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चिकित्सा के माध्यम से समाज सेवा सर्वोपरी – डॉ. विवेक देशपाण्डे

चिकित्सा के माध्यम से समाज सेवा सर्वोपरी – डॉ. विवेक देशपाण्डे

by डॉ. दिनेश प्रताप सिंह
in जुलाई -२०१२, सामाजिक
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(भारतीय जनता पाटी, मुंबई द्वारा महानगर के चिकित्सकों का प्रकोष्ठ बनाया गया है। इसमें अस्पतालों, दवाखानों और ईएसआई के चिकित्सक शामिल हैं। इस प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. विवेक देशपाण्डेजी हैं। उन्होंने इस प्रकोष्ठ के माध्यम से चिकित्सकों की अनेक गम्भीर समस्याओं का समाधान किया है। समाज सेवा में भी उनका बड़ा योगदान रहता है। हिंदी विवेक के पाठकों के लिए उनसे विशेष बातचीत प्रशान्त मानकुमरे ने की है, जिसके प्रमुख अंश यहाँ दिये जा रहे हैं।)

आप समाज सेवा में जुटे हैं। राजनीति में भी आप सक्रिय हैं। तो क्या समाज सेवा राजनीति ही एक भाग है, या समाजसेवा को प्रमुखता देते है?

बचपन से ही मैं सामाजिक कार्यों से जुड़ा हुआ हूँ। मेरे पिता जी जब 17 वर्ष के थे तब मुलुण्ड में आये थे। आज उनकी आयु 80 वर्ष है। वे शुरू से समाज कार्य कर रहे हैं। उनके साथ-साथ मैं भी उसी मार्ग पर चलने लगा। राजनीतिका सम्बन्ध बाद में आया। सक्रिय राजनीति में अब भी नही हूँ। भाजपा के ‘डॉक्टर्स सेल’ का संयोजक हूँ। इसी तरह भाजपा का महाराष्ट्र प्रदेश में उद्योगपतियों की संस्था है, उसका भी सदस्य हूँ। इन दोनों के माध्यम से समाज सेवा का कार्य कर रहा हूँ।

मुंबई में चिकित्सकों की बहुत सी समस्याएं है। उनकी मांगों को आप ‘डॉक्टर्स सेल’ के माध्यम से उठाते हैं या मुंबई भाजपा के द्वारा उनके मुद्दों को सरकार के सामने रखते हैं?

यह ‘डॉक्टर्स सेल’ भाजपा ने बहुत पहले बनाया है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि मुंबई के सभी चिकित्सक उसके सदस्य है। मुंबई भाजपा अध्यक्ष एड राज पुरोहित जी ने मुझे इस सेल का संयोजक बनाया है। एसकी समिति का गठन हो गया है। कुल 12 सदस्य है, जिसकी बैठक हर महीने होती है। अभी तक कई मुद्दों पर चर्चा हुई है। कई विषय हमारे सामने आये है। उन पर हम कोई निर्णय लेकर आगे बढ़ाएंगे।

पिछले दिनों मुंबई के ईएसआई डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी। आप की मध्यस्थता से हड़ताल समाप्त हो गयी और डॉक्टरों की जो मांगे भी शासन ने उसे भी मान लिया। उस पूरे प्रकरण पर थोड़ा प्रकाश डालिए।

महाराष्ट्र और मुंबई में लगभग 850 ईएसआई डॉक्टर है। ये वे डॉक्टर्स हैं, जो अपने दवाखानों में औद्योगिक कर्मचारियों की चिकित्सा करते हैं। इनमें अस्पतालों के डॉक्टर्स नहीं शामिल है। ईएसआई के डॉक्टरों की कई मांगे थी। जैसे कि राज्य सरकार द्वारवा उन्हें 2011 में मानधन नहीं दिया गया। इसमें खेदजनक बात यह है कि इस मानधन को सरकार की तिजोरी से नहीं दिया जाता। यह मजदूरों के वेतन से काटा जाता है। इसी तरह उद्योगपति भी उसमें अपना अंशदान करते हैं। ये लाखों- करोड़ों रुपये सरकार की तिजोरी में अग्रिम रूप से जमा होता है। इसी धन से डॉक्टरों का मानधन दिया जाता है और मजदूरों तथा उनके परिवार वालों की चिकित्सा की व्यवस्था की जाती है। महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार ने मजदूरों का वह धन किसी अन्य काम में लगा दिया और डॉक्टरों का मानधन पूरे साल भर नहीं दिया।

प्रति मरीज कितना पैसा डॉक्टरों को दिया जाता है?

