मुगल शासक औरंगज़ेब के अत्याचारों से प्रताड़ित हो कर जब कुछ कश्मीरी हिन्दू गुरु तेग बहादुर के पास अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने आए तो उन्होंने उनसे मिलने दिल्ली चलने का फैसला लिया। लेकिन बीच रास्ते में ही आगरा में उन्हें और उनके भाई मतीदास, भाई सतीदास और भाई दयाला को बंदी बना लिया गया। औरंगज़ेब चाहता था कि गुरु तेग बहादुर इस्लाम स्वीकार कर लें और मुसलमान बन जाए इसलिए उन्हें डराने के लिए इन तीनों भाइयों को तड़पा तड़पा कर मारा गया पर फिर भी गुरूजी विचलित नहीं हुए। औरंगज़ेब ने सबसे पहले 9 नवंबर 1675 को भाई मतीदास को आरे से दो भागों में चीरने का आदेश दिया। लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़ कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा। आरा जब 2 से 3 इंच तक उनके सिर में धंस गया तो काजी ने उनसे कहा मतीदास अभी भी इस्लाम स्वीकार कर लो शाही जर्राह तुम्हारे घाव को ठीक कर देगा और तुम्हें दरबार में ऊंचा पद दिया जाएगा, तुम्हारी 5 शादियाँ भी करा दी जाएंगी।

भाई मती दास ने व्यंग पूर्वक काजी से पूछा, यदि मैं इस्लाम मान लूं तो क्या मेरी मृत्यु कभी नहीं होगी? काजी ने कहा कि यह कैसे संभव है जो धरती पर आया है उसे तो मरना ही है। भाई मतीदास ने हंसकर कहा, यदि तुम्हारा इस्लाम मुझे मौत से नहीं बचा सकता है तो फिर मैं अपने पवित्र हिंदू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों ना करूं? भाई मती दास ने जल्लाद से कहा कि अपना आरा जल्दी चलाओ जिससे मैं जल्द ही अपने प्रभु के धाम पहुंच जाऊं, यह कहकर वह ठहाका मारकर हंसने लगे। काजी ने कहा कि वह मृत्यु के भय से पागल हो गया है, भाई मतीदास ने कहा, मैं डरा नहीं हूं मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूं, जो अपने धर्म पर अडिग रहता है उसके मुंह पर लगी रहती है लेकिन जो धर्म से विमुख हो जाता है उसका मुंह भी काला हो जाता है। जिसके कुछ ही देर बाद उनके शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए। भाई मतीदास एवं सतीदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा जी छठे गुरु हरगोविंद के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को भाई की उपाधि दी थी। भाई मतीदास के एकमात्र पुत्र मुकुंद राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था।

इस घटना के अगले दिन 10 नवंबर को उनके छोटे भाई सतीदास को रुई में लपेट कर जला दिया गया और फिर भाई दयाल को पानी में उबालकर मार दिया गया। इसके बाद गुरुतेग बहादुर पर भी इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाया जाने लगा लेकिन जब औरंगजेब इसमें सफल नहीं हुआ तो 11 नवंबर को चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का सर काट दिया गया। जब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम कबूल करने को कहा तो उन्होने कहा था कि सिर कट सकता है लेकिन केश नहीं। जिसके बाद सबके सामने ही मुगल शासक औरंगजेब ने उनका सिर काटने का आदेश दे दिया। गुरुद्वारा शीशगंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके बलिदान की याद दिलाते है।


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