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ॐ गं गणपतये नम:॥

ॐ गं गणपतये नम:॥

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in सामाजिक, सितंबर- २०१२
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सत्य सनातन हिंदु धर्म में भगवान गणपति मंगलमूर्ति हैं। सिद्धिदायक, विघ्नविनाशक, सभी प्रकार की समृद्धि के प्रदाता भगवान श्री गणेश भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा के प्रथम देवता हैं। गणपति, गणेश को प्राचीन वैदिक ऋषियों ने पूर्ण परमात्मा और इस जगत का पालन-पोषण करने वाले देव के रूप में निरूपित किया है। गणपति समाज के अग्रणी और प्रथम देव के रुप में सबके स्वामी हैं और पालनकर्ता हैं, ऐसे प्रथम देव का पूजन-अर्चन तथा आराधना प्रत्येक शुभ और मंगल कार्य को निर्विघ्न और पूण रूप से संपन्न करता है, इसीलिए सभी कार्य को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश से प्रार्थना पूर्वक निवेदन किया जाता है।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:
निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

हे विशाल शरीर और वक्र (टेढ़ी) सूंड़वाले, करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी और प्रकाशमान भगवान श्री गणपति हमारे सभी कार्यों को हमेशा निर्विघ्न संपन्न करें।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी महासिद्धिदात्री विनायक चतुर्थी कहलाती है। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव सर्वाधिक उत्साह और उल्लास से मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन महाराष्ट्र के गांव-गांव और गली-गली में गणपति बप्पा मोरया का जयघोष सुनाई देता है। मोरया का अर्थ है- नमस्कार।

कथा ऐसी है कि भगवान का मोरया नामक एक भक्त था, जिसने अपनी अटूट श्रद्धा और भक्ति से गणेश की उपासना करके उनकी कृपा प्राप्त की थी। कालांतर में भगवान गणपति के साथ उसका नाम भी जुड़ गया और मोरया सदा-सर्वदा के लिए अमर हो गया, वह समर्पण का प्रतीक है और इस भाव से घर-घर में गणपति मूर्ति की दस दिनों के लिए स्थापना की जाती है। विनायक चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला यह उत्सव पूरे देश में बड़ी श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन का निषेध बताया गया है। मान्यता यह है कि यदि इस दिन चंद्र-दर्शन किया जाए तो कलंक लगता है, ठीक उसी प्रकार से जैसा श्रीकृष्ण पर मणि चुराने का कलंक लगा था। लेकिन इसका मानव जीवन में अर्थ बताया गया कि ‘गणेश चतुर्थी’ अर्थात समाज के स्वामी अथवा गणपति की चतुर्थ अवस्था, जो कि तूर्यावस्था कहलाती है, जो सभी प्रकार की सिद्धि प्रदान करती है। चंद्रमा मन का देवता है-पुरुष सूक्त के मंत्र में कहा गया है- चंद्रमा मनसो जात: अत: प्रतीकात्मक तौर पर चंद्रमा दर्शन न करने का अर्थ यह है कि मन के वश में न रहकर अपनी विवेक बुद्धि अर्थात गणपति के अधीन रहा जाए और जीवन में विवेक का अनुसरण किया जाए। भगवान गणपति विवेक बुद्धि के देवता हैं, उनका पूजन-अर्चन जीवन में रिद्धि तथा सिद्धि प्राप्त कराती है। पुराणों में ‘गणेश’ नाम की महिमा का वर्णन बड़े ही भाव से किया गया है-

जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचक:।
तयोयोंगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नम:॥

गणेश शब्द में ‘ग’ अक्षर जगदरूप है और ‘ण’ कार ब्रह्मवाचक है। इन दोनों के संयुक्त से होने वाले गण के स्वामी-ईश को गणेश कहा गया। दूसरा अर्थ बताया गया-

ज्ञानार्थवाचको ‘ग’ श्च ‘ण’ श्च निर्वाणवाचक:
तयोरीश पर ब्रह्मं गणेश प्रणमाभ्यह्म॥

‘ग’ अक्षर ज्ञान से परिपूर्ण है और ‘ण’ निर्वाण-मोक्ष प्रदाता है, ऐसे ज्ञान और निर्वाण के स्वामी गणेश को बारंबार नमस्कार है। भगवान गणपति प्रणवाक्षर ‘ॐ’कार मय है- गणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया है- त्वमेव सर्व खल्विदं ब्रह्मासि- गणपति साक्षात ब्रह्मस्वरूप हैं। यही ब्रह्म कानादात्मक रूप प्रणव-ओंकार है, उसी के आधार पर गणेश की आकृति-स्वरूप की कल्पना की गई है। ओंकार का लिप्यात्मक रूप ही गणपति है। ॐकार को पदार्थ सृष्टि में लाने का काम गणपति के स्वरूप से प्राप्त होता है।

बीसवीं शताब्दी में महात्मा बाल गंगाधर तिलक ने समाज को संगठित और सुदृढ़ करने हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा का प्रारंभ किया।

महाराष्ट्र के श्रेष्ठ संतों की पावन परंपरा ने जिनमें समर्थ स्वामी रामदास, संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम तथा संत नामदेव ने भगवान गणपति के बड़े भावपूर्ण आराधना करने की व्यवस्था दी है। समर्थ स्वामी रामदास ने अपने दासबोध में भगवान गणपति का बहुत ही मनोरम वर्णन किया है, जो भक्त को आनंद प्रदान करता है। समर्थ स्वामी के भाव शब्दों से भगवान गणपति की भव्यता प्रतीत होती है।

चतुर्भुज लंबोदरा। कांसे कासिला पीतांबर
डोलवी मस्तक जिह्वा लाली। घालू निर्बसला वेटांली
उभारोनि नामिकमली। टकण्मंकां आहे
नाना याति कुसुममाला। व्यालपरियंत रुलती गलां
रत्नचड़त हृदय कमला। वरीपटक शोभे

गणेश चतुर्थी के दिन भक्त मंगलमूर्ति भगवान गणपति को अपने घर लाएं और प्रार्थना करें कि वे हमें बुद्धि, विवेक और ज्ञान प्रदान करें। साथ ही समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार और बढ़ते व्याभिचार को समाप्त करें तथा हम सभी भारतवासी मानवीय गुणों से युक्त हों। हममें विवेक जागृत हो तथा हम सब अपने समाज का निर्माण करने में अपना यथाशक्ति योगदान करने में सफल हों।

आदि पूज्यं गणाध्यक्ष मुमापुत्रं विनायकम्।
मंगल परं रूपं श्री गणेशं नमाम्यहम्॥
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Tags: elephant godheritagehindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu godhindu traditionsshri ganesh

वीरेन्द्र याज्ञिक

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