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दीपावली एक – सन्दर्भ अनेक

दीपावली एक – सन्दर्भ अनेक

by वसुधा गोपाल
in नवम्बर- २०१२, सामाजिक
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दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का वर्णन सर्वप्रथम ऋग्वेद के ‘श्री सूक्त’ में मिलता है, जो कि भगवान श्रीराम के समय से काफी पूर्व का है। ‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’ में इनकी स्वर्ण लक्ष्मी, गृह लक्ष्मी व जय लक्ष्मी के रूप में वन्दना की गयी है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के जैन व बौद्ध ग्रन्थों में भी महालक्ष्मी, कुमारिका व चक्रेश्वरी के रूप में लक्ष्मी के पूजन का उल्लेख है। मौर्य वंश, गुप्त वंश, सुंग व सात वाहन काल में भी गज सेविका, गज लक्ष्मीस्वरूपा का अंकन प्राप्त होता है। लक्ष्मी के पद्महस्ता, पद्मस्थता, पद्मवासिनी स्वरूप की मूर्तियां आज भी मथुरा के संग्रालय में मौजूद हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता सहित इसी दिन रावणादिका संघर करके 14 वर्षों के वनवास से वापस अयोध्या लौटे थे। साथ ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने समस्त अयोध्यापुरी का दीपों से सज दीपावली का त्योहार मनाया था।

कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीकृष्ण सर्वप्रथम ग्वाल-बालों के साथ वन में गायें चराने गए थे। सायंकाल उनकी वापसी पर गोकुलवासियों ने घर-घर दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने धराधाम पर लीलाओं का संवरण कर गोलोक गमन किया था।

दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचरी नरकासुर का वध किया था। इसके अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने जब अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तो बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी थी। महाप्रतापी राजा बलि ने सब कुछ समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी थी। भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दान वीरता से प्रभावित हो विष्णु भगवान ने उन्हें पाताल लोक का राज्य तो लौटा ही दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उसकी स्मृति में भू-लोकवासी सदैव प्रति वर्ष दीपावली मनाएंगे।

दीपावली के ही दिन राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया था। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तब भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इस घटना की स्मृति में उनके शांत रूप लक्ष्मी का पूजन आरम्भ हुआ। जो कि अब भी किया जाता है। महाराज धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी दिन राजसूय यज्ञ किया था। अतएव रात्रि में उनकी पूजा में दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।

पौराणिक कथा के अनुसार जब महाराज गणेश स्वामी ने अपनी ऐहिक लीला समाप्त की, तब 18 राज्यों के राजाओं ने एकत्रित कहा था कि ज्ञान की ज्योति बुझ गई है। अत: अब दीपों की ज्योति जलाई जाए।

ऋषि उद्दालक ने अपने पुत्र नचिकेता को यमराज को दान में दे दिया था। यमलोक में नचिकेता ने ब्रह्मलोक का ज्ञान प्राप्त किया। इस खुशी में इस दिन मृत्यु लोक में सर्वत्र दीप जलाकर प्रकाशोत्सव मनाया गया था।

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार लोग कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मन्दिरों और घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप जलाकर दीपदान महोत्सव मनाते थे। साथ ही मशालें लेकर नाचते थे और पशुओं (भैंसों और साड़ों) की सवारी निकालते थे।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध जब 17 वर्ष बाद अपने गृहनगर कपिलवस्तु वापिस लौटे तो उनके अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम प्रवचन के दौरान अप्प दीपो भव का नारा देकर दीपावली को नया आयाम प्रदान किया था।

सम्राट अशेक ने दिग्विजय का अभियान इसी दिन प्रारम्भ किया था। इसी खुशी में दीपदान किया गया था।
सम्राट विक्रमादित्य का राज्यभिषेक दीपावली के ही दिन हुआ था। इसलिए दीप जलाकर खुशियां मनाई गई।
जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने भी दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए महावीर निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसीलिए अनेक प्रातों में इसे वर्षारम्भ की शुरूआत मानते हैं। प्राचीन जैन ग्रन्थ ‘कल्प-सूत्र’ में कहा गया है कि महावीर स्वामी के निर्वाण के साथ जो अंर्तज्योति सदा के लिए बुझ गई है, उसकी क्षतिपूर्ति के ल्एि हम बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएं।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन सन् 1883 में अजमेर में अपने प्राण त्यागे थे। अत: आर्य समाज में इस दिन का विशेष महत्व है।

स्वामी रामतीर्थ भी दीपावली के दिन इस धरा पर अवतीर्ण हुए थे और उन्होंने इसी दिन सन् 1906 में अपना शरीर त्यागा था। उन्होंने दीपावली के ही दिन संन्यास ग्रहण किया था।

दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगलबादशाह अकबर के शासन काल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बांस पर एक बड़ा आकाश दीप, दीपावली के दिन लटकाया जाता था। गोवर्धन पूजा में अकबर स्वयं भाग लेते थे तथा गायों का निरीक्षण करते थे। शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में समूचे शाही

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