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राम कथा और राष्ट्रीय अस्मिता

राम कथा और राष्ट्रीय अस्मिता

by डॉ. रमानाथ त्रिपाठी
in अप्रैल -२०१३, सामाजिक
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यदि कोई पूछे कि भारतीय संस्कृति की परिभाषा क्या है, तो नि:संकोच कहा जा सकता है कि राम का उदात्त चरित्र ही भारतीयता है। राम कथा का आदि स्त्रोत है वाल्मीकि रामायण। इस ग्रन्थ के आरम्भ में ही दिखाया गया है कि वाल्मीकि ऋषि समाज के सामने एक ऐसे महापुरुष का आदर्श रखना चाहते थे जो अत्यन्त सुन्दर हो तथा मानवता के जितने भी गुण हों, उन सबका वह पुंज हो। इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राम में उन्हें सारी विशेषताएं मिल गयीं।

रामायण घरेलू जीवन का महाकाव्य है। विश्व की किसी भी संस्कृति में ऐसा महाकाव्य उपलब्ध नहीं। महामानव राम का उदात्त चरित्र भारतीय समाज पर ऐसा छा गया कि देश की सभी भाषाओं में रामायण ग्रन्थ की रचना हुई। दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों में राम कथाएं लिखी गयीं। वनवासी बन्धुओं ने भी अपने ढंग से राम कथा को अपनाया। लोक-जीवन में विवाह के समय प्रत्येक वर राम हो जाता है और प्रत्येक कन्या सीता हो जाती है। जहां भी राम कथा गयी, वहीं के परिवेश में ढल गयी। लोगों को यह कथा अपने प्रदेश की लगी। पठित-अपठित, धनी-निर्धन सभी के घरों की बेटी-बहू सीता हो गयी।

राम कथा इसलिए सुप्रचारित हुई कि उसने हमें कुछ शाश्वत जीवन-मूल्य दिये हैं-

राम कथा का पहला जीवन-मूल्य है घर-परिवार और समाज के समक्ष प्रेम से भरे त्याग का आदर्श।

दशरथ ने कभी राम से नहीं कहा था कि तुम राज्य छोड़कर वनवास पर जाओ। राम ने पिता के सत्य की रक्षा के लिए वनवास स्वीकार किया था। उन्होंने भरत के लिए राज्य छोड़ा तो भरत ने भी भैया की खड़ाऊँ को प्रतिनिधि मानकर शासन किया। भाभी सीता, लक्ष्मण को पुत्रवत मानती थीं, तो वे भी भाभी के चरणों को छोड़ कभी पलक उठाकर उनका रूप नहीं देखते थे।

राम कथा का दूसरा जीवन-मूल्य है सदाचारमय जीवन यापन

राम ने कठिनाई में पड़कर भी कभी झूठ नहीं बोला। कैकेयी ने राम को निर्वासित किया था, किन्तु उसने भी राम के चरित्र की प्रशंसा की थी कि राम कभी किसी का धन नहीं छीनते, किसी निरापराध व्यक्ति को दण्ड नहीं देते और परायी नारी की ओर आंख उठाकर नहीं देखते।

तीसरा जीवन-मूल्य है समाज के सन्तप्त, दु:खी और उपेक्षित लोगों को अपनत्व देना

राम को दीनानुकम्पी बताया गया है। उन्होंने निषाद, वानर, रीछ, गीध, शबरी आदि वनवासियों को अपनाया था।

अन्तिम जीवन-मूल्य है आततायी क्रूर शक्ति से निर्भय होकर जूझना।
वन में ऋषियों ने राम से कहा था, ‘‘दुष्ट राक्षसों ने असंख्य ऋषि-मुनियों की हत्या की है। उनके कंकाल मन्दाकिनी के तट से लेकर, पम्पा-सरोवर तक बिखरे पड़े हैं। राम, इन नरभक्षी राक्षसों से हमारी रक्षा कीजिए।’’ राम उनके अनुरोध पर धनुष की प्रत्यंचा टंकारते, हुंकारते और भारी पगों से धरती कंपाते दक्षिण की ओर बढ़े थे।

वाल्मीकि रामायण राष्ट्रीय महाकाव्य है। इससे प्रेरणा प्राप्त कर भारतीय भाषाओं में अनेक काव्य, नाटक, पुराण आदि लिखे गये। धर्म, दर्शन, संस्कृति और समाज में राम के माध्यम से मर्यादाओं की स्थापना हुई। राम एक ऐसे सांस्कृतिक प्रतीक बन गये हैं कि जिनके माध्यम से प्रत्येक युग अपनी समस्याओं का प्रभावी समाधान खोज सकता है।

