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लाजवंती वानर

लाजवंती वानर

by मारुती चितमपल्ली
in जुलाई -२०१२, सामाजिक
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प्लवंग माने एत्दै थ्दग्े (र्‍ल्म्ूग्मंल्े ण्दहम्दहु) हिंदी में उसे ‘शर्मिली बिल्ली’ कहा जाता है। यही लाजवंती वानर कहलाता है। प्लवंग का रामायण में उल्लेख हुआ हैं। मृग पक्षीशास्त्र में प्लवंग का वर्णन हुआ है।

प्लवंगास्ते समाख्याता रक्तकृष्ण शरीरका:।
ये भृशं कोपसंयुक्ता: भीषणा कृतयश्च निर्भरा:॥
हृस्ववाला: कृष्ण पृष्ठा: ते तु दीर्घनिखा न्विता:।
संलतं चपला: कामं क्रूरचिताश्च निश्चिता:॥
नानां उजवधोत्साहा भृशं भ्रमण कौतुका:।
वृक्षारोहण लोलाश्च कथिता दुष्टकार्यका:॥

अर्थ :- प्लवंग लाल, सफेद होते हैं। वे गुस्सैल, भयावह होते हैं। उनका शरीर मध्यम आकार का होता है तथा वे निद्रा और आलस्य से ग्रस्त होते हैं। उनकी पूँछ छोटी, पीठ काली और नाखून लंबे होते हैं। वे बडे चंचल होते हैं और बडे क्रूर होते हैं। वे कितने सारे पंछियों को मारते हैं-खाते हैं। हमेशा भटकते रहते हैं। किसी चट्टानपर चढना वे पसंद करते हैं। वे बहुत ही बुरा काम करते हैं, ऐसा कहा जाता है।

लाजवंती वानर का वर्ण ऊदी होता है। उसकी रीढ की हड्डी के मध्य तक गहरे राखी रंग की पट्टी होती है और उसके आगे वह धुँधली होती चलती है। दोनों आँखों के बीच में से एक छोटी सी सफेद पट्टी नाक तक जाती है। गहरे रंग का मंडल आँखों को घेरे हुए होता है। पूँछ छोटी होती है।

असम, गारो की पहाडियाँ और सिल्हेट आदि इलाकों में लाजवंती वानर पाया जाता है। गर्भधारणा के तीन महिनों बाद मादा सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है। लाजवंती वानर छोटे पंछी और कीटों को खाकर गुजारा करते हैं। वे घने जंगलों में रहते हैं।
उनके निशाचर होने से तथा इक्के-दुक्के ही रहने से वे शायद ही दिखाई देते हैं। उनके प्राकृतिक निवासस्थानों के घटते जाने से उनकी संख्या घटती जा रही है।

लाजवंती वानर का और एक प्रकार दक्षिण भारत में पाया जाता है। उसे ‘दक्षिणी लाजवंती वानर’ के नाम से पहचाना जाता है। अँग्रेजी में उसे एतह्ी थ्दग्े (थ्दग्े त्ब्व् वग्हल्े) कहा जाता है।

दक्षिणी लाजवंती वानर के बदन के ऊपरी ऊपरी हिस्से का रंग ऊदी, पिंगल, भूरा जैसा होता है। बदन के निचले हिस्से पर हल्की पीली झलका होती है। ललाट पर तिकोना सफेद निशान होता है। बदन पर मुलायम, ओछे किन्तु गहरे बाल होते हैं। कान गोलाकार पतले होते हैं। आँखों को घेरा हुआ गाढे रंग का मंडल होता है। दाहिने हाथ की पहली उँगली में पंछी के समान पैना नाखून होता है।

पश्चिम घाट, आन्ध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडू, महाराष्ट्र में से विदर्भ इलाका आदि क्षेत्रों में ये पाये जाते हैं।
फल, फूल, कोंपलें, कीडे-मकोडे, पंछियों के अंडे और चकुले आदि खाकर गुजारा करते हैं।
ये घने जंगलों में रहते हैं।

आँखों की बीमारियों का इलाज करने इनकी हत्या होती है। अनुसंधान संस्थाओं में किये जा रहे प्रयोगों के हेतु इन्हें पकडा जाता है। इनके प्राकृतिक निवासस्थान कई बरसों से घटते जा रहे हैं।

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Tags: environmentforesthindi vivekhindi vivek magazinejunglelajvanti wanarloriswild animals

मारुती चितमपल्ली

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