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बात दिल पर लगनी चाहिए, तभी तो बात बनेगी।

बात दिल पर लगनी चाहिए, तभी तो बात बनेगी।

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई -२०१२, सामाजिक
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पिछाले दो माह से घरों में, रास्तो में, नाकों पर, रेल के डिब्बो में, समाचार पत्रो में, चैनलो पर देश तथा समाज की विभिन्न गंभीर समस्याओं के बारे में चर्चाएँ हो रही हैं। इन चर्चाओं का मूल कारण है दूरदर्शन तथा एकनिजी चैनल, पर प्रसारित किया जाने वाला ‘सत्यमेव जयते’ नामक कार्यक्रम। इस कार्यक्रम में स्त्री भ्रूण हत्या, बाल लैंगिक शोषण, विवाह, खाप पंचायत, विकलांगो के संदर्भ मे समान और प्रशासन की उदासीन सोच के साथ-साथ समाज के सर्वसामान्य लोगों के जीवन से जुडे गंभीर विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है।

इस कार्यक्रम को प्रारंभ होने के साथ ही मिली सफलता को देखकर तीन दशक पूर्व के वरिष्ठ साहित्यकार विजय तेंडुलकर, अभिनेत्री प्रिया तेंडुलकर, का ‘रजनी’ कार्यक्रम, वरिष्ठ साहित्यकार कमलेश्वर का ‘परिक्रमा’तथा ‘उड़ान’ जैसे कार्यक्रमों की याद ताजा हो गई। लोगों के प्रतिदिन के व्यवहार में आने वाली समस्याओं को प्रस्तुत करने वाले इन कार्यक्रमों की उस दौर में बेसब्री से प्रतीक्षा की जाती थी। पर दुसरी ओर राजनेताओं तथा प्रशासकों के मन में भय उत्पन्न हो जाता था। यह इन कार्यक्रमो का परिनाम था। वर्तमान में सिर्फ मनोरंजन के नाम पर कुछ भी दिखाने वाले चैनलों के कार्यक्रमों को देखकर जन समस्याओं का निराकरण होने के स्थान पर उनमें वृद्धि ही हो रही है। लोगो को लंबे समय तक याद रहने वाले तथा उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं पर आधारित रजनी, परिक्रमा, उड़ान जैसे कार्यक्रमों में ‘सत्यमेव जयते’ का उल्लेख किया जा रहा है।

‘सत्यमेव जयते’ नामक कार्यक्रम ने संपूर्ण भारत अपितु पूरी राज्य व्यवस्था को ही कुछ दिनो से सवालों के घेरे में ला दिया है, इस कारण सत्यमेव जयते की एक तरफ में जी भरकर प्रशंसा की जा रही है, तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस की आलोचना भी कर रहे हैं। महिलाएं, बच्चे, रोगियों के साथ-साथ समाज के कुछ दुर्बल घटकों के लोंगो की समस्याओं को केंद्र में रखकर यह कार्यक्रम प्रस्तुत हो रहा है। अलोचको का कहना है किं सत्यमेव जयते कार्यक्रम आमिर खान जैसे सुप्रसिद्ध अभिनेता का कार्यक्रम है, इस कारण इसे जबर्दस्त सफलता मिल रही है। ऐसे कार्यक्रम सामाजिक समस्याओं के बाजारीय मूल्य को बढ़ा रहे हैं। आमिर खान एक कार्यक्रम के लिए साढ़े तीन करोड़ रूपए लेते हैं, इससे पहले टेलिव्हिजन अथवा चैनलों पर सामाजिक समस्याओं पर आधारित कई कार्यक्रम दिखाए गये है पर आमीर खान ही पहले प्रथम इस प्रकार का कार्यक्रम सादर कर रहा है ऐसा माहौल निर्माण कर रहे है।

