ऐतिहासिक, अद्भुत, etettable!

चालीस साल पहले जब मैं झाबुआ में कलेक्टर था तो हमने लोगों के लिए रोजगार देने की योजना बनाई। लेकिन उसमें जन सहभागिता नहीं थी। सब कुछ हम ही निर्णय लेते थे। लेकिन शिवगंगा समग्र ग्रामविकास परिषद के इस प्रयास में सब निर्णय ग्रामीण ही करते हैं और स्वयं बनाने के कारण कहीं भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही नहीं रहती। सारी चीजें स्वयं बनाकर स्वयं संभालते हैं, स्वयं ही सुरक्षा करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि यदि लोग जागृत हो तो समस्या का समाधान स्वयं ढूंढ लेंगे।

शिवगंगा समग्र ग्राम विकास परिषद के काम को देखने के लिए मैं हाल ही में झाबुआ गया। परिषद का काम देखकर मैं चकित रह गया।

झाबुआ जिला (वर्तमान में दो जिलों में विभाजित हुआ है- झाबुआ व अलीराजापुर, लेकिन इस प्रस्तुति में झाबुआ ही कहा जाएगा) की आबादी 14.5 लाख है। 1320 गांवों में वास करने वाली इस आबादी का 87 प्रतिशत वनवासी है। भील व भिलाला समूह के इन लोगों में से 90 प्रतिशत के पास एक एकड़ से कम जमीन है। हालांकि जिले में 900-1000 मि.मी. वर्षा होती है लेकिन पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण पानी नीचे बह जाता है और 6 से 8 महीने सूखा ही रहता है। यानी गरीबी, अकाल और बड़ी मात्रा में लोगों का शहरों की ओर पलायन- रोजगार की तलाश में।

शिवगंगा समग्र ग्राम विकास परिषद एक स्वायत्त संस्था है जो झाबुआ के वनवासियों का समग्र विकास हेतु समर्पित है। परिषद का लक्ष्य है, जनजातीय युवा जागरण व प्रशिक्षण के माध्यम से ग्राम विकास।

ग्राम सर्वेक्षण से यह पता लगाया गया कि हर गांव में 15 से 35 वर्ष के बीच की आयु वाले 35-40 युवा रहते हैं। ये युवा अपना शेष जीवन गांवों में बिताने को निश्चय कर चुके होते हैं। परिषद उनमें से कुछ लोगों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षण देती है। प्रशिक्षण के विषय कुछ इस प्रकार होते हैं-

तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर (80 ग्रामों के समूह)

1. ग्राम को कैसे संगठित किया जाए (ग्राम का नक्शा बनाकर)
2. गांव की समस्याएं, कारण, निवारण और उपाय को पहचानना
3. गांव में खेल व सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रारंभ करना।
4. अब तक 400 गांवों के 400 युवा प्रशिक्षित किए जा चुके
हैं।

आठ दिवसीय उच्च प्रशिक्षण शिविर

यह शिविर इन्दौर व भोपाल जैसे बड़े शहरों में आयोजित किए जाते हैं। ऐसे युवकों को प्रशिक्षण देते हैं जो केवल अपने गांव में ही नहीं बल्कि पड़ोसी गांव में भी कार्य करना चाहते हैं। इस प्रशिक्षण में पुलिस थाना, जिला कचहरी, अस्पताल, कृषि विद्यालय, कृषि मण्डी एवं संग्र

हालय आदि पर जाना, सम्पर्क करना सिखाया जाता है। रोजमर्रे के काम की जानकारी देना इसका मुख्य उद्देश्य है।
अब तक 250 गांवों के 1100 युवक प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।

ग्रामीण इंजीनियर प्रशिक्षण

झाबुआ के विकास में मुख्य बाधा है- पानी का अभाव। स्वावलंबन के लिए वर्षाधारित खेती को बढ़ाना होगा। इसके लिए जल संग्रह करना आवश्यक है, जो सांकेतिक ज्ञान के बिना संभव नहीं है। प्रत्येक गांव से दो युवकों को चुनकर उन्हें इन्दौर के नामी सांकेतिक संस्थान में प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें ग्राम इंजीनियर कहते हैं।

अब तक 700 ग्राम इंजीनियर तैयार हुए हैं।

इसके अलावा शिवगंगा समग्र ग्राम विकास परिषद हर साल जलयात्रा/गेति यात्रा (पानी के लिए यात्रा) का आयोजन करती है। हजारों ग्रामीण गेती व फावड़ा लेकर इस यात्रा में भाग लेते हैं। यह यात्रा गांवों व कस्बों से गुजरती हुई जल संधारण का संदेश देती है। 2011 में आयोजित यात्रा 500 कि.मी. की रही जिसमें 1000 ग्रामों के 2,50,000 लोगों ने भाग लिया। इन भगीरथ प्रयासों के फलस्वरूप झाबुआ के गांवों में जल के प्रति जागरूकता तीव्र हुई।

