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जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम राजेश खन्ना (1942 से 2012 तक)

जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम राजेश खन्ना (1942 से 2012 तक)

by सुधीर जोशी
in अगस्त-२०१२, फिल्म, व्यक्तित्व
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भारतीय फिल्मों के सौ वर्षों के इतिहास में यूं तो कई अभिनेता हुए लेकिन इन अभिनेताओं में कुछ तो चंद दिनों में ही भुला दिए गए तो कुछ दर्शकों के बीच इतने लोकप्रिय हुए कि फिल्मी दुनिया उनके नाम पर ही चलती रही। हम बात कर रहे हैं भारतीय फिल्म जगत के पहले महानायक राजेश खन्ना की। इस महानायक का फिल्मी करियर 1966 से शुरु हुआ तो उन्होंने एक के बाद एक 14 हिट फिल्में देकर सभी को चौंका दिया। 163 फिल्मों में अपनी उत्कृष्ट अदाकारी से युवा दिलों पर राज करने वाले राजेश खन्ना का 18 जुलाई को निधन होने के साथ भारतीय सिनेमा जगत के युग का अंत हो गया। राजेश खन्ना ने अपने फिल्मी करियर में रोमांटिक फिल्मों के माध्यम से अपने किरदार को इतनी जिवंतता दी की लोगों को कहना ही पड़ा कि राजेश खन्ना सचमुच महानायक हैं। 1966 से 1990 की कालावधि में भारतीय फिल्म में राजेश खन्ना के सामने कोई टिक नहीं पाया था। जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैंं, जो मकाम वे फिर नहीं आते, सचमुच राजेश खन्ना के दौर में रोमांटिक मूड की फिल्मों ने जो मकाम पाया था, उनके बाद कोई भी अभिनेता उस मकाम को दोबारा नहीं दिलवा सके। राजेश खन्ना पर फिल्माए गए इस गीत ने राजेश खन्ना द्वारा भारतीय फिल्म को दिए गए योगदान को साकार कर दिखाया है। बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, कौन, कब, कहां उठेगा, कोई नहीं जानता। फिल्म आनंद का यह संवाद भारतीय फिल्म जगत पहले सुपर स्टार के लिए भी बिल्कुल ठीक उतरा। वर्षों पहले जिस संवाद को उन्होंने एक फिल्मी परदे पर आनंद सहगल के किरदार के रूप में उतारा था, वहीं किरदार उनके जीवन में सामने सच बनकर खड़ा हो गया।

राजेश खन्ना का जब-जब जिक्र किया जाएगा, फिल्म आनंद की बात तो करनी ही पड़ेगी। ऋषिकेश मुखर्जी की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक आनंद में कैंसर रोग से पीड़ित व्यक्ति की भूमिका में रंग डालकर राजेश खन्ना ने दर्शकों के बीच एक ऐसी पहचान बनायी थी कि राजेश खन्ना नहीं है, तो फिल्म देखना बेकार है।1966 में आखिरी खत फिल्म से अपना करियर शुरु करने वाले राजेश खन्ना ने लगभग ढाई दशकों तक भारतीय फिल्म में राज किया। रोमांटिक फिल्मों के दौर में रो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हलाल, आराधना, सफर, बदनाम फरिश्ते, छोटी बहु, अमर प्रेम, राजा-रानी, आविष्कार, बंधन, सच्चा-झूठा, आपकी कसम, रोटी, प्रेम कहानी जैसी फिल्मों में जो भी किरदार निभाए, वे उस दौर के युवा-वर्ग की धड़कन में ऐसे रचे-बसे कि वे भारतीय फिल्म जगत के पहले महानायक के रूप में सामने आए। जरा सोचिए, जिस हीरो की फोटो से लड़कियां शादी तक कर लेती थीं, उन्हें अपने खून से लिखा हुआ खत भेजती थी, उस कलाकार का उत्कर्ष काल कितना जबर्दस्त रहा होगा। फिल्मी परदे पर अपना जलवा दिखाने राजेश (जतीन) खन्ना जब 1960 में मुंबई आए तो शायद उन्हें भी यह पता नहीं होगा कि वे भारतीय फिल्म के पहले महानायक बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ फिल्म को अपना करियर बनाने वाले राजेश खन्ना को अपने फिल्म क्षेत्र में इतनी ज्यादा सफलता मिली, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। 1965 में युनाइटेड प्रोड्युसर्स एंड फिल्मफेयर की ओर से आयोजित कराया गया टैलेंट हंट उनकी फिल्म करियर की पहली सीढ़ी साबित हुई।

