हमारे पारंपरिक उत्पाद जो है इसे आज बहुत बड़ा घरेलु बाजार भी मिल सकता है। धीरे-धीरे यह संवेदनशीलता हमारे देश में विकसित हो रही है। मैं आशावादी हूं चाहे वह मैन मेड फाइबर से बना हुआ कपड़ा हो अथवा कॉटन या फिर सिल्क से बना हुआ कपड़ा हो, उपभोक्ताओं की संकल्पना जैसे-जैसे हमारे देश में बढ़ेगी इसका फायदा जरूर होगा। प्रधानमंत्री मोदी जी का आत्मनिर्भर भारत बनाने का जो सपना है उसे पूर्ण करने के लिए जनता जनार्दन पूर्ण रूप से सहयोग देगी तो हम घरेलु बाजार को भी हमारे उत्पादन के लिए बहुत ही सशक्त होते हुए देख रहे हैं।
वस्त्र उद्योग जो है जिसका स्थान परिवर्तन हो सकता है। कोरोना कालखंड में आपने देखा होगा कि बड़ी संख्या में मजदूर रोजगार नहीं मिलने के अभाव में अपने गांव की ओर पलायन कर गए। क्या हम उन्हें उनके राज्य में कपड़ा उद्योग स्थापित कर सकते हैं ताकि मजदूरों को वहीं पर रोजी-रोटी मिल सके?
मैं आपको बताना चाहती हूं कि हमें दो-तीन चीजों का ध्यान विशेष तौर पर रखना चाहिए। जब हम अधिक निर्यात की अपेक्षा रखते है तब हमारा उत्पाद संकुचित ना हो। वर्तमान में आपने देखा होगा कि कपड़ा उद्योग में कपास का उत्पादन कहीं होता है, उसकी जिनिंग कही और होती है,उसका टेक्सचर कहीं और बनता है, उत्पादन कहीं और होता है, बटन, जिप कहीं और बनता है, कलर कहीं और लगता है, इन सभी प्रक्रिया के बाद जो फ़ाइनल प्रोडक्ट है वह कहीं और से निकलता है। अगर हमें सस्ती दरों में उत्पाद बनाना है तो हमें बहुत बड़े स्तर पर उत्पादन की जरूरत है। वर्तमान में हमारे सामने चुनौती यह है कि हम छोटे-छोटे इकाइयों में बंटे हुए हैं। विश्व भर में हमारे सामने जो प्रतिस्पर्धी है उनका कपड़ा 10 दिन में बनकर बाहर निकलता है, इसके मुकाबले हमारे यहां पर 45 दिन लगते हैं। अगर निर्यात की दृष्टी से प्रतिस्पर्धी बनना है और हमें अवसरों को बढ़ाना है तो हमें देखने पड़ेंगे वह स्थान जहां पर लॉजिस्टिकली इंडस्ट्री को चुनौती ना हो, जहां पर उत्पादन के सभी तत्व एक छत के नीचे ही हमारे पास उपलब्ध हो, वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी जी ने अफोर्डेबल रेंटल प्रॉपर्टी के बारे में जो घोषणा की थी वह हमारे बहुत काम की चीज है। आज अगर इंडस्ट्री लाइजेशन की दृष्टी से वर्कर को रखना है तो बेहतरीन सुविधाएं देने की जरुरत है। सरकार ने अब वह व्यवस्था भी बनाई। मुझे लगता है अगर हमें उत्तर प्रदेश, बिहार इन राज्यों के बारे में सोचना है। उसे हमें निर्यात के दृष्टि से कम और घरेलु क्षमता के दृष्टि से ज्यादा देखना चाहिए। शोध के दृष्टि से देखना होगा कि हमारा पारंपरिक बाजार कहां है? कहां वो साप्ताहिक बाजार लगते है जो हमारे घरेलु जनसंख्या के लिए काम आते है, कहां हमारे स्थानीय स्ट्रिचिंग क्षमता है, जिसको हम लोग लिंक कर सकते है स्थानीय सरकारी परचेज से, वहां हम स्थानीय स्तर पर अपना माल बेच सकते है। कोरोना काल में आपने देखा होगा महिला संगठन मिलकर मास्क बना रही है। इस प्रोडक्ट का वही स्थानीय खपत हो रहा है। अगर आपको स्थानीय बाजार चाहिए तो आपको उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि उस जैसे कई राज्यों में अवसरों की तलाश कर सकते है।
आपने अपने जवाब में बहुत अच्छा सुझाव दिया है कि अगर आपको स्थानीय स्तर पर निर्यात करना है तो हमें अलग तरीके से सोचना चाहिए, क्या क्लस्टर के रूप में इस पूरे बाजार को विकसित करना अच्छा होगा?
