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वास्तुशान्ति करना आवश्यक

वास्तुशान्ति करना आवश्यक

by डॉ. रविराज अहिरराव
in अक्टूबर-२०१२, वास्तुशास्त्र
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नये घर का निर्माण करना और उसमें विधि-विधान से प्रवेश करके जीवन-यापन करना हरेक व्यक्ति की इच्छा होती है। नये घर की वास्तुशान्ति करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सबके मन में यह विचार होता है कि नया घर उसके लिए लाभदायी हो। खूब यश प्राप्त हो, पूरा परिवार स्वस्थ रहे, धन-धान्य से भरा रहे। एक बार वास्तुशान्ति करना सुनिश्चित हो जाने पर मन में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगते हैं। इस विषय में अनके प्रकार की सलाह मिलने लगती हैं। इसलिए वास्तुशान्ति को लेकर आपके मन में उठने वाले तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करके तैयार किए गए इस लेख में आपकी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया गया है।

कहीं भी भवन का निर्माण करते हुए भूमि को सम्मानजनक महत्व दिया जाता है। भूमि पर कुदाल, फावड़ा तथा अन्य प्रकार के औजारों से आघात होता है। गृह निर्माण करने के दौरान प्रकृति की व्यवस्था में अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं का विनाश होता है। बहुत से पेड़-पौधे नष्ट हो जाते हैं। भवन की आन्तरिक संरचना तैयार करने के साथ ही पंचतत्व- पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु तथा अष्ट दिशाओं-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, नैऋत्य, आग्नेय, वायव्य और ईशान्य में संतुलन स्थापित करना भी आवश्यक होता है। यह सब वास्तुशास्त्र के अनुरूप होना चाहिए। बहुत से लोग इस ओर ध्यान नहीं देते और कभी-कभी अनजाने में पंचतत्वों में संतुलन नहीं स्थापित किया जाता।

इन पंचतत्वों तथा अष्ट दिशाओं का संतुलन कभी-कभी बिगड़ जाता है, या जाने-अनजाने बिगाड़ दिया जाता है। उदाहरण के लिए- किसी एक दिशा में यदि बाल्कनी या शयनकक्ष की खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत खराब दिखाई देता है अथवा नगर की रचना के अनुरूप किसी दिशा में जल या मल निकास की पाइप होती है। इस तरह के छोटे-मोटे (20 से 25) वास्तुदोष अवश्य होते हैं। हम सबके घर में, यहां तक भी मेरे भी घर में ऐसे वास्तुदोष हैं। भवन निर्माण के समय प्रकृति पर किए गए आघात और असंतुलन के परिमार्जन करने और भूमि को सम्मान-प्रदान करने, प्रकृति के त्रिविध-दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से रक्षा करने का दायित्व जिन, स्वर्गस्थ देवी-देवताओं को दिया गया है, उन ‘वास्तोष्पति’ अर्थात वास्तुदेवता की विधिवत् प्राणप्रतिष्ठा करने का माध्यम ही वास्तुशान्ति की पूजा है।

इस पूजा के माध्यम से सभी देवी-देवताओं और नवग्रह इत्यादि का आह्वान करके, उनकी शास्त्रोचित पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे इस घर पर कृपादृष्टि रखें। इसी तरह नांदीश्राद्ध जैसी पूजा के द्वारा अपने कुल और परिवार की सभी स्वर्गीय आत्माओं से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है और उनकी मुक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है। मातृपूजन के रूप में आदिशक्ति के तीनों रूपों- महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती की पूजा के साथ चौंसठ योगिनियों का आह्वान करके पंच प्रकार से उनकी पूजा करना भी आवश्यक होता है।

संक्षिप्त वास्तुशान्ति की पूजा में गणेश पूजन, पञ्चगव्य मिलाना, दिग्रक्षण, आचार्य का वरन, संकल्प प्रार्थना, स्वस्तिवाचन, पुण्याहवाचन, मातृ पूजन, नान्दी श्राद्ध, नवग्रह स्थापना, वास्तु के मण्डल देवता की स्थापना, दसों दिग्पालों का आह्वान तथा स्थापना, वास्तुपुरुष की प्रतिमा का षोडशोपचार पूजा तथा प्राण प्रतिष्ठा, रुद्र पूजन, चौषठयोगिनी पूजन, होमकुण्ड, पंचभू संस्कार, अग्नि स्थापना, हवन के माध्यम से सभी पूजाओं की सम्पन्नता, पूर्णाहुति, क्षेत्रपाल पूजन, बलिपूजन, नैवेद्य, आरती इत्यादि करना आवश्यक है।