राजेश खन्ना की पहली हिट फिल्म आराधना (1972) ने तो तहलका ही मचा दिया। इस फिल्म का यह गाना मेरे सपनों की रानी, कब आएगी, तू, आ तू जा, हर युवा दिल की धड़कन ही बन गया था। प्यार तथा रोमांस के धरातल पर सुंदर तथा कर्णप्रिय गीतों से सजी राजेश खन्ना की फिल्मों के सदाबहार गाने उस दौर में इतने लोकप्रिय हुए कि राजेश खन्ना की हर फिल्म हिट होने की गारंटी बन गई। प्यार, रोमांस तथा जीवन के संघर्षों में बुनी गई फिल्मों की कहानी जब राजेश खन्ना के अभिनय का साथ पाती थी कि तो जैसे वह यादगार बनने की पक्की मुहर ही बन जाती। पंजाब के अमृतसर में 29 दिसंबर, 1942 को जन्मे राजेश खन्ना का नाम 14 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया, पर वे 6 बार इस पुरस्कार को जीतने में कामयाब हुए। 1970 में पहली बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने वाले पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की सफल फिल्मों का युग 1969 से जब शुरु हुआ तो फिल्मी सफलता की यह पारी काफी लंबी चली। अगर राजेश खन्ना की सफल फिल्मों की बात करें तो आराधना, कटी पतंग, आनंद, आन मिलो सजना, महबूब की मेहंदी, हाथी मेरे साथी, अंदाज का नामोल्लेख किया जाना जरूरी है। राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत फिल्मों का मुख्य बिंदु तो प्यार ही रहा, पर वह प्यार तथा जिंदगी के संघर्षों में किस तरह कठिन दौर से गुजरता है, प्यार की कशिश में टूटती-बिखरती जिंदगी का द्वंद फिल्मी परदे पर हूबहू उतारने की महारथ वॉलीवुड के इस पहले महानायक में कूट-कूट कर भरी हुई थी। ज्यादातर फिल्मों में शर्मिला टैगोर तथा मुमताज के साथ इस महानायक ने जो भी किरदार निभाए, वे इतने उत्कृष्ट रहे कि आज भी उस दौर के लोग यह कहते हुए नहीं चूकते कि महानायक तो राजेश खन्ना ही थे।

शर्मिला टैगोर के साथ आराधना, छोटी बहु, अमर प्रेम, राजा-रानी,सफर, बदनाम रिश्ते तथा मुमताज के साथ दो रास्ते, बंधन, सच्चा-झूठा, दुश्मन, आपकी कसम, रोटी तथा प्रेम कहानी में राजेश खन्ना का अभिनय लाजबाब रहा। अपने चाचा के कहने पर जतीन की जगह अपना राजेश रखने वाले भारतीय फिल्म जगत के इस पहले महानायक ने 1973 में ब्याह रचाया। विवाह से पहले राजेश खन्ना का टीना मुनिम तथा अंजू महेंद्र से अफेयर भी चला, पर उनकी जीवनसंगिनी बनने का सौभाग्य डिंपल कपाडिया को मिला। जिंदगी से प्यार करने वाले और मौत को एक कविता समझने वाले भारतीय फिल्म के इस पहले महानायक का लोकप्रिय नाम भले ही काका होे, पर उनको चाहने वाले, वालियां उन्हें मोहब्बत का फरिश्ता ही कहा करते थे। हालांकि उनके द्वारा अभिनीत किसी भी फिल्म को कम-ज्यादा आंकना ठीक नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने सभी किरदारों को अच्छी तरह निभाया है, पर आनंद फिल्म के संवाद और उस फिल्म में कैंसरग्रस्त रोगी, के किरदार को इस तरह से दर्शकों के बीच पहुंचाया गया है कि लोगों ने उनकी अभिनय कुशलता का जीभर कर गुणगान किया। क्या एक ऐसा कैंसर रोगी, जिसे पता है कि उसकी जिंदगी अब कुछ ही दिनों की रह गई है, उसके बावजूद उसमें जीवन को जीने का आनंद कम नहीं है, वास्तव में दर्शकों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। आनंद फिल्म का यह संवाद मौत तो एक पल है, बाबू मोशाय, क्या फर्क पड़ता है, 70 साल और 6 माह में, जितना जियो, खुशी से जियो। सच तो यह है कि राजेश खन्ना ने अपने फिल्मी करियर के उत्कर्ष काल में जिंदगी को जिस सहजता से जिया, वे वैसी जिंदगी, फिल्मी परदे से ओझल होने के बाद नहीं जी पाए, वे समय के अनुसार खुद को ढ़ाल नहीं सके, इसीलिए जब अमिताभ बच्चन फिल्मी परदे पर सबसे पहले दिखे तो राजेश खन्ना को लगा कि अब मेरा दौर खत्म हो गया है, इसलिए राजेश खन्ना ने फिल्मी परदे से विदा लेना ही ठीक समझा। हालांकि जिस वक्त अमिताभ बच्चन फिल्मी परदे पर अवतरित हुए थे, उस वक्त राजेश खन्ना के चाहने वालों की संख्या में कोई बहुत फर्क नहीं पड़ा था, पर न जाने क्यों? राजेश खन्ना प्रवाह के खिलाफ जाने का साहस क्यों नहीं जुटा पाए और कई फिल्मों को उन्होंने ठुकरा दिया, इसका परिणाम यह हुआ कि जिन फिल्मोें को राजेश खन्ना ने नकार दिया था, वे सभी फिल्में अमिताभ बच्चन को मिल गईं और वे सभी हिट होे गईं। धीरे- धीरे राजेश खन्ना ने खुद को फिल्मों से पूरी तरह से अलग कर लिया और उनकी जगह अमिताभ बच्चन ले ली, इस तरह भारतीय फिल्म जगत के पहले महानायक की सफल फिल्मी पारी का समापन हो गया।