आज हमारे पास हैंडलूम के लगभग 1500 कलस्टर है। हमें टेक्नोलॉजी के कारण संभव हुआ है कि हम ज्यादा से ज्यादा rhared rervibe का जो कांसेप्ट है इसके बारे में चर्चा करें। मतलब अगर छोटे से क्लस्टर में हैंडलूम का कोई भी बुनकर बैठा है, उसे पकेजिंग की सुविधा, उसे कर्ज की सुविधा, अगर उसे निर्यात के लिए डोमेस्टिक डिस्पैच की सुविधा कैसे दिलाई जा सकती है? इसके लिए अगर हम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें तो आपका कैपिटल कॉस्ट कम होगा। उसी प्रकार से जैसे कि मैंने कहा है पृथकतावाद बहुत है हमारी निर्यात अथवा हमारे घरेलु निर्माण क्षमता में। सबसे बड़ी चुनौती है कि आप प्रोडक्ट कहीं और बना रहे हैं, इसकी प्रक्रिया कहीं और हो रही है और उसका उत्पादन कहीं और हो रही है। इस दृष्टि से मुझे ऐसा लगता है कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना बेहतर होगा।
भारत बड़ी जनसंख्या वाला देश है, यहां पर कपड़े का सबसे बड़ा व्यापार है। भारत का बना हुआ कपड़ा अधिकतम यहां के बाजारों में बिके तो यह आत्मनिर्भर भारत की ओर एक अच्छा कदम हो सकता है?
हम इंडस्ट्री के साथ परस्पर संपर्क में रहते हैं कैसे हम हमारे अपने बाजार के लिए व्यवस्था को और सुदृढ़ कर सके। मुझे लगता है इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि हमारे भारत देश में पिछले 3 दशकों से पीटीए पर एंटी डंपिंग लगा हुआ था। मोदी सरकार ने पुर्व में जब बजट पेश किया तब पहली बार 30 साल के इस गतिरोध को हटाया और हमने पीटीए में एंटी डंपिंग हटाकर मैन मेड फाइबर में बहुत बड़ी सफलता हासिल की, क्योंकि अब तक जब हमारे इंडस्ट्री को मैन मेड फाइबर फैब्रिक चाहिए होता था तो वह बांग्लादेश का कपड़ा ही ज्यादा पहनता था। मुझे लगता है यह सिर्फ एक युवा वर्ग की अपेक्षा है इसके अनुकूल अब हम इंडस्ट्री में पावरलूम के हिस्से को काम करते हुए देख पाएंगे। मैं आपको बता दूं यह निर्णय कोविड-19 के पहले हुआ था। दूसरी बात पारंपरिक वस्त्र इतिहास की दृष्टि से आज सब स्थिरता की बात करते है, हमारे यहां सबसे बेहतरीन उदाहरण स्थिरता का है, न केवल कोटन का वस्त्र बल्कि इसके साथ ही पूर्वोत्तर भारत का एरी सिल्क जो है जिसे हम अहिम्सा या मुगा भी कहते है। यह हमारे पारंपरिक उत्पाद जो है इसे आज बहुत बड़ा घरेलु बाजार भी मिल सकता है। धीरे-धीरे यह संवेदनशीलता हमारे देश में विकसित हो रही है। मैं आशावादी हूं चाहे वह मैन मेड फाइबर से बना हुआ कपड़ा हो अथवा कॉटन या फिर सिल्क से बना हुआ कपड़ा हो उपभोक्ताओं की संकल्पना जैसे-जैसे हमारे देश में बढ़ेगी, इसका फायदा जरूर होगा। प्रधानमंत्री मोदी जी का आत्मनिर्भर भारत बनाने का जो सपना है उसे पूर्ण करने के लिए जनता जनार्दन पूर्ण रूप से सहयोग देगी तो हम घरेलु बाजार को भी हमारे उत्पादन के लिए बहुत ही सशक्त होते हुए देख रहे हैं।
पंजाब का सलवार कुर्ता, महाराष्ट्र की पैठणी, बंजारा समुदाय का पहनावा, यह सभी भारतीय संस्कृति के विविधता का हिस्सा है, क्या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इन पारंपरिक कपड़ों को हम पेश कर सकते हैं?
