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सूर्योदय हो रहा है

सूर्योदय हो रहा है

by हिंदी विवेक
in अगस्त-२०१२, संपादकीय
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15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस, स्वतंत्र भारत में भारतीय जनता की ओर से भारतीय जनता के लिए अमल में लाए गए भारतीय संघ राज्य का सालाना उद्घोष करने वाला यह दिन। 65 वर्ष पूर्व लगाए गए पौधे की आज क्या स्थिति है? लोगों का कितना कल्याण हुआ?। इन 65वर्षों में विकास की गंगा सामान्य लोगों तक कितनी पहुंच सकी है, सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र रुप से निर्णय लेने की क्षमता का कितना पालन किया गया? व्यक्तिगत, सार्वजनिक तथा राष्ट्रीय जीवन में नागरिक के रुप में हम सभी ने नियमोें का कितना पालन किया? इस सभी बातों की पड़ताल स्वतंत्रता दिवस का औचित्य साध कर करनी जरुरी हैे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, बाबा साहेब आंबेडकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस या फिर राजा राममोहन रॉय के विचार चाहे जो हों, पर उनकी माता का नाम एक ही था, भारत माता। इन सभी में त्याग तथा माता के आंसू पोंछने की छटपटाहट बहुत ज्यादा थी। अत्यधिक सादगी, त्याग की प्रवृति तथा समाज से निकटता होने के कारण पुराने जमाने के ये नेता समाजोत्थान का आधार बने। देश की निःस्वार्थ सेवा करने की मूल धारणा के कारण उनकी बातें जनसामान्य तक पहुंचती रहती थी, इस कारण सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी आज के मुकाबले बहुत अलग था। भगवान के चरणों पर फूल रखने की तरह उस समय के नेता अपना पूरा जीवन भारत-माता की रक्षा के लिए समर्पित कर देते थे। स्वंतत्रता के बाद धीरे-धीरे हवा बदली, हवा में प्रदूषण बढ़ा, इस प्रदूषित हवा में त्याग, राष्ट्र के प्रति समान लगाव, देश-प्रेम जैसी बातेंं लुप्त होती चली गईं। समाज में हुए इस बदलाव के लिए आज के दौर के नेता पहले के नेताओं को दोेषी ठहरा रहे हैं। आज कोई ऐसा नहीं बचा है कि उसके त्याग-देश प्रेम के आधार पर उनके चरणों पर सिर झुकाया जाए, ऐसा उल्लेख कई बार हम बातचीत के समय करते भी हैं, लेकिन इस बारे में खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि अगर कोई ऐसे चरण दिख जाएं तो क्या हममें उन चरणों को छूने की पात्रता है? क्योंकि हम लोग भी उसी प्रदूषण युक्त वातावरण में जी रहे हैं। 65 वर्ष पूर्व स्वीकार की गई लोकतांत्रिक व्यवस्था भारतीय लोगों में कितनीं रच – बस पाई है, लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र के साथ ही साथ लोगों ने अपने कर्तव्य को कितना निभाया है? यह जांचना भी कम महत्वपूर्ण बात नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाताओं को पूरा अधिकार दिया गया है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करके अपनी पसंद का जनप्रतिनिधि चुनें। लोकतांत्रिक पद्धति में जनप्रतिनिधियों को मतदान के जरिए चुनने की व्यवस्था है, पर इस बारे में आज का चित्र क्या दिखाई देता है? चुनाव के प्रति मतदाताओं की उदासीनता एक चिंता का विषय है। दिनों-दिन सुशिक्षित समाज की मतदान के प्रति रूचि घटती जा रही है, इस कारण जो हालात पैदा होंगे, तो यही कहा जाएगा कि जैसी प्रजा वैसा राजा। मतदान के प्रति उदासीनता के कारण जो जनप्रतिनिधि चुनकर आते हैं, वे हम आपके सिर पर सवार हो जाते हैं, जिसे हम मतदान के जरिए चुनते हैं, वह चुनाव जीतने के बाद जनता की ओर ध्यान न देकर धन कमाने, अपने कुछ खास समर्थकों के हितों के लिए कार्य करने तथा अपने दलालों के कहने पर राजनीति करने लगता है। राजनीति का यह रूप पिछले 65 वर्षों से देश में दिखता रहा है।