देश की समस्त आधुनिक भाषाओं- नेपाली, असमिया, बंगला, उड़िया, मैथिली, अवधी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, कश्मीरी, तेलुगु, तमिल और मलयालम में रामायण लिखी गयीं। इन सभी का मूल ढांचा वाल्मीकि रामायण है। आगे चलकर वाल्मीकि के महामानव राम को ब्रह्म मान लिया गया तो भक्ति-भाव के कारण कई प्रसंग कल्पित किये गए या नूतन दृष्टि से प्रस्तुत किये गए। वाल्मीकि रामायण में केवट-प्रसंग नहीं था। मध्य कालीन रामायण में इसे समाहित किया गया। इससे यह लाभ हुआ कि समाज के पिछड़े और उपेक्षित व्यक्तियों को भी राम कथा से जुड़ाव का अनुभव हुआ। वाल्मीकि की शबरी तपस्विनी थी, वह ऋषि-मुनियों की तरह ज्ञानवती थी। मध्य काल के रामायण में उसे भोली-भाली भक्त बना दिया गया। वहां रावण छाया-सीता का अपहरण करता है। सत्य सीता तो अग्नि में समा गयी थीं। असमी, बांगला और उड़िया भाषा की रामायण में सीता वहां की प्रथा के अनुसार काजल, आलता का शृंगार करती हैं, हाथों में शांखा (शंख चूड़ी) पहनती हैं और नेत्र नामक रेशमी वस्त्र धारण करती हैं। इन रामायण की नारियां मंगल अवसरों पर उलु ध्वनि लगाती हैं, अर्थात् मुंह के भीतर जीभ हिलाकर ऊ ऊ ऊ ध्वनि करती हैं। उड़िया नारी आज भी रात को पिसी हुई हल्दी का लेप शरीर पर करती है और प्रात: काल जलाशय पर जाकर उसे धोकर नहाती है। इस भाषा के रामायण की नारी-पात्र भी ऐसा करती दिखायी गई हैं। बांगला रामायण में राम-सीता के विवाह में ‘शुभदृष्टि’ प्रथा का अनुसरण होता है।

मराठी और कन्नड़ रामायण में सीता मंगलसूत्र पहनती हैं। तेलुगु और कन्नड़ रामायण में विवाह के समय राम-सीता के सिरों पर गुड़-जीरा रखने की प्रथा है। पूरे भारत में अनेक वनखंड हैं, जिनमें अनेक प्रकार के वनवासी रहते हैं। राम लगभग ग्यारह वर्षों तक दण्डकारण्य में रहे थे। वनवासी बन्धु राम को इसलिए पसंद करते हैं कि राम भी उन्हीं की तरह धनुर्धर और वनवासी थे। इन लोगों में राम कथा उपलब्ध है।
वनवासियों की राम कथाओं में उनके जीवन की झलक हैं। उन्होंने भी राम कथा को अपने परिवेश के अनुसार ढाला है। मध्य प्रदेश की कोरबा जनजाति की राम कथा में राम उन्हीं की तरह उड़िया के कोरपुट के पास बालि-सुग्रीव की कंदराएं और सीता कुण्ड है। यहां के घोर अरण्य में बोंडा नामक वनजाति रहती है। उनमें प्रचारित है कि सीता-माता यहां कपड़े उतारकर स्नान कर रही थीं। उन्हें देख गांव की कुछ लड़कियां हंस पड़ीं। सीता माता ने उन्हें शाप दिया, आज से तुम नग्न घुमोगी, तुम्हारा सिर मुण्डित होगा। लोग तुम्हें देखने से ही हंसेंगे। तब से इस जनजाति की महिलाएं कमर में एक छोटा वस्त्र पहने सिर मुड़ाये रहती हैं। मध्य प्रदेश की प्रजा और हुआंग नामक वनवासियों में भी इसी से मिलती-जुलती कथा प्रचारित है। सीता के शाप से ये भी प्राय: नग्न रहती हैं।

वनवासियों की मान्यता है कि सृष्टि में जो कुछ अच्छा है वह राम-सीता के वरदान के कारण है, जो बुरा है वह उनके शाप के कारण। सन्थालों की लोक-कथा के अनुसार से गिलहरी ने सीता का पता बताया। राम ने उसकी पीठ पर थेली रख दी। इसीलिए उसकी पीठ पर धारियां हैं।
भारत के चप्पे-चप्पे की भूमि पर राम कथा की छाप है। कितने ही पर्वत, झरने और कुण्डों के नाम रामायणी पात्रों से विंधित हैं। देश के कई स्थलों पर वाल्मीकि के आश्रम हैं। कई स्थलों पर सीता का पाताल-प्रवेश बताया जाता है, यहां तक कि कश्मीर के किसी गांव के बारे में ऐसा कहा जाता है। आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी के मुहाने के आसपास कई ऐसे गांव या स्थान हैं जिनका सम्बन्ध शरभंग, कबन्ध, शबरी आदि से जोड़ा जाता है। यही पर लंका की स्थिति भी बतायी जाती है। अरुणांचल प्रदेश में शोंग बूम नाम का एक तिरछा पहाड़ है। इसके बारे में मिश्मी नामक जनजाति की धारणा है कि हनुमान लक्ष्मण का उपचार हो जाने के पश्चात् इस पहाड़ को वापस लाकर यहां लापरवाही से छोड़ गये थे, इसी से यह तिरछा है। हिमाच्छादित पर्वत शिखरों को लांघकर ब्राह्मण और बौद्ध भिक्षुओं ने भारतीय संस्कृति, विशेषता राम कथा को तिब्बत, खोतान, चीन, मंगोलिया, साइबेरिया और जापान तक पहुंचाया था। दूसरी ओर क्षत्रिय योद्धा, ब्राह्मण और बौद्ध भिक्षु सागर की उत्ताल तरंगों से जूझते हुए म्यांमार (बर्मा), इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, फिलीपीन्स और श्रीलंका तक गये थे।
अपने ही देश में वाल्मीकि की आधिकारिक राम कथा में कई नये प्रसंग जोड़े गये हैं तो विदेश क्यों पीछे रहता, ऐसे कुछ प्रमुख प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं-

