कोशी दंगे पर उर्दू मीडिया का रुख

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के कोशी नामक कस्बे में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उसका लाभ उठाकर अधिकांश उर्दू समाचार पत्रों ने प्रेस काऊंसिल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए सांप्रदायिक वैमनस्य को भड़काने का खुलकर प्रयास किया, जबकि अंग्रेजी एवं हिंदी के समाचार-पत्रों ने इन दंगों के समाचार प्रकाशित करते हुए प्रेस काउंसिल के निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया और बेहद जिम्मेदारी का प्रदर्शन किया। कोशी से पहले गोपालगंज और रुद्रपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को लेकर उर्दू समाचार पत्रों ने जिस तरह से खुले आम प्रेस काउंसिल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाई थीं और विभिन्न संप्रदायों के बीच नफरत के बीज बोये थे, मगर इसके वाबजूद क्योंकि उनके खिलाफ न तो सरकार ने ही कोेई कार्रवाई की और न ही प्रेस काउंसिल ने ही इसका नोटिस लिया है। इस कारण उर्दू समाचार पत्रों के हौसले बढ़े हैं।

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने अपने 2 जून के अंक में प्रमुख समाचार प्रकाशित करते हुए जो शीर्षक दिए हैं,वे भी कम उत्तेजक नहीं हैं। मुख्य शीर्षक मथुरा के कोशी कला में फिरकादराना तशदद ( सांप्रदायिक हिंसा) । अल्पसंख्यकों के दर्जनों मकान नजर आतिश। कई अपराध की हलाकत, फायरिंग से कई जख्मी, फसादियों ने कई दुकानों, पेट्रोल पंपों और बैंकों के कई बांच्रों को आग के हवाले किया। मस्जिद सराय शाही पर पथराव। 40 से अधिक व्यक्ति मस्जिद में घिरे। समचार पत्र ने इस समाचार के साथ दंगाईयों की भीड़ और लोगों के जलते हुए सामानों के फोटों भी छापे हैं।

समाचार पत्र के अनुसार उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में मस्जिद के बाहर रखे शरबत के टब में एक गैर मुसलमान के हाथ धोने की घटना के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। अल्पसंख्यकों के दुकानों और मकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। समाचार पत्र के अनुसार मस्जिद के अंदर फंसे एक नमाजी खालिद अली ने फोन पर समाचार पत्र को बताया कि मस्जिद के अंदर 40 नमाजी दोपहर से ही फंसे हुए हैं और दंगाईयों ने मस्जिद को चारों तरफ से घेर रखा हैे और तो और मस्जिद के आंगन में पत्थरों तथा शराब की बोतलों का अंबार लगा हुआ है और गोलियां चलाई जा रही हैं। मुसलमानों के घरों में आग लगाई जा रही है और पुलिस गायब है। मुसलमानों की एक बस्ती को पूरी तरह से फूंक डाला गया है। पुलिस कोई मदद नहीं कर रही है, वह तो पूरीं तरह से लापता है।

जामियते ज्लेमा के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने डीजीपी, मुलायम सिंह यादव, मथुरा के एस पी और डीएम से बात की और दंगों पर काबू पाने की बात की गई। इसी तरह से शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी मुख्यमंत्री से बातचीत की। उन्होंने कहा कि कई महिलाओं से बलात्कार करने की भी खबरें मिली हैं, मगर इसके बारे में पुष्टि नहीं हुई है। दैनिक हमारा समाज ( 2 जून,2012) ने दंगे से संबंधित तीन फोटो प्रकाशित किए। समाचार पत्र ने खबर पर शीर्षक जमाया है- मथुरा के मुसलमानों पर टूटा फसादियों का कहर। आधे दर्जन मरे। सैंकड़ों दुकानों फूंकी गईं। ईदगाह को आग लगाई गई। मस्जिद ध्वस्त। यूपी पुलिस तमाशाई। जान बचाने की फरियाद कर रहे हैं मुसलमान । समाचार पत्र ने यह आरोप लगाया है कि जाटों ने मस्जिद पर फायरिंग की थी, जिससे दो मुसलमान नौजवान मारे गए। मुसलमानों की सैकड़ों दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस की मौजूदगी में आग और खून की होली खेली गई और मुसलमानों के मोहल्लों को जला दिया गया। मनीराम बाग के मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्र में भी आग लगा दी गई है। दंगाई बिना किसी रोक- टोक के मुसलमान बहुल मोहल्लों को निशाना बना रहे हैं। घंटाघर वाली मस्जिद और ईदगाह को तबाह कर दिया गया है।

दैनिक हिन्दुस्तान एक्सप्रेस ( 2 जून) के अनुसार इन दंगों में दस अल्पसंख्यक मारे गए हैं, जबकि एक अन्य सूत्र के अनुसार मरने वालों की संख्या 17 है। दैनिक सहाफत ( 2जून) के अनुसार कोशी कला के मुसलमानों पर कयामत टूटी। पांच मुसलमान मारे गए। मस्जिदों में तोड़फोड़ । मुसलमानों की दुकानें आग को सुपूर्द। मुसलमान दुश्मनों के घेरे में। समाचार पत्र ने दावा किया कि तीन मस्जिदों को ध्वस्त किया गया है और पांच मुसलमान मारे गए हैं। मौलाना आईया करीमी के अनुसार प्रशासन पूरी तरह से दंगाईयों के साथ मिला हुआ है। मुसलमानोंं के दुकानों तथा मकानों पर हमले किए जा रहे हैं। समाचार पत्र ने यह भी आरोप लगाया है कि पीएसी एक विशेष वर्ग का समर्थन कर रही है। इंकलाब (2 जून) के अनुसार मरने वालों की संख्या दो है। दैनिक सहाफत ने अपने 3 जून के अंक में दंगे के चार चित्र प्रकाशित किए। मुख्य समाचार का शीर्षक था- कोशी कला में दंगों के बाद दर्जनों मुसलमान नौजवान लापता। मुसलमानों के घरों में तलाशियां, कर्फ्यू जारी। समाचार पत्रों ने आरोप लगाया कि इन दंगों में बीएस पी के एक सरपंच का हाथ है। समाचार पत्र ने इस बात की आलोचना की है कि पुलिस ने अभी तक किसी दंगाई को गिरफ्तार नहीं किया है। पुलिस दंगाईयों का साथ दे रही है और मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। जो मुस्लिम नेता घटना स्थल का दौरा करने के लिए आए थे, उन्हें बाहर ही रोक दिया गया। समाचार पत्र ने एक अन्य समाचार छापा है, जिसका शीर्षक है कि ये दंगे पूर्व नियोजित थे। दिल्ली के शाही इमाम का कहना है कि दंगे शुरु होते ही दूसरे फिरके के लोग देशी बम और पेट्रोल लेकर अचानक कहां से जमा हो गए, इसकी सरकार को जांच करनी चाहिए। रोजनामा राष्ट्रीय सहारा (3जून) ने चार व्यक्तियों के मारे जाने का दावा किया हैे। समाचार पत्र ने कहा है कि मरने वाले सभी मुसलमान हैं। मिल्ली काउंसिल जमियते उलेमा हिंद, जमियते आहिले हदीश ने दोषी अधिकारियों को फौैरन निलंबित की मांग की है। इंकलाब का 3 जून का शीर्षक है- दंगों में लापता होने वाले नौजवानों की अभी कोई खबर नहीं है। डर से लोग अपने मकानों से भाग रहे हैं। समाचार पत्र ने दावा किया है कि इन दंंगों में चुन- चुनकर मुसलमानों के दुकानों और मकानों को निशाना बनाया गया है।
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