समाज पर कालिख पोतने वाले लेखविषयोपर चर्चा होना जरूरी था? देश के समक्ष मुंह बाये खड़ी गंभीर समस्याओकी वस्तुस्थिती को न जान कर उसको मनोरंजन के रूप प्रस्तुत किया जाने लगा है। न्यायालय में चल रहे प्रकरणों को नाट्यमय तरीके से न्यायाधीश की भूमिका के रूप में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इस तरह की टिप्पणी ‘सत्यमेव जयते’ को लेकर की जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में अपने निजी चैनलों से प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों पर ध्यान दिया जाए तो ‘बिग बॉस’ जैसे कार्यक्रम से पॉर्न स्टार अपने घर में प्रवेश कर रही थी। इस बारे में भी विभिन्न चैनलों पर खुलकर रसभरी चर्चाएं भी होती थी। सिर्फ मनोरंजनक कार्यक्रम दिखाने वाले चैनल ही नही, न्यूज चैनलों पर सामान्य जनता के दु:ख-दर्द, संघर्ष जैसे महत्त्व पूर्ण विषयों पर चर्चा को जैसे किनारा कर दिया गया था। समृद्धि और चमक-दमक दर्शाने वाले, दैनिक जीवन की समस्याओं से बिल्कुल दूर ‘डेलीसोप’ कार्यक्रम, अश्लीलता से लबरेज हास्य जैसे कार्यक्रमों को ही समाज का मनोरंजन माना जा रहा है। ये कार्यक्रम बिकाऊ तथा विज्ञापन दिलाने वाले की कसौटी पर खरे साबित हो रहे हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से बाजारु मूल्य में वृद्धि होती है।

समाज के, व्यक्ति के जीवन की कुरुपता तथा कडवाहट की ओर कॅमरे का फोकस नही पडता। एकाध बार यह एक सुरक्षित मार्ग भी साबित हो सकता है, क्योंकि कटु सत्य का सामना करने के लिए अनेक तथ्यो को तलाशना पडता है और कई लोगों को नाराज करने का साहस भी बटोरना पड़ता है और ‘सत्यमेव जयते’ ने इस तरह का साहस किया गया है।
एक सत्य है, ‘सत्यमेव जयते’, का पहला कार्यक्रम स्त्री-भ्रूण हत्या पर प्रस्तुत किया गया था। इस कार्यक्रम को देखने के बाद समाज के सभी स्तर पर इसकी प्रशंसा की गई पर जैसे-जैसे कार्यक्रम की प्रस्तुती मे और विषयों के साथ समाज के कई कटुसत्य बाहर आने लगे, वैसे वैसे सत्यमेव जयते की अलोचना भी होने लगी और इस अलोचना की धार आने वाले समय में और तेज होती चली जाएगी, अगर ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। समर्थन तथा विरोध ही इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का मूलाधार है। जो बात राजनीति, समाजसेवा में पूरा जीवन व्यतित करने वाले व्यक्तियोंद्वारा बताने के बावजूद लोगो के दिमाग में नहीं बैठती, वही बात अगर कोई अभिनेता छोटे परदे पर डायलॉग के माध्यम से लोगों को बताता है, तो समाज में उसकी वाहवाही होती है। आज डायलॉग मारने वाले ये हीरो कुछ दिन बाद अपना पहला डायलॉग भूलकर दूसरे ही डायलॉग बोलने लगते है। यह भी एक सच्चाई है।

‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम देखते समय यह पता चलता है कि इस कार्यक्रम का हिरो अमिर खान न होकर समाज में व्याप्त समस्याएं ही असली हिरो हैं। आमिर खान की उपस्थिति के कारण कार्यक्रम के माध्यम से प्रस्तुत की जानेवाली समस्याओंपर समाजका ध्यान ज्यादा प्रखरता से गया है।

माता-पिता, सगे भाई अपने बेहद करीबी रिश्तेदारो की जाति-पाति, प्रतिष्ठा, इज्जत के लिए हत्या करते है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य भागो में होने वाली ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएँ समाज में व्याप्त कृत्रिम आधुनिकता का खुलासा कर रही हैं। समाज में शिक्षा तथा आधुनिकता तो सिर्फ उपरी तौर पर ही दिखती है। व्यवहार में परंपरागत रूढ़िवाद का ही दर्शन ज्यादा होता है।

‘विवाह’ जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल है। विवाह के बारे में हम किस तरह से विचार करते है, इस पर हमारे विवाहित जीवन का पूरा भविष्य निर्भर होता है। विवाह-धूम धडाके के साथ होना चाहिए। लड़का एन.आर.आई है या देशी? कपड़े कौन से पहनाए जाए, हनीमून के लिए कहाँ जाएंगे, विवाह में दुल्हन के साथ आभूषण-सोना कितना आएगा, भोजन का मीनू क्या होगा? जैसे विषयों को लेकर विवाह समारोह में विवाद होता है। विवाह में जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है, वह है अच्छे जीवन साथी का चयन करना। जिसको जीवनसाथी के रूप में चुनना है, वह व्यक्ति के तौर पर कैसा या कैसी है? उसकी सामाजिक स्थिति कैसी है, उसके जीवन के नीति-मूल्य कैसे है? उनका व्यक्ति के साथ अपना वैवाहिक जीवन कैसा होगा? जैसी महत्वपूर्ण बातो पर सचमुच विचार किया जाता है? इस मसले पर विचार-मंथन किया जाना बेहद जरूरी है।

