्वरूप बदलने व शुध्दिकरण की अद्भुत क्षमता है। किसी भी वास्तु में आग्नेय दिशा में अग्नि का प्रभाव और वास्तव्य होता है। अग्नि तत्व जीवंतता, चैतन्य और उत्साह का प्रतीक है।

जल: सजीव सृष्टि का मूल आधार जल अर्थात पानी है। प्रत्येक सजीव में विशिष्ट मात्रा में पानी का अंश होता ही है। तीन चौथाई पृथ्वी की सतह पर पानी से व्याप्त है। जल तत्व पर मानवी जीवन निर्भर है। वास्तुशास्त्र में पानी की दिशा ईशान्य मानी गई है। पानी समृध्दि और जीवंतता का लक्षण है।

पृथ्वी: जल, अग्नि व वायु का अधिष्ठान पृथ्वी ही है। पृथ्वी का माने जमीन है। चुंबकीय शक्ति और गुरुत्वाकर्षण के बल का पृथ्वी की चराचर सृष्टि पर परिणाम होता है। वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा पृथ्वी तत्व के नियंत्रण में आती है। पृथ्वी तत्व ईंट, रेत, पत्थर के रूप में वास्तु में समाविष्ट होता है।

वास्तु के पंचमहाभूत लगातार लेकिन अदृश्य रूप में मानव और उसके आसपास के सम्पर्क में होते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन की या घर की विशिष्ट रचना करने पर मनुष्य अपने जीवन में आवश्यक बदलाव ला सकता है और जीवन में निश्चित ही सुधार कर सकता है। देश के अनेक मंदिरों और प्राचीन वास्तुओं का निर्माण वास्तुशास्त्र पर आधारित है। मानवी जीवन की हर बात पर वास्तुशास्त्र का प्रभाव होता है। संक्षेप में कहें तो सुख, शांति, समृध्दि, स्वास्थ्य ये सभी बातें व्यक्ति को वास्तुशास्त्र के माध्यम से प्राप्त होती है। समृध्दि का मतलब धन का आगम, वह टिकना, उसका उचित कारणों के लिए उपयोग होना आदि सभी बातें वास्तुशास्त्र पर निर्भर होती हैं। बच्चों का शैक्षणिक विकास, परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य, सदस्यों के बीच सामंजस्य, घर में विवाद या झगड़े न होना, सर्वदूर शांति और प्रसन्नता ये सभी बातें वास्तुशास्त्र पर निर्भर होती हैं। दूसरे शब्दों में आपके घर की रचना का इन सभी बातों पर प्रभाव पड़ता है। पति‡पत्नी के बीच सम्बंध, उससे सुखी संसार या परिवार और संतान प्राप्ति पर भी वास्तुशास्त्र का प्रभाव पड़ता है।

वास्तुशास्त्र केवल निवासी वास्तु तक ही सीमित नहीं होता। पैर रखने के लिए जमीन, सिर छिपाने के लिए छत, चारों ओर की दीवारें, दरवाजें और खिड़कियां आदि प्रत्येक निर्मिति, जहां मनुष्य का संचार होता है और उपयोग होता है ऐसी सभी वास्तुओं को वास्तुशास्त्र के नियम लागू होते हैं। इसी कारण प्राचीन काल से चला आ रहा यह वास्तुशास्त्र निश्चित रूप से प्रभावी है।

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