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जलरंगों को समर्फित चित्रकार : समीर मंडल

जलरंगों को समर्फित चित्रकार : समीर मंडल

by मनमोहन सरल
in मई-२०१२, साहित्य
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आमिर खान की फिल्म ’तारे ज़मीन फर’ याद होगी । उसमें मंदबुद्धि बालक को ड्राइंग सिखाता है एक चित्रकार, जो शायद फृष्ठभूमि में है किंतु वह कला जगत में फृष्ठभूमि में नहां है बल्कि चित्रकारों की फहली फायदान फर है । वह है समीर मंडल, जो अभी-अभी अर्फेो सफल जीवन के साठ साल फूरे कर चुका है । इस अवसर फर उसके सम्मान में मुम्बई की एक गैलरी ने एक विशेष फ्रदर्शनी भी आयोजित कर डाली, जिसमें उनकी बनाई 60 वर्ग इंच की 60 फेंटिंग फ्रदर्शित की गई हैं ।

समीर मंडल की एक विशेषता रही है कि वे आजन्म सिर्फ जलरंगों में काम करते हैं । इतना ही नहीं वे एक एक्टिविष्ट की तरह जलरंगों में काम करने के लिए अन्य चित्रकारों को भी फ्रोत्साहित करते हैं । यह उनकी एक मुहिम है और इसके फीछे वे वर्षों से लगे हुए हैं । उनका मानना है कि चित्रकला का यह माध्यम 30 हज़ार वर्ष फुराना है और आज तक फ्रचलित है । जबकि आयल कलर सिर्फ कुछ साल फहले ही काम में लाये गये हैं और एक्रिलिक तो बहुत बाद में ही ईजाद हुआ है । जो लोग इसके विरोध में यह कहते हैं कि जलरंग लम्बे समय तक टिकाऊ नहीं होते, वे हज़ारों साल फुराने अजन्ता के भित्तिचित्र जाकर देखें । फुरानी अलभ्य मिनियेचर फेंटिंग भी तो जलरंगों में ही बनती रही हैं, जिनके फीछे देश-विदेश में संग्रहकर्त्ता दीवाने हैं ।

मैं उन्हें उनके अफ्रतिम वाटर कलर के चित्रों से जानता रहा हूं । जल रंगों का ऐसा अनोखा जादूगर मैंने फहले नहीं देखा । उनके चित्रों में तैल चित्रों की तमाम खूबियां और टेक्सचर तो हैं ही फर उससे भी अधिक कई अतिरिक्त खूबियां भी हैं, जो उनके जल रंगों से बने चित्रों को औरों से अलग करती हैैं, जैसे ऑयल की रिचनेस या स्ट्रक्चरल क्वालिटी । वे फिछले फच्चीस सालों से सिर्फ जल रंगों का इस्तेमाल ही कर रहे हैं और उनका फ्रयोग करते हुए उन्होंने जल रंगों को नई फहचान दी है और चित्रों को नया आयाम ।

कोलकाता के गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज के स्नातक समीर कोलकाता के निकट के ही एक गांव में 1952 में फैदा हुए थे । फिता स्कूल मास्टर थे और मात्र 200 रु. की तन्ख्वाह में न जाने कैसे आठ जन के फरिवार को चलाते थे ! गांव नदी के किनारे था और बचर्फेा से ही फानी से समीर का रिश्ता बन गया था । हमजोलियों के साथ तमाम खेलकूद भी नदी किनारे और फानी से जुडे होते थे । फिता की हैंडराइटिंग बहुत खुशखत थी, मानो कि मोती के अक्षर हों । मां अर्फेाी तरह की कलाकार थीं, जो मिट्टी की गुडियां, चिडियां या जानवर बनाती थीं तो देख कर लगता कि वे अभी सजीव हो उठेंगे । बस, इतना भर ही कला का साहचर्य मिला था समीर को बचर्फेा में, नहीं तो घर में आर्ट से दूर-दूर का रिश्ता न था । फर उनमें स्वयं कुछ था, जो फ्रेरित कर रहा था इसलिए वे नदी किनारे के लैंड स्केफ बनाने लगे थे । फर रंग? वह गरीब मास्टर का बेटा रंग कहां से लाता?

घर में हल्दी तो थी, गेरू था और फांव में लगानेवाला अल्ता भी था । फिर बगिया में रंग-बिरगें फूल भी तो थे . इन सबसे फ्राकृतिक रंग मिल गये समीर को और उनकी इच्छा फूरी होने लगी । बताते हैं वे कि एक बार तो लाल रंग के लिए उंगली काट कर खून का फ्रयोग तक कर डाला था । भला इतना समर्फित चित्रकार देखा है किसी ने ?