जल संरक्षण के अलावा ग्रामीणों के ज्ञानवर्धन का एक बड़ा उपक्रम भी परिषद द्वारा चलाया जा रहा है। इस हेतु अब तक 900 गांवों में 900 पुस्तकालय प्रारंभ किए गए। परिषद के कार्यकर्ता ग्रामीणों को एकत्रित कर पुस्तक वाचन के लिए प्रेरित करते हैं। गांव वासियों के लिए उपयोगी विषयों पर किताबें चुनी जाती हैं और पुस्तकालय में रखी जाती हैं। कई बार कार्यकर्ता स्वयं पढ़कर सुनाता है और चर्चा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।

1. गत कुछ वर्षों में 5720 जल संग्रहालय तैयार किए गए हैं। 30 नये तालाब, 185 चैक डैम, हजारों ट्रेंचेस इनमें शामिल हैं। सैकड़ों हैण्ड पम्प ठीक कराए गए। 208 गांवों में ऐसे काम हुए। जल स्रोतों के निर्माण के लिए आवश्यक ईंट, मुर्रम, सीमेंट आदि खरीदने के लिए ग्रामीणों ने ही राशि दी। सामान ढ़ोने के लिए ट्रैक्टर नि:शुल्क उपलब्ध कराए गए।

2. मार्च, 2011 में 500 गांवों के 10,000 ग्रामीणों ने झाबुआ के निकट हाथीपावा में एकत्रित होकर केवल 6 घंटे की अवधि में 32,000 ट्रैंचेस का निर्माण कर दिया। एक साल पहले 1500 ग्रामीणों ने उसी क्षेत्र में 8,000 ट्रैंचेस का निर्माण किया। केवल एक साल में लोगों की भागीदारी कैसी बढ़ी,यह इससे स्पष्ट होता है।

3. ट्रैंचेस के निर्माण के कारण झाबुआ नगर एवं आसपास का भूगर्भ जल स्तर 100-150 फीट बढ़ गया। पहले पानी 300 फीट से अधिक नीचे था। यह वाकई एक अद्भुत परिवर्तन है।

जल संरक्षण का महाअभियान

इस वर्ष 28 फरवरी को शिवगंगा की ओर से श्रमदान का आयोजन किया गया। जिसने भी मानवीय श्रम की सार्थकता को प्रतिबिंबित करता यह सामूहिक प्रयास देखा उनके मुंह से अनायास शब्द निकले, ‘ऐतिहासिक, अदभुत, अविस्मरणीय!’ पांच हजार शिव साधकों (ग्रामीणों) ने झाबुआ की हाथीपावा पहाड़ी पर चार घंटे नि:स्वार्थ श्रमदान कर शिवजटा (जल संरचनाओं) का निर्माण किया, जहां वर्षा रूपी गंगा अवतरित होकर प्यासी धरती की कोख भरेगी। इसका लाभ शहरवासियों को मिलेगा। जल संरक्षण के इस महाभियान के लिए तड़के 6 बजे ही शिव साधक गैंती-फावड़ा व तगारी लेकर हाथीपावा की पहाड़ी पर चल पड़े थे। जल संरचनाओं के निर्माण के लिए स्थान पहले ही चिह्नित कर लिया था। अलग-अलग 12 सेक्टर में ग्रामीणों ने 7 बजे गैंती चलाना शुरू की। हर-हर, बम-बम और भारत माता के जयकारे के बीच उत्साह से लबरेज ग्रामीणों के श्रमदान में इंदौर, रतलाम, उज्जैन आदि क्षेत्रों से आए लोग भी सहभागी बने। 11 बजे तक चले इस श्रमदान के बाद पहाड़ी की तस्वीर बदल गई। नजारा ऐसा हो गया मानो खाली हाथों में किसी ने भाग्य की रेखाएं खींच दी हों।

इस अभियान की खासियत कुशल प्रबंधन का अद्भुत समन्वय रहा। इतने अधिक लोगों के बावजूद कहीं कोई अव्यवस्था नहीं दिखी। ग्रामीणों को भोजन के पैकेट पहले ही बांट दिए गए थे। श्रमदान के दौरान प्यास बुझाने के लिए पानी के एक लाख पाउच की व्यवस्था भी की गई।

शिवगंगा के जल संरक्षण अभियान को अंजाम देने के लिए जुटे 5 हजार ग्रामीणों ने बिना किसी स्वार्थ के काम किया। यदि यही काम सरकारी तौर पर होता तो इसमें 6 लाख 10 हजार रुपए खर्च होते। चूंकि मनरेगा में मजदूरी की दर 122 रुपए प्रतिदिन है।
शिवसाधकों ने 2 फीट चौड़ी, 2 फीट गहरी व 4 मीटर लंबी करीब 3 हजार रनिंग मीटर जल संरचनाओं का निर्माण किया है। बारिश के दौरान पानी इन जल संरचनाओं में संग्रहित होकर जमीन में उतरेगा।

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