हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
वस्त्रोद्योग पुन: अपना  गौरव प्राप्त करेगा

वस्त्रोद्योग पुन: अपना गौरव प्राप्त करेगा

by pallavi anwekar
in दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२०, विशेष, संपादकीय
0

सर्वप्रथम, हिंदी विवेक के आप सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। आशा है आप सभी स्वस्थ व सकुशल हैं तथा कोरोना महामारी से निर्भय होकर परंतु सभी आवश्यक सावधानियों को बरतते हुए पुन: अपनी दिनचर्या शुरू कर रहे हैं। भारत जैसे उत्सवप्रिय समाज पर कोरोना की काली छाया अभी भी गहराई हुई है। परंतु समाज में उत्साह अब धीरे-धीरे लौट रहा है। मार्च से लेकर अभी तक भारत के विविध प्रांतों में विविध त्यौहार मनाए गए। इस वर्ष इन त्योहारों को मनाने की पारम्परिक पद्धति में बहुत परिवर्तन दिखाई दिया, या यों कहें कि आडम्बरों को छोड कर भारतीय समाज वास्तविक रूप से पारम्परिक पद्धति से त्यौहार मना रहा था। लोग महीनों पहले बने चॉकलेट के डिब्बों की जगह घर पर बनी मिठाइयों का आदान-प्रदान कर रहे थे। नए वस्त्रों और आभूषणों के नकली दिखावे का स्थान एक दूसरे के सही मायनों में स्वस्थ रहने की शुभकामनाओं ने ले लिया था। भगवान गणेश और मां दुर्गा भी इस बार बडे- बडे पंडालों और डीजे के शोरगुल के स्थान पर आत्मीयता से की गई आरती से अधिक प्रसन्न हुए होंगे। कोरोना से फैले नकारात्मक वातावरण में यह एक सकारात्मक बात है कि हम आडम्बरों को त्यागकर अपने मूल की ओर लौट रहे हैं।

दीपावली तमस को मिटाकर जीवन में रौशनी लाने वाला त्यौहार है। सामाजिक जीवन में तमस का अर्थ निष्क्रीयता, आलस्य, नकारात्मकता और निराशा है, जिसे हम दीपावली के दिन अपने कर्मरूपी दिये के माध्यम से मिटाने का संकल्प लेते हैं। दीपावली के दिन जलाया हुआ प्रत्येक दीपक इस बात का संकेत होता है कि आने वाले सम्पूर्ण वर्ष में हम सभी सम्पूर्ण उत्साह के साथ अपने कार्यों और कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहेंगे। कोरोना ने तो सम्पूर्ण समाज को बलपूर्वक निष्क्रीय बना रखा था। उद्योग-व्यापार बंद होने के कारण सम्पूर्ण आर्थिक चक्र ही बंद पडा था। परंतु अब धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियां शुरू हो रही हैं। देश का आर्थिक पहिया फिर चलने लगा है। दीपावली के आते-आते सामाजिक जीवन का पूर्ववत शुरू होना शुभ संकेत ही कहा जा सकता है।

भारतीय अर्थ चक्र घूमने तो लगा है, परंतु इसे आवश्यक गति पकडने में कुछ समय लगेगा। लघु तथा कुटीर उद्योगों से लेकर बडी-बडी इंडस्ट्री तक सभी के सामने कई चुनौतियां, कई समस्याएं हैं। लॉकडाउन के कालखंड से लगातार हिंदी विवेक के द्वारा विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों की समस्याओं पर प्रकाश डालने वाले विशेषांकनियमित रूप से प्रकाशित किए जा रहे हैं। साथ ही हिंदी विवेक के मंच (वेबिनार) से केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने उपस्थित उद्योगपतियों को आवश्यक सभी सुविधाएं तथा सहायता प्रदान करने का आश्वासन भी दिया था।

अपनी इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दीपावली का उद्योग विशेषांक प्रकाशित किया जा रहा है। हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसका थोडा तार्किक दृष्टि से विचार करें और हमारे इतिहास का थोडा अधिक गहराई से अध्ययन करें तो हमें यह ज्ञात होगा कि प्राचीन काल में जब क्रय-विक्रय के लिए मुद्रा का चलन नहीं था तब लोग वस्तुओं के आदान-प्रदान के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। अर्थात जिस प्रकार कृषि से प्राप्त उपज अगर किसान बेचता था तो उसके एवज में किसान को पैसे नहीं वरन जीवनयापन के लिए आवश्यक वस्तुएं मिलती थीं। या ठीक इसके विपरीत किसान को अन्य वस्तुएं खरीदने के लिए अपनी उपज का कुछ भाग देना पडता होगा। दोनों ही तरह से विचार करें तो यही बात सामने आती है कि कृषि जितनी महत्वपूर्ण थी, उतने ही अन्य व्यापार- उद्योग भी महत्वपूर्ण थे। भारत की अर्थव्यवस्था में उनका भी उतना ही योगदान था। फिर क्यों भारत को केवल कृषि प्रधान देश कहा जाने लगा? इस प्रश्न के पीछे अन्नदाता का महत्व कम करने का कतई विचार नहीं है, परंतु एक प्रश्न मन में जरूर उठता है कि कृषि प्रधान कह-कहकर कहीं हम अपने ही देश के अन्य प्राचीन उद्योगों के साथ सौतेला व्यवहार तो नहीं कर रहे हैं? कहीं केवल कृषि प्रधान कहलाने के कारण हम अपनी ही प्रचीन कलाओं के धरोहर को खोते तो नहीं जा रहे हैं?