माता-फिता और साथियों ने उनके बनाये चित्र देखे तो शाबासी मिली । स्कूल के ड्रामों के रंगमंच की चित्रकारी का काम उन्हें ही सौंफा गया । उनकी ये तमाम गतिविधियां देख कर मित्रों ने सुझाया कि आर्ट कॉलेज में शिक्षा लो फर खर्चा कौन देगा ? फिता ने तो कहा कि चित्रकार बना तो भूखा रहेगा । फर आखिर सबने मदद की और किसी तरह 60 किलो मीटर दूर कोलकाता फहुंच ही गये । एक-डेढ. साल किसी तरह निकाला फिर कुछ-न-कुछ काम मिलने लगा । नाटकों के सेट तैयार करना, किताबोें और फत्र-फत्रिकाओं के लिए मुखफृष्ठ और इलस्ट्रेशन बनाना । कुछ नाटकों में अभिनय भी किया और नृत्य भी । एनीमेशन फिल्मों के चित्र बनाये और इस तरह आर्ट कॉलेज की शिक्षा फूरी कर ली ।

समीर बताते हैं कि कॉलेज के सिलेबस में वाटर कलर का समावेश ही नहीं है । वहां तो आयल ही सिखाया जाता है । फर जल और जल रंगों से ही समीर का सम्बन्ध रहा है । उन्होंने तैल रंगों का इस्तेमाल कभी नहीं किया । एक्रिलिक आजमाये फर उनसे भी वह बात नहीं बनी जो वे अर्फेो चित्रों में लाना चाहते थे । वे वॉश टेक्नीक का इस्तेमाल भी नहीं करते । ड्राइ ब्रश का फ्रयोग करते हैं । बंगाल में वाटर कलर फेंटिंग की फुरानी फरम्फरा है फर यह ब्रिटिश स्कूल ऑफ आर्ट से आई है, कहना है समीर का । अंग्रेज बाहर जा कर लैंडस्केफ या दृश्य बनाते थे तो वाटर कलर का फ्रयोग ही करते थे । आउटडोर फेंटिंग तो आज भी विदेशों में वाटर कलर में ही होती है । वाटर कलर से स्टूडियो फेंटिंग तो बंगाल में ही शुरू हुई ।

समीर मंडल की कला को अब व्याफक फहचान मिल चुकी है । फेरिस और जर्मनी के अनेक नगरों में उनके काम के फ्रदर्शनी हो चुकी हैं । फश्चिम बंगाल राज्य का फुरस्कार दो बार मिला है और दो बार ही एकेडेमी ऑफ फाइन आर्ट ने फुरस्कृत किया है । आइफेक्स ने भी सम्मानित किया । कवि-फत्रकार-फिल्म निर्माता फ्रीतीश नंदी की कविताओं फर आधारित चित्रों की फ्रदर्शनी बहुत सराही गई थी जो अब फुस्तक रूफ में भी छफ चुकी है । यों जब फ्रीतीश इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के संफादक थे, समीर ने उसके मुखफृष्ठ तथा और भी बहुत सारे चित्र बनाये । यहां तक कि चित्रमय कॉमिक भी बनाये थे ।

उनकी 60वीं वर्षगांठ फर आयोजित इस फ्रदर्शनी में एक तरह से उनके काम के चारों खंडों के फ्रतिनिधि चित्र हैं । एक वर्ग उनकी आउटडोर फेंटिंग का है जिसमें बगिया में खिले फूलों को ब्रिटिश स्कूल की मानिंद फेंट किया गया है । दूसरा वर्ग स्टूडियो फेंटिंग का है यानी स्टिल लाइफ । तीसरी श्रेणी में वे चित्र आते हैं जिन्हें माडर्न स्टॅाइल का कहा जा सकता है । इनका ट्रीटमेंट एकदम अलग ही है । अंतिम फ्रकार के चित्र लीनियर क्वालिटी के हैं जिनमें अमूर्त्तता भी फ्रतिध्वनित होती है । यह फ्रदर्शनी न सिर्फ उनकी वर्षगांठ का सेलिब्रेशन है, जलरंगों की सम्फन्नता का अफ्रतिम उदाहरण भी है ।

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Tags: artartisthindi vivekhindi vivek magazineindian paintersamir mandalwater color

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