इस कारण देश में लोकतंत्र को मजबूती नहीं मिल पाई। लोकतंत्र में भ्रष्ट लोगों का ऐसा जमावड़ा हो गया है, जिससे लोकतंत्र अपनी मूल धारणा से ही भटक गया है। भ्रष्ट लोगों पर अंकुश लगाने के लिए एक अलग कानून बनाना जरुरी हो गया है। भ्रष्ट नेता अण्णा हजारे जैसे समाजसेवक की ओर से भ्रष्टचार के खिलाफ किए जाने वाले आंदोलनों तथा सर्व-सामान्य जनता की मांगों को संगठित तरीके से अस्वीकार करते रहे हैं। कदम- कदम पर सर्व सामान्य लोगों को भ्रष्टाचार से मुकाबला करना पड़ रहा है। पिछले 65 वर्षों में विकास गली-कूचों तक नहीं पहुंच पाया, पर भ्रष्टाचार तो रग- रग में बस चुका है। भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, ऐसा ढिंढोरा भी पिटा जाता रहा है। भारत अगर आर्थिक महाशक्ति बनने के करीब पहुंच चुका है तो फिर सामान्य जनता के जीवन स्तर में सुधार क्यों नहीं हुआ? जब हम शक्तिशाली भारत बनाने का सपना देखते हैं तो सिर्फ आर्थिक विकास दर, विदेशी निवेश यही बलशाली भारत के, भारत की समृद्धि का मापक माना जाता है, ऐसा ही हम समझते हैं। जब हम शक्तिशाली भारत का सपना देखते हैं तब संस्कृति, समृद्धि और सुराज्य से परिपूर्ण भारत की संकल्पना मन में होेती है। बलशाली भारत की संकल्पना संस्कृति, समृद्धि तथा सुराज्य में ही निहित है। 5000 वर्षों की सांस्कृतिक विरासत प्राप्त इस महान देश पर सिकंदर, बाबर जैसे मुगल शासकों के अलावा अंग्रेजों ने काफी समय तक हुकुमत की, यहां पर हमले कर कई धरोहरों को नुकसान पहुंचाया गया। इन शासकों का आक्रमण सिर्फ राजनीतिक न होकर धार्मिक तथा सांस्कृतिक भी रहा। इसके साथ ही अपने इस महान देश में बौद्धिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक सुप्त शक्तियां भी परंपरागत तरीके से अस्तित्व में थीं, जो आज भी अस्तित्व में हैं। इन्हीं के आधार तथा संस्कार पर भारत ने सभी संघर्षों को मात देकर खुद को आज के स्पर्धात्मक युग में मजबूती से खड़ा रखा, इसलिए लोग भारत को भविष्य की महाशक्ति के रूप में देख रहे हैं। आज के युवक इस स्वतंत्र भारत में सुराज्य आएगा, ऐसा सपना अपने मन में संजो कर आगे बढ़ रहे हैं। इन युवाओं का सपना साकार करने की जिम्मेदारी राजनेताओं के साथ-साथ हम सभी की भी है। देश को मिली स्वंतत्रता का उपयोग उचित तरीके से किया गया तभी शक्तिशाली भारत का निर्माण हम कर सकेंगे और भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए बीते समय से बहुत अच्छे संकेत के रूप में हमें मिल भी चुके हैं। भ्रष्टाचार, काले धन के खिलाफ देश में प्रचंड जनांदोलन नए सिरे से किए जाने लगे हैं। इन आंदोलनों में युवकों की भागीदारी एक शुभ संकेत ही कहा जाएगा। देश में पहली बार सत्ताधारियों, मंत्रियों, सांसदों को भ्रष्टाचार के प्रकरणों में जेल की हवा खानी पड़ी है, इन सब देखकर तो यह लगता है कि एकदम निराशाजनक चित्र नहीं है। कहीं तो सूर्योदय हो रहा है…. ऐसी आशा की किरण इस 65 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के समय निकलती दिखाई दे रही है।
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