लाजवंती वानर
प्लवंग माने एत्दै थ्दग्े (र्ल्म्ूग्मंल्े ण्दहम्दहु) हिंदी में उसे ‘शर्मिली बिल्ली’ कहा जाता है। यही लाजवंती वानर कहलाता है। प्लवंग का रामायण में उल्लेख हुआ हैं। मृग पक्षीशास्त्र में प्लवंग का वर्णन हुआ है
प्लवंग माने एत्दै थ्दग्े (र्ल्म्ूग्मंल्े ण्दहम्दहु) हिंदी में उसे ‘शर्मिली बिल्ली’ कहा जाता है। यही लाजवंती वानर कहलाता है। प्लवंग का रामायण में उल्लेख हुआ हैं। मृग पक्षीशास्त्र में प्लवंग का वर्णन हुआ है
टोफी वानर या टोफी फर्णी वानरों को अंग्रेजी में कैपड लीड मंकी या कैपड लंगूर कहा जाता है। फक्षीशास्त्र में इसका उल्लेख मिलता है। संस्कृत में इसे शाखामृग कहा जाता है।
संगाई को अंग्रेजी में हूता् ई, लैटिन में णन्ल्े ात्ग्ग् तथा ब्राह्मी भाषा में शामिन व मणिपुरी में संगाई कहते हैं। संस्कृत में उसे रूरू के नाम से जाना जाता है।
1970 में इस संख्या में 140 से 170 तक भारी कमी आई। उनके प्राकृतिक निवास का ध्वंस, पशु चराई, खेती के लिए जमीन पर अतिक्रमण इत्यादि कारणों से यह कमी आई। लेकिन घ्ळण्र् की सफल योजना के कारण 1983 में उनकी संख्या में 482 तक वृध्दि हुई।
अनुमान है कि इस सदी के मध्य तक अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर अधिक वर्षा होगी। यह अतिरिक्त पानी बह कर सागर में चला जाएगा। कुछ जगह बेहद बारिश होगी तो अन्य जगह बारिश का अभाव होगा। इससे 2050 तक पानी का संकट बढ़ने की संभावना है।
अब भारत के जंगलों में चीता दिखाई नहीं देता। बस्तर जिले में 1948 में वहां के अंतिम चीते की शिकार वहां के महाराजा ने की थी। इस बारे में मैंने पवनी (जिला गोंदिया, महाराष्ट्र) के माधवराव पाटील के साथ चर्चा की। वे गोंदिया जिले में प्रसिध्द शिकारी रहे हैं। उन्होंने बताया, ‘1950 से 1953 नवेगांव बांध, पवनी और गांधारी के जंगल में मैंने चीतों की शिकार की है।’)