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आंतकी का अन्त

आंतकी का अन्त

by प्रमोद पाठक
in दिसंबर २०१२, सामाजिक
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आखिरकर महाराष्ट्र शासनने, बडी गोपनीयता रखते हुये 26/11 का नृशंस आतंकी अजमल आमिर कसाब को सुबह 7.30 बजे येवरडा जेल मे दि. 21/11 को फांसी पे लटका दिया। इ.स. 2008 से छिड गये एक पर्व की समाप्ती हुई। जिस का नाम कसाब था, शायद जिसके पुरखाओंका पुरौनी धंदा कसाबीका रहा होगा उसने अपनी छोटीसी जिंदगी मे इतना बडा आतंक फैलाकर आदमी औरतों को भरे स्टेशनपर मौतके घाट उतारकर अपने नाम पर सचमुचमे कसाब होने क्रूरकर्मा होने का, सिक्का जमा दिया।

धर्मांधता का खुद शिकार

कसाब की जो जानकारी अबतक प्राप्त हुई है उसके ?? वह आर्थिक दृष्टिसे पिछडे तबके था। उसके घटके लोग गरिबीमे रहते थे। शहीद होनेपर उसके घरवालोंको मोटी रक्कम मिलने का आश्वासन दिया गया। किन्तु उलटाही हुआ। कसाब जिन्दा मिल जाने के कारण पाकिस्तान के कारनामे सामने आये पूरे विश्व मे पाकिस्तान आतंकीयोंका गिरोह साबीत होने के कारण कसाब के घरवालोंको वह मोटी रक्कम मिलपायी या नही यह तो सामने नही आया, किंतु अखबारवालों का ??? के लिये उसके घरके लोगों को अपना निवास छोडकर गुमशुदा रहना पडा। यह स्थिती नाती आनंददायी वातावरण जैसे काँग्रेस के खिलाफ हो रहा था। उसका असर कम करने के इरादे से कांग्रेसी प्रशासनने उसे फासी चढाया। ताकी 2014 होनेवाले चुनाओंपरही नही तो शायद 23 नव्हम्बर शुरु होनेवाले संसदके सत्र दरम्यान यह सरकार परास्त होती है तो कांग्रेस के हाथ मे एक बाजी रहे इस हिसाब से संसद सत्र के 2 दिन पहले उसे फांसी चढाया गया। कसाबकी फांसी के पिछे का राजकारण समझना चाहिये।

इस बीच कसाब को डेंग्यु होने की खबर थी। शायद वह डेंग्यु की बिगारीका शिकार हो जाता तो कांग्रेस सरकार को अनायास छुटकारा मिलना। किन्तु उसके नसीब में फांसी का फंदा ही लिखा था।

भारतीय जनता पक्ष ने प्रतिक्रिया देते हुये कहा की चार साल के बाद क्यूं नही कसाब को फांसी पर चढाना यह ‘देर आये पर दुरुस्त आये’ ऐसा मामला है। अब अफजल गुरु की बारी लगने की राह है। शिवसेना के एक प्रमुख नेता तथा सम्पादक संजय राऊत को स्व. बाळासाहेब को यह कांग्रेसी ओर से श्रद्धांजली देने का काम लगता है। नि:संशय स्व. बाळासाहब को कसाब को फांसी पर चढाने की घटनाये निश्चित आनंद होता। उनके जैसा परिपूर्ण देशाभिमानी, धर्माभिमानी इस घटनासे फूला न समाता। किन्तु क्या कांग्रेसवाले इतने बडे दिलवाले है की जो उन्हे इस तरह की श्रद्धांजली देनेका दिल रखते है?

कांग्रेस के बदलते तेवर

गत कुल महिनोंसे कांग्रेसके तेवर बदलते दिख रहे हैं। अब तक ‘अली और कुली’ के व्होटोपर जितने वाली कांग्रेस ‘अली’ के व्होटोके बारेमे साशंकित हो गयी है। असममे बांग्लादेशीयो ने कांग्रेससे मुंह मोड कर खुदकी पहचान कराने वाली ना तो आर्थिक दृष्टिसे फायदा पहुचाने वाली थी। जिस भौतिक कारण से कसाब जैसा अल्प शिक्षित युवक आतंकियों के चंगुलमे फस गया वह मकसद पूरा नही हो पाया।

