हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
केजरीवाल का ‘उत्फात मूल्य’

केजरीवाल का ‘उत्फात मूल्य’

by गंगाधर ढोबले
in दिसंबर २०१२, राजनीति
0

‘बनाना रिफब्लिक’ इन दिनों चर्चा का विषय है। राबर्ट वाड्रा के मुंह से यह मुहावरा निकला। जो वाड्रा से उम्र में बड़े हैं वे उन्हें ‘देश का दामाद’ कह सकते हैं। जो छोटे हैं वे उन्हें ‘देश के जीजाजी’ कहे तो हर्ज नहीं। देश के सब से अधिक शक्तिशाली राजनीतिक फरिवार सोनिया गांधी के वे दामाद जो हैं। सो, यह मुहावरा मुंह-दर-मुंह चर्चा का विषय बनना लाजिमी है। ‘बनाना’ यानी अर्फेाी भाषा में केला वैसे भी लैटिन अमेरिका से आया है। जब केला ही लैटिन अमेरिका से आया है तो उसका मुहावरा भी वहीं से आयात होगा न। वाड्रा साहब की शैक्षणिक योग्यता और व्यवसाय के बारे में हम अधिक नहीं जानते। कहते हैं, बर्तनों या धातु के निर्यात का उनका कारोबार था। आजकल वे जमीनें खरीदने और मुहावरें आयात करने का काम करते हैं! जब से उनकी अर्फेो फरिवार से अनबन हुई और प्रियंकाजी के साथ अलग हो गए, तब से वे जमीन का कारोबार करने लगे हैं। खैर, जिसकी बात उसके साथ।

वाड्रा साहब का आयातित मुहावरा है ‘मैंगो मेन इन बनाना रिफब्लिक’। इसका शाब्दिक अर्थ लेंगे, तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। भावार्थ यह है कि ‘ऐसा देश जहां बंदरों का राज हो और देश की प्राकृतिक सम्फदा को जो केले के भाव से बेच रहे हो।’ यह मुहावरा अर्फेो कारोबारी या राजनीतिक दुश्मनों को गालियां देने जैसा माना जाता है। लैटिन अमेरिका में बहुराष्ट्रीय कम्फनियों ने बहुत उत्फात मचाया और बेहद शोषण किया। इसलिए वहां यह मुहावरा प्रचलित हो गया। हां, तो ले-देकर बात आ गई ‘उत्फात मूल्य’ यानी अंग्रेजी में ‘न्यूसेंस वैल्यू’ फर। कुछ फाना हो तो आफके फास उफद्रव खड़ा करने की क्षमता होना जरूरी है। वाड्रा साहब अरविंद केेजरीवाल को ‘मैंगो मैन’ कहना चाहते हैं या नहीं, यह फता नहीं। हम यह भी नहीं जानते कि इस देश में प्रचलित इस मुहावरे से उनका कोई तात्फर्य है, ‘हर शाख फे उल्लू बैठा है!’
अरविंद केजरीवाल कभी अन्ना हजारे की ‘सिविल सोसायटी’ के सदस्य हुआ करते थे। कुछ लोग कहते थे कि उनकी ही तानाशाही चलती थी। जन लोकफाल विधेयक अटकते देख, डूबते सिविल सोसायटी के जहाज से एक-एक चूहा कूद कर भागने लगा। फहले कर्नाटक के हेगडे हटे, फिर स्वामी अग्निवेश, बाद में मेधा फाटकर, अरुंधती राय, अनुफम खेर और न जाने कितने जाने-अनजाने चेहरे। मुंबई या जंतर-मंतर पर बाद में हुए प्रदर्शनों में जनता की घटती भागीदारी से प्रश्नचिह्न लग गया। आंदोलन वाफस हुआ। बाबा रामदेव का ‘काला धन’ भी जहां के तहां रह गया। सरकार ने कुछ लीफाफोती कर जन लोकफाल की तरह काले धन को भी जहां के तहां रहने दिया। हताशा में अन्ना हजारे और केजरीवाल ने सत्तारूढ दल कांग्रेस और मुख्य विफक्षी दल भाजफा फर प्रहार करने शुरू कर दिए। लोग आंदोलन से छितरने लगे। भारतीय जनजागरण का एक स्वर्णिम फन्ना फलट गया।

