सोशल-मीडिया पर राजनीतिक ‘फैक्ट चेक’

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भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर पिछले कुछ वर्षों से जो हो-हल्ला मचा है, उसका कारण यह नहीं कि किसी की स्वतंत्रता छीनी गई है, बल्कि इसके पीछे टीस यह है कि अब हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक मंच मिल गया है।

हिंदी पत्रकारिता दिवस, 30 मई 1826पत्रकारिता की प्राथमिकता को टटोलने का समय

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'हिंदुस्थानियों के हित के हेत' इस उद्देश्य के साथ 30 मई, 1826 को भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी जाती है। पत्रकारिता के अधिष्ठाता देवर्षि नारद के जयंती प्रसंग (वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया) पर हिंदी के पहले समाचार-पत्र 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन होता है।

न्यायपालिका को अधिक मजबूत करना होगा

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स्वाधीनता के बाद अदालतों में आए बदलावों, मुकदमों में होने वाली देरी, उनके कारणों, कसाब मामला व न्याय व्यवस्था की अन्य समस्याओं पर प्रसिद्ध अधिवक्ता उज्ज्वल निकम से हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत है- 

विकास की अवधारणा और सोशल मीडिया

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पछले दो दशकों से इंटरनेट ने हमारी जीवनशैली को बदलकर रख दिया है। एक नये आभासी समाज और समुदाय का निरंतर निर्माण भी हो रहा है। हमारी जरूरतें, कार्य प्रणालियां, अभिरुचियां और यहां तक कि हमारे सामाजिक मेल-मिलाप और सम्बंधों के ताने-बाने को रचने में कंप्यूटर और इंटरनेट ही बहुत हद तक जिम्मेदार है।

उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता

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उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का सम्बंध ईसाई मिशनरी विरोध और आजादी के आंदोलन से रहा है। यहां पत्रकार एवं पत्रकारिता दोनों अपनी मिशनरी कार्य शैली के कारण अपनी अलग पहचान बनाने में अग्रणी रहे हैं। हिंदी का पहला अख़बार १८२६ में ‘उदन्त मार्तंड&rsq

मीडिया के मंच पर मानवाधिकार का मुखौटा

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पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के प्रश्न को राष्ट्रीय से अधिक सभ्यता से जुड़ा प्रश्न मानता रहा है। इसी मान्यता के आधार पर वह इस्लामी दुनिया को यह समझाने में एक हद तक सफल भी रहा है कि गजवा-ए-हिंद अथवा खिलाफत के इस्लामी स्वप्न का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पड़ाव जम्मू-कश्

मीडिया चौपाल में विकास और सरोकारों पर मंथन

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        विज्ञान-विकास और मीडिया पर हरिद्वार के निष्काम सेवा ट्रस्ट     में दो दिवसीय ‘मीडिया चौपाल’ सम्पन्न हुआ। विज्ञान, विकास और सामाजिक सरोकार के विषयों को केन्द्र में रख कर ‘मीडिया चौपाल&

चौपाल की चहल-पहल और सूनापन

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मैं बुन्देलखण्ड के एक गांव की चौपाल हूं। यहां की स्थानीय बोली में चौपाल को ‘अथाई’ कहते हैं जो शायद ‘अस्थायी’ का अपभ्रंश है, क्योंकि यहां की चहल-पहल अस्थायी और अनियमित रहती है। यहां कुछ भी पहले से निश्चित नहीं होता। लोग अनायास एक

 ग्रामीण पत्रकारिता के बहाने

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 आज की पत्रकारिता व्यावसायिक है, शहरी हो गई है| ग्रामीण पत्रकारिता  अपने अस्तित्व की चुनौती से जूझ रही है| पत्रकारिता में गांव की भाषा, बोली, परंपरा, संस्कृति आदि नगण्य है| हिन्दी पत्रकारिता में भी अंग्रेजी का बोल-बाला है| यह स्थिति समय के साथ बदल रही है, बदलनी ही होगी  पत्रकारिता को गांवोन्मुख बनाने की आज महती आवश्यकता है|

वेब चैनल्स कि मनोरंजक दुनिया

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मनोरंजन और हम मनुष्यों का नाता बहुत ही पुराना है। प्राचीन काल में नाटक और नृत्य नाटिकाओं से लेकर टेलीविजन आने के बाद धारावाहिकों तक मनोरंजन के अनेक साधन मनुष्य के पास रहे हैं। मनोरंजन के बिना जीवन है ही क्या? समय बदला और समय के साथ मनोरंजन के साधन भी बदले। आज मनोरंजन की आभासी दुनिया का प्रमुख साधन है इंटरनेट। जिस प्रकार टी.वी. पर अनेक चैनल और उन चैनलों पर अनेक धारावाहिक आते हैं, उसी प्रकार आज इंटरनेट पर भी अनेक वेब चैनल्स उपलब्ध हैं।

मार खाना छोड़ो, मारना सीखो

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वर्तमान युग में सत्ता कहां होती है? इस सवाल का जवाब देते हुए कहा जाता है कि, सत्ता के पांच केन्द्र होते हैं (१) ज्ञान सत्ता (२) धनसत्ता (३) राजसत्ता (४) धर्मसत्ता और (५) प्रसार माध्यम (मीडिया) की सत्ता।

कोशी दंगे पर उर्दू मीडिया का रुख

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पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के कोशी नामक कस्बे में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उसका लाभ उठाकर अधिकांश उर्दू समाचार पत्रों ने प्रेस काऊंसिल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए सांप्रदायिक वैमनस्य को भड़काने का खुलकर प्रयास किया, जबकि अंग्रेजी एवं

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