हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
भावरूप राम

भावरूप राम

by डॉ. दिनेश प्रताप सिंह
in अप्रैल -२०१२, सामाजिक
0

मानवीय चेतना की चरम अवस्था में ‘राम’ नाम की अनुभूति और प्रतीति शब्दातीत हो जाती है। राम के इस आध्यात्मिक भावनात्मक स्वरूप का आचमन करने हेतु किसी भी प्राणी के लिए तपबल से अर्जित पुण्य नितान्त आवश्यक है। मनुष्य रूप में तो बिरले ही होते हैं, जिन्हें ‘राम’ के विविध रूपों की सुरसारि में अवगाहन करने का अवसर मिल पाता है। नि:सन्देह यह सिद्धि ऋषियों, मुनियों, तपस्वी-साधकों, सन्त-महात्माओं और शुद्ध-सात्विक-सरल मन वाले भक्तों को ही प्राप्त होती है।
राम के रूप बहुभांति हैं। वे निर्गुण हैं, सगुण हैं। ब्रह्म है, जीव हैं। वे नर भी हैं और नारायण भी हैं। वे विष्णु के रूप में सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं। तभी तो बाबा तुलसीदास ने डंके की चोट पर कहा, ‘सबहि नचावत राम गुंसाई’। अर्थात इस सृष्टि में जो कुछ भी घटित होता है, वह सब कुछ राम की इच्छा से ही संचालित होता है। व्यापक दृष्टि से अवलोकन किया जाये तो मिलता है कि राम ही सृजन हैं, राम ही संहारक हैं। राम ही आधार हैं, अवलम्ब हैं, आकार हैं। वे परम कृपालु हैं। उनकी कृपा से ही हम भूलोक में अवतरित हुए और उनकी ही कृपा है कि हम भौतिक चक्षुओं से हम उनकी विविध रचनाओं का दर्शन कर रहे हैं।
भारत एक धर्मप्राण देश है। यहां के जन-जन के आराध्य राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा, गणेश हैं। ये ही भारतीय संस्कृति के आधार हैं। इनके द्वारा ही साहित्य, कला, संगीत का प्रतिपादन हुआ है। देश भर में जितनी भी भाषाएं, और बोलियां हैं, सभी इनके गुणों का बखान करती हैं। और देश के प्रत्येक समाज में- चाहे वे नागर हों या ग्रामीण, वनवासी हों या गिरि-बाहवरवासी, सुसंस्कृत हों या प्राकृतिक रूप में, उनके जीवन में व्याप्त रीति-रिवाज, तिथि-त्योहार, पर्व-उत्सव और लोक परम्परा राम-कृष्ण मय है।

दुनिया में राम जैसा दूसरा चरित्र नहीं मिलेगा, जिस पर इतना अधिक लिखा, कहा, बोला और गाया गया है। उनका वर्णन सबने अपने-अपने ढंग से किया है, परन्तु सबमें एक ही बात है, वह है भगवान श्रीराम चरित्र का वर्णन। सबने राम को अपनी-अपनी दृष्टि से देखा है, इस लिए राम कथा भी विविध प्रकार की है। रामकथा की विविधता ही उसके सौन्दर्य में वृद्धि करती है। विभिन्न रूपों में तथा भिन्न-भिन्न तरीके से रामकथा प्रस्तुत होने पर भी कहीं पर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं है, क्योंकि राम के प्रति आस्था, श्रद्धा और भक्ति सभी एक समान रखते हैं। तभी तो रामकथा हरभाषा की कथावस्तु बनी, लोकगीतों व लोककथाओं की विषयवस्तु बनी। रामकथा जाति, पंथ, भाषा, क्षेत्र, मत, सम्प्रदाय की सीमाओं से परे है। संस्कृत में महर्षि वाल्मीकि, अवधी में गोस्वामी तुलसीदास, तमिल में महर्षि कम्ब, मराठी में सन्त एकनाथ, बंगाली में महाकवि कृतिदास ओझा, तेलुगु में गोनबुद्धा रेड्डी, कन्नड़ में पम्पनागचन्द्र, मलयालम में तुनवत्त एलुताच्चम, उर्दू में विमस सूरि ने राम कथा को लिखा तो ओड़िया में सारलादास, असमिया में शंकर देव, गुजराती में गिरधर, कागड़ी में कवि रिषदेव डोगरा, पंजाबी में सोढ़ी मिहिरवान, बांग्ला में महिला कवि चंद्रावली ने रामकथा का रोचक ढंग से सांगोपांग वर्णन किया। इतना विस्तृत साहित्य लिखित रूप में उपलब्ध है, जबकि अलिखित रूप में न जाने कितने लोकगीत, संस्कारगीत, लोककथाएं भारत में और भारत के बाहर अन्य देशों में प्रचलित हैं। यह सब श्रीराम की लोकप्रियता और स्वीकार्यता को प्रकट करता है।