राजेश खन्ना के उत्तराधिकारी बने अभिताभ बच्चन ने बदलते दौर की तर्ज पर खुद को ढालने के लिए पूरी तरह से तैयार कर लिया और प्यार, रोमांस के बीच एक्शन का तड़का लगी फिल्में एक के बाद एक करके स्वीकारनी शुरु दीं और चंद पलों में तस्वीर बदल गई तथा अमिताभ बच्चन भारतीय फिल्म के दूसरे महानायक की उपाधि से नवाजा गया। अमिताभ बच्चन नामक धमाकेदार अभिनेता के आने के बाद अपने अस्त होते करियर को संवारने की कोशिश जब नाकाम होती दिखी तो राजेश खन्ना ने राजनीति में भाग्य आजमाने का मन बनाया और 1991 में अपना कदम राजनीति की ओर बढ़ाया, उन्होंने दो बार लोकसभा का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा, जिसमें वे एक बार भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से हार गए तो एक बार उन्होंने भाजपा प्रत्याशी तथा सिने अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा को पराजित कर लोकसभा का चुनाव जीता। अभिनय से अटूट नाता रखने वाले राजेश खन्ना को राजनीति ज्यादा रास नहीं आई, इसीलिए उन्होंने अभिनय की दूसरी पारी खेलने की इच्छा के अंतर्गत अमृत, धनवान, सौतन, खुदाई फिल्म से अभिनय क्षेत्र में वापसी तो की, पर उन्हें पहले जैसी कामयाबी नहीं मिल पाई। राजेश खन्ना ने आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, जाना, वफा के जरिए फिल्मों से दमदार पुनरागमन की भरसक कोशिश की पर दुर्भाग्य से उनकी फिल्मों में पहले की तरह सफलता नहीं मिली। लगातार कई फिल्में फ्लाप होने से राजेश खन्ना निराश हो गए और उन्होंने फिल्मों से खुद को फिर दूर ही रखा। किसी दौर में उनके नाम सुनकर सिनेमाघरों में उमड़ने वाली भीड़ ने ही जब उन्हें नकार दिया तो फिर पहले जैसा राजेश खन्ना फिर खड़ा नहीं हो पाया। दूसरी पारी में मिली असफलता ने राजेश खन्ना के भीतर इतनी निराशा भर दी कि उनकी तबियत खराब हो गई, उनके स्वास्थ्य के खराब होने, सुधरने की खबरें पिछले एक माह से आती रहां, पर 18 जुलाई को जब यह खबर मिली कि राजेश खन्ना का निधन हो गया है, तो पूरे फिल्म जगत में शोेक की लहर दौड़ गई। फिल्मी दुनिया के इस पहले महानायक तो सदा-सदा के लिए अलविदा हो गए हैं, पर उनके द्वारा अभिनीत किए गए यादगार किरदार सदैव जीवित रहेंगे।