मेरा मानना है कि इंडस्ट्री तब प्रगति करती है जब हम स्वयं ही तुलनात्मक हो और स्वयं ही विपणन के माध्यम से नई-नई अवसरों की तलाश करें। एक लंबे अरसे तक हमने देखा लोगों की धारणा बन गई थी कि जब तक मुझे कुछ दोगे नहीं जब तक मेरा कुछ होगा नहीं। पीपीई सूट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जो इंडस्ट्रीज हमारे देश में शून्य थी, वह बिना सब्सिडी के, बिना कुछ सरकारी घोषणा के या फिर योजना के केवल समन्वय के माध्यम से आज 10000 करोड़ से बड़ी इंडस्ट्री बन गई है, ऐसा विश्व में कहीं नहीं हुआ है। विश्व की अर्थव्यवस्था जो लॉकडाउन में रही, वहां पर 2 महीने में कोई इंडस्ट्री विकसित हो जाए, ऐसा नहीं हुआ है। आज हम विश्व की सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग है। जैसे कि मैंने बताया ना हमने सब्सिडी दी, ना हमने कोई बड़ी घोषणा की, स्वेच्छा से लोगों ने अपनी मेहनत से यह कर दिखाया। इसका मतलब हमें किसी आपदा या संकट का इंतजार नहीं करना चाहिए। 3 साल में मैंने कई इंडस्ट्री में विजिट किया और उनसे मैंने कहा कि आप टेक्नोलॉजी को महत्त्व दीजिये, तब लोग सुनते थे लेकिन कोई कुछ करता नहीं था। वह कहते थे नई-नई मंत्री है, नया-नया जोश है। लेकिन जब आफत आई तब वह कहने लगे कि हमें 3 साल पहले सुन लेना चाहिए था।
भारत में वस्त्र उद्योग की परंपरा बहुत प्राचीन रही है, भारत में उत्पादित हुआ कपड़ा विदेश में भी काफी लोकप्रिय है, वर्तमान में वस्त्र उद्योग की स्थिति क्या है?
भारत के वस्त्र इतिहास को देखें तो हमारे वस्त्र उद्योग में सबसे ज्यादा बिकने वाला सामान कॉटन बेस्ट था। आज की व्यवस्था कैसी है सामाजिक और आर्थिक विश्व भर में कि कॉटन के कपड़े का पहनावा देश-विदेश में कम होता जा रहा है। एक तरफ जहां देश में हम देखते हैं किस तरह का उत्पादन हो रहा है तो आज 70% हमारे देश में जो उत्पादन होता है वह कॉटन बेस्ट होता है और जो 30% होता है वह मैन मेड फाइबर और हैण्ड क्राफ्टेड का होता है। अगर निर्यात की क्षमता पर गौर किया जाए तो विश्व भर में उल्टा है। विश्व भर में 30 प्रतिशत की कॉटन का इस्तेमाल होता है और 70% जो है हैंडलूम और हेंड क्राफ्टेड का होता है। विश्व भर में इसका बाजार थोडा सा संकुचित है, कंपेयर टू मैन मेड फाइबर और कॉटन से। यही वजह है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ बनाने में हमारे सामने चुनौती रहती है। जब समय था कि हैंड क्राफ्टेड कपड़े की विश्व भर में मांग थी तब भारत की क्षमता और भारत का टेक्सटाइल बिजनेस चरम पर था। आज जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में मैन मेड कपड़े की ज्यादा जरूरत है तब भारत अपने सामने चुनौती पाता है।
टेक्सटाइल क्षेत्र में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी को लाने के लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है?