काफिरोंके खिलाफ लढकर जिहाद मे शहीद होनेवाले को जन्नत मिलती है ऐसा उसके दिलो दिमाग पर थमाया गया था। काफिरोंकी कल करनेवाला जन्नत मे जाता है, उसे वहा पर 72 हूरिया मिलती है यह तो परलोक सिधारने के बादकी बात होती है, किन्तु उसकी लाश जैसे के तैसे रहती है, इतना ही नहीं तो उसे खुशबु आती है यह भी उसके दिलो दिमागमे था। जब कसाब को उसके मरे हुये साथियों की पहचान करवाने के लिये ले गये तो वहां की बदबू से वह बेहोश हो गया था। उसी समय उसका खुशबू 72 हूरिया आदी चिजों परसे मन उड गया था। जैसे समाचारोंमे बताया गया कसाब ने कोही आखरी इच्छा बताई नही किन्तु कहा की ऐसा घिलोना कृत्य मैं बादमे नही करूंगा। यह घटना क्रम आगेचलकर आंतककी ओर झुकनेवालोंकें लिये एक अच्छा सबक है जिससे वे सभी उस मार्ग पर चलने से रूक जाय। भौतिक तथा अधिभौतिक दोनो स्तरोंपर कसाबने मात खायी। उसका तथाकथित जिहाद नापाक साबीत हुआ। न तो पाकिस्तानने उसे अपनाया।

उत्स्फूर्त प्रतिक्रियायें

कसाब की फांसी चढानेका वृत्त सुनकर पूरे देशभर मानो छुटकारा पाने का और निरपराध नागरिक और शहीदोंको न्याय मिलनेका माहोल बना। कांग्रेसी सरकारने उसे पंचतारांकित व्यवस्था मे रखा है, उसे त्योहार पर गोश्त और मिठाईयोंका खाना खिलाया गया आदी वार्तायें प्रसृत होने से डेमोक्रेटिक फ्रंट के उमिदवारों को गत दो चुनावोमे बडी मात्रा मे चुनकर दिया है। असम मे कांग्रेस की पैरोंतले रेत खिसकने के कारण उन मतदाताओंको परिणामोंकी जानकारी देने के हेतु बोडोंकी सहायता से दंगे कराये गये (हिन्दी विवेक सितम्बर 2012) ऐसा प्रस्तुत लेखकने लिख था। अब भी बांग्लादेशीयोंको डेमोक्रेटिक फ्रन्ट से दूर करने के हेतु दंगे फिरसे शुरु किये गये है। यही वे डेमॉक्रॅटिक फ्रन्ट को चुनते है तो उनका व्होट छिना जायगा।

उत्तर प्रदेशमे भी मुलायम और मायावतीने मिलकर कांग्रेसकी मुस्लिम व्होट बैंकपर डाका डाल दिया है। मुलायम सिंगने 55 उम्मीदवारोंका ब्योरा देकर कांग्रेस को उसकी जगह दिखायी है। हैदराबाद मे भी चार मिनार परिसर को लेकर मुस्लिम सदस्य तथा जनमका कांग्रेस विरोध मे ध्रुवीकरण हो गया है। मुस्लिम मतदाताओंका बदलता रूख देखते हुए कांग्रेसने कमसे कम महाराष्ट्र में अपने तेवर बदलना शुरू किया है। स्व. बाळासाहब का अंतिम संस्कार शिवाजी पार्क, दादर मे करने की अनुमती उन्हे राज सम्मान के साथ अंतिम विदायी देने की व्यवस्था, प्रशासनका शिवसेनाके साथ पालघरकी फेसबुक घटना के बाद किया गया मैत्रीपूर्व वर्ताव और अब कसाब को फांसी यह घटनाक्रम कांग्रेसीयोंका हिन्दु व्होट की राजनीतिकी और झुकनेका संदेश देती है। राज और उद्धव एक न हो पाये इसलिये यह सब हो रहा है। उसे लेकर कांग्रेस शिवसेना से गढबंधन का प्रस्ताव भी रख सकती हैं।

जैसे मराठवाडा के स्थानिक चुनाओंमे हुआ, यदी मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से बिछडने और खुदका अस्तित्व अलग राजनीतिक पक्षो के माध्यमोंसे व्यक्त करने लगते है, तो कांग्रेस तुरन्त हिन्दु कार्ड अपनायेंगी। अब चंद ही दिनों मे अफजल गुरू भी फांसी पर चढाया जा सकता है। गुजराथ मे चुनाव के बिलकुल थोडे दिन पहले दंगे हो सकते है। बांग्लादेशी नागरिक खोजनेका अभियान शुरू हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है की को ही कांग्रेसका जडा हुआ धार्मिक नेता बांग्लादेशी हिन्दू होकर इस देशमे रह सकते हे ऐसा ऐलान कर उस दिशामे धर्मपरिवर्तन का काम करना शुरू कर दे। अपना सत्ता टिकाये रखने के लिये ये कांग्रेसी किस हद तक जायेंगे कुछ कह नही सकते।

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