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लड़ाई तूलिका की

लड़ाई तूलिका की

by विवेक मेहेत्रे
in दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२०, राजनीति
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बालासाहेब ठाकरे……एक विवादित व्यक्तित्व!
आश्चर्यचकित कर देने वाले व्यंग्यचित्र जिन्हें बनाने की जबरदस्त क्षमता रखने वाले महान कलाकार और एक दिग्गज नेता….
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर गहरी टिप्पणी करने की तेज नजर रखने वाले बालासाहेब ठाकरे इस मौके पर हिंदी विवेक दीपावली विशेषांक मे प्रकाशित लेख के कुछ अंश।

सियासी दुनिया में कई नेता आए हैं और आगे भी आते रहेंगे। भारतीय राजनीति और आम लोगों के जीवन में हलचल मचाने में कितने कामयाब हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय पर अपने लेख, बयान और तूलिका इन तीनों माध्यमों को प्रभावी रूप से इस्तेमाल करने वाले, मराठी युवाओं के मन में अस्मिता जगाने वाले और परप्रांतियों के बीच दहशत बिठाने वाले एक और सिर्फ एक व्यक्तित्व है और वो हैं एशिया खंड की व्यंग्यचित्र दुनिया के बेताज बादशाह व शिवसेना के संस्थापक श्री बाल केशव ठाकरे उर्फ बालासाहेब ठाकरे।

राजनीति व्यंग्यचित्रकारों की ताकत क्या हो सकती है, इसकी सही कल्पना बालासाहेब ठाकरे के प्रभावी राजनीतिक व्यंग्यचित्रों को देखकर की जा सकती है। हजार शब्द जो काम नहीं कर सकते वो काम बालासाहेब की तूलिका लीला कर सकती है। यह उनके लंबे करियर में कई बार साबित हो चुका है।

साप्ताहिक मार्मिक के व्यंग्यचित्र या उससे पहले फ्री प्रेस जर्नल के व्यंग्यचित्रों में पाठक चिपकाए रखने की जादुई शक्ति आज भी मौजूद है। इसलिए पिछले साढ़े तीन सालों से साप्ताहिक मराठी मार्मिक के मुख्य और अंदर के पन्ने पर उनके पुराने व चुनिंदा हास्यचित्र और व्यंग्यचित्र लगातार व खासकर प्रकाशित किए जा रहे हैं।

कुछ ही पलों में पाठकों के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखरने वाले चित्र बालासाहेब जितने आसानी से बनाते हैं, उतनी आसानी से उनकी तूलिका भी फटकार लगा सकती है और तीखे व बेबाक चित्रों की उनकी मार संबंधित को लहुलुहान कर देती है। उनकी कामयाबी और ऊंचे दर्जे के व्यंग्यचित्रों के पीछे बरसों की कड़ी मेहनत और उनके पिता प्रबोधनकार ठाकरे का मार्गदर्शन था।

बचपन की मेहनत
बाल ठाकरे महज नौ-दस साल के थे जब उनके घर पर पिताजी यानी प्रबोधनकार ठाकरे के पास अनेक विदेशी पत्रिकाएं आती थींंंंंं। उसमें व्यंग्यचित्रों के कई किरदाराेंं को देखकर बाल और उनके भाई श्रीकांत हैरान रह जाते थे। वे अकसर सोचते थे कि क्या कभी हम भी ऐसे चित्र बना सकेंगे। व्यंग्यचित्रों में उनकी रुचि को देखकर एक बार पिताजी ने आखिर पूछ ही लिया, क्या तुम भी ऐसे चित्र बनाना चाहते हो? पिताजी से प्रोत्साहन मिलते ही बालासाहेब की चित्रकलाओं की शुरुवात हो गई? लेकिन सवाल यह था कि उन्हें इसकी बारीकी कौन सिखाएगा।

आपको यह सुनकर और भी आश्चर्य होगा कि बालासाहेब ठाकरे एक हरफनमौला कलाकार हैं। इलस्ट्रेशन्स, स्टील चित्र, सजावट वाले चित्र, पोर्ट्रेट, पेटिंग्ज, रेखाचित्र और विज्ञापन के साथ-साथ लैंडस्केप और शिल्पकला ये सारी कलाओं को उन्होंने सशक्त रूप से अंजाम दिया है। हर तरह के वाचन, तेज नजर और परिपक्व राजनीति के अध्ययन से उनके व्यंग्यचित्रों की सोच हमेशा कमाल की रही है। मराठी मिट्टी, भूमिपुत्रों और महाराष्ट्र की परपंराओं को लेकर बहुत ज्यादा अभिमान उनके चित्रों में प्रकट होता है। जितनी बुद्धिमानी उनके रेखाचित्र में नजर आती है, उतनी बुद्धिमत्ता और होशियारी चित्रों के साथ लगने वाले शीर्षक में देखी जा सकती है। आजादी मिलने के बाद से लगातार नेताओं पर अपनी तूलिका से फटकार लगाने और छिपे हुए भ्रष्टाचार को सामने लाने का चुनौतीपूर्ण काम ठाकरे भाईयों ने किया।
लेकिन उसी वक्त विदेशी आक्रमण को देख प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाली उनकी तूलिका सभी भेदभाव भूलकर प्रधानमंत्री के साथ मजबूती से खड़ी हो गई। 1962 में चीन के आक्रमण और बाद में 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय भी यही देखने को मिला।