मैं थोड़ा पूर्ववर्ती सरकार के इतिहास को बताना चाहती हूं। जब अटल जी की सरकार गई, उसके बाद टेक्स्टाईल कमिश्नर ऑफिस में रणनीतिक जो हमारा विंग था, तब हमारे क्षेत्र में सरकारी या प्रशासनिक ऐसी व्यवस्था देखी जहां पर किसी भी मानक का पालन होता ही नहीं था। दूसरी बात वह किसी भी प्रकार का डेटा ही कलेक्ट नहीं कर रहे थे तो वह नीति कैसे बना रहे थे? हमें अपनी सरकार की ओर से टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने का आदेश था, इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई का मार्गदर्शन था। टेक्सटाइल इंडस्ट्री 80% से ज्यादा एमएसएमई में आती है। अब तक कांग्रेस के राज्य में जितने भी सब्सिडी जाती थी वह केवल बड़ी-बड़ी कंपनियों में मुख्य रूप से सब्सिडी जाती थी इसलिए प्रधानमंत्री जी का आग्रह था कि एमएसएमई यूनिट को ज्यादा मुख्य सब्सिडी जाए ताकि टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन हो। जब हमने कामकाज के लिए सरकार के कागज निकालें तो ध्यान में आया, जब कैपिटल सब्सिडी दी जाती थी तो किस प्रकार की मशीन आ रही है? उसके वेरिफिकेशन के प्रोसेस चेक करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। मशीन का मैन्युफैक्चरिंग वर्ष अथवा मशीन का नंबर भी उस पर है कि नहीं? इसे भी चेक नहीं किया जाता था। आज मदद की दरकार एमएसएमई को है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा टेक्नोलोजी के अपग्रेडेशन के लिए मदद मिले तो एमएसएमई यूनिट को मिले। मशीन देश में बन सकती है कि नहीं? इस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। इसका मतलब एक लंबे कार्यकाल में पिछली सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। मशीन के लिए पैसा दिया जाता था लेकिन नो आउटकम एक्सपेक्टेड स्पेशली रिगार्ड्स फॉर टेक्नोलॉजी। मोदी सरकार ने जब कैपिटल सब्सिडी देने की शुरुआत की तब हमने दो-तीन मानक इस विषय में स्थापित करवाएं। पहला नई मशीन को सब्सिडी मिले, दूसरा पुरानी मशीन को सब्सिडी ना दिया जाए और तीसरा हिंदुस्थान में मशीन बनाने वालों को प्रोत्साहन दिया जाए। आत्मनिर्भर भारत बनाने का प्रस्ताव जो नरेंद्र मोदी जी ने सबके सामने रखा हुआ है इसके पीछे उनका परिश्रम 6 साल पुराना है। वह छोटी से छोटी इकाई में कमैसे चाहे वो कोई बड़ी मशीन हो या एम्ब्रोडेरी हो या स्पिनिंग मशीन हो, हिन्दुस्थान में वह कैसे बन सकती है? टेक्नोलोजी ट्रांसफर से या हम एफडीआई को निमंत्रित करते है तो उनसे कहे कि आप हिन्दुस्थान में आकर बनाइये, इस तरह के ये सारे प्रयास किये जा रहे है।
रेशम उद्योग में मिलावटी सिंथेटिक धागे का उपयोग हो रहा है जिससे किसान द्वारा उत्पादित रेशम का भाव नहीं मिल रहा साथ ही आयातित रेशम से भी किसान को कीमत नहीं मिल पाती संभव ही नहीं है कि मिलावट और आयातित के चलते रेशम उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर हो सके
कथनी और करनी में अंतर ही भारत की अर्थव्यवस्था के आत्मनिर्भर होनें में सबसे बड़ी समस्या है