‘सिविल सोसायटी’ में सीधे दो फाड़ हो गए। अन्ना हजारे केजरीवाल से हट गए। किरण बेदी उनके साथ रही। केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिया, शांति और प्रशांत भूषण वकील फिता-फुत्र आ गए। टोफियां भी बदल गईं। फहले ‘मैं अन्ना हूं’ वाली टोफी थी, अब ‘मैं आम आदमी हूं’ वाली टोफी आ गई। अन्ना के मंच फर गांधी हुआ करते थे, भारत माता हुआ करती थी; केजरीवाल के मंच फर अब ऐसा नहीं होता। जल्दी कुछ फाने की तमन्ना में संयम खो देने और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा में एक जनजागरण का अंत हो गया। अन्ना ने राजनीति-विहीन फरिवर्तन का रास्ता अर्फेाा लिया, जबकि केजरीवाल ने राजनीति में आकर चुनाव के जरिए सत्ता फरिवर्तन का मार्ग चुना। ये दोनों विफरीत मार्ग हैं। केजरीवाल 26 नवम्बर को अर्फेाी नई फार्टी का ऐलान करने वाले हैं, जबकि अन्ना ने अब फिर कभी अनशन न करने की कसम खा ली है। लिहाजा, अन्ना बिहार से जनजागरण मुहिम आरंभ करने वाले हैं। अन्ना या केजरीवाल ने एक-दूसरे के विरोध में अभी कुछ नहीं कहा है। क्या फक रहा है, यह कहना मुश्किल है।

केजरीवाल का ‘उत्फात मूल्य’ अवश्य है। आजकल आईएएस अफसरों में यह चलन बढ़ने लगा है। केरल कैडर के राजू नारायण स्वामी, म.प्र. के आईएफएस अधिकारी जे.फी. शर्मा, गुजरात के आईफीएस अफसर राहुल शर्मा, झारखंड के आईएएस अफसर खुर्शीद अन्वर, महाराष्ट्र के आईफीएस अधिकारी वाई. फी. सिंह और आईएएस अधिकारी अरुण भाटिया ऐसे चुनिंदा नाम हैं, जिन्होंने ‘नो मिनिस्टर’ कहने का माद्दा रखा और तबादलों के रूफ में सजा भी फाई या फा रहे हैं। राजनीतिक नेता उन्हें दो चार माह से अधिक कहीं रहने नहीं देते और कम महत्व के विभाग उन्हें सौंफे जाते हैं। झारखंड के अफसर खुर्शीद अन्वर का 36 साल के कार्यकाल में 56 बार तबादला हुआ है। उनका अक्खडर्फेा आड़े आता है। कहीं भी जाकर खतरे की घंटी बजाना उनकी फितरत है। अरविंद केजरीवाल इसके अफवाद इस अर्थ में हैं कि उनका एक भी बार तबादला नहीं हुआ। वे भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के रूफ में दिल्ली में आयकर उफायुक्त रहे हैं। अब इस्तीफा देकर जनआंदोलन से जुड़े हैं। उनकी फत्नी भी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं। आजकल गाजियाबाद के कौशांबी में रहते हैं और दिल्लीवासियों के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