देश के प्रति अभिमान की भावना उनके व्यंग्यचित्र से जिस तरह नजर आती थी, उसी तरह उनकी तूलिका से बने रेखाचित्रों में श्रद्धांजलि चित्र भी यादगार रहेगा। तीखे चित्र बनाते समय जो तूलिका जाबूक का काम करती थी, वही तूलिका काली स्याही और सफेद कागज पर सहानभूति बरसा सकती है यह उन्होंने समय-समय पर साबित किया है।

लेख के साथ व्यंग्यचित्र को देखें, इसे स्व इंदिरा गाधी की मौत के बाद मार्मिक के पहले पन्ने पर प्रकाशित किया गया था। एक अचानक बुझा दीया और कम होता उसका धुआं इंदिराजी के चेहरे का रूप लेता आसमान में विलीन हो रहा है। कितना संवादपूर्ण चित्र है यह।

बालासाहेब के व्यंग्यचित्र का करियर बड़ा दीर्घ रहा है। मुंबई के लोकप्रिय अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में उनके शीर्षक सहित धमाकेदार सियासी व्यंग्यचित्र देखकर अच्छे-अच्छों की नींद उड़ जाया करती थी। उनके कुछ व्यंग्यचित्रों को लेकर विवाद भी हुए। आपत्ति जताई गई। बहुत दबाव आए पर बालासाहेब नहीं झुके। बाद में उन्होंने फ्री प्रेस जर्नल छोड़ दिया। 13 अगस्त 1960 को पहली बार राज्य के उनके पहले व्यंग्यचित्र की शुरुआत साप्ताहिक मार्मिक से हुई। आलम यह था कि संस्करण आते ही पाठक उसे हाथों-हाथ खरीद लेते थे। जहां-जहां अन्याय नजर आता, वहां-वहां ठाकरे की तूलिका और लेख प्रहार करने लगे। मार्मिक में बालासाहेब के यश के पीछे उनके भाई श्री श्रीकांत ठाकरे (राज ठाकरे के पिता) के व्यंग्यचित्र का अहम योगदान था। ठाकरे भाईयों के हास्य व्यंग्यचित्रों का असर इतना ज्यादा था कि मराठी पाठक साप्ताहिक मार्मिक को अपना प्रेरणास्थान समझने लगे।

बालासाहेब ठाकरे के शब्दों में कहें, तो सामान्य जनता अखबारों में खबर पढ़ती है, मगर एक व्यंग्यचित्रकार खबरों मे छिपे अर्थ को पढ़ता है। बालासाहेब के व्यंग्यचित्रों से प्रेरणा लेकर अनेक व्यंग्यचित्रकार आगे आए। व्यंग्यचित्रकार की आज की जो पीढ़ी दिख रही है वह सही मायने में बालासाहेब के चित्रों से मिले साहित्य की अनमोल देन है।

बालासाहेब और श्रीकांत के रेखांकन का स्टाईल एक-दूसरे के बराबर था और निश्चित रूप से वह श्री आर.के. सक्ष्मण के स्टाईल से बिल्कुल अलग था। ठाकरे की ठाकरी स्टाईल के चित्रों का मतलब लाजवाब कल्पनाओं का नयनमोहर, साफ, स्पष्ट लकीरों का संगम था। कल्पना सूझने पर उन्हें चित्रों में ढालने का उनका अपना एक खास तरीका था। पहले वे बिना कोई गलती किए पेंसिल से स्कैच तैयार करते और जब तक तसल्ली नहां होती तब तक उसमें बदलाव करते रहते। इसके बाद ही वे तूलिका को हाथ में लेते। फिर वह तूलिका पूरी सफाई के साथ कागज पर फिरने लगती और एक से बढकर एक व्यंग्यचित्र जन्म लेने लगते।

1986 के बाद बढ़ती राजनीतिक जिम्मेदारियों और दौरों की वजह से व्यंग्यचित्रों की तरफ से ध्यान देना उनके लिए मुश्किल होने लगा। असल में उसके बाद साप्ताहिक मार्मिक रंग-बिरंगे चमकदार मुख्य पृष्ठ के साथ प्रकाशित होने लगा था। लेकिन शिवसेना का कार्यक्षेत्र जैसे-जैसे बढ़ने लगा, वैसे-वैसे आम लोगों में बालासाहेब को लेकर उम्मीदें भी बढ़ने लगीं। राज ठाकरे को भी व्यंग्यचित्रकार के तौर पर खड़ा करने में बालासाहेब ने अहम भूमिका निभाई थी। उम्र के साठवें वर्ष में प्रवेश करने पर बालासाहेब ने व्यंग्यचित्रकला क्षेत्र से निवृत्ति घोषित कर दी। पर एक-आत कार्यक्रम में प्रदर्शन के वक्त अपनी तूलिका की करामात उन्होंने उतनी ही ताकत से बार-बार दोहराई।

कार्टून की दुनिया में जिस तरह वाल्ट डिस्ने का स्थान सर्वोच्च हैं उसी तरह भारतीय व्यंग्यचित्रकारों में बालासाहेब ठाकरे का सितारा बुलंद है और आगे भी रहेगा। सत्ताधारियों के खिलाफ तीखी टिप्पणी करने के कारण बालासाहेब की चित्रकला को सरकारी खिताब या पुरस्कार नहीं मिले। लेकिन आम लोगों के दिलों में आदर स्थान उन्होंने बहुत पहले हासिल कर लिया था, जो हमेशा बरकरार रहेगा।

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