सन् 2000 से पहले प्रति पंजीकृत मरीज के लिए 5 रुपये शासन द्वारा दिए जाते थे। यानी प्रति व्यक्ति केवल 1 रुपया प्रतिमाह था। भाजपा के सांसद प्रो. एम कापसे और विधायक एकनाथ खड़से जी के प्रयास से यह बढ़ाकर 10 रुपये किया गया है। वर्ष 2006 से 10 रुपये की दर से मिल रहा है। 2000 से 2006 के बीच की अवधि का बढ़ी हुई दर का अन्तर भी मिलना चाहिए, जो नहीं दिया गया था।

ईएसआई के डॉक्टरों के द्वारा अपना मानधन पाने के लिए क्या कदम उठाये गये थे?

ईएसआई डॉक्टरों की एक संस्था है फिम्पा (इघ्श्झ् – फेडरेशन आफ इन्स्यो मेडिकल प्रैक्टिशनर्स असोशिएशन) है। उसके पदाधिकारी लगभग तीन वर्षों से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री से मिलने का प्रयास कर रहे थे, किन्तु स्वास्थ्य मंत्री ने न तो उनसे मिलने का समय दिया और न उनकी मांगों को ही सुना। तब उन सबने 21 नवम्बर, 2011 से हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी। इससे लगभग 90 लाख मरीजों को दिक्कत होने लगी)

यह मामला आप के पास कैसे आया और आपने किस तरह से इसे सुलझाया?

फिम्पा के पदाधिकारी मुझ से आकर के मिले। मामले की गम्भीरता को देखते हुए मैंने उन्हें भाजपा के महांमत्री श्री अतुल भाढखडकर जी से मिलवाया। उस समय नागपुर में विधान सभा की बैठक चल रही थी। श्री एकनाथ खड़से जीने तारांकित प्रश्न के द्वारा यह मुद्दा उठाया। 22 दिसम्बर, 2011 को श्री विनोद तावड़े जी विधान परिषद में विरोधी पक्ष के नेता बने। उनके समक्ष यह विषय रखा। वे दो दिन के भीतर ही फिम्पा के प्रतिनिधि मण्डल के साथ स्वास्थ्यमंत्री श्री सुरेश शेट्टी से भेंट की। फिम्पा की दो प्रमुख मांगे- 2000 से 2006 का एरियर्स दिया जाए और मानधन बढ़ाकर 30 रुपये प्रतिमाह किया जाए, उनके सामने रखी गयी। मंत्री जाने दोनों मांगों पर सकारात्मक आश्वासन दिया। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि भाजपा डॉक्टर्स सेल के प्रयास से मार्च 2012 से नई पर 20 रुपये की गयी और डॉक्टरों को एरियर्स भी मिला। 1 मार्च, 2012 को फिम्पा ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को वापस ले लिया।

भाजपा के ‘डॉक्टर्स सेल’ की आगे की क्या योजना है?

डॉक्टर्स सेल की योजना है कि मेरी अध्यक्षता में गठित कमेटी मुंबई महानगरपालिका और सरकारी अस्पतालों का दौरा करेगी। वहाँ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और डीन से बातचीत की जायेगी। उनकी यदि कोई जरूरत है या कोई समस्या है तो कमेटी, उस विषय पर सहायता करेगी। मुंबई की दानी व्यक्तियों से मदद ली जाएगी। इन संस्थानों में गरीब लोग जाते हैं। गरीब लोगों की सेवा भाजपा के डॉक्टर्स सेल के माध्यम से की जाएगी।

इसे और स्पष्ट करें।
उदाहरण के लिए कहीं वाटर कूलर नहीं है, कहीं कोई मशीन नहीं है, मरीजों की सुविधा के लिए अन्य कोई चीज जो अस्पताल में नहीं है, उसे समाज के दानदाताओं और भाजपा के माध्यम से उपलब्ध कराने का कार्य किया जाएगा। वस्तुत: यह पूरी तरह से अराजनीतिक सेवा कार्य है, जिसमें हम भाजपा की सहायता लेगें। अभी यह कार्य मुंबई तक सीमित है। यहाँ 6 जिले हैं, उनमें 6 सांसद हैं, उनकी भी सहायता ली जाएगी। हमारी योजना है कि डॉक्टर्स सेल के माध्यम से स्वास्थ्य जांच शिबिर, रक्तदान शिबिर, नेत्र ज्योति जांच शिबिर, मेडिकल स्टोर्स खोलना, ब्लड बैंक बनाना जैसे कार्य किए जाएंगे। यही नहीं बोगस डॉक्टर्स का पता लगने पर उनके खिलाफ उचित कानून कार्रवाई करना भी शामिल होगा।

आमिर खान ने टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते के माध्यम से डॉक्टरों पर बड़े गम्भीर आरोप लगाये हैं। उसके बारे में आप क्या कहेंगे?