दहेज के बारे विवाहिता की जान लेने संबंधी खबरें अक्सर समाचारपत्रों में आती रहती हैं। नव विवाहित युवती की दहेज के लोभ में हत्या करने, अथवा उसे आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने जैसी बातें समाज के अति शिक्षित तथा अमीरों में भी देखी जा रही हैं। डॉक्टर तो जीता जागता ईश्वर है, कभी ऐसी धारणा भी डॉक्टरों के बारे में हुआ करती थी। जीवन तथा मृत्यु के बीच का अंतर डॉक्टर के सटीक इलाज के कारण बढ़ेगा, इस कारण कोई भी मरीज डॉक्टर के समक्ष अपना पूरा शरीर अर्पित करने के लिए एक दौर में तैयार रहता था, पर आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है। डॉक्टरी पेशे से जुड़ी कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं सुनकर या जानकार बहुत हैरत होती है। हालात ऐसे हो गए है कि समाज का डॉक्टरों के प्रति विश्वास लगातार घटता जा रहा है। स्त्री भ्रूण हत्या जैसे विदारक विषय डॉक्टरों के काले कारनामों का कट्ठा-चिठ्ठा खोल रहे हैं। खानदान के लिए वारिश लड़के की तमन्ना रखने वाले स्त्री भ्रूण हत्या की ‘सुपारी’ डॉक्टर को देने में भी हिचक महसूस नहीं कर रहे।

छोटे बच्चो का लैंगिक शोषण वर्तमान दौर में एक गंभीर अपराध के रूप में सामने आ रहा है। इस कारण बच्चो का वर्तमान तथा भविष्य दोनो बर्बाद हो रहा है। इस बारे में क्या हम कभी अपने बच्चों से बातचीत भी करते हैं? अपने घर में छोटीसी चोरी होने पर हम तुरंत पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराते हैं पर बच्चों का लैंगिगशोषण होने के मुद्दे पर हम चुप क्यो बैठते है? शोषण का मतलब क्या है? यह हर बच्चे को समझाना जरुरी है। हमारे देश मे छह से सात करोड़ विकलांग व्यक्ती है। जो हमारे भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पर विकलांग व्यक्तियों को दयाभाव या सहानभुती दर्शना हमारी आदतसी हो गई है। अपनी अनेक शारिरीक पिड़ा और कठीणाईयों के बावजूद वे जिंदगी से संघर्ष करते है। जितना प्यार आम आदमी अपनी जिंदगी से संघर्ष करते है। जितना प्यार आम आदमी अपनी जिंदगी से करता है उससे कई ज्यादा प्यार वह भी करते है। विकलांगो को जहां-जहां मौका मिला है वहा वहा उन्होने आसमान को छुवा है। वह अत्यंत प्रेरणादायी है।

लेकिन विकलांग जनों के संदर्भ मे हमारी सोच, संवेदनशील सर्वत्र-दिखाई देती है। आम व्यक्तीयों की तरह उन्हे भी जिने का अधिकार, नौकरी करने का अधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार, खेलने का अधिकार और अन्य जीवन से जुडे अधिकार समान रूप से मिलने चाहिए। लेकीन समाज और प्रशासन से उन्हे सभी स्तर पर उपेक्षाए ही मिल रही हैं। इस बारे में गंभीरता से चिंतन करना जरुरी है। ‘‘बात दिल पे लगनी चाहिए, तभी असर करेगी’’ यह सुत्र रख कर इस कार्यक्रम की रचना कि गई है, ऐसा लगता है। हल न होने वाली समस्याओं का रास्ता तलाशते परेशान, आंसू पोंछने वालें पिडीत, दबे हुए चेहरे से समस्या कथन करनेवाले लोग यह सब कार्यक्रम का प्रसारण का हिस्सा हो सकता है। पर जो कुछ हो रहा है, जो कथन किया जा रहा है, वह सत्य है। इस लिए घर बैठकर कार्यक्रम देखने वाले सामान्य दर्शकों की प्रतिक्रिया स्टूडियो अथवा टीवी के परदे पर समस्या प्रस्तुत करने वालों पिड़ीतोसे अलग नहीं होतीं। दोनों मे एक तरह की समानता अपने-आप निर्मित हो जाती है, जटील समस्या का विषय सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी समझेगा, इस प्रकार से सहज भाव से कार्यक्रम की प्रस्तुती यह इस कार्यक्रम की यशस्वी होने का रहस्य है।