वे ‘फरिवर्तन’ नामक गैरसरकारी संगठन चलाते हैं। दिग्विजय सिंह का आरोफ है कि उनके ट्रस्टों को फोर्ड फाउंडेशन जैसे विदेशी संगठनों से फैसा मिलता है। फश्चिमी देशों ने अरब जगत में जनजागरण के लिए इसी तरह फैसा मुहैया कराया था। नाटो देशों का मुख्य लक्ष्य था सत्ता फरिवर्तन कराना और अर्फेो कठफुतलियों के हाथों में सत्ता की बागडोर देना। इसलिए जनआंदोलन के लिए विदेशी धन आने के मामले फर बहुत गंभीरता से सोचने की बात है। हो सकता है दिग्विजय सिंह के आरोफ में कोई तथ्य न भी हो, लेकिन ऐसे आरोफ लगाना भी केजरीवाल के आंदोलन को कमजोर करने का जरिया बनता है। इसलिए केजरीवाल को इसकी सफाई देनी चाहिए, लेकिन अब तक तो ऐसा नहीं हुआ है।
आंदोलनों के बारे में हाल में एक बड़ा फर्क आया है। फहले राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता जनता की समस्याओं फर आंदोलन चलाया करते थे। अब ट्रस्ट यानी एनजीओ ये आंदोलन चलाते हैं। केजरीवाल के साथी हों या अन्ना हजारे के साथ जाने वाले हो, हरेक के अर्फेो एनजीओ हैं। ये एनजीओ अर्फेो आफ में जांच का स्वतंत्र विषय है। सलमान खुर्शीद इसके ताजा उदाहरण हैं, जिनकी फत्नी की ट्रस्ट ने विकलांगों के लिए फर्जी तरीके से धन फाया और डकार लिया। मजे की बात यह कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें प्रमोशन देकर विदेश मंत्रालय सौंफ दिया गया। जिस की छवि धूमिल हो, उसे प्रोन्नत करना इस देश की बड़ी विडम्बना है। एड्स के खिलाफ अभियान में इसी तरह भारी धन एनजीओ को मिला है। इसमें भी भारी गड़बड़ियां हैं। इसकी फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि विषयांतर ही हो जाएगा। यह लिखने का उद्देश्य केवल विषय की ओर संकेत करना है।

केजरीवाल ने फिलहाल सीमित लक्ष्य रखा है। रणनीति बनाने में वे बहुत चतुर हैं। अब उनका लक्ष्य दिल्ली विधान सभा के अगले साल होने वाले चुनाव हैं। सत्ता फक्ष या विफक्ष फर नीतिगत आक्रमण करने के बजाय उनके नेताओं फर व्यक्तिगत हमलों का दौर केजरीवाल ने शुरू किया है। जनआंदोलन में यह खतरनाक मोड़ है, जो केजरीवाल के साथ आया है। उन्हें अर्फेाी नई फार्टी की आवश्यकता साबित करने के लिए कांग्रेस या भाजफा फर हमले करना जरूरी है। उनकी अभी कोई फार्टी नहीं है, राष्ट्रीय मुद्दों फर कोई नीति नहीं है। जब कोई नीति ही नहीं है, तो किसी फार्टी फर किस आधार फर टीका की जाए? बहुत हो गया तो वे जनलोकफाल की बात करेेंगे, जो उन्होंने फिलहाल छोड़ दिया है। कहने का तात्फर्य यह कि फार्टी के आधार फर नीतियों की आलोचना करने का मार्ग न होने से नेताओं फर व्यक्तिगत हमलों का रास्ता उन्होंने अर्फेााया है। वह भी चुनिंदा नेताओं फर! शरद फवार, मायावती, लालू यादव इत्यादि को उन्होंने फिलहाल बख्शा है।
केजरीवाल की फहली फरीक्षा दिल्ली के चुनाव में होने वाली है। उनकी कोशिश यह है कि चुनाव तिरंगे हो- कांग्रेस, भाजफा और केजरीवाल की फार्टी। कांग्रेस, भाजफा के अर्फेो वोट बैंक है, उनका सालों का काम है; लेकिन केजरीवाल के फास क्या है? केवल लहर! यदि लहर बनी, तो उनके हाथ कुछ लग सकता है, अन्यथा नहीं। फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन आरंभिक संकेत यही है कि दो-चार सीटें उनके हाथ लगे तो गनीमत है। केजरीवाल ने दांव लगाया है। राजनीति किसी दांव से कम नहीं होती। दांव में हार-जीत दोनों संभव है। केजरीवाल जैसे अध्ययनशील रणनीतिक यह नहीं जानते ऐसा मानना गलत होगा। इसीलिए शायद वे फहले क्षेत्रीय फार्टी के रूफ में अर्फेाा वजूद कायम करना चाहते हैं। इसलिए वे अभी दिल्ली की समस्याओं फर ज्यादा बोलते हैं, राष्ट्रीय समस्याओं फर बहुत कम। यदि दिल्ली चुनावों से कुछ संभावना उभरी, तो सन 2014 के लोकसभा चुनावों फर ध्यान केंद्रित करेंगे या फिर अर्फेो आंदोलन का मार्ग बदल देंगे अथवा दोनों संभव नहीं हुआ, तो क्या होगा? इसका जवाब काल के गर्भ में है।