आजकल नकारात्मक मुद्दों को जोर शोर से उठाने का चलन सा हो गया है। यद्यपि मैंने उस कार्यक्रम को देखा नहीं है। किन्तु मुझे लगता है इस समाज में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग है। इसी तरह कुछ डॉक्टर भी होंगे जो अनुचित कामों मे लिप्त होंगे।

चिकित्सा क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए आप समाज सेवा के लिए किस तरह से समय निकाल लेते है?

शैक्षणिक कार्यो में मेरी ज्यादा रुचि है। मुलुण्ड में सार्वजनिक शिक्षण संस्था द्वारा कई विद्यालय चलाये जा रहे हैं। मैं उसका ज्वाइन्ट सेक्रेटरी हूँ। लोकमान्य तिलक अंग्रेजी विद्यालय का अध्यक्ष का दायित्व भी मेरे पास है। यह 52 वर्ष पुरानी संस्था है। दो वर्ष पूर्व इस संस्था की स्थापना की स्वर्ण जयन्ती मनायी गयी थी। मैं उसकी कमेटी का अध्यक्ष था। उस समारोह में मुंबई के महापौर और मंत्री आये थे। हमारा लक्ष्य है कि पेण में विद्यालय की शाखा शुरू की जाए।

आप मुलुण्ड जिमखाना से भी जुड़े हैं?

मेरे पिता एड् वसन्त देशपाण्डे जी मुलुण्ड जिमखाना के संस्थापक सदस्य थे। बाद में वे उसके अध्यक्ष भी बने थे। उनके अवकाश प्राप्त करने के उपरान्त मैंने चुनाव लड़ा और सर्वाधिक मतों से जीता। इस बार शैक्षणिक कार्यों में ज्यादा व्यस्त होने के कारण चुनाव नहीं लडा, किन्तु हमारे समर्थन वाला चैंनल जीता है। जिमखाना में अच्छा कार्य चल रहा है।

आप एक डॉक्टर हैं, तो क्या किसी अस्पताल या दवाखाना से भी जुड़े हैं?

हाँ। भाण्डुप और मुलुण्ड में पिछले 28 वर्षों से मेडिकल प्रैक्टिस कर रहा हूँ। यह भी मेरा समाज सेवा का ही एक कार्य है। मेरी पत्नी डॉ. वैभवा देशपाण्डे भी डॉक्टर डैं, वे भी इस सेवा कार्य में मेरा सहयोग करती हैं।
लगभग 20 वर्ष पूर्व हमने ‘चन्द्रला आयुर्वेद फार्मेली’ दवा बनाने की कम्पनी की स्थापना की थी। वह कम्पनी भी अच्छे ढंग से चल रही है।

समाज सेवा के अन्य कई कार्यों से भी आपका जुड़ाव है। उन पर भी कुछ बताएं?

मुलुण्ड में हमने 7 वर्ष पूर्व ‘प्रगति प्रतिष्ठान’ की स्थापना की थी। मैं उसका महामंत्री हूँ। उसमें कई चुने हुए सदस्य हैं। इस संस्था के माध्यम से सांस्कृतिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य किये जा रहे हैं। लगभग बीस वर्ष पूर्व मुलुण्ड के कालिदास नाट्यगृह में रजत जयन्ती मनायी गयी। पूरी रात सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता रहा। अजय पोहनकर, पं. जसराज, शिवकुमार शर्मा, पं. हरिप्रसाद चौरसिया जैसे चोरी के संगीतकारों ने वहाँ पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। इसी तरह 25-26 वर्ष पूर्व षडमुखानन्द हॉल में संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें हेमा मालिनी का भरतनाट्यम् हुआ था। वह हमारी शिक्षण संस्था का रजत जयन्ती समारोह था। ये सारे कार्य मुलुण्ड के ऐतिहासिक कार्य रहे हैं।

हिंदी विवेक के पाठकों के लिए कोई सन्देश?

कोई व्यक्ति जब समाजसेवा का कार्य स्वयं चुनता है, तो उसे वह कार्य पूरे समर्पित भाव और सुचिता के साथ करना चाहिए। सेवा कार्य समाज के लाभ के लिए किया जाता है, उसमें अपना हित किसी भी रूप में नहीं होना चाहिए। इस भाव से देश में असंख्य लोग व संस्थाएं कार्य कर रही हैं। अन्य लोगों को भी अपने दैनन्दिन कार्यों में से समय निकालकर जरूरतमन्दों के लिए देना चाहिए।

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डॉ. दिनेश प्रताप सिंह

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