यद्यपि दुनिया के प्रत्येक भाग में किसी न किसी रूप में श्री राम कथा का पठन, वाचन, श्रवण, मनन हर समय होता रहता है, किन्तु यह श्रीराम के चरित्र की विशेषता ही है कि उसका गुणगान जितनी बार भी सुना जाए, मन नहीं अघाता और हर बार कुछ न कुछ नयापन लिए हुए आभाष होता है।

भारतीय साहित्य में सर्वाधिक श्रीराम पर ही रचनाएं मिलती हैं। जो उनके प्रभुत्व को स्वीकारते हैं, वे भी और जो नहीं स्वीकारते, वे भी दोनों विचार को साहित्यकारों ने खूब लिखा है। उन सबको एक ग्रन्थ में समाहित करना असम्भव है। यह तथ्य अखिल भारतीय साहित्य परिषद को भी ज्ञात है। फिर भी प्रभुराम के विविध रूपों में से एक रूप ‘भावरूप’ को केन्द्र में रखकर देश भरके रामकथा मर्मज्ञ विद्वानों के श्रीमुख से श्रीराम का चरित्र सुनने-सुनवाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में देश भर के लगभग डेढ़ सौ विद्वानों ने सहभागिता की। उनमें से लगभग 85 विद्वानों के शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 23 विद्वानों के शोधपत्र संगोष्ठी में पढ़े गये। देश की उन्नीस भाषाओं में वर्णित रामकथा पर लेख प्राप्त हुए।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद, महाराष्ट्र द्वारा आयोजित संगोष्ठी में परिषद की त्रैमासिक पत्रिका ‘साहित्य परिक्रमा’ के ‘भावरूप राम’ विशेषांक का प्रकाशन हुआ। यह श्रीराम कथा पर एक अद्भुत ग्रन्थ है। इसमें श्रीराम के ‘भावरूप’ पर हिन्दी, संस्कृत, तमिल, तेलगू, मलयालम, मराठी, गुजराती, असमिया, ओडिया, मणिपुरी, पंजाबी, डोगरी, कन्नड, मैथिली, बांगला सहित सभी भाषाओं के विद्वानों के लेख संकलित हैं। श्री श्रीधर पराडकर, डॉ. देवेन्द्र दीपक, डॉ. बलवन्त जानी, डॉ. रमानाथ त्रिपाठी, श्रीमती क्रान्ति कनाटे, डॉ. विद्या केशव चिटको, डॉ. रामेश्वर प्रसाद मिश्र ‘पंकज’, डॉ. विनय राजाराम, डॉ. चन्द्रभूषण पाण्डेय, श्री दिवाकर वर्मा, श्री रवीन्द्र शुक्ल, डॉ. एस. शेषारत्नम् जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने अपने विचारों से ग्रन्थ को समृद्ध किया है।

श्रीराम कथा पर संकलित यह अत्युत्तम ग्रन्थ पठनीय और संग्रहणीय है।
‡‡‡‡‡‡‡‡‡

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: emotionalhindi vivekhindi vivek magazinehindu godramvishnu

डॉ. दिनेश प्रताप सिंह

Next Post
उपभोक्ता संरक्षण कानून के 25 वर्ष

उपभोक्ता संरक्षण कानून के 25 वर्ष

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0