मनोरंजन का आशय सिर्फ लोगों को हंसाना नहीं है, कभी-कभी जनसमस्याओं के निराकारण की भी सार्थक कोशिश कार्यक्रम के माध्यम से जनता के बीच प्रसारित करनी चाहिए। समाचारपत्रों के भितरी पृष्ठों पर छपी सामाजिक समस्याओं कि खबरों से कहीं ज्यादा असर सत्यमेव जयते के माध्यम से प्रस्तुत किए गए सच को देखकर लोगे पर होता है।
प्रश्नों के उत्तर देकर करोड़पति बनने का सपना दिखाने वाले ‘कौन बनेगा करोडपति’ कार्यक्रम, ने तथाकथीत प्रतिष्ठीत को एक घर मे बंद करके उन लोगो में वाद-विवाद, निजी जीवन चक्र पर आधारित कार्यक्रम ‘बिग बॉस’, सत्य से जुड़े प्रश्नों को पूछकर उसका बाजारीकरण करने वाला ‘सच का सामना’ जैसे विवादित कार्यक्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है। साथ ही काल्पनिक, भडकाऊ, कार्यक्रमों की भी अच्छी-खासी संख्या है। इस वर्ग में शामिल न होने वाले ‘सत्यमेव जयते’ ने टेलिव्हिजन कार्यक्रमों के लिए नया मापदंड निर्माण किया है। चुभनेवाला सत्य बताकर दर्शकों की आँखे खोलकर इस कार्यक्रम में सिर्फ समस्याएं ही नहीं रखी जातीं, बल्कि लोगों के सहयोग से हो इन समस्याओं का समाधान कैसे हो? इसके बारे में सुझाव भी दिए जाते हैं। कहॉ पर किसी समस्या के निराकरण के लिए कौनसे प्रयास किए जा रहा है, इस बारे में भी कार्यक्रम मे विस्तार से चर्चा की जाती है। दर्शक समाज में हो रहे कटू सत्य से रुबरु तो हो ही रहा है, साथ ही समस्या के समाधान भी खोजा जा सकता है, ऐसा विश्वास भी दर्शकों के मन मे दृढ़ की जा रहा है।

मनोरंजन उद्योग कहकर केवल व्यवसाय की ओर देखने वालो चैनल ही नहीं, अपितु समाज उत्थान का लक्ष सामने रखने वाले न्यूज चैनलों को भी इस कार्यक्रम ने एक नई दिशा दिखाई है। हम लोग समाज के एक घटक हैं, जो पाप समाज में होते हैं, उसके अंशभरही सही, भागीदार हम भी हैं। यही बात यह कार्यक्रम देखते समय मन में उठती रहती है। आमिर खान द्वारा प्रस्तुत ‘सत्यमेव जयते’ को मिल रही सफलता को देखते हुए लगातार अमिर खान का गुण गान एवं उनकी आलोचना में ना बहे। ‘सत्यमेव जयते’ के कारण समाज में व्याप्त सभी समस्याओं का निराकरण होगा, यह तो संभव नही हो सकता, पर समस्याएं कम जरुर हो सकती हैं। समस्यांए पहले भी थी, आज भी हैं और कल भी रहेंगा।

या आनेवाले समय मे समस्या किसी नये रूप में सामने आ सकती है। समाज मे चिरंजीवीता से संचार कर रहे अनेक समस्याओं की धार कम करने के लिए व्यक्ती इस नाते हम प्रत्यक्षरुप कौनसा विधायक सहयोग दे सकते है। ऐसा विचार हम सभीको करना चाहिए। समाज में अनेक व्यक्ति, संस्थाऐ समर्पित भाव से समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान ढुंढने के लिए अग्रणी रहते है, कई संस्थाएं इस तरह के कार्य में लंबे समय से जुटी है, उन्हें आज कार्यकर्ताओं की कमी महसूस हो रही है, अगर हम ऐसी संस्थाओं के कार्यो को किस प्रकार से सहयोग दे सकते है, इस बारे में गंभीरता से विचार करना अब जरुरी हो गया है।

एक बार फिर याद दिलाना चाहता है- ‘सत्यमेव जयते’ का हीरो आमिर खान नहीं, अमली हीरो तो ‘समस्या’ है, जो अपने ईद-गिर्द सदैव ‘खलनायक’, बनकर मंडराती रहती हैं।

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