सर्वसाधारण रूप से चार से छ: पुरोहितों के एक समूह द्वारा शास्त्रोक्त पद्धति से वास्तुशान्ति की पूजा सम्पन्न करने मे पाँच-छ: घण्टे लगते है। संक्षेप में भी यह पूजा अत्यन्त शुद्ध रीति से गायन-वादन के साथ सात्विक वातावरण में शास्त्र सम्मत पद्धति से होनी चाहिए।

ध्यान देने वाली बातें-

* वास्तु पुरुष की स्थापना करते समय घर के आग्नेय कोने में ईंट का दो-तीन इंच का टुकड़ा दीवार से निकालकर वास्तुपुरुष को इस तरह से लेटाना चाहिए कि वे पलट न जाएं। उनका सिर ईशान्य दिशा में और पैर नैऋत्य दिशा में होना चाहिए। उनकी दोनों भुजाएं आग्नेय और वायव्य दिशा में हो जाएंगी।

* घर भूमि पर बना हो या बहुमंजिली ऊँची इमारत में किसी भी मंजिल पर हो, वास्तुपुरुष की स्थापना आग्नेय दिशा में ही करना चाहिए।

* वास्तुपुरुष की स्थापना अन्य किसी भी दिशा में करना शास्त्र सम्मत नहीं है।

* दीवार खोदकर, जमीन में गड्ढ़ा करके अथवा पूजाघर में वास्तुपुरष को किसी भी कारण से रखना या किसी भी कार्य से वहां पर पुरोहित को ले जाना उचित नहीं होता है।

* यदि आग्नेय दिशा में योग्य कोना न उपलब्ध हो या पवित्रता की दृष्टि से उचित न हो तो उसके समीप ही पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की दीवार में उचित स्थान पर स्थापना करनी चाहिए।

* वास्तुपुरुष की स्थापना की जगह यदि रसोईघर में प्लेटफार्म के नीचे आती है, तब भी ठीक है। किन्तु रसोईघर की आग्नेय दिशा का कोना पूरे मकान की आग्नेय दिशा का कोना होना चाहिए। यह अत्यन्त महत्व का विषय है। किसी भी अन्य कमरे का आग्नेय कोना ठीक नहीं माना जाता।

* वास्तुपुरुष की प्रतिमा अपनी क्षमता के अनुसार सोना, चांदी, तांबा की बनवाई जा सकती है। प्रतिमा के साथ हरी दूब, पंचधातु, पंचरत्न और पंचधान्य रखना चाहिए।

* यदि आपने पुराने घर को खरीदा हो तो यह पता लगा लेना आवश्यक होता है कि पहले के मालिक ने मकान की वास्तुशान्ति की है या नहीं। यदि कोई जानकारी न मिल रही हो, तो उस पुराने घर की वास्तुशान्ति कर लेना चाहिए। यदि पहले वास्तुशान्ति की गयी हो, तो केवल वास्तुयज्ञ, वास्तुपुरुष की प्राणप्रतिष्ठा और स्थापना के अतिरिक्त अन्य सभी पूजा विधि शास्त्रसम्मत पद्धति से कर लेनी चाहिए।

* यदि आपने अपने मकान में वास्तुपुरुष की स्थापना करने में जगह सम्बन्धी या कोई अन्य गलती की है, तो वास्तुपुरुष की प्रतिमा निकालने की जरूरत नहीं है। केवल पांच या दस वर्षों के उपरान्त नये वास्तुपुरुष की शास्त्रीय विधि-विधान से पुन:स्थापना करनी चाहिए।

* हरेक मकान मालिक को प्रत्येक पांच से दस वर्षों की अवधि के अन्तराल पर वास्तुयज्ञ करते रहना चाहिए।

* पुराना घर गिराकर नया घर बनाने या घर में बंटवारा होने अथवा किसी कारण के घर के एक भाग क्षतिग्रस्त होने पर मरम्मत करने के समय नयी वास्तुशान्ति करना आवश्यक होता है।

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