इस समय जबकि समूचा विश्व कोरोना से जूझकर फिर से अपनी गति पकड रहा है, भारत के लिए भी व्यापार में गति पकडने के कई विकल्प खुल गए हैं। निश्चित ही भारत का वस्त्रोद्योग इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत में वस्त्र परम्परा अति प्राचीन रही है। भारतीय बुनकरों का विश्व में कोई सानी नहीं था। यहां की हस्तकला और कढ़ाई काम की मांग सम्पूर्ण विश्व में हुआ करती थी। ढ़ाका की मलमल हो या बनारस का रेशम, कश्मीर का पश्मीना काम हो या दक्षिण भारत का सिल्क, भारत के हर राज्य की अपनी विशेषता थी। अन्य सभी क्षेत्रों की भांति भारत वस्त्रोद्योग में भी अग्रणी था  और भारत को सोने की चिडिया बनाने में इस उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान था। भारत की यही विविधता और सम्पन्नता आक्रमणकारियों के आकर्षण का केंद्र बनीं। मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक सभी ने न सिर्फ इस कला को मारने की पुरजोर कोशिश की वरन अपने सांस्कृतिक पहनावों को लादने का भी भरसक प्रयास किया।

जो भारत कभी अपने निवासियों की जरूरतों को पूरा करने के उपरांत विदेशों में कपडा बेचा जा सके, इतना उत्पादन करता था, आज वह कपडा आयात करने के लिए विदेशों का मुंह ताक रहा है। आज भी विदेशी ब्रांड के कपडे ‘स्टेटस सिंबल’ बने हुए हैं। कोरोना के करण पूरा विश्व एक बार फिर शून्य से शुरुआत कर रहा है। इस परिस्थिति में भारत के पास यह सुनहरा मौका है। क्योंकि जनसंख्या अधिक होने के कारण विश्व भारत को बडे बाजार के रूप में देख रहा है। परंतु यदि हम पुन: आत्मनिर्भर होकर अपनी आवश्यकता से अधिक वस्त्र उत्पादन करने पर अपना ध्यान केंद्रित करें, भारत में बने हुए वस्त्रों को ही खरीदने का प्रण करें और अधिक उत्पादन के कारण शेष बचे वस्त्रों को निर्यात करें तो निश्चित ही वस्त्रोद्योग पुन: अपनी गरिमा प्राप्त कर सकेगा।

हिंदी विवेक द्वारा उपरोक्त सभी विषयों पर ही इस वर्ष का दीपावली विशेषांक ‘वस्त्र परम्परा तथा उद्योग विशेषांक’ प्रकाशित किया जा रहा है। इस विशेषांक में पाठक भारतीय वस्त्र परम्परा, पारंपरिक वस्त्र उद्योग तथा वर्तमान में प्रचलित ‘टेक्निकल टेक्सटाइल’ जैसे विविध आयामों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही कहानी, कविता तथा बालजगत के माध्यम से साहित्य की यात्रा भी कर सकेंगे।

विगत ग्यारह वर्षों से हिंदी विवेक के द्वारा प्रकाशित विभिन्न अंकों, विशेषांकों, विविध विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों तथा ग्रंथों को आप सुधि पाठकों ने बहुत सराहा है। आप हमारे लिए केवल पाठक ही नहीं हमारे अभिभावक भी हैं, जिन्होंने समय-समय पर हमें हर प्रकार की सहायता की है। साथ ही यह आशा भी करते हैं कि भविष्य में भी आपका सहयोग हमें इसी प्रकार मिलेगा।

एक बार पुन: हिंदी विवेक के सभी पाठकों, विज्ञापनदाताओं तथा शुभचिंतकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

pallavi anwekar

Next Post
अर्नब गिरफ्तारी को लेकर उद्धव सरकार की हो रही आलोचना, अमित शाह ने ट्वीट कर क्या कहा?

अर्नब गिरफ्तारी को लेकर उद्धव सरकार की हो रही आलोचना, अमित शाह ने ट्वीट कर क्या कहा?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0