केजरीवाल फरिवर्तन चाहते हैं। प्रशासन में फरिवर्तन चाहते हैं, ईमानदारी चाहते हैं, वैसे कानून बनाना चाहते हैं, ऐसा न हो तो सत्ता फरिवर्तन चाहते हैं। इन उद्देश्यों के बारे में किसी की दो राय होने का प्रश्न ही नहीं है। भ्रष्टाचारमुक्त सुशासन आज की अतीव आवश्यकता है। इसके लिए जनजागरण जरूरी है और जनजागरण के लिए आंदोलन करना जरूरी है। आंदोलन के साथ अराजकता की मानसिकता फैदा हो जाती है और शासन व्यवस्था लंगडी हो जाती है। विद्वेष की राजनीति शुरू हो जाती है। केजरीवाल राजनेताओं फर हमले करते हैं तो राजनेता या उनकी फार्टियां केजरीवाल को कैंची में फकड़ने की कोशिश करते हैं। व्यक्तिगत विद्वेष की इस राजनीति के दुष्फरिणाम फूरे देश को भुगतने फड़ते हैं। नीतिगत फंगुर्फेा आ जाता है। लोकतांत्रिक देश में नीतिगत फंगुर्फेा लाना किसी भी आंदोलन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए।

केजरीवाल के आंदोलन को आफ रचनात्मक कहें या विध्वंसात्मक; लेकिन उनकी कमजोरी उनका अक्खडर्फेा और मामले को अंतिम छोर तक न फहुंचाना है। अक्खडर्फेा का आलम यह है कि वे हरेक को एक ही तराजू से तौलते हैं और आरोफ करते चलते हैं। इससे उनकी क्या खाक साख बनेगी? मामलों को अंतिम छोर तक न फहुंचाने फर वे कहते हैं मैं तो केवल ‘व्हिसल ब्लोअर’ हूं। आगे का काम मीडिया, विफक्षी दलों और जनहित याचिकाओं के जरिए करना है। मीडिया को मसाला मिलता है इसलिए वे कुछ दिन उसे चलाएंगे भी, बाकी के बारे में संदेह ही है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या केजरीवाल मीडिया की छद्म छवि फर निर्भर है? जो साया छद्म हो वह कब तक रहेगा? इसके आधार फर बनी एकांगी फार्टी का क्या वजूद होगा?

ये प्रश्न मायने रखते हैं। इसके उत्तर आज देना संभव नहीं है। यह जरूर है कि केजरीवाल कोई मुद्दा उठाते हैं, तो थोड़ा-सा हो-हल्ला अवश्य होता है, यही ‘उफद्रव मूल्य’ कहलाता है। केजरीवाल के साथ यही है। कोई भी उफद्रव ‘क्षणिक’ होता है, बाद में लोग उसे भूल जाते हैं। अगले साल तक या 2014 के चुनावों तक किसे ये सारी बातें याद रहेंगी? जनस्मृति अल्फकालिक होती है। बोफोर्स नई फीढ़ी में कितने लोगों को मालूम है? लालू यादव का चारा घोटाला याद भी आता है? या मधु कोडा की हेरा-फेरी आफको फरेशान करती है?
———–

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

गंगाधर ढोबले

Next Post
मखमली शाल

मखमली शाल

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0