आखिर ऐसा क्या था राजेश खन्ना में

राजेश खन्ना के लिए कहा जाता था कि लड़कियां उनकी एक झलक पाने के लिए लालायित रहती थी। क्या सिर्फ रोमांटिक फिल्म देकर वे अपने दौर के सभी फिल्मी कलाकारों से आगे निकल गए थे। राजेश की लोकप्रियता के पीछे का सच वास्तव में कुछ और ही था। उनकी विशेषता यह थी कि वे किसी भी किरदार को निभाने में पूरी तरह से रम जाते थे। किरदार की तरह ही उनके मुख की मुद्रा, शरीर को गाने के अनुरूप ही प्रदर्शित करने का गुण राजेश खन्ना में अन्य कलाकारों से काफी अलग था। चाकलेटी हीरो की छवि के बावजूद राजेश खन्ना ने दर्शकों को यही बखूबी समझाया कि उनके अभिनय की गहराई किसी दूसरे कलाकार से कहीं ज्यादा है। राजेश खन्ना के किरदारों में दुःखद प्रसंगों को भी सहजता से अभिव्यक्त करने की क्षमता वाले जब अमृत, सौतन, धनवान जैसी अलग तरह की प्रवृति की फिल्मों में जब अभिनय का रंग भरा तो राजेश खन्ना के अंदर का अभिनय क्षेत्र का एक परिपक्व कलाकार भारतीय फिल्म की पटल पर आया। राजेश खन्ना अपने दौर के एक ऐसे अकेले कलाकार रहे, जिन्हें अभिनय जगत के कई धुरंधर भी मिल कर पछाड़ नहीं सके। अगर बदलते दौर की धारा को पकड़कर सदी के महानायक राजेश खन्ना चले होते तो वे शायद सदी के महानायक के खिताब तक पहुंच जाते, पर अफसोस ऐसा नहीं हो सका और उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए सदी के महानायक बनने का रास्ता साफ कर दिया। आनंद के किरदार से ही नहीं, राजेश खन्ना की असली पहचान उनके समग्र अभिनय यात्रा को देखकर किया जाएगा तो उनके अभिनय के विराट स्वरूप का दर्शन अवश्य होगा।

यादगार गाने

‘कहीं दूर जब दिन ढल जाएः आनंद ’, ‘जवानी ओ दिवानीः आन मिलो सजना’, ‘मेरे दिल में आज क्या हैः दाग’, ‘चिंगारी कोई भड़के ः- अमर प्रेम’, ‘रुप तेरा मस्ताना ः आराधना’, ‘वो शाम कुछ अजीब थीः खामोशी’, ‘ये शाम मस्तानीः कटी पतंग’, ‘ये रेशमी जुल्फेंः दो रास्ते’, ‘जिंदगी एक सफर है सुहानाः सफर’, ‘दुनिया मेंः अपना देश’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगीः आराधना’, ‘जिंदगी एक सफर ः सफर’, ‘ये जो मोहब्बत हैः कटी पतंग’, ‘चल-चल चल मेरे साथीः हाथी मेरे साथी’, ‘बागी में बहार हैः आराधना’, ‘कोरा कागज था ये मन मेराः आराधना’, ‘चल दरिया में डूब जाएंः प्रेम कहानी’, ‘कुछ तो लोग कहेंगेः अमर प्रेम’, ‘मैं शायर बदनामः नमक हलाल’, ‘हम दोनों, दो प्रेमीः अजनबी’, ‘मेरे नयना सावन-भादोः मेहबूूूब’, ‘मेरी प्यारी बहनिया, बनेगी दुल्हनियां ः सच्चा- झूठा’, ‘ओ मेरे दिल के चैनः मेरे जीवन साथी’, ‘प्यारा दीवाना होता हैः कटी पतंग’, ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है ः सौतन’, ‘जीवन से भरी तेरी आंखेंः सफर’, ‘करवटें बदलते रहे सारी रात हम आपकी कसम ः आप की कसम’, ‘हजार राहें मुड़के देखी ः थोड़ी सी बेवफाई’, ‘गोरे रंग पे न इतना गुमान कर ःरोटी’, ‘याद हमारी बात सुनोः रोटी’, ‘दीये जलते हैं ः नमक हराम’, ‘
सफल फिल्में – ‘आराधना’, ‘खामोशी’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘सफर’, ‘कटी पतंग’, ‘दुश्मन’, ‘आनंद’, ‘अंदाज’, ‘अमर प्रेम’, ‘आप की कसम’
नायिकाएं – ‘शर्मिला टैगोर’, ‘मुमताज’, ‘आशा पारेख’, ‘तनुजा’, ‘टीना मुनिम’, ‘अंजू महेंद्रु’
पुरस्कार – ‘फिल्मफेयर (6बार)’, ‘बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एवार्ड’, ‘प्राईड ऑफ फिल्म इंडस्ट्रीज’
——

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