1. सीता रावण की पुत्री- जैन ग्रन्थों और भागवत महापुराण में सीता को रावण की पुत्री बताया गया है। ऐसा तिब्बत, खोतान, चीन, मंगोलिया आदि के रामायणों में भी है। सच में वाल्मीकि-रामायण के वेदवती प्रसंग का ही विस्तार है यह।

2. सीता द्वारा रावण का चित्र बनना- ऐसी कल्पना जैन कवियों ने की थी, फिर इसका प्रचार पूरे भारत में हुआ। सभी दक्षिण-पूर्व एशियायी रामायणों में इसे स्वीकार किया गया।

3. वाल्मीकि के द्वारा सीता के द्वितीय बालक की सृष्टि- सीता के एक ही पुत्र हुआ था। किसी कारण वाल्मीकि को भ्रम हुआ। उन्होंने सीता के एक अन्य पुत्र की सृष्टि कर दी।

4. रामायणी पात्रों का परस्पर रक्त-संबंध- मलेशिया की राम कथा में राम बालि और सुग्रीव के बहनोई बताये गए हैं और विभीषण राम के बहनोई। लवदेश (लाओस) की राम कथा में अंगद राम का पुत्र और रावण उनका बहनोई है।

5. बौद्धमत का प्रभाव- भारत में भी राम के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राम कथा को अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्तों के अनुरूप ढाल लिया गया था। ‘दशरथ जातक’ में बुद्ध को राम का अवतार-सा माना गया है।

जावा के सरतकाण्ड और मलेशिया के हिकायत सेरी राम पर मुस्लिम प्रभाव भी देखा जा सकता है।
भारत में राम कथा के माध्यम से उच्च नैतिक मूल्यों की स्थापना की गयी थी, ऐसा विदेशी राम कथाओं में नहीं है। उन्होंने बहुत-कुछ मनोरंजन के लिए इस कथा को अपनाया था। यहां की कथाओं में कुछ ऐसे तत्व मिल जाएंगे जो भारतीय जनों को सुरुचिपूर्ण नहीं लगेंगे। उनके मन को ठेस लगेगी। खोतान में सम्पत्ति का बंटवारा रोकने के लिए सभी भाइयों की केवल एक पत्नी होती है। वहां की रामायण में सीता राम और लक्ष्मण दोनों की पत्नी दिखायी गयी हैं। लाओस और मलेशिया की रामायणों में राम वानरियों के गर्भ से सन्तान उत्पन्न करते हैं। (ब्रह्मचारी) हनुमान मत्स्य और राक्षस नारियों से काम-क्रीड़ा करते हैं। तथापि, हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे राम इतनी दूर के देशों तक पहुंच सके। वहां के जनजीवन पर अभी भी उनका प्रभाव है।

इंडोनेशिया में बौद्धों और मुसलमानों के विवाह के अवसर पर रामायण अथवा महाभारत का कोई न कोई दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। राम कथा हमारी राष्ट्रीय पहचान है। विभिन्न प्रदेशों में इसका वेश और परिवेश भले

ही बदला हो, अंतनिती रागिनी नहीं बदली है। सभी राम कथाएं परिवार के त्याग-स्नेह की प्रेरणा देती हैं। यह परिवार-प्रेम ही विकसित होकर अखिल मानवता में परिणित हो जाता है। राम कथा की गंगोत्री वाल्मीकि-रामायण पर आधारित है, जिसमें रामचरितमानस जैसे ग्रंथों की संवेदना हो, बुद्धिजीवियों और आस्थावादियों दोनों को ग्राह्य हो, रामगाथा उपन्यास लिखकर ऐसा प्रयास किया है, जो बहुत लोकप्रिय और कुछ भाषाओं में अनुदित हुआ है।
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