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जलियावाला बाग नरसंहार

जलियावाला बाग नरसंहार

by हिंदी विवेक
in अप्रैल -२०१३, सामाजिक
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कैमरून के श्रद्धा-सुमन के मायनेे
प्रवाह के विरुद्ध जब कोई घटना होती है, तो उसका असर बहुत ज्यादा होता है। प्रधानमन्त्री डेविड कैमरून ने अमृतसर के जलियावाला बाग में हुए नरसंहार को शर्मनाक बताकर सभी को चौका दिया। ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री अपने ही देश के एक तानाशाह ब्रिगेडियर के कहने पर हुए नरसंहार में मारे गये लोगों के स्मारक पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करें, यह निश्चय ही आश्चर्यजनक है, लेकिन जलियावाला बाग में आज से 94 वर्ष पहले जो घटना हुई थी, उसके दर्द को एक माफी तो क्या करोड़ों माफी से भी कम नहीं किया जा सकता। कैमरून की श्रद्धांजलि तथा घटना को शर्मनाक कहना, सिर्फ एक औपचारिकता है और कुछ नहीं। नववर्ष के आगमन के उत्साह में पंजाब के अमृतसर जिले के अन्तर्गत आने वाले जलियावाला बाग में लोग आनन्द मना रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड ई. एच. डायर ने अपने जवानों को आदेश दिया कि जश्न मना रहे इन लोगों पर गोलियों की बौछार कर दो। डायर का आदेश होते ही 303 ली-एनफील्ड राइफल से 10 मिनट में एक हजार छह सौ पचास गोलियां चलायी गईं। इस नरसंहार में इंग्लैण्ड सरकार के दावे के अनुसार सिर्फ 379 लोगों की मौत हुई, जबकि अपुष्ट आंकड़े बताते हैं कि इस नरसंहार में 1000 से अधिक लोग मारे गये 2000 से अधिक घायल हुए। ब्रिटिश हुकूमत में 13 अप्रैल को 94 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस रक्तरंजित घटना के बाद जहां कुछ ब्रिटिश लोगों ने इसे एक बेहद क्रूर घटना करार दिया था, पर किसी भी ब्रिटिश शासनकर्ता ने इस घटना पर अफसोस तक नहीं जताया था। पिछले दिनों प्रधानमन्त्री डेविड कैमरून ने जलियावाला बाग नरसंहार के शहीद स्मारक पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किये। कैमरून ब्रिटेन के ऐसे पहले प्रधानमन्त्री हैं, जिन्होंने शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की।

जलियावाला बाग हत्या काण्ड (नरसंहार) भारतीय ही नहीं ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरतम घटना है। जनरल डायर के नेतृत्त्व वाली ब्रिटिश टुकड़ी ने अमृतसर के हरि मन्दिर साहिब के पास स्थित जलियावाला ंबाग में बैसाखी के मौके पर एकत्र हुए 20 हजार सिख, हिंदू और मुस्लिम लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दिया।

अमृतसर में बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को आनन्द और आन्तर्नाद दोनों का आगाज हुआ। रोलेक्ट एक्ट के विरोध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्याग्रह में शामिल होने के लिए लोग जलियावाला बाग में सुबह से ही पहुंचने शुरू हो गये थे। सभा दोपहर को आयोजित की गयी थी, पर लोगों का काफिला सुबह से ही सभा स्थल की ओर पहुंचना शुरू हो गया था। सभा शुरू हुए अभी एक घण्टा ही बीता था कि ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने दल-बल के साथ वहां पहुंच गया और पल भर में सभा स्थल लाशों में तब्दील हो गया। पंजाब के सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व बैसाखी के दिन शहर में कर्फ्यू लगा था।

कर्फ्यू के बावजूद लोगों का बैसाखी मनाने तथा जलियावाला बाग में होने वाली सभा के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ। जनरल डायर के मंसूबे क्या थे, यह तो किसी को पता नहीं था। पंजाब में मार्शल लॉ लागू होने के कारण तनाव का वातावरण तो जरूर था, पर इस बात की कल्पना किसी को भी नहीं थी कि जनरल डायर कोई ऐसा फरमान जारी करेगा जिससे कई लोगों की जान चली जाये, पर जनरल डायर ने मानवता को ताक पर रखकर अपने 50 जवानों से कहा कि भून डालो इन सब को, फिर क्या था गोलियों की गूंज से अफरा-तफरी मच गयी, कोई इधर गिरा तो कोई उधर। पूरा बाग लाशों की ढेर में तब्दील हो गया। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। कुछ तो बाग के पास स्थित कुएं में कूद गये। इस नरसंहार में कितने लोगों की जानें गयीं, इसका सही-सही आंकड़ा क्या था, यह किसी को पता नहीं, कोई बताता है कि इसमें 200 लोगों की मौत हुई, तो कोई 379 लोगों का आंकड़ा बताता है। अमृतसर के जिलाधिकारी कार्यालय में इस नरसंहार के शहीदों की सूची में 484 नाम दर्ज हैं। जबकि जलियावाला बाग में बने स्मारक में सिर्फ 388 शहीदों के नाम दर्ज हैं। शहीदों में 337 पुरुष, 41 अवयस्क बच्चों के साथ-साथ एक डेढ़ माह के बच्चे का भी समावेश है।

ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री डेविड कैमरून ने जलियावाला बाग स्मारक पर जाकर वहां शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करके यह कहा कि 94 साल पहले जो कुछ हुआ, वह बेहद शर्मनाक था, पर कैमरून ने इस घटना के लिए माफी नहीं मांगी। कैमरून ने यह तो माना कि जनरल डायर के आदेश पर जो कुछ हुआ, वह शर्मनाक था पर कैमरून इस घटना के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से माफी मांगने का साहस नहीं जुटा पाये, अगर वे साफ-साफ शब्दों में कह देते कि मैं ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री के रूप में जलियावाला बाग में हुए नरसंहार के लिए माफी मांगता हूं, तो शायद उनका न सिर्फ भारत अपितु पूरे विश्व में सम्मान बहुत ज्यादा बढ़ जाता। खैर कैमरून ने 94 वर्ष बाद इस सच को स्वीकारने का साहस तो बटोरा कि जनरल डायर ने मानवता को कलंकित करने का काम किया था। शहीद स्थल पर 25 मिनट तक रुकना ही यह संकेत देता है कि कैमरून को शहीदों के बारे में बहुत कुछ जानने की उत्कंठा थी। कैमरून खुद जलियावाला बाग नरसंहार के साक्षी नहीं रहे हैं, उन्हें इस घटना के बारे में जितनी जानकारी अलग-अलग क्षेत्रों से मिली होगी, उस आधार पर उन्होंने इस घटना को शर्मनाक बता दिया।

कैमरून ने ब्रिटिश सरकार की ओर से जलियावाला बाग नरसंहार के शहीदों के स्मारक पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करके इस घटना को 94 वर्ष बाद शर्मनाक बताया, क्या कैमरून के श्रद्धा-सुमन या घटना को शर्मनाक कहने के पीछे कोई राजनीति है, क्या कैमरून ने दो वर्ष बाद ब्रिटेन में होने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर श्रद्धांजलि अर्पित करके घटना को शर्मनाक कहते हैं। चूंकि वहां के अप्रवासी भारतीय ब्रिटेन के चुनाव में अहम रोल अदा कर सकते हैं, इसलिए कैमरून ने भारतीय लोगों की संवेदना कैश करने की कोशिश तो नहीं की, ऐसी चर्चाएं भी अब होने लगी हैं।

1997 में रानी एलिजाबेथ ने अपने भारत दौरे के समय अमृतसर का दौरा भी किया था। उस वक्त रानी के पति प्रिन्स फिलिप ने यह कहा था कि जलियावाला बाग हत्या काण्ड में मारे गये लोगों की संख्या जानबूझकर बढ़ाकर बतायी जा रही है, ऐसा बयान देकर खलबली मचा दी थी।
कुल मिलाकर यही कहना उचित जान पड़ता है कि किसी घटना को हुए लम्बे अरसे के बाद उसकी मांफी मांगने का कोई अर्थ नहीं होता, वह माफी चाहे कैमरून द्वारा मांगी जाये या फिर किसी और द्वारा, क्या इतिहास के गुनाहों को एक माफी से भुलाया जा सकता है। गलतियां करना हमारी फितरत है, लेकिन उन्हें सुधार लेने की ताकत भी हमें मिली हुई है, इसलिए तमाम धर्मों और संस्कृतियों में इसकी ताकत को महत्त्व दिया गया है। यहां यह देखना जरूरी है कि कैमरून की एक माफी जनरल डायर की तानाशाही कृत्य को कम करने में सक्षम है, शायद नहीं। बेहतर है कि भारत, ब्रिटेन दोनों सरकारें मिलकर यह कोशिश करें कि आतंकवादियों के रूप में जो जनरल डायर विचरण कर रहे हैं, उनसे टकराने का साहस हम सब में आ जाये। शायद यही

जलियावाला बाग में 94 वर्ष पूर्व मारे गये शहीदों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जो शहीद हो चुके हैं, उन्हें वापस तो नहीं लाया जा सकता, पर उनके लहू की लाज तो रखनी ही होगी, इसलिए जहां-जहां डायर जैसे बिग्रेडियर दिखें, उन्हें सबक सिखाया जाये। कैमरून के श्रद्धा-सुमन पर ब्रिटिश सरकार की जो प्रतिक्रिया आएगी, उस पर ही भारत-इंग्लैण्ड के रिश्तों की डोर टिकी हुई है।
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